मात् पिता
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""""""""""""""""""बाबूलालशर्मा
. 🌹 *मात् पिता* 🌹
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मात् पिता हैं धरती अम्बर,
कोई साधारण सौगात नहीं।
ईश धरा पर होई अवतरित,
मनुज की हो औकात नहीं।
गर्भ मे कैसे भ्रूण बने हम,
मात् पिता निज स्वार्थ नहीं।
संरचना सृष्टि सतत चलाना,
हँसी खेल का सम्वाद नहीं।
बेटा हो चाहे, बेटी हो जाए,
प्रसवकाल में जां भी जाए।
खतरा निज प्राणों का लेते,
तब मात् पिता वे कहलाए।
शिशु को पालन-पोषण देना,
अपने जीवन दमन कर लेना,
दाता हैं,संतानो से लेना क्या,
वृद्ध स्वयम् को ही कर लेना।
मुनियों जैसा त्याग तपस्या,
कोई,साधारण संबंध नहीं है,
परम ईश का प्यार है इनमें,
मात् पिता अनुबन्ध नहीं है।
राम सिया और गौरी शंकर,
राधेकृष्ण की सेवा तब कर।
पहले मात् पिता पद सेवक,
सब तीरथ के फल मन कर।
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✍©
बाबू लाल शर्मा, 'बौहरा'
सिकन्दरा 303326
दोसा,राजस्थान 9782924479
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मात पिता को सादर🙏
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