क्या भूलें क्या याद रखें

.       💧 *स्वराँजलि* 💧
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~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
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*क्या भूलें क्या याद रखें....*
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रथी बने थे हिन्दी हित में,
बीड़ा नेक उठाया था।
दौसा से टोहाना तक को,
भारत में चमकाया था।

रश्मिरथी से मिलना था तो,
बने सारथी क्योंकर भाई।
नई उड़ान उड़ाकर साथी,
अपनों की अब नींद उड़ाई।

नई रोशनी,नई पहल थी,
नई उड़ान,उजालों की।
आराध्या का मान बढ़ाना,
इच्छा थी मतवालों की।

हिन्दी हित में कर्म करें यह,
ठानी थी जो अभिलाषा।
मन की आशा और निराशा
झूल रही अब सृजन पिपासा।

अभी उगे परवेज अभी तो,
धार कलम में आनी थी।
अभी सजाया ही था रथ को,
होनी प्रबल रवानी थी।

तान छेड़कर वीणा की तुम,
बोलो कैसे छोड़ गये।
रश्मिरथी से हाथ मिलाने,
रिश्ते नाते तोड़ गये।

सखा अनिल क्यों बिछुड़े जल्दी,
क्यों फिर मेल बिठाया था।
हिन्दी हित में साज सजाकर,
हम पर नेह लुटाया था।

क्या भूलें क्या याद करें हम,
साहित हित की सौगातें।
मिलना और बतियाना साथी,
कवि हितकारी वो बातें।

हम उस रथ के पहिए ही थे,
जिसमें कविजन बैठे थे।
कविजन भी उत्साही होकर
गहरे पानी पैठे थे।

हाँक रहे थे तुम उस रथ को,
जीत सत्य की करने को।
साहित्यिक सागर को जन जन,
के तन मन में भरने को।

रथी हीन रथ क्या दौड़ेगा,
अब तो ईश सहारा है।
बना कारवाँ बिखर न जाए,
जो अवशेष तुम्हारा है।

शक्तिहीन हो परिजन बैठे,
सृजनकार साथी सारे।
मार्ग दिखाना ध्रुवतारे सम,
स्थिर रहकर मध्य हमारे।

स्वप्न सँजोए मिलकर हमने,
कैसे वे साकार करें।
शेष रहे जो नाव खिवैया,
मिलकर गहन विचार करें।

सिर है नमित अनिल जी मेरा,
करता ईश इबादत हूँ।
अब हो गए आज हम बे दर 
लगता व्यर्थं हिदायत हूँ।

क्षति हुई साहित्यिक मन की,
कैसे मन की पीड़ा गाऊँ।
धार लेखनी हुई भौंथरी,
कैसे अब नव धार लगाऊँ।

साथ तुम्हारे पग उठते थे,
कैद कूप फिर हो जाऊँ।
आकर स्वप्न बताना साथी,
कैसे कर में कलम उठाऊँ।

नई उड़ान सिखाई हमको,
उड़ने को आकाश दिया।
हम भी कविजन पंक्ति में है,
ऐसा जो आभास दिया।

पंख कटे से हुए मीत अब,
सृजन चेतना सुप्त हुई।
नापेंगे मिल नील गगन को,
आशा जगी,विलुप्त हुई।

हम भी कुछ है सृजन क्षेत्र में,
जब तक ऐसा भान हुआ।
विधना की माया के आगे,
सपनों का अवसान हुआ।

दृष्टि दीप ध्रुवतारे जैसी,
यदि हमको मिल जाएगी।
मित्र तुम्हारी सृजन पताका,
दुनिया में छा जाएगी ।

नहीं रुकेगा बढ़ा कारवाँ,
हिन्दी हित में बढ़े कदम।
नई उड़ानें भरनी होगी,
भरना होगा जोश कलम।

मीत हमारा यही आपसे,
सच्चे मन से वादा है।
बढ़े कारवाँ याद रहे बस,
अब भी वही इरादा है।

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सादर 🙏
बाबू लाल शर्मा, बौहरा
सिकंदरा,303326
दौसा,राजस्थान,9782924479
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