अपनापन
......................बाबूलालशर्मा
. *अपनापन*
अपनापन ढूँढे मनुज,
मानव से कर घात।
साझे के परिवार को,
जब से मारी लात।।
एकाकी परिवार मे,
खोए रिश्ते खास।
अपनापन का भाव तो,
लगता अब परिहास।।
आबादी ज्यों ज्यों बढ़ी,
हुआ विलग इंसान।
रहे अकेला भीड़ में,
एकाकी पहचान।
आपाधापी मच रही,
दुनिया में चहुँ ओर।
अपनापन ज्यों मर गया।
रिश्ते स्वार्थ चोर।।
माता करती नौकरी,
पिता कमाने जाय।
चाहत धन की बढ़ रही,
अपनापन कस पाय।।
रही सही मेटी कसर,
मोबाइल ने मीत।
वाट्स एप भजते रहें।
यह अपनापन रीत।।
रिश्ते मोबाइल हुए,
अपनेपन को त्याग।
लगता जैसे इस समय,
यही हमारे भाग।।
जुड़ें जमीं से तो लगे,
अपनापन अहसास।
दादा दादी लुप्त हैं,
खोए ससुरा सास।।
रिश्तों के संगत गया।
अपनेपन का भाव।
अब तो केवल बच रहा,
धन दौलत का चाव।।
मिले कहीं तो कृय करें,
मोल नहीं सद्भाव।
अपनेपन की खोज में,
अपने ही दे घाव।।
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✍©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा'
सिकन्दरा 303326
दौसा,राजस्थान,9782924479
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