वर्षा -विरहातप

🌼🌼🌼🌼🌼🌼
"""""'''"'"""""""""बाबूलालशर्मा
.  *वर्षा-विरहातप*
.       🌼🌼🌼
वर्षा  रानी कहाँ  रहती तुम,
चली गई हो दरश् दिखाकर।
मनवियोग यह तन तपता है,
देखें क्रोधित हुआ दिवाकर।🌞

तेरे विरह में सब दुखियारे,
पपीहा चातक मोर पियारे।
तन मन अश्रु झरत् मेरे भी,
भीषण  विरहातप के मारे।🌞

दादुर कोकिल छिपे हुए हैं,
कागों से तनमन डरे हुए हैं।
तन मन मेरे दोनो  व्याकुल,
आशंकी बादल भरे हुए है।🌎

स्कूलों मे बालक गाफिल है,
वृक्ष लगाते,ये भाव प्रबल है।
दिनभर पोथी संग हवा करूँ,
विरहातप के भाव सबल हैं।🌴

धरती सूखी गैया भूखी है,
खेत-फसल हुई बेरुखी है।
स्वेद-अश्रू  दोऊ  संगी मेरे,
रीत-प्रीत सब सूर्यमुखी है।🌻

सजीव सर्व चाहे काया को,
जीवन हित वर्षा-माया को।
मैं हर दिल तन ठंडक चाहूं,
सब याद करेअब छाँया को।🌳
.🌼🌼🌼🌼
✍©
बाबू लाल शर्मा, 'बौहरा'
सिकन्दरा  303326
दौसा,राजस्थान 9782924479
🌴🌴🌴🌴🌴🌴
"""""''''"""""""""""""""""""""""
वर्षा-विरहातप

Comments

Popular posts from this blog

सुख,सुखी सवैया

गगनांगना छंद विधान

विज्ञ छंद सागर