विरहा
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~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
. 🐚 *दुर्मिल सवैया* 🐚
विधान:- आठ सगण ११२×८
१२,१२यति,४चरण समतुकांत
. *विरहा*
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पिक बोल सुने,तड़पे विरहा,
मन मोर शरीर सखी हुलसे।
अब रंग बसंत चढा सबको,
तन आज मसोस रही मन से।
वन मोर नचे तितली भँवरे,
सब मीत बनात फिरे कब से।
पिय सावन आ कर लौट गये,
तब से न मिली तन से उनसे।
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भँवरे रस पान करे फिरते,
तितली मँडराय रही रस को।
पिक कूजत पीव मिले मन के,
वन मोर चहे वसुधा रस को।
बस रंग बसंत यही समझे,
अब खंजन लौट रहे घर को।
मम कंत बने हुलियार सखी,
मन चाहत पीव मिले मन को।
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✍©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकंदरा,303326
दौसा,राजस्थान,9782924479
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