सो जाऊं

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"""""""""""""""""""बाबूलालशर्मा
.        *सो जाऊँ*
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आज नहीं  मन पढ़ने का,
आज नहीं,मन लिखने का।
मन विद्रोही,निर्मम  दुनिया,
मन की पीड़ा किसे बताऊँ,
माँ के आँचल में सो जाऊँ।🌼

मन में कई तूफान मचलते,
घट मे सागर भरे छलकते।
तन के छाले घाव बने अब,
उन घावों को ही सहलाऊँ,
माँ के आँचल में सो जाऊँ।🌼

तन थकता,मन उकताता,
याद करूं कुछ खो जाता।
तन में मन में तान मिले न,
कैसे  स्वर संगीत  सजाऊँ,
माँ के आँचल में सो जाऊँ।🌼

जय जवान के नारे सुनता,
सेना के पग बंधन सुनता।
सैनिक लाचार बढ़े आतंकी,
कैसे  अब नव गीत बनाऊँ,
माँ के आँचल में सो जाऊँ।🌼

जय किसान अन्न दाता है,
धान कमाए,गम खाता है।
आजीवन जो कर्ज चुकाये,
उनके कैसे  फर्ज  निभाऊँ,
माँ के आँचल में सो जाऊँ।🌼

गंगा,गैया,धरती अरु नारी,
जननी के प्रति रुप हमारी।
रोज विचित्र कहानी सुनता,
कैसे अब  सम्मान  बचाऊँ,
माँ के आँचल में सो जाऊँ।🌼

जाति धर्म  में बँटता मानव,
वोट के खातिर नेता दानव।
दीन गरीबी बढ़ती जाती है,
कैसे  किसको धीर बंधाऊँ,
माँ के आँचल में सो जाऊँ।🌼

रिश्तों के अनुबंध उलझते,
मनके चाहे पैबन्द उघड़ते।
नेह स्नेह की रीत नहीं अब,
प्रीत लिखूँ तो किसे सुनाऊँ,
माँ के आँचल में सो जाऊँ।🌼

वे , संस्कार मरयादा वाली,
नेह स्नेह की झोली खाली।
मातृशक्ति अपमान सहे तो,
माँ का प्यार कहाँ से लाऊँ,
माँ के आँचल में सो जाऊँ।🌼
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✍©
बाबू ला शर्मा "बौहरा"
सिकन्दरा  303326
दौसा, राजस्थान 9782924479
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