खरी खरी
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"""""""""""""""बाबूलालशर्मा
👍 *खरी...खरी*👌
भगत सिंह तो हों भारत में,
पर मेरा लाल नहीं हो वह।
शेखर,सुभाष ऊधमसिंह हो
पर मेरा लाल नहीं हो वह।
क्रांति स्वरों से धरा गुँजा दे,
पर मेरा लाल नहीं हो वह।
सरकारों की नींद उड़ा दे,
पर मेरा लाल नहीं हो वह।
संसद पर भी बम फोड़ दे,
पर मेरा लाल नहीं हो वह।
चाहे फाँसी के फंदे से झूले,
पर मेरा लाल नहीं हो वह।
देश धरा पर कुरबानी दे,
पर मेरा लाल नहीं हो वह।
आतंकी से लड़़ शहीद हो,
पर मेरा लाल नहीं हो वह।
अपराधी का खून पी जाए,
पर मेरा लाल नहीं हो वह।
दुष्कर्मी का गला घोंट दें,
पर मेरा लाल नहीं हो वह।
चोर,डकैतों से भिड़ जाए,
पर मेरा लाल नहीं हो वह।
मेरा लाल तो मौज करे बस,
कलक्टर,अफसर बन जाए।
और के लाल शहीद खूब हों,
फाँसी,गोली क्यों नहीं खाएँ।
जब ऐसी सोच हमारी हो,
फिर हाल वतन के क्या कहना।
इंसानी फितरत ऐसी हो,
फिर हाल चमन के क्या कहना।
जब नाक गड़ा कर रहना है,
फिर तौबा तौबा क्या कहना।
जब हृदय नहीं हो पत्धर हो,
मेरी ये कविताई क्या पढ़ना।
जब बहिन बेटियां खतरे में,
तो गीत अहिंसा क्या गाना।
जब रोज अस्मतें लुटती हों,
जीना कैसे और क्या मरना।
जब रहना है घोर अँधेरों मे,
जलसों में शमा का क्या जलना।
जब आँखों पट्टी बाँध रखी,
तो क्रांति मार्ग पर क्या चलना।
जब खून ही पतला पड़ जाए,
कवियों को कविता क्या कहना।
जब आँखो का पानी मर जाए,
फिर ये गंगा यमुना क्या बहना।
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सादर ✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा(राज.)
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