नारी
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"""""""""""""""""""""""""""""""बाबलालशर्मा
. 🤷♀ *नारी*🤷♀
. ( कुण्डलिया-छंद )
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नारी जग को धारती, धरती का प्रतिरूप।
पावन निर्मल सजल है,गंगा यमुन स्वरूप।
गंगा यमुन स्वरूप, सभी को जीवन देती।
होती चतुर सुजान,अभाव सभी सह लेती।
कहे लाल कविराय, मनुज की है महतारी।
बेटी .बहू समान , समझ लो दैवी नारी।
. 🏉🏉 *2* 🏉🏉
नारी सभी घर लक्ष्मी ,घर दर पालनहार।
भव सागर परिवार की,तरनी तारन हार।
तरनी तारन हार, विवेक से घर सँजोती।
पीहर और ससुराल ,समझ संवादी होती।
कहे लाल कविराय,यही है अचरज भारी।
कैसे चलि परिवार, सहेजो सब घर नारी।
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नारी शक्ति रूप रही,और शक्ति की स्रोत।
नारी के सम्मान पर ,घर खुशहाली होत।
घर खुशहाली होत, देवता भी सब रमते।
सब ग्रंथन को सार,गुरू जन सब है कहते।
कहे लाल कविराय,जोरि कर हूँ आभारी।
ममता नेह दुलार, उपकारी, शक्ति नारी।
. 🏉🏉 *4* 🏉🏉
नारी माता पुरुष की,भगिनि सुता या नार।
प्रेम समर्पण त्याग की, बहु खण्डी मीनार।
बहु खण्डी मीनार,खण्ड हर नेह सृजत है।
नेह निभाए खूब, स्वयं को अहम तजत है।
कहत लाल कविराय ,नेह की नदी हमारी।
इनका हो सम्मान, यही हक चाहत नारी।
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बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकंदरा,दौसा,राज.
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