प्रेम चालीसा
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~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
. *प्रेम चालीसा*
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दोहा👇
आदि शक्ति परमेश को,करूँ नमन नित नेम।
सृष्टि संचरी गुण रजो, वरण ईश सम प्रेम।।
मात शारदे कर कृपा, पूजित प्रथम गणेश।
*चालीसा* यह प्रेम पर, रचना रचन महेश।।
चौपाई👇
विधि विरंचि के मन यह आये।
सृष्टि हेतु नर नारि बनाये।।
बने अर्द्ध नारीश महेशा।
विलग शिवा शिव करि लोकेशा।।१
रचे शिवा से मनु सतरूपा।
सृष्टि हेतु नर नारि अनूपा।।
देव काम रति प्रेम जगाया।
विधि ने ब्याह विधान कराया।।२
प्रेम अंकुरित हुआ उभय तन।
सृष्टि संचरी प्रेम सुफल बन।।
प्रेम बना वरदान सृष्टि जन।
मानव दानव दैव दृष्टि मन।।३
दैहिक दैविक भौतिक प्रेमा।
सृष्टि संतुलन हित चित नेमा।।
रीति प्रीति मय प्रेम अनूठा।
सत्य काम रति,अरु सब झूठा।।४
उमा शंभु युग प्रेम प्रमानी।
यज्ञ अग्नि भा भस्म भवानी।।
वर्ष सहस दस तपि हिम कन्या।
वरण प्रेम शिव जीवन धन्या।।५
हरि लक्ष्मी,शचि इन्द्र कहानी।
देव लोक बहु प्रेम निशानी।।
सतयुग विमल प्रेम यश बीता।
जीव जगत मय प्रेम पुनीता।।६
बही प्रेम नद गंगा अविरल।
मनु सतरूपा मानस अविचल।।
मनु सतरूपा करि तप भारी।
वर दीन्हे तिनको त्रिपुरारी।।७
त्रेता समय राम अवतारा।
आदि शक्ति सिय वर अनुसारा।।
प्रेम राम सिय सत पारायण।
सद ग्रंथन वरणे रामायण।।८
चौदह वर्ष प्रेम हित सीता।
राम प्रेम हित अरिकुल जीता।।
लखन उर्मिला प्रेम प्रवीना।
हनुमत प्रेम भक्ति आधीना।।९
कथा प्रेम की विविध अनंता।
प्रेम विवश हरि मानुष संता।।
नर वानर दानव खग देवा।
बंधित प्रेम परस्पर सेवा।।१०
नारद शारद शेष महेशा।
प्रेम विवश महि चंद्र दिनेशा।।
कीट पतंग जीव जड़ नाना।
प्रेम काम वश सब जग जाना।।११
सागर से भी वर गहराई।
नभ से उच्च प्रेम प्रभुताई।।
ईश भक्ति सम प्रेमाराधन।
रीति प्रीति भू बरसहिँ सावन।।१२
प्रेम विवश महि भ्रमें दिवाकर।
करे प्रकाश चंद्र निस आकर।।
कर परिकम्मा प्रेम जताते।
वर्ष माह दिन ऋतु बन जाते।।१३
द्वापर प्रेम प्रतीत प्रतीका।
पावन पुण्य प्रीति पथ नीका।।
कंस काल वश बुद्धि हताशा।
करे जतन बहु जीवन आशा।।१४
कारागार बहिन पितु कीना।
प्रेम विवश वसुदेव अधीना।।
सत्य प्रेम की कठिन परीक्षा।
कृष्ण जन्म परिपूर्ण प्रतीक्षा।।१५
धन्य देवकी पति वसु यौवन।
सिर धरि प्रेम बचाये मोहन।।
मोहन प्रेम प्रीत रखवारे।
बने पितर हित नंद दुलारे।१६
ग्वाल बाल परिजन समुदाई।
प्रेम प्रीत हरि जगत निभाई।।
गो,गोधन,गिरि, ग्वाल,कदम्बा।
वन तरुवर हरिजन अवलम्बा।।१७
रति राधा, हरि काम प्रतीका।
लीला रास करे ब्रज नीका।।
राधे राधे कृष्ण जपे मन।
कान्हा रटती राधा वन वन।।१८
भाई बहिन पिता सखि माता।
सबसे कान्हा प्रेम निभाता।।
प्रेम शक्ति पर्वत उठवाये।
नाग कालिये फन नचवाये।।१९
प्रेम प्रीति ग्वालिन घट फोड़े।
खा दधि माखन बाँह मरोड़े।।
लोभ छाछ के नचे कन्हैया।
मोहनि मोहन ता ता थैया।।२०
पितर प्रेम अरु हरिजनताईं।
कंस हते जन मुक्ति दिलाई।।
शक्ति प्रेम की अजब निराली।
सखियाँ विरहा गोकुल वाली।।२१
"भ्रमरगीत" लिख सूर जताये।
कान्हा उद्धव तहाँ पठाये।।
उद्धव भ्रमर बना नित डोले।
निर्गुण भक्ति गोपियन बोले।।२२
जैसे गुंजन करता मधुकर।
निर्गुण गान गा रहा मनहर।।
कलियाँ सुने न सुनती गोपी।
केवल ईष्ट भजे बिन कोपी।।२३
कलियाँ ज्यो चाहे दिनकर को।
प्रेम विवश गोपी गिरधर को।।
हारे ज्ञानी बहुत सुधारक।
प्रेम बाण होते अति मारक।।२४
निर्गुण पथिक मधुप पचि हारे।
कृष्ण प्रेम मय गोपि निहारे।।
गये कृष्ण पहिँ प्रेम बखाने।
मधुप कहें, गिरधर सब जाने।।२५
प्रेम परीक्षा लिये कन्हाई।
गोपिन दरश परस सुखदाई।।
प्रेम सुरीति जीत जग जानी।
प्रेम भक्ति गोपी सनमानी।।२६
षोडस सहस नारि सम्मानी।
आदर सहित बखानी रानी।।
नारि हृदय अति पावन गहना।
प्रेम विवश विरहा मन सहना।।२७
कुन्ती बुआ, बहिन पाँचाली।
प्रेमिल उपवन कान्हा माली।।
विदुर परसवी प्रेम भरोसे।
छिलके खाते नेह परोसे।।२८
भीष्म, सुभद्रा अर्जुन कृष्णा।
प्रेमिल कृष्ण मिटाते तृष्णा।।
सखा प्रेम हित सारथ करते।
धरा धर्म हित गीता कहते।।२९
प्रेम मनुजता संग दिखाया।
कुरुकुल अरु निजवंश कटाया।।
प्रेम प्रतीत सुरीत निभाई।
विप्र सुदामा प्रीत मिताई।।३०
कविजन लिखे प्रेम के सागर।
प्रेम उलीचा भरि भरि गागर।।
रुकमनि धीर प्रेम पग धारी।
कृष्णा की विस्तारी सारी।।३१
प्रेम प्रदाता प्रेम पुजारी।
बंशी धारी कृष्ण मुरारी।।
राधा रानी प्रेम दिवानी।
अमर प्रेम की अमिट निसानी।।३२
शिव के माथ धेनुमति सारी।
कृष्ण साँवरा यमुना कारी।।
प्रेम की महिमा जल नद गावे।
कल कल करती सिंधु समावे।।३३
अनुपम प्रेम काम कलिकाला।
अचरज सत्य कहीं मतवाला।।
उभय पक्षीय प्रेम विधानी।
एक पक्षीय मन अनुमानी।।३४
ईश मनुज धन सत्ता नारी।
शक्ति सुरा बहु रूप पुजारी।।
तदपि प्रेम जग आसन ऊँचा।
प्राकत जागृत जगत समूचा।।३५
नृप दुष्यंत प्रेम मय करनी।
शकुन भरत भव नृप की जननी।।
जन प्रिय भारत भरत सुकाजा।
प्रेम नेम सुख साज समाजा।।३६
नल दमयंती प्रेम प्रतीती।
प्रेम परीक्षा अनभल बीती।।
स्वर्ग अप्सरा भू पर आई।
प्रेम प्रतीक सुरीत निभाई।।३७
इन्द्र अहिल्या अकथ कहानी।
छद्म प्रेम शशिकलुष निसानी।।
देश प्रेम चाणक्य निभाया।
ढाई आखर कबिरा गाया।।३८
ढोला मरवण मजनूँ लैला।
बहुत बतकही गावत छैला।।
कथा विविध साहित्य बखाने।
प्रेम पीर विरहा मन जाने।।३९
मीरा का हरि प्रेम रुहानी।
भक्ति सरोवर अथक कहानी।।
देह प्रेम तुलसी मन त्यागा।
राम चरित मानस जनि जागा।।४०
वीर शिवा, गोविंद गुमानी।
नाना, ताँत्या , झाँसी रानी।।
देश प्रेम मम वतन अजूबा।
प्रेम तिरंग कफन मंसूबा।।४१
दोहा👇
प्रेम प्रीत पथ त्यागते, पंछी पंथी प्राण।
सिर के बदले प्रेम के, प्रेमी प्रिया प्रमाण।।
त्याग प्रेम पर्याय हो , मिले प्रेम मँझधार।
शर्मा बाबू लाल मन, लाँघ न दर दीवार।।
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✍©
*बाबू लाल शर्मा, "बौहरा"*
*सिकंदरा, दौसा,राजस्थान*
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