पायलिया
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~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
. 🌹 *हरिगीतिका छंद* 🌹
विधान. ११२१२,११२१२
. ११२१२,११२१२
. *दिव्य-पायलिया*
. *माँ*...जानकी
. 💥💥💥
पद पायलें,अनमोल थी
सिय दिव्य-दैव्य प्रमान् की।
हर जानकी दसकंध ने,
बाजी लगा कर जान की।
🙏🏻
हा,राम,लक्ष्मण आइए,
लंकेश रावण पातकी।
मानी न लक्ष्मण आन वे,
दोषी बनी निज जानकी।
🙏🏻
क्रोधी जटायू तब भिड़ा,
जाने न दे ,माँ जानकी।
सिय मान के,हित जान दे,
चिंता नहीं , की जान की।
🙏🏻
पथ में लखे,कपि जूथ थे,
मग देख शैल निशान की।
पटकी.वही..पद पायलें ,
मन सोच वे, तब जानकी।
🙏🏻
वन रामलक्ष्मण डोलते,
खोजें फिरे सिय मानकी।
बजती, सुने मन मानसी,
वे दिव्य पायल जानकी।
🙏🏻
हनुमत मिले द्विज वेष में,
मनभक्ति,प्रेम प्रमान की।
प्रभु ने कही,सुन ली व्यथा,
वन राम लक्ष्मण जानकी।
🙏🏻
आकर मिले, सुग्रीव से,
दुख मीत के,पहचान की।
हरि दर्श दैवी पायलें,
प्रण धारि खोजन जानकी।
🙏🏻
प्रभुराम जी,कहि बंधु से,
पायल यही ,क्या जानकी।
लक्ष्मण कहे कर जोरि केे,
भैया, क्षमा मम जान की।
🙏🏻
पद पूज्य वे ,पहचान लूँ,
रज पूजता पद जानकी।
पर पायलें, परखूँ नहीं ,
पदरज नमन, माँ जानकी।
🙏🏻
जग मात है,माँ जानकी,
रघु वंश के ,सन् मान की।
पद पूज के, आशीष लूँ,
रघुवर प्रिया माँ जानकी।
🙏🏻
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✍©
बाबू लाल शर्मा"बौहरा"
सिकन्दरा,303326
दौसा,राजस्थान,9782924479
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