रिश्तें

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~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
.    🐇 *रिश्ते* 🐇

रिश्ते नाते  रीत  प्रीत के,
      खून का रिश्ता फीका हैं।

  आभासी  रिश्ते चलते हैं,
         दूर का  रिश्ता  नीका है।

दूध का रिश्ता दूर हो रहा,
       शीश पटल मोहताज हुए।

  पास पड़ोसी अनजाने से,
        अनजाने  जन खास हुए।

भाई - भाई  हुए  अजनबी,
      बहने बन गई  परायी अब।

  मात पिता पर्वत सम भारी,
       रिश्तों की मनभाई अजब।

देश धरा घर  रिश्ताई हाँफे,
     नेताओं की  गद्दारी हो गई।

सेना संग कृषिकर्म भुलाए,
     श्रम से दूरी खुद्दारी हो गई।

स्वार्थ और आकर्षण बनते,
    अब तो  रिश्तों  के आधार।

सब कुछ भूले भौतिकता में,
    रिश्तों  का   होता   व्यापार।

रिश्ता होता है माता का,
        रक्त और दूध का सोता।

रिश्ता मातृभूमि का गहरा,
      त्याग तपस्या का ही होता।

रिश्ता अपने देश से प्यारा,
      तन मन की पावनता होता।

सबसे बढ़कर रिश्ता प्यारे,
        मानव का मानवता होता।

.            🐇🐇

✍🙏©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकन्दरा , 303326
दौसा,राजस्थान,9782924479
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