दिव्य पायलिया
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*दिव्य-पायलिया*
जानकी-स्तुति
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पायल,दिव्य पद कमल,
वे दिव्य-देवी प्रमान् की।
जानकी हर ली दशानन,
बाजी लगादी जान की।
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हाः राम,हाः लषन, वीर,
हर ली ये रावण पातकी।
मानी न, आन लषन की,
दोषी बनी निज जानकी।
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क्रोधित जटायू भिड़ रहा,
ले जाने न दे माँ जानकी।
जानकी हित 'पर'कटाये,
परवाह नहीं की जान की।
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पथ में देख,कपिजूथ सिय,
किष्किंधा गिरि शान की।
पटकी...पायलिया राह में,
सोच समझ हिय जानकी।
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भटकत रामलखन वन में,
द्वय खोजत सिय मानकी।
मन बजती, रमती प्रभु के,
दिव्य पायलिया जानकी।
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हनुमत मिले द्विज वेष में,
मनभक्ति,प्रेम सम्मान की।
प्रभु ने बखानी,निजव्यथा,
वन राम लक्ष्मण जानकी।
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आ मिले हनु सुकंठ हरि,
सुरीति प्रीति पहचान की।
देखीं वे दैवी पायलें,
है वचन खोजें जानकी।
🙏🏻
प्रभुराम देखि,भ्रात पूछे,
पायल हैं क्या जान की।
लखन कहे करजोरि केे,
तात, क्षमा हो जान की।
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पद कमल तो पहचानलूँ,
पूजे , चरण श्री जानकी।
पायल पहचानू नहीं , मै,
पदरज हूँ माता जानकी।
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माता जगत की जानकी,
रघु वंश के सन् मान की।
पूजे चरण वंदन करे नित,
रघुवर प्रिया माँ जानकी।
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सादर🙏,
बाबू लाल शर्मा"बौहरा"
सिकन्दरा,दौसा
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