मुंशी प्रेम चंद
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"""""""""""""""""""""""""""बाबूलालशर्मा
आ.मुंशी प्रेमचंद्र जी
के सम्मान म़े
सादर,समर्पित🙏
. 🌹 *दोहा छंद*🌹
प्रेम चंद साहित्य में , भारत की त़सवीर।
निर्धन,दीन अनाथ की,लिखी किसानी पीर।।
सामाजिकी विडंबना , फैली रीति कुरीति।
सब पर कलम चलाय दी,रची न झूठी प्रीत।।
गाँव खेत खलिहान सब,ठकुर सुहाती मान।
गुरबत में ईमान की , बात लिखी गोदान।।
बूढ़ी काकी आज भी, झेल रही धिक्कार।
कफन,पूस की रात भी,अब भी है साकार।।
छुआछूत मिटती नहीं, जाति धर्म के द्वंद।
मुंशी जी तुमने लिखा, हाँ बेशक निर्द्वंद।।
गिल्ली डंडा,खेलते, गबन करे सरकार।
नमक दरोगा अफसरी,आज हुई दरकार।।
कितनी लिखी कहानियाँ, पढ़ सके ईदगाह।
जितना इनको पढ सको,उतनी निकलेआह।।
उपन्यास सम्राट या,कह दो धनपत नाम।
मुंशी प्रेम चंद्र कहूँ , शत शत बार प्रनाम।।
युग का लेखक मानते,हम सब के आदर्श।
उनकी यादों को करें, तन मन में स्पर्श।।
🙏🙏🙏🙏🙏
✍©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकन्दरा 303326
दौसा,राजस्थान
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