माँ....महकाएं
🌱 *माँ,........*
*महकाएँ* 🌱
-------(कालजयी रचना)
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दिव्यजनों के,देवलोक से
कैसे,नाम भुलाएंगे।
कैसे बन्धुः इन्द्रधनुष के
प्यारे रंग चुराएंगे।
सिंधु,पिण्ड,नभ,हरि,मनुज
भी जिन माँ के आभारी हों,
माँ के प्रतिरूपों का बोलो,
कैसे कर्ज चुकाएंगे।
माँ को अर्पित और समर्पित,
कुछ अक्षर,शब्द सहेजे है।
उठी लेखनी मेरे कर से,
भाव उसी *माँ* ने भेजे है।
पश्चिम की आँधी में अपने
निर्मल मन को क्यों बहकाएँ।
आज नया संकल्प करें हम
*माँ* की ऋजुता को महकाएँ🙏🏻
👉
*मात्* प्रकृति ब्रह्माण्ड सुसृष्टा,
कुल संचालन करती है।
सूर्य,चन्द्र,नक्षत्र,सितारे,
ग्रह,उपग्रह,सब सरती है।
जग माता का रक्षण वंदन
पर्यावरण संरक्षण करलें।
ब्रह्माण्ड सतुलन बना रहे बस,
निज मन में संकल्प ये करलें।
मात् प्रकृति, माता जननी,
सृष्टि का साम्राज्य चलाए।
आज नया संकल्प करे हम,
*माँ*, की समता को महकाएँ🙏🏻
👉
*माँ* धरती सहती विपुल भार,
निज तन पर धारण करती है।
अन,धन,जल,थल,जड़ चेतन,
सबका सम् पालन करती है।
इस धरती का संरक्षण,
अपनी जिम्मेदारी हो।
विश्व *सुमाता* पृथ्वी रक्षण,
महती सोच हमारी हो।
माँ,वसुधा सम् अपनी माता,
दोनो का श्रृंगार न जाए।
आज नया संकल्प करें हम,
*माँ*, की क्षमता को महकाएँ🙏🏻
👉
*माँ* भारती,निज देश की,
नित आरती उतारती है।
निज संतति के सृजन कर्म से,
सबका भाग्य सँवारती है।
इसकी बलिवेदी प्रज्वल्य रहे,
बस इतना सा अरमान रहे।
दुष्ट जनों के आतंको से,
मुक्त रहे *माँ* ध्यान रहे।
भारत माता सी माता निज,
दोनों के हित शीश नवाएं।
आज नया संकल्प करे हम,
*माँ* की ममता को महकाएँ🙏🏻
👉
*मात्* शारदे सबको वर दे,
तम हर ज्योतिर्ग्यान दें।
शिक्षा से ही जीवन सुधरे,
संस्कार , सम्मान दे।
चले लेखनी सतत हमारी,
ब्रह्मसुता अभिनंंदन में।
सैनिक,कृषक,श्रमिक, माता,
और मानवता के वंदन में।
उठा लेखनी, ऐसा रच दें,
सारे काज सँवर जाए।
आज नया संकल्प करें हम,
*माँ* की शिक्षा को महकाएँ🙏🏻
👉
*माँ* जननी है हर दुख हरनी,
प्राणों का जो सृजन करे।
सर्व समर्पित करती हम पर,
निज श्वाँसों से श्वाँस भरे ।
माँ के हाथों की रोटी का,
स्वाद है सब पकवान परे।
माँ की बड़ बड़ लोरी वाली,
सप्त स्वरों से तान परे।
माँ काआँचल स्वर्ग से सुन्दर,
कैसे गौरव गान करें।
माँ के चरणों में जन्नत है,
क्या,क्या हम गुणगान करें।
माँ की ममता मान सरोवर,
सेवा सातों धाम का फल है।
माँ का तप हिमगिरि से ऊँचा,
हम भी उस तप के ही फल है।
माँ की सारी बाते लिख दे,
किस की वह औकात अरे।
वसुन्धरा को कागज करले
सागर यदि मसिपात्र करे।
और लेखनी छोटी पड़ती,
सब वृक्षों को कलम करे।
राम,खुदा,सत संत,पीर,जन,
माँ के चरणों नमन करे।
उस माँ का सम्मान करें हम,
वह भी शुभफल पा जाए।
सोच समर्पण की रखले तो,
वृद्धाश्रम *माँ* क्यों जाए।
मातृशक्ति जन की जननी है,
बात समझ यह आ जाए।
आज नया संकल्प करें हम,
*माँ* की सत्ता को महकाएँ🙏🏻
👉
*गौमाता* है खान गुणों की,
भारत में सनमानी है।
युगों युगों से महत्ता इसकी,
जन गण मन ने मानी है।
भौतिकता की चकाचौंध में
जन,धेनु कुपोषित हो न जाएँ।
अल्प श्रमी हम बन जाएँ तो,
गौ कटने की नौबत न आए।
निज माता सम् गौ माता हो,
भाव भक्तिमय बन पाए।
आज नया संकल्प करे हम,
*माँ* की शुचिता को महकाएँ 🙏🏻
👉
*माँ* गंगा,माँ यमुना,नर्मद,
कावेरी सी सरिताएँ।
वसुधा का श्रृंगार करें ये,
लगे खेत ज्यों वनिताएँ।
इनका भी सम्मान करें ये,
कभी तृषित न हो पाएँ।
सब पापों को हरने वाली,
*मात्* प्रदूषित न हो जाएँ।
सरिताएँ और माता निर्मल,
हम भी निर्मल साज सजाएँ।
आज नया संकल्प करें हम,
*माँ* की पावनता महकाएँ🙏🏻
👸🏻🌸👸🏻🌸👸🏻
मैने शब्द सुमन चुन चुन के
शब्दमाल में सादर जोड़े🙏🏻
भाव,सुगंध वीणापाणि के,
मैने तो बस दो कर जोड़े🙏🏻
मात् कृपा से हर मानव को
मानवता की सुधि आजाए।
आज नया संकल्प करें हम
*माँ* स्वयं कण्ठ में आजाए🙏🏻
---🌸🌸---.
सादर🙏🏻,
*बाबू लाल शर्मा*
सिकंदरा,दौसा©
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