भारती

.          *चंद्रिका छंद*
नगण,नगण,तगण,तगण गुरु
.      १११ १११ २२१ २२१ २
.          *भारती*
मन फितरत आशीष ईमान की।
यह हसरत है आज इंसान की।

कर कुदरत को मुक्त हैवान से।
हजरत सब है रिक्त दीवान से।

अरि दल मन से है बईमान येे।
सच सच कहता गीत ले मान ये।

सरहद पर सेना खड़ी भारती।
हर मजहब की आज ये आरती।

यह विनय सभी भारती कीजिए।
वतन हित यही गीत गा लीजिए।

अब जब यह सीमा सजे शान से।
जन गण मन माँ भारती मान से।

जब सिर उठता शान आवाम में।
तन मन धन को वार दो नाम में।

अब रिपुदल की हार संहार हो।
सरहद पर ही शीश शृंगार हो।

अब अमन तिरंगा रहे शान से।
यह चमन सजे भारती मान से।

बुलबुल कहती गीत जो तान से।
हलधर भरता पेट जो धान से।

जनहित हम भी काम को मान दे।
नव कलरव संगीत सम्मान दें।

परहित अपने काज आगाज हों।
जन मन सब संगी न नाशाज हो।

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✍©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकंदरा,303326
दौसा,राजस्थान,9782924479
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