नीर - नेह, युग-चालीसा

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~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

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दोहा--
मेघपुष्प  पानी  सलिल, आपः  पाथः तोय।
लिखूँ वन्दना वरुण की,निर्मल मति दे मोय।।१
मेह  नेह  का रूप जल, जीवन का आधार।
बिंदु  बिंदु  से सिंधु  है, समझ स्वप्न साकार।।२
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चौपाई--
प्रथम   पूज्य  गौरी  के नंदन।
मात  शारदे   का शुभ  वंदन।।
वरुण देव, जल महिमा गाथा।
लिखूँ  सुनाउँ  नवाकर माथा।।१
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नेह   नीर  मनुजात   निभाए।
भू  पर  तभी  नीर  बच  पाए।।
जल से जीवन यह जग जाना।
जल मे  प्राणवायु  को   माना।।२
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नभ  से  मेघ  पुष्प  बरसाए।
सलिल  स्रोत सारे सर साए।।
जल से  जीव और  परजीवी।
जल से वसुधा  बनी सजीवी।।३
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वर्षा जल  होता अति  निर्मल।
रक्षण करना सब को ही मिल।।
जल से  अन्न  अन्न  से जीवन।
जल बिन कैसे हों  धरती वन।।४
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रहे संतुलित वितरण जल का।
नीर सहेज रखें हित कल का।।
जल  कुल  भाग तीन चौथाई।
जल की  महिमा सके न गाई।।५
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घर  घर  में  वर्षा जल रक्षण।
सत संकल्पों  हित  संरक्षण।।
जल गागर  में  हो  या सागर।
तन और धरती भाग बराबर।।६
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बूँद बूँद जल  सुधा समझिए।
जल से जीवन मोल परखिए।।
धरती जल या वरषा जल हो।
नीर जरूरत  तो पल पल हो।।७
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जल से  पेड़  पेड़  से वसुधा।
नीर  न्यूनता  बहुता  दुविधा।।
प्राणी  तन  मे  रक्त  महातम।
सृष्टि हेतु जल जीवन आतम।।८
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नयन नीर सूखे नही अपने।
व्यर्थ नीर  खोएँ मत सपने।। 
वरुण  देव  हैं पूज्य हमारे।
धरा  चुनरिया  रंगत  डारे।।९
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सूर्य  ताप जल वाष्प बनाए।
पवन वेग नभ तक पहुँचाए।।
देव  इन्द्र  बादल  बन बरसे।
वर्षा जल  से  वसुधा सरसे।।१०
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दोहा--
जनहित पानी देशहित, जागरूक हो मीत।
जीवन के आसार तब, जल स्रोतों से प्रीत।।३
नीर  धरोहर  सृष्टि  की, रखलो इसे सहेज।
करना सद उपयोग है, अति दोहन परहेज।।४
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चौपाई--
कूप   बावड़ी  ताल  तलाई।
युगों  युगों  पय धार पिलाई।।
सब जीवों की प्यास बुझाए।
मीन मकर  मोती जल जाए।।११
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बाँध  नहर से फसल  सरसती।
खेत   खेत   मुस्कान  पसरती।।
शंख कमल जल बीच निपजते।
जिनसे   देव   ईश  सब  सजते।।१२
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वर्षा जल को बचा सहेजो।
यह  संदेशा घर घर भेजो।।
जल से ताल  तलैया कूपा।
बापी सरवर  सिंधु अनूपा।।१३
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बूँद बूँद  से घट भर जाते ।
दादुर   ताल  पोखरे  गाते।।
खाड़ी सागर से महासागर।
मरु भूमि में  अमृत  गागर।।१४
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नेह मेह का जल कण सपना।
छत का नीर कुंड भर अपना।।
झील बाँध सर सरित अनेका।
भिन्न रूप  रखते  जल  एका।।१५
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गाँव  राह  बहु  कूप  पुराने।
स्वच्छ रखों तब लगे सुहाने।।
सागर खारा जल भर ढोता।
क्रिस्टल बने राम रस होता।।१६
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गिरि  पर्वत  रज नीर सहेजे।
जीव जगत हित  धारा भेजे।।
शीत नीर जम  बर्फ कहाता।
बहे पिघल जल धार बनाता।।१७
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वही  धार नदिया  बन जाती।
कुछ नदियाँ बरसाति सुहाती।।
बरसे  जब   घन  घोर  घटाएँ।
ध्यान रहे  जल  व्यर्थ न जाए।।१८
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सम वर्षा कृषि हित सुखकारी।
अन्न  फसल  उपजाए   भारी।।
जल अतिवृष्टि  बाढ़ कहलाती।
अल्पवृष्टि  हो फसल सुखाती।।१९
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थार मरुस्थल जल अति न्यूना।
चतुर सुजन  जल  रखे सतूना।।
मध्यम  जल  वर्षा   हित कारी।
जीव   जन्तु   मानव  उपकारी।।२०
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दोहा--
वारि अंबु जल  पुष्करं, अम्मः अर्णः नीर।
उदकं घनरस शम्बरं, रक्ष मनुज मतिधीर।।५
हो आँखों में नीर तो, देख समझ जन पीर।
भू पर जल महिमा बड़ी, जानें मीत सुधीर।।६
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चौपाई--
कैलासन में पूज्य शिवालय।
नेह  नीर  से सजे हिमालय।।
हिमगल नीर, मेह  से नीरा।
बह के बने सरित गम्भीरा।।२१
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नदियाँ निज पथ स्वयं बनाती।
खेती फसल  धान   सरसाती।।
जीव जन्तु  वन  तरु संजीवन।
नद सर नीर  मीन मय धीमन।।२२
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घर घर टाँके हम बनवाएँ।
वर्षा जल से जो भरजाएँ।।
नदियों के तट तीर्थ हमारे।
पुरा  सभ्यता नदी किनारे।।२३
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बापी   पोखर  सरवर   सारे।
स्वच्छ रहें  जल स्रोत हमारे।।
नदियाँ ही  जन जीवन धारा।
प्यारा लगता सरित किनारा।।२४
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उत्तम जल की ये सद् वाहक।
गन्द प्रदूषण मत कर नाहक।।
नौका  चले  जीविका  पलती।
माँझी  चले   ग्रहस्थी  चलती।।२५
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टाँके स्वच्छ  भरो जल चंगे।
हर हर  बोलो  घर घर गंगे।।
नदी  नीर  पावन  जग माने।
सरिता को माँ सम सम्माने।।२६
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जल जीवन हित बहुत जरूरी।
अति दोहन बच मनुज गरूरी।।
गंगा  माँ   पावनतम    सरिता।
काव्य कार हारे लिख कविता।।२७
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श्रमिक  खेत  पर बना तलाई।
जीवट कृषक फसल लहराई।।
यमराजा  की  श्वास अटकती।
सबको  पाप मुक्त नद करती।।२८
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अपने  सरवर  बाँध हमारे।
घर के टैंक स्वच्छ परनारे।।
गंगा माँ  सम  पावन धारा।
छू कर दर्शन पुण्य हमारा।।२९
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गाँव गाँव जल स्रोत सँभालें।
स्वच्छ  किनारे  पूल बनालें।।
यमुना  यादें   गंगा  भगिनी।
कान्हा- लीला गोपी- ठगनी।।३०
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दोहा--
सरिता  तटिनी  तरंगिणी, द्वीपवती   सारंग।
नद सरि सरिता आपगा, जलमाला जलसंग।।७
सागर  सर  सरिता  सभी, सदा  सुभागे नीर।
मनुज  सभ्यता  थी  बसी, पुरा इन्ही के तीर।।८
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चौपाई--
कभी भूमि मरु पर था सागर।
मानुष  करनी  भटकी गागर।।
बह कर सरस्वती  नद  धारा।
अब तक  गर्व गुमान हमारा।।३१
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सरस्वती  की  राम  कहानी।
कहते  सुनते  पुरा  जुबानी।।
नदी  नर्मदा  का  हर कंकर।
लगता हमको भोला  शंकर।।३२
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माही  और   बनास   पुनीता।
मरु   मेवाड़ी  प्राण  प्रणीता।।
सरयू  घग्घर   माही   चम्बल।
नदियाँ सब धरती को सम्बल।।३३
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वर्षा  जल  बहने  से बचता।
तभी खेत में हलधर हँसता।।
नदियों पर जल बाँध बनाते।
बिजली हित  संयत्र  लगाते।।३४
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पेड़ लगा  कर  मेघ बुलाएँ।
शुद्ध रहे  जल स्रोतों आए।।
बाँध  बने  से  बहती  नहरें।
इनसे  जल स्तर भी   ठहरे।।३५
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नहरी  जल  खेतों तक जाए।
खेत  खेत  फसलें   लहलाए।।
हम भी घर  घर कुण्ड बनाले।
उस जल से बगिया महकालें।।३६
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जलपथ साफ हमेशा रखने।
संभव  घट टाँके रख ढँकने।।
इसीलिए  जल  नदी सफाई।
करना सब यह काज भलाई।।३७
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भूमि  नीर वर  गड़ा दफीना।
अतिदोहक नर है मतिहीना।।
नदी मिले  ज्यों  सागर नीरा।
पंच  तत्व  में  मिले  शरीरा।।३८
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घर घर  गाँव  शहर हो चेतन।
संग्रह  कर  लें  नीर निकेतन।।
तन  मन  नदियाँ  नीर सँवारो।
स्वच्छ नीर रख भावि सुधारो।।३९
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सखे बचाना घर घर पानी।
धरा रहे  मम चूनर  धानी।।
शर्मा   बाबू   लाल  सुनाई।
नेह  नीर लिख कर चौपाई।।४०
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टाँके  घर  घर  में  बन जाए।
बूँद  बूँद जल की बच जाए।।
चालीसा मन चित पढ़ लीजे।
जल नदियों का आदर कीजे।।४१
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दोहा--
अपगा लहरी निम्नगा, निर्झरिणी जलधार।
सदा सनेही  सींचती, करलो  नमन विचार।।९
नीर  वायु से  ही बने, पवन  नीर  से मान।
शर्मा  बाबू लाल यह, सहज शोध विज्ञान।।१०
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✍©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, *विज्ञ*
सिकंदरा, 303326 जिला- दौसा , 
 राजस्थान, ९७८२९२४४७९
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