वर्षा/बिरखा
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""""""""""""""""""""""""""बाबूलालशर्मा
. . . 🌴 *वर्षा/बिरखा*🌴
. कुण्डलिया छंद
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बिरखा से जीवन रचे, प्राकृत और सजीव।
सबकेअपने हित सधे,पशुपक्षिन सब जीव।
पशु पक्षिन सब जीव ,मीत सब कोई चाहे।
ढोर मवेशी चरत ,सुगम विचरत चरवाहे।
कहे लाल कविराय,भर गये ताल व परिखा।
सबके सिरजे काज,संजीवनि होती बिरखा।
. 🌴🌼 *2* 🌼🌴
वर्षा ऋतु के आगमन, खुशियाँ बढ़े हजार।
कृषकों की आशा बँधे,चहल पहल बाजार।
चहल पहल बाजार,आय तीज और राखी।
खुशियां आस किसान,पर्यटन की बैसाखी।
कहे लाल कविराय,सबहि है जन मन हर्षा।
हरियल चूनर होय, धरा जब आवत वर्षा।
. 🌴🌼 *3* 🌼🌴
बिरखा करती बादली, लगती है अनमोल।
बिनपानी जन घन उड़े,कोइ न समझे मोल।
कोइ न समझे मोल, सदा गाली ही सुनते।
वर्षा हो या मीत, किसी के काम न सरते।
कहे लाल कविराय,भलाई करले मिनखां।
गाते गुण सब लोग, बादली करती बिरखा।
. 🌴🌼 *4* 🌼🌴
सावन भटकी बादली,मानस आयु किशोर।
जीवन इनके निरर्थक, वृथा मचावत शोर।
वृथा मचावत शोर , नहीं दोऊ उपयोगी।
बदली सुनते गाल , बादली मानस रोगी।
कहे लाल कविराय,दोउ सुनलो मन भावन।
आओ लौट सुपंथ, भटक मत प्यारे सावन।
. 🌴🌼 *5* 🌼🌴
सावन भटके बींदणी, झूले हैं चहुँ ओर।
चार दिनों के बाद में, कहाँ मिलेगी ठौर।
कहाँ मिलेगी ठौर,दूर घर वर सब भूले।
पड़ झूलों के फेर, वृथा तन मन में फूले।
कहे लाल कविराय,यादकर घरवर पावन।
अपने लेय सँभाल ,बींदणी चलते सावन।
. 🌴🌼 *6* 🌼🌴
बरसाती देखत घटा ,बरसत सावन नैन।
पिछले ही सावन मिले,तबसे मिले न चैन।
तबसे मिले न चैन, बैन नहि मुख से उचरे।
मन पंछी की भाँति,रैन दिन नभ में विचरे।
कहे लाल कविराय,देख भर आती छाती।
हिय मे उठत बवाल, घटा देखत बरसाती।
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RJ_1100/2018
बाब लाल शर्मा "बौहरा"
सिकंदरा,दौसा,राज.
9782924479
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