संघर्षों से होड़ा होड़ी
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संघर्षों से
*होड़ा-होड़ी*
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पीड़ा जिसको मिली विरासत,
दुख प्रतिदिन का साथी हो।
बाधाओं से टकरा कर भी,
रखा सत्य को साथी हो🙏🏻
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पग पग पर मैने अवरोधक,
संघर्षों को झेला है।
रेत घरौंदे बना बना कर,
क्षणिक आपदा को ठेला है🙏🏻
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विपदाओं में जब तब मैने,
मदद माँगली अपनो से।
मिला तमाचा मुँह पर ऐसे,
ज्यों जागे हों सपनो से🙏🏻
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बन्धु सखा भी ऐसे प्यारे,
दुश्मन की दरकार नहीं।
कुटुम पड़ौसी हुए अराजक,
लगता है सरकार नहीं🙏🏻
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दैव योग ने कमर कसी है,
मैने कर ली *होड़ा- होड़ी*।
संघर्षों में *सोना* तपना,
आपद तू मत होना थोड़ी🙏🏻
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अपनो से भी हार न मानू,
गैरों से भी नहीं रुकूंगा।
वतन की खातिर जीना मरना,
आतंको से नहीं झुकूंगा🙏🏻
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जबतक तन में श्वाँस की डोरी,
करले भाग्य तू आँख मिचौनी।
कलम चलेगी जन हित मेरी,
करले मनकी, पीर सलौनी🙏🏻
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मन की अभिलाषा न छोड़ूँ,
विपदाओं से मुँह न मोडूं।
प्राण रहे जब तक तन मेरे,
लड़ू मरूँ पर पीठ न मोड़ू🙏🏻
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मातृभूमि का करके वंदन,
मैं अपना तन बलि चढ़ाऊँ।
प्रण मेरा है आज जमीं पर,
आसमां तक कदम् बढ़ाऊँ🙏🏻
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मैने विपदा महारानी के,
खट्टे .खारे सब पट खोले।
पाठक गण से उम्मीदें है,
राहत छिटकें,कुछ तो बोलें🙏🏻
©
✍
बाबू लाल शर्मा
"बौहरा"
सिकन्दरा,दौसा
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