गुलाब

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~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
🌹 *मत्तगयंद सवैया* 🌹
विधान:-भगण × ७ + गुरु गुरु
२११ × ७ + २२ (१२,११ यति)
चार चरण समतुकांत हो।
.     🌹 *गुलाब* 🌹
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लाल गुलाब खिले भँवरे तब,
आकर फूल मिले सुन आली।

बाद बसंत वियोग सहे द्वय,
हेर रहे भँवरे रस डाली।

आतप में तप दोपहरी तब
दीख नही रहती हरियाली।

हे भँवरे बिसरे यह बंधन,
नाहक फूल गुलाबन लाली।
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फूल गुलाब बड़े इतरावत,
सोच नहीं दिन दोय जवानी।

तोड़ भले जब भक्त चढ़ावत,
शेष महेश गणेश भवानी।

होय सुभाग खरीद सजावत,
केशन बीच सु नारि गुमानी।

क्यों इतरावत भृंग अकारण,
फूल गुलाब निरे अभिमानी।
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हाय कुभाग गुलाब बड़े जब,
शीश चढ़े शव अंत सवारी।

पंखुरियाँ मग में बिखरावत,
मानव भूल गुलाब बिचारी।

राह बचे कुछ पंखुरियाँ तब,
फेंक मशान चिता पर डारी।

कौन रचे यह भाग्य अभागन,
फूल गुलाबन किस्मत हारी।
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✍©
बाबू लाल शर्मा,"बौहरा"
सिकंदरा, 303326
दौसा,राजस्थान,9782924479
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