मुक्तक ...सावन
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"""""""""बाबूलालशर्मा
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💦 *सावन* 💦
🌻मुक्तक🌻
💦💧 *1.*💧💦
कह गये कंत कमावन जाऊँ।
सजनी सावन लौट के आऊँ।
रात दिन बाट निहारूँ उनकी,
सखी, पल पल देखूँ शर्माऊँ।
💦💧 *2.*💧💦
कलापि पपीहा दादुर बोले।
जलते हृदय में पावक घोले।
आँखों नींद लगे नहीं रैना,
जागत सपने नयन हिंडोले।
💦💧 *3.*💧💦
सखी ये पावस की ऋतु पावन,
बरषत घन मन समझत सावन।
पूरन होय अब इ यह मन राहत,
चाहत मोर मन झुलन झुलावन।
💦💧 *4.*💧💦
कोयल बैरिन चुप क्यों हो गई,
पिक चुप मेरी चाह मचल गई।
झूले डर गये आ गया सावन,,
मैं क्यों बिन झूले ही डर गई।
💦💧 *5.*💧💦
सावन ऋतु आई है सुहानी,
आजा बातें सजन बतरानी।
मेरी तिहारी करे हमारी,
तनकी भाषा मनके जुबानी।
💦💧 *6.*💧💦
मान मनुवा मौसम मन भावन,
पपीहा बोले आग सुलगावन।
चमके बिजलिया तनमन मचले
आजा साजन आ गया सावन।
💦💧 *7.*💧💦
क्यों गये सजना कंचन लावन,
सौतन सुवर्ण हमहिं बिसरावन।
बाट निहारत केश रजत भये,
देख पिया अब आ गया सावन।
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✍©
बाबू लाल शर्मा
सिकंदरा,303326
दौसा-राजस्थान 9782924479
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17 मात्रा भार मुक्तक
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