नशा-शराब

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~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
.       ढूँढाड़ी-कुण्डलिया- छंद
.               *शराब*

.                  🌼 *1* 🌼
हाँसी,खाँसी खो दिया,कितरा ही परिवार।
साँसी  बात  शराब  री, डूब गया घर बार।
डूब   गया  घर  बार, गरीबी घर  मैं  छाई।
दारू  को  है शौक, मिलै नहि  घर में पाई।
कहे लाल कविराय, यही  कंठा  री फाँसी।
कर शराब को त्याग,करै ली दुनिया हाँसी।
.                 🌼 *2* 🌼
दारू  दुख दारिद्रता,  दुश्मन  भी  दुस्वार।
सगे सनेही मीत जण, करे  नहि  एतवार।
करे  नहि  एतवार, भरोसो घर को कोनी।
माया  अरु  ईमान, डूबताँ   इनका  दोनी।
कहे लाल कविराय, मद्य  सौ जूते  मारूँ।
पीलो गम सरकार, मत पियो मगर दारू।
.                   🌼 *3* 🌼
नशो नाश को मूल़ है,और शान  प्रतिकूल।
मानुष जीवन आतमा,याँ कै नहि अनुकूल।
याँ कै नहि अनुकूल, बढ़ावै  या  अपराधी।
करै सबइ बरबाद, चले जब नशै री आँधी।
कहै लाल कविराय, बिगाड़ै न  सबै दरशो।
राख मान ईमान, मती  करजो  कदै  नशो।
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🙏✍©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकंदरा, दौसा,राज.
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