दोहे करते बात, ( बुक)

 .              "आत्म विचार"

भाषा की व्याकता व सम्पन्नता उसके व्याकरण - छंद व अलंकारों से समझी जा सकती है।  इस दृष्टि से हिंदी आज विश्वभाषा के रूप में अपनी छाप व पहचान रखती है।  मुझे गर्व है कि इस मर्त्य जीवन में हिंदुस्तान में जन्म मिला,नीड़ मिला और हिंदी साहित्य सृजन सेवा का सौभाग्य मिला।  मातृभूमि और मातृभाषा की सेवा के अवसर प्राप्ति हेतु माँ भारती का आजन्म ऋणी हूँ।
.         हिन्दी साहित्य की विलक्षणता इसके अगाध छंद सागर में निहित है। छंद सागर में विविध छंदों में सबसे लोकप्रिय व व्यापक छंद 'दोहा छंद' का अपना ही महत्व है।  साहित्य पुरोधा , संत कबीरदास, तुलसीदास एवं संत दादू दयाल जी ने अपनी कृतियों से 'दोहा छंद' की लोकप्रियता को बुलन्दियों तक पहुंचाया था।
.      प्रभु गिरधर के प्रेम व माँ शारदे की कृपा से ही इस सरस छंद पर लेखनी चली, तो कवि गुरुजन व साथियों के सतत प्रोत्साहन से ही मेरी यह छंद यात्रा जारी है।
.       प्रिय परिजन एवं इष्ट मित्रों द्वारा स्वहित त्यागकर मुझे समयदान दिया तभी संभव हुआ यह पथ प्रशस्त। निशा की नीरवता ने दिया इस कठिन साधना में सहयोग, जब थकता तो तारों से बाते कर लेता छंद पथ पर बढ़ते हुए।
.          साहित्य समाज का दर्पण होता है। परन्तु छंद, साहित्य व साहित्यकार दोनो का ही दर्पण होता है।  और छंद का दर्पण देखना हो तो दोहा छंद में सहज ही दृष्टव्य होगा।
एक एक दोहा कवि की आत्मा से बात करता हुआ निकलता है।  इसीलिए इस पुस्तक का शीर्षक "दोहे करते बात" समीचीन लगा।
.     मानव, परिवार, देश धर्म, समाज, राजनीति,एवं वैश्विक जीवन के विविध यथार्थ एवं समस्याओं को दोहा छंदों के माध्यम से कहीं कुरेदा तो कहीं उकेरा गया है।
.        आज मानव जीवन की गुत्थियों,मन की घुण्डियों को समझना बहुत जटिल हो रहा है, इन जटिलताओं को समझने का प्रयास इन दोहा छंद रचनाओं में कर रहा हूँ।
.      हिंदी साहित्य पुरोधा ,साहित्य सारथी,साहित्य प्रेमी, साहित्य पाठक, नवोदित साहित्यकार , हिन्दी साहित्य के विद्यार्थीगण आप सभी की राय ही इस पुस्तक की सार्थकता सिद्ध और प्रसिद्ध करेंगे। 
.      "मैने तो बस कलम घिसी है, मन के भाव शारदे देती।"
 इस छंद को सहज और सरस बनाने हेतु सरल सुबोध भाषा शब्दों के साथ कुछ प्राचीन अर्वाचीन शब्दों के सुमेल से भाव गाम्भीर्यता पाठक को आनंदित व अचंभित करेगी। भाषा में चमत्कार हेतु एक ही वर्णाधारित शब्दों से दोहा रचने का कठिन मार्ग भी कई छंदों में आपको दर्शित होगा तो सुगम्य सहज भाव युक्त छंद भी पाठक के मन को उद्देलित करेंगे। 
वहीं दोहा छंद रचना विधान विद्यार्थियों व नवोदित रचनाकारों के लिए उपयोगी साबित होगा।
.     मुझसे मानवीय स्वभाव वश त्रुटियाँ अवश्यंभावी हैं, साहित्य के इस संक्रमण काल में- आप सभी सम्मानीय पाठकगण की राय पर ही मेरा विश्वास और मेरी आशा  आस्था व साख आधारित है, आप ही जताएँगे कि मेरा यह प्रयास, हिंदी, साहित्य, छंद शास्त्र , विद्यार्थी, एवं आमजन हेतु सार्थक रहा। आपके प्रोत्साहन से मेरा कठिन काव्य पथ  प्रकाशित होता रहेगा।

.           • जय हिन्दी, जय जय जय भारत •

दिनांक - २१ जून २०२०, रविवार
.                                     सादर,
.                        बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
.                        सिकंदरा, दौसा, राजस्थान


.            ~ दोहा छंद विधान ~
आओ दोहा सीखलें, शारद माँ करि ध्यान।
सीख  छंद  दोहे  रचें, श्रेष्ठ सृजन श्री मान।।
ग्यारह तेरह मात्रिका, चरण विषम सम जान।
चार चरण  का  छंद  है, दोहा  भाव   प्रधान।।
प्रथम  तीसरे  चरण  में, तेरह  मात्रा  ज्ञान।
दूजे चौथे  में  सखे, ग्यारह  गिनो  भवान।।
चौबिस मात्रिक छंद है, कुलअड़तालिस मात्र।
सुन्दर  दोहे  जो लिखे, वह साहित्यिक छात्र।।
.     दोहा आदि काल से ही हिंदी में लोक प्रिय छंद रहा है। दोहा चार चरणों का विषम मात्रिक मापनी मुक्त छंद होता है।
विषम चरण- प्रथम व तृतीय चरण में १३,१३ मात्राएँ होती है।
सम चरण- द्वितीय व चतुर्थ चरण में ११,११ मात्राएँ होती है।
1. प्रथम व तीसरे चरणांत
 में २१२ (जैसे-मान है )
या २ १११(जैसे --है  कमल)
2. दूसरे व चौथे चरणांत में
२१ गुरु लघु (जैसे आव,मान,आमान अवसान)
3. चरणों की शुरूआत कभी भी ५ मात्रा वाले शब्द (पचकल) से न हो।
4.तर्ज में गुनगुना कर देखें लय भंग हो तो बदलाव करें।
 मात्रा स्वतः ही सही हो जाएगी।
5. चरणों की शुरुआत जगण से (१२१) न हो। महेश,सुरेश,दिनेश ,गणेश आदि देव नाम मान्य है बाकी नही।।
*जैसे.....*
ऋचा बड़ा शुभ नाम है, वेदों  जैसी  भाष।
१२   १२  ११   २१ २,  २२    २२   २१
.            १३.             ,             ११
हिन्दी बिन्दी सम रखे,हरियाणा शुभ वास।।
२२    २२   ११  १२,  ११२२   ११   २१
.               १३       ,           ११
इस तरह सीखे
.                 .~~~बाबूलालशर्मा
.       *दोहा छंद विधान*
मात  शारदा  लें  सुमिर, सुमिरो  देव  गणेश।
दोहा रचना सीखिए, कविजन सुमिर 'महेश।।
दोहा  छंदो मे लिखो ,कविजन  अपनी बात।
तेरह ग्यारह मात्रिका, अड़तालिस  हो ज्ञात।।
प्रथम  तीसरे  रख चरण , तेरह  मात्रा  ध्यान।
गुरु लघु गुरु चरणांत हो,भाव कथ्य पहचान।।
विषम चरण के अंत गुरु, लघु लघुलघु का भार।
लय  में  गाकर  देख  लो,  होगा   शीघ्र  सुधार।।
द्वितीय चौथे रख चरण, ग्यारह   मात्रा  ध्यान।
सम चरणों के अंत में, गुरु लघु  सत्य विधान।।
पचकल से शुरु मत करो,कभीचरण कविवृंद।
भाषा  भावों  में  भरो,  मिटे  छंद   भय  द्वंद।।
चरणों  के प्रारंभ में, जगण  मानते  दोष।
नाम देव के होय तो, जगण करो संतोष।।
सम से ही चौकल सजे,
.       त्रिकल त्रिकल से मान।
भाव भरे  मन  में  रचे,
.          दोहे    सुन्दर   शान।        
समचरणों के अंत में, जो पचकल का योग।
दोहा भी सुन्दर लगे, सृजन  सुघड़ संजोग।।     
दोहा  छंदो  में  लिखा ,दोहा  छंद  विधान।
शर्मा  बाबू  लाल  ने, सीखें  रहित  गुमान।।
  .             _______
© बाबू लाल शर्मा,"बौहरा" विज्ञ
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान


.           देना है दातार तो ....
.               (दोहा छंद)
.                    १
देना  हो  दातार  तो, दे  शबरी   सी   प्रीत।
पवन तनय सी भक्ति दे, कर्ण सरीखा मीत।।
.               २
भ्राता देना ज्यों लखन ,यसुदा जैसी मात।
राम सरीखा  पुत्र हो, दशरथ जैसा तात।।
.             ३  
राधा जैसी हो प्रिया,  कुन्ती सम सु पुनीत।
भाग्य सुदामा से भले, तानसेन सम गीत।।
.               ४
रामायण  के दे पठन , गीता  संग  कुरान।
जैन बौद्ध सिख पारसी,सबसे भाव समान।।
.               ५
अक्खड़ पना कबीर सा, रस जैसे रसखान।
अर्जुन  जैसी   नींद  दे,  गीता  जैसा  ज्ञान।।
.               ६
रिश्ते साथी कृष्ण से, बर्बरीक  से बान।
तुलसी सा वैराग्य दे, सूरदास  सा ज्ञान।।
.               ७
कूटनीति चाणक्य सी, विदुर  सरीखी नीति।
चन्द्र गुप्त सा बल मिले, मीरा जैसी  प्रीति।।
.               ८
रावण जैसा ज्ञान दे ,हठ हम्मीर  समान।
राणा जैसी आन दे, चेतक  जैसा  मान।।
.               ९
पन्ना  जैसा त्याग दे, चंदन  सा  बलिदान।
पृथ्वी राज चौहान सा, देना प्रभु अभिमान।।
.               १०
वीर शिवा  सी  वीरता, सांगा  जितने  घाव।
भूषण सी कविता लिखा, सतसैया से भाव।।
.               ११
देना हो  सन्यास  तो, बना विवेकानंद।
दयानंद  सा धीर दे, परमहंस  आनंद।।
.               १२
चतुर बनाए तो प्रभो, ज्यों तेनाली राम।
दशरथ माँझी दे बना, परमारथ के काम।।
.               १३
साहस बोस सुभाष सा, दे मुझको दातार।
लाल बाल अरु पाल से, देना मुझे विचार।।
.               १४
हरिश्चन्द्र सा सत्य दे, बाली सा  वरदान।
पतंजली  सा योग दे, भामाशाही  दान।।
.               १५
भगत सिंह सी मौत दे, शेखर  सी  पिस्तौल।
ऋषि दधीचि सी देह दे, गुरु नानक  से बोल।।
.              १६
कफन तिरंगा रंग दे, जनगणमन का गान।
वतन शहीदी शान दे, बलिदानी  अरमान।।
.                   १७
मातृभूमि की गोद मे, हिन्दी हिन्दुस्तान।
शर्मा बाबू लाल तन, जन्में  राजस्थान।।
.               ________
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ


.                संस्कार
.                (दोहा)
पहचानो  ये  कौन है, पूजित  पुष्प  प्रमान।
नेह कुसुम सी रच रही,आँगन माँड मँडान।।
.              
 इंतज़ार शबरी करे, भक्ति सुकोमल भाव।
मूरत सिय राधा रमे, पुष्प कुसुम  सद्भाव।।
.              
सबको  देती नेह जो, देव सुवासी  गंध।
मैं कैसे सुमिरन करूँ, दीन हीन मति मंद।। 
.               
संस्कारी संस्कृति रखे, राखे पर्व तिवार।
ऐसी देवी  है भला, भली करे  करतार।।
.               ______
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ


.           सपना
.         (दोहा-छंद   
.               १
सपन सुभागी है सदा, उत्तम इसकी जात।
नींद रहे तक दो रहे, इकले  जगे  प्रभात।।
.                २
सपने जागृत आँख के, रखते सत बे चैन।
प्राप्त करे हम लक्ष्य को, तभी चैन मय रैन।।
.                ३
स्वप्न देश के देखिये, खुशहाली चहुँओर।
मेरे भारत में करे, स्वर्ण विहग शुभ भोर।।
.                ४
सपना सारे विश्व का, देखो मनुज सुजान।
जगत गुरू भारत बने, मेरा  देश  महान।।
.                 ५
जागत सपने देखिये, रखना जयी किसान।
सीमा रक्षित जो करे, कह दो जयी जवान।।
.                ६
चेतन सपने देख मनु , करले जय विज्ञान।
कर्म  सदा  ऐसे  करो,  होवे  देश  महान।।
.                ७
आँखों  में सपने  पले, लोकतंत्र  मजबूत।
जननी भारत माँ पितर, माने सभी सपूत।।
.                ८
सपने  देखो  प्रीत  के , चूनर  धानी  मात।
पेड़ लगा कर हरीतिमा, कीजे धरती गात।।
.               ९
सपने गुरबत के सजे, सबकी  करो  सहाय।
मानुष जीवन हो सुघर, हरि सन प्रीत लगाय।।
.               १०
रीत  प्रीत  के  भी सपन, देख  भारती  साथ।
सर्व समर्पण देश हित, मन मस्तक मय हाथ।।
.               ११
मेरे सपने यों फले, सत साहित्य प्रकाश।
शर्मा बाबू लाल की, एक यही  अरदास।।
.               ______
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ


.              सत्य-असत्य
.                (दोहा-छंद)
.                
सत्य सूर्य जैसा अड़िग, सुन्दर है जग मर्त्य।
मिश्रित यह संसार है, मिलते सत्य असत्य।।
.               
ईश्वर ने प्राकृत रची, मानव के सब कृत्य।
सृष्टा दृष्टा दो हुए, जग में सत्य असत्य।।
.              
धरा सत्य का रूप है, लक्ष्मी जग में मिथ्य।
दोनो  आवश्यक  हुए, जानो सत्य असत्य।।
.              
सत पुरुषों के वचन ही, होते  सच्चे कथ्य।
छुद्र मनुज संसार के, कहते सत्य असत्य।।
.              
साँचा मालिक एक है, बाकी  झूठे  भृत्य।
ईश्वर मानव दो बने, सच में सत्य असत्य।।
.             
दक्षिण पश्चिम की दिशा, कहते  हैं  नैऋत्य।
वास्तु शास्त्र से जानिए, सारे सत्य असत्य।।
.              
ईश्वर प्राकृत देव है, तीनों  सत्य  अमर्त्य।
झूठ मोह संसार का, जोड़ा सत्य असत्य।।
.                
प्राकृत के संसार में, मानव मत कर अत्य।
साँचे सविता जान ले, दुनिया सत्य असत्य।।
.               
खान पान में जानिए,भोजन पथ्य कुपथ्य।
जीवन के व्यवहार से, जानो सत्य असत्य।।
.                
सविता, पृथ्वी आसमां, इनसे  सारे तथ्य।
वैज्ञानिक खोजा करें, इनके सत्य असत्य।।
.               
जग में जिसकी रोशनी, सच्चा वह आदित्य।
दीपक तारे चंद्रमाँ, झिलमिल सत्य असत्य।।
.               
भारत देश महान है, अनुपम है साहित्य।
वेद,ज्ञान विज्ञान से, परखे सत्य असत्य।।
.               
सुख है मानव वांछना, दुख है जीवन सत्य।
सुख दुख दोनो संग में, जैसे सत्य असत्य।।
.               
सत्य सदा सम्राट है, झूँठों के अधिपत्य।
संत असत संसार में, जैसे सत्य असत्य।।
.                
करते रहो  विवेचना, तभी रहे औचित्य।
शर्मा बाबू लाल भी, कहते सत्य असत्य।।
.             _________    
© बाबू लाल शर्मा , बौहरा, विज्ञ


.                    याद आते है
.                   ( दोहा-छद)
१.
नेता  सुभाष  बोस  से, भारत  भू  पर  होय।
जीवन यौवन तेज तप, भारत माँ हित खोय।।
२.
शेखर चन्द्र आजाद भी ,नेता  हुए महान।
लोहा ले अंग्रेज से, मोह  किया कब  जान।।
३.
भगत सिंह सरदार थे, इंकलाब की शान।
देश धरा पर जो दिए, भरी जवानी जान।।
४.
बाल तिलक को देखिये, किये स्वराज बुलन्द।
अंग्रेजों   की   जेल  में, गाते   गीता   हिन्द।।
५.
गाँधी आँधी सम बने, भारत पूरे घूम।
गोरों भारत छोड़िए, खूब मचाई धूम।।
६.
वल्लभ बंधु  पटेल तो, नेता  थे  सरदार।
एकीकरण स्वदेश  का, बना नई सरकार।।
७.
नेहरु जी थे  देश के, नेता  खेवनहार।
नव निर्माता देश के, चाचा बन दे प्यार।।
८.
लाल  बहादुर  देश  के , नेता  पालन  हार।
जय जवान की बात ये,जय किसान सत्कार।।
९.
इन्दिरा जी ने कर दिए, पाक बंग दो टूक।
याद करें तो आज भी, उठे हिये में  हूक।।
१०
अटल बिहारी जी हुए, अपने  भारत  रत्न।
देश धरा के हित किए, जिनने खूब प्रयत्न।।
.              _______
 © बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ



.              आजादी के मायने
.                 ( दोहा-छंद)
१.
आजादी के मायने, क्यों निर्बन्धन शोध।
कर्तव्यों का भार है, अधिकारों का बोध।।
२.
मन मानी मानो नहीं,  स्वतंत्रता  के भाव।
जिम्मेदारी है बहुत, समझो सहज स्वभाव।।
३.
भोजन पोषण वस्त्र तो, मिले भवन के संग।
शिक्षा सेहत औषधी, हर  सामाजिक  अंग।।
४.
आजादी  मानो  तभी, हो  नारी  का  मान।
शिक्षित बेटी हो अभय, फले खूब अरमान।।
५.
आजादी कहते उसे,करे किसानी मान।
धरा  पूत  संतुष्ट  हो, पेट  भरे  इंसान।।
६.
आजादी  हम मान लें, प्रभुसत्ता  सरकार।
संविधान सेना सहित, संसद के अधिकार।।
७.
आजादी  के मायने, जय जवान  की शान।
रक्षा  खातिर देश की, हो सैनिक का मान।।
आजादी तब ही भली, खुशी रहे मजदूर।
रोजी  रोटी के लिए, कभी  न हो  मजबूर।।
आजादी समझें तभी, अवसर मिले समान।
भले  लोग  थामें रहें, भले  स्वदेश  कमान।।
१०
आजादी  के  फेर में, बढ़े  नहीं  अपराध।
दंड कठोर विधान हो, सुजन स्नेह आराध।।
११
आजादी मेरी यही, करूँ  कर्म  दिन रात।
सबके संगत मन रहे, मन से मन हो बात।।
१२
आजादी का अर्थ है,  तज कट्टरता    धर्म।
सनातनी  संस्कार है, सभी करें  सतकर्म।।
१३
जाति धर्म झगड़े नहीं, क्यों सामाजिक भेद।
आजादी के  हित बहे ,सबके  लोहू   स्वेद।।
१४
भ्रष्टाचारी  दूर  हों , शासन  या सरकार।
आजादी लगती तभी, सदाचार संस्कार।।
१५
चोरी चुगली हो नहीं, लूटपाट बद काम।
दीखे  आजादी  तभी, भले  भलाई राम।।
१६
गुरुजन माता अरु पिता, पाएँ सद् सनमान।
आजादी  संतान  की, भली लगे  तब जान।।
१७
लोकतंत्र हो  देश में, जन प्रिय हो  सरकार।
आजादी तब ही भली,जनमत का सतकार।।
१८
देश विदेशी  पर्यटन, सुखमय शुभ सद्भाव।
आजादी  सबको मिले, पंथ उपास चुनाव।।
१९
बच्चों को शिक्षा मिले, बाद मिले रुजगार।
बेटी  बेटा  सम  रहे , आजादी   उदगार।।
२०
क्षेत्र और भाषा नहीं, संस्कृति हो आधार।
अनेकता  में  एकता , आजादी   दरकार।।
२१
आजादी सु विकास की, मानव और समाज।
देश विकासे  सर्व जन, फिर मानवता साज।।
.                  _______
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ


.           मन हो रहा हताश
.              (दोहा छंद)
.                 १
अपनी भाषा  के बने, हम ही दुश्मन  मीत।
सोच फिरंगी मन रखें, बस बड़ बोले गीत।।
.                 २
निज की सोच सुधार कर, बदलें फिर संसार।
अंग्रेजी की  कार तज, शिशु को  दें संस्कार।। 
.                 ३
उड़ना छोड़ें पंख बिन, चलें धरातल शान।
हिन्दी हिंदुस्तान की, तब ही  हो पहचान।।
.                 ४
नशा उतरता  शीघ्र ही, ज्ञान  मरघटी  तात।
गया दिवस हिन्दी मना, वही ढाँक के पात।।
.                 ५
एक दिवस त्यौहार सा, जय जय हिन्दी फाग।
बारह महीने फिर वही, अपनी  ढोलक राग।।
.                 ६
हम ही हैं  दोषी बड़े, खुद अपनी सरकार।
अपने स्वारथ कर रहे, हिन्दी का प्रतिकार।।
.                 ७
कहने को माता  महा, वृद्धाश्रम  की शान।
एक दिवस ही कर रहे, हिन्दी का सम्मान।।
.                 ८
हिन्दी बिन्दी सम रखोे, तो हिन्दी हित पुण्य।
ऊँचे उड़ कर स्वार्थ में, मत कर हिन्दी शुन्य।।
.                 ९
मातृभाष  अवमान  से, मन  हो रहा हताश। 
हिन्दी नेह प्रकाश से, सत साहित्यिक आस।।
.               १०
दस दोहों में लिख रहा, हिन्दी की मन प्यास।
कवियों से ही बच रही, हिन्दी हित की आस।।
.            ------------
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


.                  बनें गुरू तब मीत
.                      (दोहा छंद)
 १ 
द्रोण सरीखे गुरु बनो, भली निभाओ रीत। 
नहीं  अँगूठा  माँगना, एकलव्य  से  मीत।।
२ 
एकलव्य  की बात से, धूमिल द्रोण  समाज।
कारण जो भी थे रहे, बहस न करिए आज।।
 ३ 
परशुराम  से  गुरु  बनो,  विद्यावान  प्रचंड।
कीर्ति सदा भू पर रहे, हरिसन तजे घमंड।।
 ४ 
गुरु चाणक्य समान ही, कर शासक निर्माण।
अमर बनो निज राष्ट्रहित, कर काया निर्वाण।।
५ 
वालमीकि से धीर हो, सिय पाए विश्राम।
लव कुश घोड़ा रोक दें, करें प्रशंसा राम।।
 ६ 
दास कबीरा की तरह, बनना  गुरु बेलाग।
ज्ञानी अक्खड़ भाव से, नई जगा दे आग।।
 ७ 
गुरु नानक सा संगठन, सत्य  पंथ आचार।
देश धरा हित त्याग में, करना नहीं विचार।।
 ८ 
तुलसी  जैसी लेखनी, कालिदास  सा  ज्ञान।
सूरदास से  दिव्य दृग, तब कर ले गुरु मान।।
 ९ 
मीरा अरु रैदास सी, अविचल भक्ति सुजान।
गुरु वशिष्ठ से भाग्य लिख, होना गुरू महान।।
१० 
तिलक गोखले सा हृदय, रखना आप हमेश।
देश  हितैषी  कर्म   हो, बनो  गुरू  परमेश।।
 ११ 
रामदेव  सा  योग  कर, तानसेन  से  गीत।
शर्मा बाबू लाल सुन, बने गुरू  तब मीत।।
.              _______
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ


.                   तुलसी
.                (दोहा छंद)
दिव्य छंद तुलसी रचे, भारत  हुआ कृतज्ञ।
मै, उनके  सम्मान  में, दोहे  लिखता अज्ञ।।

हुलसी  तुलसी गंध सी, सेवित  तुलसीदास।
भाव आतमा राम  से, मानस किया उजास।।

नरहरि जी सद्गुरु मिले, पायक हनुमत वीर।
दे रत्ना वली राम का, सुगम पंथ मति धीर।।

मानस  मानस  में  रखे, पहचाने  अरि मित्र।
तुलसी ने अनुपम रचा, रघुपति  राम चरित्र।।

सन्त असन्त  विवेचना, नारि  धर्म, नर कर्म।
मानस में  तुलसी लिखे, जीवन के सब मर्म।।

सुर नर मुनि गंधर्व के, लिखे चरित मतिमान।
दैत्य देव वानर मनुज,संस्कृति सहित प्रमान।।

काकभुशुण्डि गिद्ध गरुड़, जामवंत बलवान।
शबरी  केवट  मानवी, लिखे सहित सम्मान।।

भक्त संत  द्विज के लिखे, राज धर्म संदेश।
राजा  मुखिया मित्रता, रीति प्रीत परिवेश।।

सेतुसिंधु सर सरित गिरि, वन्य और वनवास।
आश्रम पावन गौतमी, लिखे अत्रि मुनिवास।।

लिखे हेम मृग मरीचिका, नारि हृदय की टेक।
रावण लंक निशाचरी, भक्ति विभीषण नेक।।

विविध छंद दोहे विविध, सोरठ लिखे अनूप।
चौपाई मय विधि विधा, तुलसी मानस रूप।।

संस्कृत हिन्दी बोलियाँ, अवधी,मिश्रण मान।
मानस के अतिरिक्त भी, रचे काव्य वरदान।।

याद करें सिय राम को, संगत प्रिय हनुमान।
मानस  दुर्लभ  भूलना, तुलसी  मान महान।।

तुलसी जन तुलसी हुए, घर घर मानस मान।
कंठ कंठ मणि  शोभते, तुलसी सत्य महान।।

तुलसी नभ के चंद्रसम, देते विमल प्रभास।
बाबू लाल चकोर जस, वंदित तुलसीदास।।

तुलसी  तुलसी गंध  सम, रमे राम के नाम।
शर्मा बाबू लाल का, शत शत उन्हें प्रणाम।।
.                ..........
© बाबू लाल शर्मा, "बौहरा" विज्ञ



.        (दोहा छंद)
.        गीता ज्ञान
.               १
कुरुक्षेत्र  रण सज्ज था, द्वय सेना तैयार।
माधव रथ के सारथी, अर्जुन रथ असवार।।
.               २
प्रिय परिजन सम्मुख खड़े, लड़ने  को बेचैन।
बंधु,गुरू,सुत,तात लख, भरे  पार्थ के नैन।।
.               ३
कहा युद्ध ठानू नहीं, परिजन से  प्रतिघात।
खून सने इस राज्य से, भले करूँ अपघात।।
.               ४
असमय अर्जुन मोह को, करना दूर सु काज।
कृष्ण  पार्थ  प्रबोधते, कहते  गीता  आज।।
.                ५
कर्म करो फल ताक मत, धर्म पथी बन पार्थ।
अमर आतमा जगत में, कहते  माधव सार्थ।।
.                ६
भावि भूत व आज जो, दीख रहा संसार।
सृष्टि चक्र परमातमा, अर्जुन ईश  विचार।।
.                 ७
जड़ चेतन मय जीव जग, जन्म ईश से पाय।
फिरे कर्म  करते  सभी, लौट ईश  में  आय।।
.                ८
मरते सब निज कर्म से, करो धर्म हित युद्ध।
परिजन प्यारे भूल जा, पार्थ भाव रख शुद्ध।।
.                 ९
क्या लाए थे जन्म से, मरते क्या  ले जाय।
धर्म रक्ष हित जो लड़े, पार्थ अमर कहलाय।।
.                 १०
पार्थ  चेत रण क्षेत्र मे, कर मे ले गाण्डीव।
धर्म युद्ध धरती बचे, बढ़ गये पाप अतीव।।
.                  ११
माधव अर्जुन बात ये, चली भली कुरु क्षेत्र।
देखा  रूप विराट फिर, पार्थ  उठे रण क्षेत्र।।
.                  १२
कर्म,धर्म जड़ जीव सब, विधना के आधीन।
हानि लाभ  जीवन  मरण, धर्म हेतु आसीन।।
.                  १३
गीता  सद उपदेश से, घर  घर पूजित आज।
तन मन निर्मल भाव से, सकल सुधारे काज।।
.                  १४
पढ़िए मनचित लाय के, गीता के उपदेश।
उपयोगी यह  सर्वदा, सर्व  काल हर देश।।
.                   १५
गीता के  उपदेश  से, जो  पाले  परिवार।
कर्म ईश को सौंप कर, पाते खुशी अपार।।
.                  १६
मोह  हटाया पार्थ का ,दे निर्मल  विज्ञान।
गीता अमृत सम रची, माधव दीन्हा ज्ञान।।
.                 १७
खण्ड अठारह लिख दिए, वेद व्यास सुपुनीत।
मनउँ  सृष्टि  सारांश  हो ,चारि  पदारथ  गीत।।
.                  १८
जीवन का  सब  मर्म हैं, गीता ज्ञान  प्रमान।
काम धर्म अरु मोक्ष का, विधना मान समान।।
.                 १९
गीता  पाठन ध्यान से, जागृत आतम होय।
विचलित मन हो धीरता, जीव आतमा दोय।।
.                 २०
गीता महिमा अमित है, सार तत्व दिखलाय।
पढ़े गुने समझे तभी, कर्म मोक्ष  फल पाय।।
.                  २१
सबकी निर्मल मति बने, गीता के उपदेश।
शरमा  बाबू लाल  की, चाह यही  संदेश।।
.                 ______
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ


.               भाषा
१.
माध्यम मन संदेश की, अभिव्यक्ति जन जान।
भाषा  से   लिखते  पढ़े, बोले  मानुष  मान।।
२.
भाषा मनु  पहचान है, मानवता की  शान।
सब जीवों से  भिन्न है, मानव के अरमान।।
३.
पग पग पर बोली फलै, भाषा सौ सौ कोस।
कहें भले मौखिक लिखित, भाषा के नवकोष।।
४.
भाषा  मन की  वाहिनी, मनोभाव  सु प्रचार।
मानव जन को लें परख, भाषा सद आचार।।
५.
देश विकास समाज भी, भाषा से प्रतिबद्ध।
निज भाषा,सम्मान ही, राष्ट्रभाष  अनुबंध।।
६.
भाषा राज समाज की, सब उन्नति को मूल।
राष्ट्र  एकता  बन  रहे, भाषा   के  अनुकूल।।
भाषा  ही  पहचान  है, मानव  जीवन  मूल।
बिनभाषा पशु खग भले, मानवता प्रतिकूल।।
८.
धर्म समाजी देश को, मानव  देश विदेश।
जो भाषा है  जोड़ती, भाषा  बने  विशेष।।
९.
भाषा से साहित रचे, अरु वैज्ञानिक खोज।
संवादी  परिभाष है, मानवता  की  ओज।।
१०
मनुज मिले वरदान यह, हास बुद्धि अरु भाष।
अभिव्यक्ति इन तीन की, भाषा से परिभाष।।
११
हिन्दी  भारत  देश  में, राजभाष  संयोग।
संवैधानिक मान्यता, सभी जगह उपयोग।।
१२
अंग्रेजी  परदेश  की,  गुरुतर  भाषा  होय।
बहुसंख्यक मानव इसे, विश्वपटल पर जोय।।
१३
बहु भाषी  मम  देश है, बहु धर्मी परिवेश।
विभिन्नता में  एकता, भाषा  हिन्द विशेष।।
१४
झगड़े   भाषावाद  के , पहले  देश  विशेष।
जनगणमन समझा सभी, झगड़ालू अवशेष।।
१५
भाषा बोली का फरक, कोयल काग समान।
बोले  रसना मन असर, भाषा  तीर  कमान।
.               _________
© बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ


. कृत्रिम चन्द्र कल्पना
.               (दोहा)
.             
कृत्रिम शशि परिकल्पना, चलती देश विदेश।
बच्चों की  प्रतिभा सुनो, होती  खूब विशेष।।
.             
चन्दा तू मत सोचियो, केवल तेरो राज।
चार दिना की चाँदनी, देय हमारे काज।।
.             
मानवता के पूत हम, करें नित नई खोज।
तेरी क्यूँ मर्जी  सहें, करे अमावस  दोज।।
.             
मानव  ने  दीपक  जला , मेटा  है  अँधियार।
बल्ब प्रकाशित कर दिए, करने को उजियार।।
.            
रवि से ऊर्जा खेंच कर, करते खूब प्रकाश।
अब ऐसी करनी करें,  ताके नहीं अकाश।।
.             
उभय चन्द्र हमने बना, टाँग दिया आकाश।
प्रति दिन जो रोशन रहे, ऐसा रहे प्रकाश।।
.             
मानव   के  बच्चे  हुए, अब  ऐसे  हुशियार।
नकली चन्दा जड़ दिया, बाँस जोड़ इकसार।।
.             
देखे  दुनिया  चाँद  है, आज करे  परिहास।
भावि समय में देखना, जब यह करे प्रकाश।।
.             
कृत्रिम चंद्र सुकल्पना, होनी है साकार।
ब्रह्मा, विष्णु ,महेश से, बच्चे दे आकार ।।
.                 _______
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ


 .          होली होनी थी हुई
.                 (दोहा छद)
.                     १ 
कड़वी  सच्चाई  कहूँ, कर लेना स्वीकार।
फाग राग ढप चंग बिन, होली  है बेकार।।
.                     २ 
होली होनी  थी हुई, कब  पहले  सी बात।
त्यौहारों की रीत को, लगा बहुत आघात।।
.                     ३ 
एक  पूत  होने  लगे, बेटी  मुश्किल  एक।
देवर भौजी  है नहीं, कित साली की टेक।।
.                     ४ 
साली  भौजाई  बिना, फीके  लगते  रंग।
देवर  ढूँढे   कब  मिले, बदले  सारे  ढंग।।
.                     ५ 
बच्चों के  चाचा  नहीं, किससे  माँगे  रंग।
चाचा भी  खाए नहीं, अब पहले सी भंग।।
.                     ६ 
बुरा  मानते  है  सभी, रंगत हँसी मजाक।
बूढ़ों की भी  अब गई, पहले  वाली धाक।।
.                     ७ 
पानी  बिन  सूनी  हुई, पिचकारी की धार।
तुनक मिजाजी लोग हैं,कहाँ डोलची मार।।
.                     ८ 
मोबाइल   ने   कर   दिया, सारा   बंटा ढार।
कर एकल इंसान को, भुला दिया सब प्यार।।
.                     ९ 
आभासी  रिश्ते  बने, शीशपटल   संसार।
असली  रिश्ते भूल कर, भूल रहे घरबार।।
.                     १० 
हम  तो  पैर पसार कर, सोते चादर तान।
होली  के  अवसर लगे, घर मेरा सुनसान।।
.                     ११ 
आप  बताओ  आपके, कैसे   होली  हाल।
सच में ही खुशियाँ मिली, कैसा रहा मलाल।।
.                      ~~~~~
© बाबू लाल शर्मा,"बौहरा"


.               प्रीतम पाती प्रेमरस...
.                   ( दोहा-छंद)
.                        
पावन पुन्य पुनीत पल, प्रणय प्रीत प्रतिहार।
जन्मदिवस शुभ आपका, प्रियतम प्राणाधार।।
.                        
प्रिय पत्नी प्रण पालती, प्राणनाथ  पतिसंग।
जन्मदिवस जुग जुग जपूँ, रहे सुहाग अभंग।।
.                        
प्रियतम  पाती  प्रेमरस, पाइ  पठाई  पंथ।
जागत जोहू जन्मदिन, जगत जनाऊँ कंत।।
.                        
जनमे जग जो जानिए, जन्म दिवस जगभूप।
प्रिय परिजन परिवार,पर, प्यार प्रेम प्रतिरूप।
.                        
जन्म दिवस शुभकामना, कैसे कहूँ विशेष।
प्रियतम  मैं  तुझ में रहूँ, मेरे  मनज  महेश।।
.                        
प्राणनाथ प्रिय पुरवऊ, पावन पुन्य प्रतीत।
परमेश्वर प्रतिपालना, पाऊँ प्रियतम प्रीत।।
.                        
पग पग पायलिया पगूँ, पाय पिया प्रति प्यार।
पल  पल  पाँव  पखारती, पारावर  पतवार।।
.                        
पाल पोष प्रतिपाल पहिं, प्राण पियारी प्रीत।
पावन  पावक  पाकते, पाहन  प्रेम  पलीत।।
.                        
पारावर   पारागमन, पाप  पुण्य  पतवार।
प्रियवर पोत प्रचारती, प्रभु पाती प्रतिहार।।
.                        
परिजन   पाहन  पूजते, पर्वत  पंथ  पठार।
प्रियतम पद परितोषिए, पाले प्रिय परिवार।।
.                        
प्रीतम  पाती   प्रेयसी ,पढ़त प्यार परिमान।
पढ़त पीव पलकों पले, प्रीत पिया प्रतिमान।।
.                        
पाहन पारावरन पर, प्रण पाले प्रतिपाल।
पिया पान परमेश्वरः, पारागमन  पताल।।
.                        
पीहर पाक पवित्रता, परधन पंक प्रमान।
पुरष पराये पातकी, पितर पीर प्रतिमान।।
.                        
पैजनिया पग पहनती, पान परागी पीक।
पिय पिनाकी पींग पर, पूरव पवन प्रतीक।।
.                        
पारस्परिक परम्परा, प्रियतम पीहर पंथ।
प्रेम पनाह परिक्रमा, प्रीत प्राण परिपंथ।।
.                     ~~~~~
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ


 .                  कटु वचन
.                  (दोहा छंद)

कटु वचनों से हो चुके, बहुत बार नुकसान।
कौरव पाण्डव युद्ध से, खूब हुआ अवसान।।

रसना होती  बावरी, कहती  मन  के  भाव।
मन को वश में राखिए, उत्तम रखो स्वभाव।।

मिष्ठ वचन  मिष्ठान्न से, जैसे भगवन भोग।
मधुर गीत संगीत से, भोर भजन  संयोग।।

कटु वचनी आरोप से, हुआ न  कागा  मुक्त।
पिक सम वचन उचारिये, हो सबके उपयुक्त।।

घाव भरे  तलवार के, समय  औषधी  संग।
कटु वचनों के घाव से, जीवन रस  हो भंग।।

कटु वचनों से  है भले, रहना  मौन सुजान।
कूकर भौंकें  खूब ही, हाथी मौन  प्रमान।।

मृदु मित सत बोलो सदा, उत्तम सोच विचार।
संगत  सत्संगी  रखो, उपजे  नहीं  विकार।।

अपनेपन  के भाव से, कहना अपनी बात।
शब्द प्रभावी बोल कर, उद्वेलित  जज्बात।।

वाणी  मे मधु घोल कर, बोलो  मन संवाद।
हृदय पटल सुरभित रहे, होगा नहीं विवाद।।

औषध कटु  मीठे वचन, रोगी कर उपचार।
सार सत्य सर्वस सुने, हो जग का उपकार।।
.                      ~~~~
© बाबू लाल शर्मा,"बौहरा"


.     मेरा देश मेरा मान

अपना भारत हो अमर, अमर तिरंगा मान।
संविधान की भावना, राष्ट्र  गान  सम्मान।।

सैनिक भारत देश के, साहस रखे अकूत।
कहते हम जाँबाज है, सच्चे   वीर  सपूत।।

रक्षित  मेरा  देश  है, बलबूते   जाँबाज।
लोकतंत्र सिरमौर है, बने विश्व सरताज।।

विविध मिले हो एकता, इन्द्रधनुष सतरंग।
ऐसे  अनुपम  देश  में, रखते  मान  त्रिरंग।।

जय जवान की वीरता, धीरज वीर किसान।
सदा सपूती भारती, आज  विश्व  पहचान।।

संविधान है आतमा, संसद  हाथ  हजार।
मात भारती के चरण, सागर रहा पखार।।

मेरे  प्यारे  देश  के, रक्षक  धन्य  सपूत।
करे चौकसी रात दिन, मात भारती पूत।।

रीत प्रीत सम्मान की, बलिदानी सौगात।
निपजे सदा सपूत ही, मात भारती गात।।

वेदों में विज्ञान है, कण कण में भगवान।
सैनिक और किसान से, मेरा देश महान।।

आजादी गणतंत्र की, बनी  रहे  सिरमौर।
लोकतंत्र फूले फले, हो विकास चहुँ ओर।।

मेरे  अपने  देश  हित, रहना  मेरा  मान।
जीवन अर्पण देश को, यही सपूती आन।।
.                _______
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा"


 .             संकल्प लें
.             (दोहा छंद)
.                   १
अपने  भारत  देश में, मने  खूब  त्यौहार।
लोकतंत्र का पर्व जब, चुने भली सरकार।।
.                     २
पर्व सभी देते  खुशी, संविधान अधिकार।
वोट अगर  डालें सभी, तभी पर्व साकार।।
.                     ३
होली  का   संदेश   है, करो   बुराई  दूर।
लोकतंत्र का मान हो, वोट  पड़े  भरपूर।।
.                     ४
गले लगा सबको सखे, होली करो हुलास।
जागरूक मतदान है, जनता का विश्वास।।
.                     ५
नया आज संकल्प  लें, करें  बुराई  त्याग।
सब को  देना वोट  है, लोकतंत्र  की  माँग।।
.                    ६
होली  होनी  है  सखे, जल मत कर बर्बाद।
सोच समझकर वोट दें, तब होली आबाद।।
.                   ७
रंग  अबीर  गुलाल से, खेली   होली  खूब।
लोकतंत्र मतदान से, चुन  सरकार  बखूब।।
.                   ८
रंग  लगाओ सोच कर, करना  है  मतदान।
शुभ होली संकल्प लो, करना  देश महान।।
.                    ९
अवगुण की होली जला, मानवता हित मान।
जनहित  में  संकल्प  से, करना  है मतदान।।
.                    १०
होली   जलने  में  सदा, बचा   रहे  प्रल्हाद।
सत्य राह मतदान से, जनगण मन आल्हाद।।
.                   ११
होली  पर  शुभकामना, बढे वतन सम्मान।
सबको लेकर साथ में, करना सब मतदान।।
.                    ________
© बाबू लाल शर्मा, "बौहरा"


 .                   (दोहा छंद)
.                   सागरवंदन्           
 .               सागर के २७ नाम.. 
.                              १
वरुण देव को लूँ सुमिर, नमन करूँ कर जोरि।
सागर  वंदन  मैं  लिखूँ, जैसी  मति  है मोरि।।
.                              २
जलबिन थल क्या कल्पना, सृष्टा *रत्नागार*। 
वरुण राज तुमसे  बने , वंदन      *नीरागार*।।
.                              ३
अगनित नदियाँए उमड़, आती चली  *नदीश*।
सब तटिनी तट तोड़नी, रम   जाती *बारीश*।।
.                              ४
विविध रूप जीवन सरे, प्राण प्रिय *जलागार*।
पुरा   सभ्यताशेष  का ,  जीवन  *पारावार*।।
 .                             ५
हृदय मध्य राखे जतन, *रत्नाकर*  के  मान।
परिघटनाओं को रखे, *उदधि* सँभाल सुजान।
.                              ६
रहे  मान  मर्याद  से, *कंपति*  तभी   महान।
कभी  न  छोड़े  साथ भी, रमापते  भगवान।।
.                              ७
देवासुर मिल के किया, *सागर*  मंथन  साज।
जहर रखा शिव कंठ में, देवों के हित काज।।
.                              ८
बाँट  दिये  थे  सृष्टि  हित ,चौदह  रत्नाभार।
लक्ष्मी  श्रीहरि  की  हुई, देवन  अमृत  धार।।
.                              ९
*क्षीरसिंधु* श्री हरि बसे, आश्रय लक्ष्मी शेष।
बीच *नीरनिधि* शेष की, शैय्या बनी विशेष।। 
.                             १०
*जलधि* शांति के दूत सम, भक्तिपुंज साभार।
राम सेतु *वारिधि* रखे,  राम शक्ति संसार।।
.                             ११
 *अकूपाद*  अवशेष  में, खोज  रहा विज्ञान।
राघव  धर्मी   अस्मिता, सेतु  विशेष  बखान।।
.                             १२
मछुआ जिए *पयोधि* से, सहता ताप दिनेश।
सीमा  देश  विदेश  की, बने  *समुद्र*  विशेष।।
.                             १३
*पंकनिधी*   व्यापार   के, साधन  बंदरगाह।
सीमाओं पर *तोयनिधि* ,करते सद आगाह।।
.                             १४
*अंबुधि*   अन्वेषण  सदा, होते   हैं  अविराम।
*जलनिधि* से संभावना, विविध वस्तु के धाम।
.                             १५
साधन  युद्धक  पोत भी, रहते  आते  सिंधु।
युद्ध शान्ति  संसार  की, रहते रीते  बिंदु।।
.                             १६
जगन्नाथ  अरु  द्वारिका, रामेश्वर  *जलधाम*।
कपिल संत आश्रम वहाँ, शोभा है अभिराम।।
.                             १७
*बननिधि* मानव मनशमन, पीर मिटाते भ्रान्ति।
करो *महासागर* तुम्ही, जन के मनमें शान्ति।
.                             १८
शिला विवेक निहारते, आती भारत क्रांति।
क्रांति दूत जो अग्रणी, हिन्द *सिन्धु* विश्रांति।।
.                             १९
गहन *समन्दर*  धीरता, जल रहस्य भरमार।
*अर्णव* की  माने  सदा, खारे  वीचि अपार।।
.                             २०
महा  द्वीप   सारे   बसे, धरती  के   श्रृंगार।
खार सार है पी लिया, चन्दा के  अभिसार।।
.                             २१
प्रभु ने  भी  वंदन किया, पूजा सागर तीर।
मैं भी  वंदन  कर रहा, जीवन पालक नीर।।
                   .........
उक्त रचना में सागर के 27 नामोल्लेखित हैं।।
© बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ

 .             (  दोहा छंद)
.                    पिता
.                       १
ईश्वर  को  देखा नहीं, पहचाना  प्रतिरूप।
दानी पिता दधीचि सा, होता ब्रह्म स्वरूप।।
.                      २
धीरज धरती  सा रखे, सागर सा गम्भीर।
पुत्र  हेतु  नद बाढ़  में, वासुदेव  सा  वीर।।
.                       ३
सुत हित बस इंसान में, प्रबल पिता का नेह।
राम  गये  वनवास  में,  दशरथ   मरते  गेह।।
.                      ४
बाबर का जीवन पढ़ा, सुत के हित अरमान।
रोग  हुमायू  का  लिए, तजे  पिता  ने  प्रान।।
                       ५
उत्तर  में  ध्रव  सा  पिता, पूरब  तारा  भोर।
दक्षिण पितु सागर लगे, पश्चिम थमती डोर।।
.                      ६
शिक्षक जैसे ताड़ता, लगता  हृदय कठोर।
तन से बोले रुक्षता, मन पितु  उठे हिलोर।।
.                      ७
हिमगिरि सा सीना लिए, अड़े लड़े सुत हेतु।
सृष्टिचक्र निजवंश हित, पिता समन्दर सेतु।।
.                      ८
जीर्ण शीर्ण तन को करे, संततिहित अवसान।
रात दिवस श्रम शील हो, चाहे  सुत अरमान।।
.                       ९
पाई   पाई   जोड़ता,  संतति   हो  धनवान।
चाह पिता की ये सदा, लगती ज्यों वरदान।।
.                    १०
हारे  दुनिया  से  नहीं, करता  है  संघर्ष।
संतानो  से  हारना, चाहे   पिता  सहर्ष।। 
.                    ११
खीजे अरु छीजे पिता, संतति के कल्याण।
रींझे  संतति हो सफल, भूल  स्वयं  निर्वाण।।
.                    १२
मनुज पिता आशीष में, होता भारी भाव।
सेवा  से  मेवा  मिले, मत  देना  तू घाव।।
.                    १३
पितु बरगद सा आँसरा, अम्बर जैसी छान।
संतति हित वरदान है, करे नहीं अभिमान।।
.                    १४
परम्परा पाले पिता, पालन  प्रेम  प्रतीत।
पुत्री,पत्नी,पुत्र प्रिय, परिवारी,पर प्रीत।।
.                    १५
पिता पूत रिश्ते भले, निभे अभी तक मीत।
अब तो जग में हो चली, सब रिश्ताई शीत।।
.                    १६
सुतहित मित से शत्रुता, गुरबत के स्वीकार्य।
शीश कटाया आपका, सुत हित द्रोणाचार्य।।
.                    १७
वर्तमान   के   पूत   तो, बनते    राजापूत।
बाप बिचारा पचि मरे, एक  सपूत कपूत।।
.                    १८
जन्म गँवाता है  पिता, स्वारथ संतति वंश।
वृद्धावस्था  में  सखे, सुत क्यों  देता दंश।।
.                    १९
साथ  पुत्र का जो मिले , बढ़े पिता उत्साह।
सुत कपूत संयोग से, घर  होता  गुमराह।।
                     २०
ईश्वर  के सम तात है, करना  मत अपमान।
चाह पिता की बस यही, बढ़े वंश का मान।।
.                    २१
गरिमा महिमा तात की, करूँ नमन नतशीश। 
शर्मा बाबू लाल अब, दोहे  लिख  इक्कीस।।
.                 .......  
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ


जन्मदिवस है आपका, प्रियतम हो खुशहाल
.           दोहा छंद
.                 १
प्रियतम प्राण अधार है,सुर संगम सब साज।
जन्मदिवस पे मैं करूँ ,ये रुचि का शुभकाज।
.                 २
पावन पुन्य पुनीत पल, प्रणय प्रीत प्रतिपाल।
जन्मदिवस है आपका, प्रियतम हो खुशहाल।
.                 ३
प्रिय पत्नी प्रण पालती, प्राणनाथ  पतिसंग।
जन्मदिवस जुग जुग जपूँ, रहे सुहाग अभंग।।
.                 ४
प्रियतम  पाती  प्रेमरस, पाइ  पठाई  पंथ।
जागत जोहू जन्मदिन, जगत जनाऊँ कंत।।
.                 ५
जन्मे जग जो जानिए, जन्मदिवस जगभूप।
प्रिय परिजन परिवार पर, प्यार प्रेम प्रतिरूप।
.                 ६
जन्म दिवस शुभकामना, कैसे कहूँ विशेष।
प्रियतम  मैं  तुझ में रहूँ, मेरे  मनज  महेश।।
.                 ७
सत फेरे  सातों  वचन, दोहे  सात  बनाय।
सात बार न्यौछार दूँ, सात जन्म पिवपाय।।
.                 ___________
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ


 .         भाग्य/मुकद्दर/नसीब
.                   (दोहा छंद)
.                    
भाग्य  मुकद्दर  से बने, कर्म  नसीबी  खेल।
माधव भी कब कर सके, कौरव पाण्डव मेल।।
.                     
भाग्य लिखा वनवास जो, कौशल सीता मात।
राम त्रिलोकी नाथ की, लगी न  राज  बिसात।।
.                     
पाँच  कंत  जग जीत थे, पांचाली  के  भाग।
जीवन भर जलती रही, द्रुपद सुता बिन आग।
.                   
भाग्य बदलता कर्म से, कहता सकल जहान।
मानव  अपने  कर्म  से, जग  में बने  महान।।
.                    
कृषक धरा के भाग्य को, लिखते हल के नोंक
अपने भाग्य न लिख सके, हुआ न कभी अशोक
.                   
सरकारों  के भाग्य  का, करे  फैसला  वोट।
जनगणमन के भाग्य को, जो पहुँचाते चोट।।
.                   
खेती  करे  किसान जो ,भाग्य  भरोसे होय।
प्रतिदिन घाटा खा रहे, कभी न आपा खोय।
.                  
गाय सभी माता कहे, आदि सनातन बोल।
हुआ भाग्य का खेल ही, आवारा पथ डोल।।
.                    
भाग्य  भरोसे  ही रहा,  भारत  देश गुलाम।
आजादी तब मिल गई, जागा जब आवाम।।
.                    
भाग्य भरोसे  ही रहे, जग मे  लोग  गरीब।
किसको मिलते ताज है, किसको मिले सलीब
.                     
भाग्य और संयोग से, हरिश्चन्द्र से रंक।
धर्मराज  बैराठ में, बने भाग्य से कंक।।
.                   
भाग्य समय का फेर है, होता जो बलवान।
भील लूटले  गोपिका, वही पार्थ  के बान।।
.                   
भाग्य  मुकद्दर कर्म से, बन जाते संजोग।
कोई शोक विशोक में, कोई छप्पन भोग।।
.                   
कर्म करो निष्काम तो, बन जाता है भाग्य।
सतत परिश्रम से बने, पुरुषारथ सौभाग्य।।
.                    
भाग्य भरोसे मत रहो, करिए  सतत सुकर्म।
मिले भाग्य काया मनुज, सभी निभाओ धर्म।
.                  ________
© बाबू लाल शर्मा"बौहरा" विज्ञ

 .                      पुरुष
.                (दोहा-इक्कीसी)
मनु सतरूपा सृष्टि के, आदि पुरुष अरु नार।
आदम हव्वा भी कहे, मनु  जीवन आधार।।
पुरुष नार  दोनो हुवै ,गाड़ी के  दो चाक।
कौन बड़ा  छोटा कहें, सोचें  रहें अवाक।।
नारी की महिमा अमित, कहते विविध प्रकार।
पुरुष वर्ग की  बात भी, करलें  हम  दो चार।।
बीज मंत्र है सृष्टि का, साहस का प्रतिरूप।
जैसे परुष कठोरता, पुरुष सनातन  रूप।।
सीना  परुष  शरीर है, मृदुता के  मन भाव।
वाणी में भी परुषता, तन मन अमित प्रभाव।।
पुरुष परुष प्रतिरूप है, श्रम ताकत अधिकार।
सब के  हित  जीवे  मरे , प्रण  पाले परिवार।।
पुरुष  नारि का  पूत है, हर नारी  का  बाप।
नारी का पति है पुरुष, नर शिवशंकर आप।।
पुरुष  देह  मे  प्रीत है, नारी के  प्रति  मोह।
मन आसक्ती नारितन, आकर्षण सम्मोह।।
नारी के तन मन हिते ,पुरुष  करे पुरषार्थ।
रचना सूत्र विचार  के, काम मोक्ष धरमार्थ।।
१०
कौन  कहे  सुन्दर नहीं, पुरुष  देह  असमान।
तन नाजुकता त्याग नर, बल साहस अनुमानि।
११
शासन सत्ता में रहे, सदा  पुरुष  बढ़ चाल।
युद्ध वीरता श्रम यथा, लिखे पुरुष के भाल।।
१२
नारी अत्याचार मद, कुछ झूठे कुछ साँच।
सत  द्रोही कापुरुष हैं, झूँठे द्रोह  न आँच।।
१३
सबके हित में जीतता, सबके हित में हार।
जीवन भर सतकार है, नर से मानित नार।।
१४
पत्नी के सम्मान हित, पति दे प्राण  गँवाय।
मात सुता के नाम की, गाली सह कब पाय।।
१५
बिटिया के शुभ ब्याह में, लुटते पिता करोड़।
बेटे हित  काटे उदर, रखता धन को  जोड़।।
१६
माता के सम्मान को, कटा देत जो शीश।
धरती की रक्षा करे, तभी कहें  जगदीश।।
१७
पुरुष  नारि को  चाहता, चाह  नहीं  बैकुण्ठ।
घात गरल पीता रहे, शिव सम नीलाकण्ठ।।
१८
पिता  धर्म के भी लिए, जूझे  पूत  सपूत।
माता  पिता नकारते, कापुरुषत्व  कपूत।।
१९
कापुरुषों  को दण्ड  दें, धोते पुरुष कलंक।
पुरुष  कलंकित न रहे, रहलें सभी निसंक।।
२०
धीरज  सागर  सा  रहे, बादल जैसे भाव।
पुरुष परुष वाणी भले, सूरज जैसे ताव।।
२१
नारि  पुरुष में  श्रेष्ठ का, पार न पावे ईश।
शरमा बाबू लाल भव, नर-नारी  इक्कीस।।
.              ______
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा, विज्ञ


 .  हनुमान जन्मोत्सव पर हनुमत वंदन
.                   ( दोहा-छंद)
.            
बाल  ब्रह्मचारी  हुए, हनुमत   वीर  सुजान।
भक्तों  के  सिरमौर  वे, वीर  बली  हनुमान।।

जिनके हिय मे ही बसे,लखन सिया वर राम।
उन्हे नमन शत बार है, सकल सुधारो काम।।

तन मन बल  देना  प्रभो, देना  आतम  ज्ञान।
शुभाशीष  मम लेखनी, लेखन  को सम्मान।।

सिया  राम  से भी  प्रभो, दिलवादो  आशीष।
करूँ विनय बस आपसे, नमन करूँ नतशीश।

कैसे किसको क्या कहूँ, सब जानत हो आप।
शरण चरण रखिए मुझे, मिटा  मनो संताप।।
.               .........
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ


 .                   गुरु पच्चीसी
.   गुरु पूनम
शिक्षक का आदर करो, गुरुजन पूजित होय।
प्रथम गुरू माता कहें, पितु भी गुरुपद जोय।।
जो हमको  शिक्षा दिये, शिक्षक  गुरू समान।
उनको ही सादर नमों, तज माया आभिमान।
शिक्षा सत अभ्यास है, जीवन भर चल हेत।
जिनसे कुछ सीखें गुरू, परिजन प्रिये समेत।।
ब्रह्मा  गुरू महेश से, गुरू विष्णु सम पूज।
साँचे  गुरु  बिरले  मिले, जैसे  चंदा   दूज ।।
गुरु जीवन संसार है, जीवन का सत सार।
मातु पिता तीजे गुरू, इन पर गुरुतम भार।।
राधाकृष्णन जयन्ती, शिक्षक दिवस मनाय।
धन्य भाग ऐसे पुरुष, कभी धरा पर आय।।
पहले वे उप राष्ट्रपति, बने  हमारे देश।
राष्ट्रपती  दूजे  हुए , शिक्षा  के  परिवेश।।
शिक्षक निर्माता कहे, देश व शिष्य सुजान।
इनके  ही  सम्मान सें, मिले हमें  अरमान।।
रीढ समाजी हैं, सखे, शिक्षक,और किसान।
जय जवान के साथ ही, बोलो  जय विज्ञान।।
१०
सबके  निर्माता  गुरू ,राजा रंक  जहान।
चेले भी शक्कर हुए, गुरु भी हुए महान।।
११
रामलखन के गुरु बने, मुनि वशिष्ठ महाभाग।
रघुकुल के कुलगुरु रहे, पूजित अबतक जाग।।
१२
विश्वामित्र  महामुनी ,वन   ले  गये   लिवाय।
रामलखन मख राखिके, जनकपुरी ले जाय।।
१३
वाल्मीकि  महा ज्ञान  के, विद्या  के  आगार।
सीत शरण, लवकुश पठन,रामायण रचिहार।।
१४
कृष्ण सुदामा अरु सखा, विद्या पढ़ने जाय।
गुरु संदीपन आश्रमे, गुरु जग नाथ पढ़ाय।।
१५
कौरव पाण्डव वीर भी, जग में नामी होय।
गुरु द्रोणाचारी बड़े, अनुपम  विद्या सोय।।
१६
घटन हुई इकलव्य की, गुरु जनि द्रोणाचार्य।
दिए  अगूँठा दक्षिणा, नाम अमिट कुल आर्य।।
१७
मध्यकाल  में गुरु प्रथा, साँचे  संत निभाय।
नानक,कबिरा संत जन, तुलसी दादू आय।।
१८
राम दास गुरु की व्यथा, हरे शिवाजी वीर।
दूध  शेरनी  लाय  के, खूब दिखायो  धीर।।
१९
गुरू कृपा शिवराज को, संग हित जीजा मात।
क्षत्र पती महाराज बन, देश धर्म  हित तात।।
२०
मीरा अरु रैदास भी, सतजन गुरु पद पाय।
पीपा  नीमा   रामदे , लोक  देव  कहलाय।।
२१
परमहंस जी संतवर,सत गुरु दिव्य कहाय।
बालक नाथ नरेन्द्र को, नंद विवेक बनाय।।
२२.
सदयानंद स्वामी रहे, सत जन गुरू महान।
आर्य समाजी पंथ है, अब भी चले जहान।।
२३.
राजनीति में  भी हुये , गुरु पद  जिनने पाय।
चाणक्,तिलक,व गोखले, गाँधी नाम कमाय।।
२४
सबमिल गुरु को मानकर,अंतर्मन सनमान।
बिना गुरू नुगरा हुवै, सतगुरु  ही  भगवान।।
२५
प्रभु से पहले गुरु नमः, हरि की रीत बताय।
शरमा बाबू लाल तो, गुरु को शीश  नवाय।।
.               ________
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ


ये दोहे बोलते है.....
(संदेशपरक दोहे)

१.
तरुवर  सर्वस दान दें, राजा कर्ण समान।
प्रेरित करे समाज को, मानव करना दान।।
२.
जो भी संभव दान दो, विद्या,धन अरु नेह।
अन्न  वस्त्र  सद्भावना, सरस  सनेही  मेह।।
३.
मातु शारदे  सुमिर के, अक्षर अक्षर दान।
दान करे विद्या बढ़े, नित  नूतन  सम्मान।।
४.
तरुवर जैसे फिर मिले, नव किसलय सौगात।
फूल फलो से तरु सजे, हरषे नवल प्रभात।।
५.
दिया  दूर  जावे  नहीं, कहता  यही  बसंत।
दान पुण्य कारज करो, कहते गुरुजन संत।।
६.
कर्म  फले  मानस भले, यही सनातन रीत।
ऋतु बसन्त के आगमन, सत्य सनेही प्रीत।।
७.
जन्म दिया  माँ ने हमें, कहती रही सपूत।
सच में सोचो क्या बने, ऐसे हम भी पूत।।
८.
नारी से सजता सखे, नर का  घर  संसार।
बिन  नारी के तो लगे, भवन भूत आगार।।
९.
वसुधा के शृंगार तरु, पर्वत नदियां नीर।
छीन रहा  शृंगार ही, मानव बन बेपीर।।
१०.
पर्यावरण सुधार से, सजे धरा परिधान।
पेड़  सदा  दाता रहे, काटो मत  इंसान।।
११.
बनो नहीं अबला  सखी, होना है मजबूत।
दुर्गा  चण्डी रूप लो, क्षमता धारि अकूत।।
१२.
होता है सिंदूर  का, बड़ा जटिल अरमान।
सिर पर धारे गर्व से, मिटे  शहादत  शान।।
१३.
देश भक्ति की नायिका, रानी झाँसी मान।
हर नारी है नायिका, सबकी  अपनी शान।।
१४.
नारी हित में छोड़ दो, ब्याह  दहेजी  रीत।
बेटी सम वधु जानिए, पालन सच्ची प्रीत।।
१५.
कटु वचनों से हो चुके, बहुत बार नुकसान।
कौरव पाण्डव युद्ध से, खूब हुआ अवसान।।
१६.
रसना नाहीं  बावरी, कहती  मन  के  भाव।
मन को वश में राखिए, उत्तम रखो स्वभाव।।
१७.
मिष्ठ वचन  मिष्ठान्न से, जैसे भगवन भोग।
मधुर गीत संगीत से, भोर भजन  संयोग।।
१८.
कटु वचनी आरोप से, हुआ न  कागा  मुक्त।
पिक सम वाणी बोलिए, हो सबके उपयुक्त।।
१९.
घाव भरे  तलवार के, समय  औषधी  संग।
कटु वचनों के घाव से, जीवन रस  हो भंग।।
२०.
कटु वक्ता से  है भले, रहते  मौन सुजान।
कूकर भौंकें  खूब ही, हाथी मौन  प्रमान।।
२१.
मृदु मित सत बोलो सदा, उत्तम सोच विचार।
संगत  सत्संगी  रखो, उपजे  नहीं  विकार।।
२२.
अपनेपन  के भाव से, कहना अपनी बात।
शब्द प्रभावी बोल कर, उद्वेलित  जज्बात।।
२३.
वाणी  मे मधु घोल कर, बोलो  मन संवाद।
हृदय पटल सुरभित रहे, होगा नहीं विवाद।।
२४.
औषध कटु  मीठे वचन, रोगी कर उपचार।
सार सत्य सर्वस सुने, हो जग का उपकार।।
२५.                  
नीर धरोहर  सृष्टि की, रखलो  इसे सहेज।
करना सद उपयोग है,अति दोहन परहेज।।
२६.
हो आँखों में नीर तो, देखे  सब की पीर।
धरा नीर महिमा बड़ी, समझे लोग सुधीर।।
२७.
 सागर सर सरिता सभी, सदा सुभागे नीर।
मनुज सभ्यता थी बसी, पुरा इन्ही के तीर।।
२८.                              
नीर बिना  जीवन कठिन, मानुष पौधे जीव।,
सजल रहे अपनी धरा, चाहत सभी सजीव।।
२९.
धरती पर अमरित यही, जल जीवन आधार।
अटल क्षेत्र हिम  गलन से, बढ़ते  पारावार।।
३०.
होती है  सौभाग्य से, धरती पर बरसात।
नीर सहेजो मेह का, लाख टके की बात।।
३१.
बूँद  बूँद  है  कीमतन, पानी  की  अनमोल।
बिंदु बिंदु मिलकर करे, सरिता सिंधु किलोल।
३२.
रिमझिम वर्षा है भली, धरती रमे फुहार।
जल स्तर ऊँचा रहे, छाए फसल  बहार।।
३३.
पानी  आँखों  का गया, सरवर  रीते  कूप।
बिन पानी सब सून है, रहिमन कही अनूप।।
३४.
चद्र ग्रहण को देखकर, मन में उठे विचार।
कोई अछूता न बचा, समय चक्र की मार।।
३५.
चंदा,सूरज को ग्रहण, देता प्राकृत चक्र।
इसी भाँति इंसान को, समय सताता वक्र।।
३६.
धीरज से कटता ग्रहण, होय समय बदलाव।
मानुष मन धीरज रखो, ईश्वर  संग लगाव।।
३७.
सृष्टि सौर  संयोग में, मत बन बाधा वीर।
मानवता हित नित हरो, प्राणी जन की पीर।।
३८.
मानव हो मानव बनों, रखिए मन सद्भाव।
हानि लाभ जीवन मरण, ईश दृष्टि समभाव।।
३९.
मृत्यु भोज की रीति को, छोड़ो सब तत्काल।
आडम्बर पाखण्ड का, बीत गया वह काल।।
४०. 
रीति नीति विज्ञान की, लोकतंत्र का  मान।
इनको सब अपनाइए, हो जन का कल्यान।।
.               .......
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ

.            पैसा बोलता है
.             ( दोहा छंद)
पैसा  ईश्वर  तो नहीं, नहीं ईश  से न्यून।
जग में पैसा बोलता, रिश्ते  सनते खून।।

ईश्वर भी है वो बड़ा, जिस पर चढ़े करोड़।
जग में  पैसा बोलता, रिश्ते  पीछे   छोड़।।

पैसे से  पद  बिक  रहे, पैसे से सम्मान।
जग में पैसा  बोलता, बिकते हैं  ईमान।।

वैवाहिक रिश्तें बिकें, कहते नाम  दहेज़।
जग में पैसा बोलता, धन से सेज सहेज।।

बिन पैसे विद्वान कवि, फाँक रहें हैं धूल।
जग  में पैसा बोलता, पैसा मूल  समूल।।

बड़े संत कहते जिन्हें, सच वे धनी कुबेर।
जग में पैसा बोलता, भक्त टके  में  सेर।।

जीते धनी चुनाव में, निर्धन की  हो हार।
जग में पैसा बोलता, धन का है व्यवहार।।

सत्ता सेना भी बिके, पढ़ देखो इतिहास।
जग में पैसा बोलता, जनता  भोगे त्रास।।

मंदिर मस्जिद हो रहे,  धन से ही मशहूर।
जग में पैसा बोलता, मनो  भक्ति  से दूर।।

पावन रिश्ते तुल रहे, धन की तुला हुजूर।
जग में पैसा बोलता, तन का गया गरूर।।

अभिनेता अफसर रखें, धन को मान रखैल।
जग में  पैसा बोलता , नहीं  हाथ  का  मैल।।

शर्मा बाबू लाल अब , छोड़ सभी जंजाल।
जग में पैसा बोलता, अपनी रकम सँभाल।।
.         ..........
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ



.            बहिन
.                ( दोहा छंद )

भाव  सुरक्षा  चाहती, बहिना रहे अधीर।
बदले गुरु आशीष दे, रहे  सलामत बीर।।
(बीर~भाई)

त्याग  मान  मनुहार सें, सदा निभाती नेह।
पीहर मय ससुराल में, बहिना  देह  विदेह।।

एक बेस ले भेंट में, लख लख दे आशीष।
ऐसी होती है बहिन, नमन इन्हे  नतशीश।।

(बेस~ पर्व या किसी भी अवसर पर बहिन को दिये जाने वाले एक जोड़ी वस्त्र ~ढूँढाड़ी भाषा में )

जैसी चाह चकोर की, सबकी चाहत भोर।
चाहत भाई खुश रहे, रहती बहिन विभोर।।

मातृ भूमि  ज्यों  चाहती, अमर तिरंगा शान।
सजग तिरंगा ध्वज रहे, बहिन भ्रात अरमान।

मंदिर  मस्जिद  देवरे, झुकते  नाहक  शीश।
इससे तो अच्छा भला, बहिना का आशीष।।
(देवरे~देवालय)

बहिनों  से  भगवान सा, नेह  और विश्वास।
यही भाव मिलता रहे, जबतक तन में  श्वाँस।

शर्मा  बाबू लाल  ने, दोहा लिख कर सात।
बहिन बंधु संबंध में, कह दी मन की बात।।
.           .............
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ


 .            ग्रहण
.          ( दोहा छंद)
सूर्य ग्रहण शशि देखकर, मन में करे विचार।
कोई अछूता न बचा, समय चक्र की मार।।

चंदा,सूरज को ग्रहण, देता प्राकृत चक्र।
इसी भाँति इंसान को, समय सताता वक्र।।

धीरज से कटता ग्रहण, रहे समय बदलाव।
मानुष मन धीरज रखो, ईश्वर संग लगाव।।

सृष्टि सौर संयोग में, मत बन बाधा वीर।
मानवता हित नित हरो, प्राणी जन की पीर।।

मानव हो मानव बनों, राखो मन सद्भाव।
हानि लाभ जीवन मरण, ईश दृष्टि समभाव।।
.     ........
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ


 मतदान
              दोहा छंद 
1.
हार जीत के लग रहे, जहाँ, तहाँ अनुमान।
मन से कर मतदान तू,   लोकतंत्र सम्मान।।
2.
जनता के आशीष से, जनमत की सरकार।
जागरूक  मतदान  हो, फैले  नहीं  विकार।।
3.
जनमत का आदर करे, नेता  होय सुजान।
बिना लोभ सद्भाव से, कर  देना  मतदान।।
4.
बहुत कीमती वोट है, सोच समझ कर दान।
परचम पहरे जीत का, वोट  वोट  का मान।।
5.
दल भी चिंतन कर रहे, मिले  जिताऊ लोग।
चिंतन कर मतदान कर, तभी मिटे भव रोग।।
6.
राजनीति  के  खेल  में, लोकतंत्र   वरदान।
लोकतंत्र के हित करो, सभी लोग मतदान।।
7.
श्वेत वसन  धारण करे, तुलसी माला कंठ।
विषय भोग में डूबते, कुछ  नेता  आकंठ।।
8.
मतदाता  कुछ सोचते, नोटा  एक  प्रयोग।
खारिज सबको कर रहे, राजनीति संयोग।।
9.
झंझावत  भी झेलते, होते  लोक  चुनाव।
बागी  रूठे दल तजे, उनके  चले  मनाव।।
10.
स्वस्थ बने सरकार भी, करना एक उपाय।
सबको ही जागृत करो, मत देने को जाय।।
.                    ________
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ



सावन सरस सुजान
.              ( दोहा छंद )
.                  १ 
सावन  शृंगारित   करे, वसुधा, नारि, पहाड़।
सागर सरिता सत्यशिव, नाग विल्व वन ताड़।
.                  २ 
दादुर  पपिहा मोर पिक, नारी  धरा  किसान।
सबकी चाहत नेह जल, सावन सरस सुजान।।
.                  ३ 
नारि केश पिव घन घटा, देख नचे मन, मोर।
निशदिन सपन सुहावने, पिवमय चाहत भोर।
.                  ४ 
लता  लिपटती  पेड़ से, धरा  चाहती  मेह।
जीव जन्तु सब रत रति, विरहा चाहत नेह।।
.                  ५ 
कंचन  काया  कामिनी, प्राकृत मय  ईमान।
पेड़ लगा जल संचयन, सावन काज महान।।
.                   ६ 
हरित  तीज त्यौहार है, पूज पंचमी  नाग।
रक्षा बंधन  नेह मय, रीत प्रीत  मन  राग।।
.                   ७ 
मन मंदिर  झूले  पड़े, पुरवा  मंद  समीर।
सावन मनभावन चहे, मादक हुआ शरीर।।
.                  ८ 
रीत प्रीत  पालो  सखे, पावन  सावन  माह।
प्रेमभक्तिमय जगत हो, साजन साहिब चाह।।
.                  ९ 
भक्ति प्रीत संयोग का, मधुरस सावन मास।
जैसी जिसकी भावना, वैसी कर मन आस।।
.                  १०
शिवे शक्ति  आराधना, कान्हा राधा  नेह।
कृषक धरा की प्रीत से, सावन बरसे मेह।।
.                  ११ 
सावन का  संदेश है, करो  मीत उपकार।
शर्मा बाबू लाल का, नमन करो स्वीकार।।
.      ........
© बाबू लाल शर्मा,"बौहरा" विज्ञ


भारत मेरा देश है, रखूँ तिरंगा मान
.                दोहा छंद
.                  
भारत‌ मेरा  हो सदा, उन्नत  भानु समान।
मेरा सत संकल्प है,  अमर तिरंगा शान।।
.                 
देश   प्रेम सद् भावना,  दुनिया में  मशहूर।
 है  पर्वत से हम अचल, प्रेम त्याग भरपूर।।
.                 
रखूँ तिरंगा   सर्वदा, दुनिया में सिरमौर।
मान  तिरंगे का रहे, रखूँ नही हित और।।
.                 
भारत  मेरा  देश  है, रखूँ  तिरंगा  मान।
मिले तिरंगा ही कफन,एक यही अरमान।।
.                 
शर्मा  बाबू  लाल ने, दोहे  लिख के पाँच।
प्रेम तिरंगे से लिखा,भाव लिखे मन साँच।।
.                  _______
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा, विज्ञ


आ.मुंशी प्रेमचंद्र जी
 के सम्मान म़े
 सादर,समर्पित
.           (दोहा छंद)
प्रेम चंद  साहित्य  में , भारत  की  त़सवीर।
निर्धन,दीन अनाथ की, लिखी किसानी पीर।।

सामाजिकी विडंबना , फैली रीति कुरीति।
सब पर कलम चलाय दी, रची न झूठी प्रीत।।

गाँव खेत खलिहान सब, ठकुर सुहाती मान।
गुरबत  में  ईमान की , बात लिखी गोदान।।

बूढ़ी काकी आज भी, झेल रही धिक्कार।
कफन,पूस की रात भी, अब भी है साकार।।

छुआछूत मिटती नहीं, जाति धर्म के द्वंद।
मुंशी जी तुमने लिखा, हाँ बेशक निर्द्वंद।।

गिल्ली डंडा,खेलते, गबन  करे सरकार।
नमक दरोगा अफसरी, आज हुई दरकार।।

कितनी लिखी कहानियाँ, पढ़ सके ईदगाह।
जितना इनको पढ सको, उतनी निकले आह।।

उपन्यास सम्राट या, कह दो धनपत नाम।
मुंशी प्रेम चंद्र कहूँ , शत शत बार प्रनाम।।

युग का लेखक मानते, हम सब के आदर्श।
उनकी  यादों को करें, मन  में सदा विमर्श।।
.     __________
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ


.          महाकवि दिनकर
.             दोहा छंद
.               १
दिनकर दिनकर से हुए, हिन्दी हिन्द प्रकाश।
तेज  सूर  जैसा  रहा, तुलसी  सा आभास।।
.               २
जन्म सिमरिया में लिये, सबसे बड़े प्रदेश।
सूरज सम फैला किरण, छाए भारत देश।।
.               ३
भूषण  सा  साहित्य  ध्रुव, प्रेमचंद्र  सा  धीर।
आजादी के हित लड़े, दिनकर कलम कबीर।।
.               ४
भारत  के  गौरव  बने, हिन्दी  के  सरताज।
बने हिन्द के राष्ट्रकवि, हम कवि करते नाज।।
.               ५
आजादी के बाद भी, जन हित की आवाज।
प्रतिनिधि संसद के बने, लोकतंत्र हित नाज।।
.               ६
"रसवंती" के रचियता, "नये सुभाषित" लेख।
'कुरूक्षेत्र' से 'वेणुवन',' कवि श्री' 'दिल्ली' देख।
.               ७
'रश्मिलोक' 'हे राम' से, फिर 'सूरज का ब्याह'।
'बापू' 'उजली आग' में, दिनकर की परवाह।।
.               ८
'लोक देव नेहरु' लिखे, फिर  'रेती के फूल'।
'धूप छाँह' अरु 'उर्वशी',' वट पीपल' तरुमूल।।
.               ९
'रश्मि रथी' रचना करे, वे  'दिनकर के गीत'।
'चक्रवाल' 'साहित्य मुखि', सच्चे हिन्दी मीत।।
 .            १०
रची 'काव्य की भूमिका',' नीलकुसुम' 'हे राम।"
लिख 'भारतीय एकता', आजादी  के  नाम।।
.             ११
'ज्ञान पीठ' तुमको मिला,' पद्म विभूषण' मान।
शर्मा  बाबू  लाल  मन,  दिनकर का सम्मान।।
.                     ~~~~~
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


                चाहत
.            (दोहा छंद)
.                 १
चाहत  चंदा चाँदनी, चातक चलित चकोर।
द्रोही तम को  चाहते, सर्प  निशाचर  चोर।।
.                 २
चाहत तुलसी दास की, राम सिया हनुमान।
रामचरित  मानस रचे, कविता छंद विधान।।
.                 ३
चाहत  कुंती  की भली, दैव कृपा  से पूत।
सूर्य पुत्र  को जन्म दे, पालन हो घर सूत।।
.                 ४
चाहत  पावन  द्रौपदी, भ्रात भक्ति  भगवान।
भरी सभा में कृष्ण ने, रखी लाज तब आन।।
.                 ५
चाहत बूँदे स्वाति की, कदली सीप भुजंग।
जैसी  जिसकी  भावना, ढाले  अपने ढंग।।
.                 ६
चाहत मोर पपीह की, दादुर कोयल सर्प।
मेघ  नेह  चाहे  धरा, सजनी  सावन दर्प।।   
.                 ७
चाहत शबरी भक्ति मति, भाव सजाये हेत।
बेर प्रेम के खाय प्रभु, आये अनुज समेत।।
.                 ८
चाहत मन हनुमान के, श्रद्धा संगति धाम।
सीना  चीरे  आप  का, दर्शन  सीता  राम।।
.                 ९
विदुर पार्शवी भक्तिरत, माधव मान सुभाग।
प्रेम पाश  बँध  जीमते, केले  छिलके साग।।
.               १०
चाहत बनी स्वतंत्रता, सुत मिट गये अकूत।
मात भारती हित मरे, शत शत धन्य सपूत।।
.               ११
चाहत अपने देश की, रखें आन अरु शान।
मान तिरंगे का करें, पालन वतन  विधान।।
.               १२
चाहत फिर मानुष बनूँ, जन्मूँ  भारत देश।
हिन्दी हिन्दुस्तान हित, पहनू कबिरा वेष।।
.               १३
चाहत मेरी जन्म भर, लिखना  दोहे गीत।
शर्मा बाबू लाल  की, निभे  बिहारी  रीत।।
.               १४
चाहत वतन अखंड हो, भाषा एक विवेक।
मानवता  हो भाव मन, हर मानव में नेक।।
.               १५
चाहत निर्मल प्रेम मन, प्राणी सकल सनेह।
देव दनुज सुर नाग नर, पंछी काम  अदेह।।
.         ~~~~~~~
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ


.                        दीपावली
.                         (दोहा)
.                    
दीपक  एक  जलाइये, तन  माटी  का  मान।
मन की करिये वर्तिका,ज्योति जलाएँ ज्ञान।।
.                   
पावन  मन  त्यौहार हो, तम को  करना भेद।
श्रम करिये  कारज सधे, बहे तनों से  स्वेद।।
.                    
 वतन  हमारा  है  सखे, मनुज रहे सम भ्रात।
सबका  सुख त्यौहार हो, सद्भावी  हो बात।।
.                    
 लीप पोत  अपने भवन, करना शुभ परिवेश।
गली,गाँव से प्रांत फिर, स्वच्छ बने सब देश।।
.                    
शुभ सबको   दीपावली, फैले ज्ञान प्रकाश।
शुद्ध रहे  मन भावना, करिये  देश विकास।।
.                    _______
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


.                 जगराता
.                (दोहा छंद)
जगह जगह  जो हो रहा, जगराता जगमात।
जग के शुभ कल्याण को, आओ तो नवरात।।

.   करना पूरी कामना, भक्तों  की  हे  मात।
.   सभी सुखी  होवे सदा, एक हमारी बात।।

.   चाह नहीं धन धान्य की, दो रोटी की चाह।
.   माता के जगरात में, हो  दोषों  का  दाह।।

प्रतिदिन जगराता करूँ, लिखूँ गीत पद छंद।
सबके हित लेखन करूँ, हरो मात मन द्वंद।।

.  ऐसी मति सबकी करो, मानें हिन्द विधान।
.  मानवता सब में रहे, निर्बल के  हित मान।।
.                        ~~~~
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ


.           भ्रष्टाचार

व्याप रहा  संसार में, सब  जन  भ्रष्टाचार।
ढूँढे से मिलता नहीं, अब जग सदआचार।।

गली हाट बाजार में, दफ्तर अरु चपरास।
भ्रष्ट सभी जन हो रहे, रिश्वत तेरी आस।।

अधिकारी नेता बड़े, डाक्टर साहूकार।
पटवारी राजस्व तो , हैं  सबके सरदार।।

मंत्री  अरु सांसद  बने, भ्रष्टाचारी  जीव।
पद से ये हट जाए तो,  हो जाऐं निर्जीव।।

रिश्वत तो सुविधा बनी, कहते यही दलाल।
लुटते  दीन गरीब ही, अफसर  मालामाल।।

राम भरोसे चल रहा, जिनका कारोबार।
वे ही बस धनवान है, बाकी हम बेजार।।

ईश  दूत वे बन रहे, कथा राम की बाँच।
वे सब  साधु धींगरे, नेकु न आवै आँच।।

दैव  रिंझाने  को  चढ़े, सवामणी  परसाद।
जितना ज्यादा जो चढ़े, वो पहले फरियाद।।

रिश्वत से प्रभु कब बचे, कब बचिए इंसान।
जितनी  मोटी  रकम  दे,  वे  सच्चे ईमान।।

हम तुम कहा बलाय जो, रिश्वत देय न लेय।
इससे  जो बचना चहै, गरल  उसी का पेय।।

सदाचार सब मानते , अब तो भ्रष्टाचार।
मानो या न मानिए , जीवन का आधार।।

    बड़े बड़े  नेता हुए, घोटालों के शोेर।
    छोटे कर्मी क्या करें, बेचारे चमचोर।।

रक्षक ही भक्षक बने, भारत में सिरमौर।
वा  रे  भ्रष्टाचार भइ, तेरा  ओर न  छोर।।
.           _____________
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा" , विज्ञ


.      मातृभाषा. हिन्दी
.                       (दोहा छंद)
हिन्दी भारत  देश  में, भाषा  मातृ समान। 
सुन्दर भाषा लिपि सुघड़, देव नागरी मान।।

आदि संस्कृत मात है, निज भाषा की जान।
अंग्रेजी  सौतन  बनी , अंतरमन   पहचान।।

हिन्दी की  बेटी  बनी, प्रादेशिक  अरमान।
बेटी की बेटी  बहुत, जान सके  तो जान।।

हिन्दी में  बिन्दी सजे, बात  अमोलक  मोल।
सज नारी के भाल से, अगणित अंक सतोल।।

मातृभाष  सनमान  से, करो देश सम्मान।
प्रादेशिक भाषा भला, राष्ट्र ऐक्य अरमान।।

हिन्दी की सौतन भले, दे सकती है कार।
पर हिन्दी से ही निभे, देश धर्म  संस्कार।।

बेटी हिन्दी की भली, प्रादेशिक  पहचान।
बेटी की बेटी कहीं, सुविधा  या  अरमान।।

देश  एकता  के  लिए, हिन्दी का हो मान।
हिन्दी में सब काम हो, होवें हिन्द विधान।।

कोर्ट कचहरी में करो, हिन्दी काज विकास।
हिन्दी  में  कानून  हो , फैले  हिन्द  प्रकाश।।

विभिन्नता  में एकता, भाषा  में  भी  होय।
राज्य प्रांत चाहो करो, देश न हिन्दी खोय।।

उर्दू,अरबी,है बहिन,  हिन्दी धर्म निभाय।
गंगा जमनी संस्कृति, भारत में कहलाय।।

अंग्रेजी सौतन बनी, दिन दिन प्यार  बढ़ाय।
बड़ी बहिन कहती रहे, अरु मनघात लगाय।।

हिन्दी का सुविकास हो, जनप्रिय भाषा मान।
सर्व  संस्कृत ग्रंथ  के, अनुदित  हिन्दी  ज्ञान।।

हिन्दी संस्कृत  मेल से, आम जनो के प्यार।
हिन्दी का सम्मान हो, हत आंगल व्यापार।।

सबसे है अरदास यह, हित हिन्दी अरु हिन्द।
शर्मा  बाबू लाल  के, हिन्दी  हृदय  अलिन्द।।
.              ______
,©बाबू लाल शर्मा "बौहरा", विज्ञ


 .            (दोहा छंद)
.        श्रीकृष्ण जन्म
कंस राज  में  जब  बढ़े, पापी  अत्याचार।
द्वापर में भगवान ने, लिया कृष्ण अवतार।।

उग्रसेन  सुत  कंस ने,  छीन  पिता  का राज।
बहिन देवकी पति सहित, करे कैद बिनकाज।

जन्मत  कारागार  में,  बालक  वधे  अनेक।
लगता था उस कंस को, काल बाल प्रत्येक।।

भादव रजनी अष्टमी, लिया ईश अवतार।
हरि माया से  खुल गए, ताले  कारागार।।

वासु देव  ले कृष्ण को, चले  रात  निर्द्वंद।
वर्षा, यमुना बाढ़ सह, पहुँचाए  घर  नंद।।

नंद यशोदा ने किया, हरि पालन मय गर्व।
मनती  है  जन्माष्टमी, तबसे घर घर पर्व।।
.              _________
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ


.                      प्रकाश
.                      (दोहा)
स्वयं प्रकाशित पिण्ड है, सौर मंडले अर्क।
आकाशी गंगा  बहुत, ज्ञान खगोली  तर्क।।

सृष्टि  समूचे  विश्व  में, दाता  सूर्य  प्रकाश।
प्राकत का सृष्टा यही, सविता जैव विकास।।

करते  धरा  प्रकाश  जो, तारे  सूरज  चन्द।
ज्ञान प्रकाशित कवि करे, अरु विज्ञानी वृन्द।।

दीपक,वीर सपूत सम, निज का दे बलिदान।
द्वार   प्रकाशे  दीप  वे, प्राण  तजे भू  मान।।

दीपमालिका पर्व पर, जले दीप चहुँ ओर।
जल दीपक संदेश  दे, आएगी  शुभ भोर।।
.                  _______
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


 .                    धरती
.                 ( दोहा छंद)
.             
धारण करती है सदा, जल थल का संसार।
जननी  जैसे  पालती,  धरती जीवन  धार।।

भूमि  उर्वरा  देश  की, उपजे वीर  सपूत।
भारत माँ सम्मान हित, हो कुर्बान अकूत।।

पृथ्वी,  पर्यावरण की , रक्षा  कर  इन्सान।
बिगड़ेगा यदि संतुलन, जीवन खतरे जान।।

धरा  हमारी  मातु सम, हम है  इसके लाल।
रीत निभे बलिदान की, चली पुरातन काल।। 

भू पर भारत देश का, गौरव गुरू समान।
स्वर्ण पखेरू शान है, आन बान अरमान।।

रसा  रसातल से उठा, भू का कर उपकार।
धारे  रूप  वराह  का,  ईश्वर  ले  अवतार।।

चूनर हरित  वसुंधरा, फसल खेत खलिहान।
मेड़ मेड़ जब पेड़ हो, हँसता मिले  किसान।।

वसुधा  के शृंगार वन, जीवन प्राकृत वन्य।
पर्यावरण विकास से, मानव जीवन धन्य।।

अचला  चलती है सदा, घुर्णन सें दिन रात।
रवि की  करे परिक्रमा, लगे साल  संज्ञात।। 

क्षिति जल पावक अरु गगन,
.                      संगत मिले समीर।
जीव जीव में पाँच गुण,
   .                   धारण, तजे शरीर।।

वारि  इला पर साथ ही, प्राण वायु भरपूर।
इसीलिए  जीवन यहाँ, सुन्दर  प्राकृत नूर।।
.                  ..........
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ


 .                  मीठी वाणी
.                 (दोहा छंद)
.                     ........
.                      १
सोच समझ कर बोलना, वाणी में रस घोल।
देख कोकिला को सखे, मीठी  वाणी बोल।।
.                      २
कौए  जैसा  रंग  है, जीवन  चक्र  समान।
बस बोली के फर्क से, कोयल का है मान।।
.                      ३
बोल  सुरीले  हैं  सखे, मैना  पाखी  मोर।
कर्कश बोली बोलते, मनुज बहुत से ढोर।।
.                      ४
कंठ  सुरीले  गायकी, सजे  गीत  संगीत।
कटु वाणी वक्ता करे, झगड़े झंझट मीत।।
.                      ५
बोली का सुख है बड़ा, बोलो तोल सतोल।
घाव भरे तलवार का, मृदु वाणी अनमोल।।
.                     .......
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा,विज्ञ


.          माँ दुर्गे....
.             
पावन  नवरातें  सजे, माता  के  दरबार।
माँ दुर्गे करना भला, तुम हो जगदातार।। 
.             
माँ  दुर्गा  दातार  है,  दे  सबको  वरदान।
मातृशक्ति को मान दो, बेटी को अरमान।।
.               
हर  माता  दुर्गा  बने, जो  हो  पूत  सपूत।
रात दिवस शुभकामना, दें आशीष अकूत।।
.             
माँ दुर्गे  आशीष दे, सबके हित मे आज।
बिटिया संरक्षित रहे, ले संकल्प समाज।।
.             
माता  दुर्गा  दे  रही, सबको शुभ  संकेत।
नारी के सम्मान हित, रहना सदा सचेत।।
.              
बेटी  से  हर  देव  है, दैवी अरु भगवान।
करें  सुता  का  मान दें, माँ दुर्गे वरदान।।
.              
शर्मा  बाबू  लाल  तो, करे न पूजा यज्ञ।
सादर  माँ दुर्गे नमन , मन सेवा से अज्ञ।।
.          ___________
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ


.              (दोहा छंद)
मंगलमय नव वर्ष में,
.                लगे न दिल्ली दर
.             
मंगलमय  नव वर्ष  में, पहला  गौतमवार।
मंगलकारी  ये   रहे, जगत   बुद्धि दातार।।
.             
करूँ  ईश  आराधना , सब जीवों के हेतु।
भवसागर  के पार हो, प्रीत  रीत  के सेतु।।
.             
दाता कुछ ऐसा करो, हर दिन हो शुभ वार।
जीवन सबका हो सुखी, हे सुख के दातार।।
.             
करनी  ऐसी  कर चलें, देश  धरा  के  काज।
नूतन वर्ष समाज हित, संकल्पित हों आज।।
.             
कर्ज  करें  घी क्यों पियें, क्योंकर अंधे  दौर।
सीमित संसाधन जिएँ, सुखिया अपनी पौर।।
.             
शक्ति सहित नारी रहे, मान   और  ईमान।
बिटिया के  सम्मान को, भूलो मत इंसान।।
.             
लोकतंत्र जिन्दा रहे, वतन का  संविधान।
संसद और विधायिका, माने देश  प्रधान।।
.            
कुटुम बने  वसुधा सभी, होवे जग कल्याण।
जीव मात्र  सुख से रहे, ईश बसे जिन प्राण।।
.            
वैज्ञानिक  खोजें  सदा, नयी  नयी  तकनीक।
खेती,पशुधन से रहें, अन्न फसल फल ठीक।।
.            
होवे  शिक्षा  औषधी , सुविधा  भी  भरपूर।
देश वासियों  को मिले, राहत खुशियाँ पूर।।
.            
शासन  सुखदायक  बने, लगे न  दिल्ली दूर।
कनक विहग सम्मान हो, जगत गुरू मशहूर।।
.                   _________
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ


.              आइना

सत्य  दिखाता  आइना , झूठे  जग के लोग।
किरच किरच होना सखे, यही अटल संयोग।।
             
साँची सहन न कर सके, जन पाखंडी धूर्त।
दोष   बताते   आइने, भूले  अपना   मूर्त।।
             
दशरथ देखा आइना, राम  राज्य   सुविचार।
रामलषन सिय वन गये, वे परलोक सिधारि।।
.            
 दर्पण  तेरे  सत्य  से , खिलजी  हो   शैतान।
 गढ़ चित्तौड़़ विनाशता,  पदमनियाँ बलिदान।।
               
दर्पण सत साहित्य है, करता सत्य बखान।
भावी  पीढ़ी   चेतना, इतिहासी   अरमान।।
               
दर्पण तुलसीदास  ने, दियो   मुकुरि बतलाय।
रामचरित मानस कथा, अनुपम लिखी सुनाय।।
               
सत  सैया   के   दोहरे , दर्पण  जैसे    होय।
साँच प्रीत भगवान की, नर मत आपा खोय।।
              
दर्पण  दास कबीर का, हंसा नीर  व  क्षीर।
झीनी  चादर  में  रखी , दर्पण   तेरी   पीर।।
            
मीरा ने संसार  को , दर्पण  दिया  दिखाय।
राज घराना त्याग के, बस वृन्दावन जाय।।
              
आज काल के  आइने , झूठ  दिखावें मान।
लोकतंत्र बदनाम कर, खुद चाहत अरमान।।
              
     दर्पण झूँठे पड़ रहे, काले  रँगते बाल।
    प्रसाधनों से छिप रहे, झुर्री वाले गाल।।
.             
मुगल काल के आइने,आत्मकथा कहलाय।
रंग महल में जड़ गये, शीश महल बतलाय।।
               
बचते   रहना  आइने , साँचे   खोट  कहाय।
नाही तो नर सोच से, किरच किरच हो जाय।।
               
दर्पण लख रींझो नहीं, रंगत  रूप निहारि।
आतम दर्पण देखिए,मष्तक सोच विचारि।।
.            
      क्यों भरमाता आइने, भोले बूढ़े लोग।
      तू भी बूढ़ा होयगा,  टूक  टूक संयोग।।
.             ____________
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ


.                      जीवन.....
.                      
जीवन सभी सजीव का, नश्वर गात समेत!
प्रीत  रीत  संयोग  तन, रहे अंत पथ खेत!!

विग्रह  बदन शरीर तन,  काया  वपु अरु देह!
गात कलेवर जिस्म यह, आत्म मानसी गेह!!

काया मान  गुमान  है, दुख का  भी आगार!
दुर्लभ  मानुष  देह  है, प्रभु का कर आभार!!

दौलत ममता मोह धन, वित्त सम्पत्ति द्रव्य!
लक्ष्मी   माया  सम्पदा, अर्थ  मान मन्तव्य!!

माया  में  लिपटे सतत, जीवन भर मनुजात!
अंतिम पथ खाली चले, लाख टके की बात!!

परछाई  प्रतिबिम्ब यह, छाया  साया   छाँव!
प्रतिकृति प्रतिच्छाया कहें, भिन्न नागरी गाँव!!

भूल सखे कर्तव्य को, सुख का पकड़े हाथ!
माया  काया की कठिन, छोड़े  साया साथ!!

काया माया जाल में, जीवन दिया गुजार!
रिश्ते रिसते  बस  रहे, बचे  न साया सार!!

शर्मा  बाबू  बोहरा, दोहा  लिखकर अष्ट!
काया  माया संग में, जीवन  साया  कष्ट!!

जीवन दुख की पोटली,सुख मरीचिका मान!
मानव  तन पाकर सखे, निभा मानवी आन!!
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© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


 .         (दोहा छंद)
.          समर्पण
त्याग समर्पण कीजिए, मातृभूमि हित मान।
देश बचे  माँ भारती, भली  शहादत  शान।।
.                      
करें समर्पण देशहित, निज  के गर्व गुमान।
देश आन अरु शान है, हो इसका सम्मान।।
.                      
मानव  हूँ  मानव  बनूँ, मानवता   सद्ज्ञान!
जीना मरना देश हित, यह अभिलाषा मान।।
.                      
अधिकारों  की  दौड़ में, रहे  भान कर्तव्य।
मेरा देश  महान है, सफल  तभी मन्तव्य।।
.                      
संसद व  संविधान का, करो सदा सम्मान।
न्यायालय  सर्वोच्च है, लोकतंत्र की शान।।
.                      
जनहित परहित देशहित, मेरा भी दायित्व।
देश रहे  आजाद तो, है सबका  अस्तित्व।।
.                      
किया समर्पित देशहित, जिसने जीवन गात।
अमर  वही  तो  हो  रहे , बाकी  पीले  पात।।
.                      
देखो  पन्ना  धाय  ने, किया   पूत   कुर्बान।
कहे समर्पण की कथा, गर्वित शान जुबान।।
.                      
मानवता  ही  धर्म  है, सब  धर्मो का सार।
राष्ट्रधर्म  सबसे बड़ा, रखिए उच्च विचार।।
.                      
चलो लेखनी देशहित, लिख दोहा अरु छंद।
करें समर्पण आप को, मिटा सभी मन द्वंद।।
.               
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


.            मायका
.                  (दोहा )
मान मनौव्वल मायका, ममता मनोविचार।
मंगल  मय  मनबात  में,   मामेरा  मनुहार।।

लाड़  लडाते  थे  सभी, खट्टी  मीठी  बात।
भौजाई    भाई   भले,  भेट  भये हर बातृ।।
 
पढ़ना  खाना  खेलना, रहना सब घर संग।
भाग्यवान भलमानसी,भगिनी भावन भंग।।

बड़े बुजुर्गो का सदा, मिलता गुरु आशीष।
दादाजी    दादी   भले, दया  दान  इक्कीस।।

पेड़  पालते, प्रेम  से, जैसे  भगिनी भ्रात।
द्वारे  द्वारे  दीखते, दरखत   दौर  दिगंत।।

याद बहुत  आते सखी, प्रीत रीत  वे  गीत। 
पीहर पथी परिक्रमा,परिजन प्रिय मनमीत।।

पीहर में  उन्मुक्त थी, तितली विहग समान।
प्यार प्रीत  परिपालना, पावन  प्रेम  प्रमान।।

कैसे  बचपन  भूल कर, भाए यह ससुराल।
सगा सनेही  साथिया, सर्व सुलभ  कब हाल।।

माँ की संगति मायका, बुआ भाभियाँ  बंधु।
सादर सबके साथ से, सीख समझ अनुबंध।।

बातचीत  बाकी  बहुत, बालपनी बकवास।
जाती जब जब मायके, याद करूँ हर श्वाँस।।

बिलखाते  बंधन बने, बड़भागी  बहुसास।
पीहर सा सुख है नहीं, बीता सुख सायास।।

घर की लक्ष्मी पद मिला, खटने को दिन रात।
यादों  में  बस  मायका, मात पिता  घर बात।।

सास ससुर पति साथ मे, ननदी देवर जेठ। 
पीहर  रमती  कामना, भाव  सुभागी  ऐंठ।।

मात पिता तीर्थ लगे, परिजन प्रिय सब मान।
यदा  कदा  होती  सखी, इसी  बात पर तान।।

शर्मा बाबू लाल सुन, पीहर स्वर्ग  समान।
पति  परमेश्वर  पूजती, पीहर पंथ कमान।।
.       ________
© बाबू लाल शर्मा, "बौहरा" विज्ञ


 .            रूप चतुर्दशी ,छोटी दीवाली
.                         (दोहा छंद)
.                      
चतुर्दशी  है रूप की, मन का रूप निखार!
मिष्ठ भाव मन में रखें, मनो मिटाओ खार!!

रूप बदल परिवार का, बदल  पुरातन रीत!
सोच समाजी बदलिए, विश्व भाव मन प्रीत!!

रूप बदल व्यवसाय के, शुद्ध बने व्यापार!
रिस्वत वस्तु मिलावटी, नहीं चले व्यवहार!!

सत्ता रूप निखारिये, मानवता अधिकार!
संविधान  सद्भावना, राम  राज्य साकार!!

रोजगार  के  रूप  में, करना अब  विस्तार!
काम मिले हर हाथ को, रहे न जन बेकार!!

दीवाली  हर  घर  मने, ऐसा  करो प्रबंध!
चतुर्दशी  पर  नर्क में, भेज रिवाजें अंध!!

आज सत्य संकल्प लो, एक दीप के साथ!
स्वर्ग  बने  संसार यह, सम्मुख  दीनानाथ!!
.                  ________
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


 .                    मुहावरे
.                  (दोहा छंद)

झूठे भाषण  झाड़ते, निज मानित भगवान!
ऊँची भव्य  दुकान बस, फीके  हैं पकवान!!

नेता   बड़े   विचित्र  हैं, करते  'थोथी  बात'!
अपने मुँह मिठ्ठू मियाँ, शब्द बाण सौगात!!

बात  बात की  बात पर, आग  बबूला  होय!
आसमान सिर पर उठा, अपना आपा खोय!!

छल से जीत चुनाव ले, छुप जाते मन माँद!
दिखते कभी  कभार  वे, बने  'ईद के चाँद'!!

अंगारों  पर चल रहा,  पाक पड़ौसी आज!
उगले सद अंगार वह, भूल विकासी काज!!

अन्धों  में   राजा   बना,  काना   रूप  अनूप।
छलके अधजल गागरी, अक्ल पड़े भव कूप।।

चढ़ा चने  के  झाड़  पर, लूटे  नेता वोट।
जानबूझ अंधे  हुये, मनशा नीयत खोट।।

अपना उल्लू ही सदा, सीधा करते स्वार्थ।
दूजे को उल्लू बना, करें कपट रथ सार्थ।।

घर की मुर्गी  को कहें, दाल  बराबर  लोग।
देख पराये थाल को , समझे  छप्पन भोग।।

खोदा खूब पहाड़ तब, चुहिया निकली एक!
जीवन में रहते सखे, निष्फल  काज अनेक!!

अंधे को  संयोग से, लगती  हाथ बटेर!
सत्ताशीन  कुपात्र  हो, पले  बुराई  ढेर!! 
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© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


दोहा छंद        फरवरी

 माह  फरवरी शीत में, पछुआ मंद बयार।
बासंती  मौसम हुआ, करे  मधुप  गुंजार।।

माह  फरवरी  जन्म  का, वेलेन्टाइन संत।
प्रेम  पगा  संसार  हो, प्रीत  रीत  का पंत।।

भारत में  उत्सव  मनें, फाग बसन्ती गीत।
माह फरवरी में चले, प्राकृत पतझड़ रीत।।

काम देव के बाण से, पीड़ित सभी सजीव।
फागुन  संगत  फरवरी, सबके चाहत पीव।।

महिना आए  फरवरी, फसलें  बौर  निरोग।
जीव जगत चाहे सभी, मीत मिलन संयोग।।
.               .......
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ


 दोहा छंद
.                  धूप
.                      
धूप दुपहरी चुभ रही, पकती फसल सुयोग।
शाम सुबह  की धूप मधु, नष्ट करे तन रोग।।

माह  फरवरी  में  चले, पछुआ  मंद  समीर।
धूप रूप यौवन फसल, विरहा  चाह अधीर।।

धूप खिले  कलियाँ खिले, फूल मंजरी  बौर।
चमके फूल  पलाश ज्यों, दमके  गौरी  गौर।।

फसल  पकेगी  धूप  से,  तन  मन रंग सुरंग।
फाग राग  मय  होलिका, यौवन  रूप उमंग।।

दिन दिन बढ़ती धूप से, स्वेद चमकता गात्र।
मन हुलियारा  हो रहा, हर वय का हर पात्र।।
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© बाबू लाल शर्मा बौहरा, विज्ञ


                       दीपक
.                    (दोहा छंद)
.                      
एक दीप बस एक ही, डरे न तम से मीत।
शेर अकेले  देखिये, मन तुम रहो अभीत।।
.                      
धरा  एक दीपक जले, तारक  गगन अनंत।
हिम्मत  कभी  न  हारता, तेल बाति पर्यंत।‌।
.                     
दीपक से सीखो मनुज, जलना पर उपकार।
तभी देवता को  लगे, दीपक  प्रिय  करतार।।
.                     
दीपक  से  दीपावली, खुशियों  का त्यौहार।
दीप बिना रोशन नहीं, दीपक विविध प्रकार।।
.                     
तम  है  दीपक के तले, पर हित की पहचान।
अपने दुख को भूलिए, दुख दुनिया के जान।।
.                     
धन्य दीप जीवन तुम्हें, रोशन करे जहान।
दीप  रूप  तारे  धरे, सूरज   चंद्र  महान।।
.                    
पल  दो पल दीपक जिये, करें देह का दान।
जलकर भी दे रोशनी, मनुज सीख विज्ञान।।
.                   ________
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ

.                      ममता
.                    (दोहा छंद)
.                     १
ममता से  माता बनी, जननी  जन्म प्रमाण।
पाल पोष जीवन दिया, संकट में रख प्राण।।
.                      २
ममता मोह  दुलार वर, नेह प्रेम आशीष।
गुण उर माता के बसे, दाता  उमा गिरीष।।
.                      ३
ममता से ही मायका, मान मनो मनुहार।
मात सनेही बेटियाँ, तजती  पंथ विकार।।
.                       ४
ममता से  हर जीव में, संतति  नेह  प्रसार।
माया है सब ईश की, जीवन का सच सार।।
.                       ५
ममता त्यागे मात यदि, संभव काम महान।
देश धरा  मर्याद हित, ज्यों चंदन बलिदान।।
.                   °°°°°°°°°°′°
© बाबू लाल शर्मा बौहरा, विज्ञ


.           (दोहा छंद)
.            सृजन

सृजन कर्म सूरज करे, सविता कह दें मान।
चंद्र धरा की रोशनी, जग मण्डल की शान।।

दूजी सृजक वसुंधरा, जिस पर निपजे जीव।
सृजन करे जल संग से, बरसे  अम्बर  पीव।।

उत्तम सृजक किसान है, भरता सब का पेट।
अन्न फसल  फल फूल से, चाहे वन आखेट।।

कृष्ण राधिका  रास भी, जिसे न आए रास।
अश्व रास बिन वे मनुज, वन्य रास आभास।। 

प्रभु गुरु कवि माता सृजक, सृजे सत्य इंसान।
शर्मा  बाबू  लाल  जग, करे  सृजन  सम्मान।।
.                      _______
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


 .              सहारा
.          (दोहा छंद)

पेड़   सहारे   से   लता, चढे़  फले  अरमान!
सूखे  गिरते   काटते,  लाज   करो   इंसान!!

दिया  सहारा  जो तुम्हे, मात पिता  प्रतिपाल!
उनको  सखे   सँभालना, बनो  सहारा  ढाल!!

दिवस मातृ पितु ले मना, करिये सत संकल्प।
ईश मान  पितु मात को, छोड़ो सभी विकल्प।।

घर  में  ही  भगवान  हैं, सच  जीवन  दातार। 
मात  पिता  को  मान  दें, करिये  उनसे प्यार।।

जन्म  दिया  है  आपको, रखे  गर्भ  नौ  मास।
पाला  मय  अरमान  के, मात  पिता  विश्वास।।

पाल पोष  पहचान दी, पढ़ा लिखा कर शान।
खोया निज  को आप में, उनका रखो गुमान।।

जीवन संतति हित जिए, छोड़ स्वयं अरमान।
बनो  सहारे  आज तुम, मात पिता  भगवान।।

शर्मा  बाबू  लाल  कह, दोहा लिख कर अष्ट।
विनय  आपसे, हो नही, मात पिता  को कष्ट।।
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© बाबू लाल शर्मा बौहरा,विज्ञ


.              जीवन है अनमोल
.                     ( दोहा छंद )
.                       
दुर्लभ मानव  देह जन, सुनते  कहते  बोल।
मानवता हित 'विज्ञ' हो, जीवन है अनमोल।।
.                       
धरा  जीव  मय  मात्र ग्रह, पढ़े यही भूगोल।
सीख 'विज्ञ' विज्ञान लो, जीवन है अनमोल।।
.                       
मानव में क्षमता बहुत, हिय दृग देखो खोल।
व्यर्थ  'विज्ञ'  खोएँ नहीं, जीवन है अनमोल।।
.                       
मस्तक 'विज्ञ' विचित्र है,नर निजमोल सतोल।
खोल अनोखे  ज्ञान पट, जीवन  है अनमोल।।
.                       
'विज्ञ'  सत्य  ही  बोलिए, वाणी में मधु घोल।
जन हितकारी सोच रख, जीवन है अनमोल।।
.                       
थिर रख 'विज्ञ' विचार को,वायुवेग मत डोल।
शोध सत्य निष्कर्ष  ले, जीवन  है  अनमोल।।
.                       
'विज्ञ'  होड़ मन भाव से, रण के बजते ढोल।
समरस हो  उपकार कर, जीवन है अनमोल।।
.                       
कठिन परीक्षा है मनुज,खेल समझ मत पोल।
सजग 'विज्ञ' कर्तव्य पथ, जीवन है अनमोल।।
.                      
कर्तव्यी  अधिकार  ले, करिए  कर्म  किलोल।
देश  हितैषी  'विज्ञ'  बन, जीवन  है अनमोल।।
.                     
दीन हीन दिव्यांग की, कर मत 'विज्ञ' ठिठोल।
सबको शुभ सम्मान  दो, जीवन  है अनमोल।।
.                      
'विज्ञ'  छंद दोहे गज़ल, शब्दों  की रमझोल।
शर्मा  बाबू  लाल  यह, जीवन  है  अनमोल।।
.                      ________
© बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*


.        मातृ पितृ पूजन दिवस
.           (दोहा छंद)
.                    
दिवस मातृ पितु ले मना, करिये सत संकल्प।
ईश मान  पितु मात को, छोड़ो सभी विकल्प।।

घर  में  ही  भगवान  हैं, सच  जीवन  दातार। 
मात  पिता  को  मान  दें, करिये  उनसे प्यार।।

जन्म  दिया  है  आपको, रखे  गर्भ  नौ  मास।
पाला  मय  अरमान  के, मात  पिता  विश्वास।।

पाल पोष  पहचान दी, पढ़ा लिखा कर शान।
खोया निज  को आप में, उनका रखो गुमान।।

जीवन संतति हित जिए, छोड़ स्वयं अरमान।
अब उनका विश्वास बन, मात पिता भगवान।।

शर्मा  बाबू  लाल   यह, दोहा लिख कर षष्ट।
विनय  आपसे, हो नही, मात पिता  को कष्ट।।
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© बाबू लाल शर्मा बौहरा,विज्ञ


.                  पानी है अनमोल
.                       (दोहा छंद)
.                      
क्षिति जल पावक नभ पवन,
.                      जीवन 'विज्ञ' सतोल।
जीवन का आधार वर,
.                        पानी है अनमोल।।
.               
मेघपुष्प ,पानी  सलिल,  आप:  पाथ:  तोय।
 विज्ञ  वन्दना वरुण की, निर्मल मति दे मोय।।
.                    
जनहित जलहित देशहित, जागरूक हो  विज्ञ।
जीवन  के  आसार  तब, जल  रक्षार्थ  प्रतिज्ञ।।
.                    
वारि  अम्बु  जल पुष्करं, अम्म: अर्ण: नीर।
उदकं, घनरस  शम्बरं,   विज्ञ  रक्ष मतिधीर।।
.                     
सरिता  तटिनी  तरंगिणी,   द्वीपवती   सारंग।
नद सरि सरिता आपगा, जलमाला जलसंग।।
.                   
अपगा लहरी निम्नगा, निर्झरिणी  जलधार।
सदा सनेही  सींचती, करलो   विज्ञ   विचार।।
.                    
स्वच्छ रखो जल  विज्ञ  नर, नहीं प्रदूषण घोल।
नयन  नीर  नर नारि रख, पानी  है  अनमोल।।
.             _______
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा,  विज्ञ


.               (दोहा छंद)
.            पृथ्वीराज चौहान
.              
अजयमेरु गढ़ बींठली, साँभर पति चौहान।
सोमेश्वर  के  अंश  से,  जन्मा  पूत  महान।।

ग्यारह सौ उनचास मे, जन्मा शिशु शुभकाम। 
कर्पूरी   के    गर्भ   से,  राय   पिथौरा   नाम।।

अल्प आयु में बन गए, अजयमेरु महाराज।
माँ  के  संगत  कर रहे, सभी राज के काज।।

तब  दिल्ली   सम्राट  थे, नाना पाल अनंग।
राज पाट सब कर दिया, राय पिथौरा संग।।

दिल्ली से अजमेर तक, चौहानों की धाक।
गौरी  भारत  देश  को, तभी रहा था ताक।।

बार  बार  हारा  मगर, क्षमा  करे  चौहान।
यही  भूल  भारी  पड़ी, बार बार तन दान।।

युद्ध  तराइन  का  प्रथम,  हारे  शहाबुद्दीन।
क्षमा पिथौरा ने किया, जान उन्हे मतिहीन।।

किये  हरण  संयोगिता, डूब गये  रस रंग।
गौरी  फिर  से  आ गया, लेकर सेना संग।।

युद्ध  तराइन  दूसरा, चढ़ा  कपट की भेंट।
सोती  सेना  का  किया, गौरी  ने आखेट।।

राय पिथौरा  को  किया, गौरी  ने तब कैद।
आँखे  फोड़ी  दुष्ट  ने, बहा न तन से स्वेद।।

बरदाई  मित  संग  से, करतब  कर चौहान।
लक्ष्य बनाया शाह को, किया बाण संधान।।

अमर पात्र इतिहास के, राय पिथौरा शान।
गर्व करे भू भारती, जय जय जय चौहान।।
.                ________
© बाबू लाल शर्मा बौहरा 'विज्ञ'


 .              धरती वंदन
.                      ( दोहा छंद)
   (प्रत्येक दोहे में धरती का पर्यायवाची हैं)
.                   ..
धारण करती है सदा, जल थल का संसार।
जननी  जैसे  पालती,  धरती  जीवन  सार।।
.                         २ 
भूमि   उर्वरा  देश  की, उपजे  वीर  सपूत।
भारत माँ सम्मान हित, हो कुर्बान  अकूत।।
.                         ३ 
पृथ्वी , पर्यावरण  की , रक्षा  कर  इन्सान।
बिगड़ेगा यदि संतुलन, जीवन खतरे जान।।
.                         ४ 
धरा   हमारी मातु सम, हम है  इसके लाल।
रीत निभे बलिदान की,चली पुरातन काल।। 
.                         ५ 
 भू   पर भारत देश का, गौरव गुरू समान।
स्वर्ण पखेरू शान है, आन बान अरमान।।
.                         ६ 
 रसा   रसातल से उठा,भू का कर उपकार।
धारे  रूप  वराह  का, ईश्वर   ले  अवतार।।
.                         ७ 
चूनर हरित  वसुंधरा,  फसल खेत खलिहान।
मेड़ मेड़ पर  पेड़ हो, हँसता मिले  किसान।।
.                         ८ 
वसुधा  के  शृंगार वन, जीवन प्राकृत वन्य।
पर्यावरण  विकास से, मानव  जीवन धन्य।।
.                         ९ 
अचला  चलती है सदा, घुर्णन से दिन रात।
रवि  की  करे परिक्रमा, लगे साल  संज्ञात।। 
.                       १० 
क्षिति  जल पावक अरु गगन,
.                         संगत मिले समीर।
जीव जीव में पाँच गुण,
   .                      धारण, तजे शरीर।।
.                       ११ 
वारि   इला   पर साथ ही, प्राण वायु भरपूर।
इसीलिए  जीवन  यहाँ, सुन्दर  प्राकृत  नूर।।
.                       १२ 
मानस  मानुष   मेदिनी ,  बचे , बचे  संसार।
संरक्षण करले  सखे, रखें कुशल  आचार।।
.                       १३ 
रखें  विकेशी  मान को, निज माता सम मान।
जगत मातु रखिए सखे, लगा प्रदूषण आन।।
.                       १४ 
क्षमा , क्षमा करती सदा, मानव  के अपराध।
हम भी मिल रक्षण करें,सबके मन हो साध।।
.                       १५ 
पेड़   अवनि  की  शान है, शीतल देते  छाँव।
प्राणवायु  भरपूर  दे, लगा नगर  पथ  गाँव।।
.                       १६ 
भरते  निर्मल  बाँध सर, हरे    अनंता    ताप।
नीर प्रदूषण है सखे, हम सब को अभिशाप।।
.                       १७ 
वारि अन्न जीवन वसन, दिए सर्व सुख शान।
रहें  तभी    विश्वंभरा , रक्षण   मय  सम्मान।। 
.                      १८ 
रखे   स्थिरा   धारण  सदा, मानव  तेरे भार।
करती निज कर्तव्य वह, करले कर्म सुधार।।
.                       १९ 
वृक्ष   धरित्री   पर  हरे, वर्षा जल की आस।
खूब लगाओ पेड़ फिर, भावि बने विश्वास।।
.                      २० 
धरणी  पर जल है भरा,हिम सागर नद बंध।
खेती, पीने  को नहीं, सोच मनुज मतिअंध।।
.                      २१ 
उर्वी   पर  है  सिंधु  सर, नदिया और पठार।
फसलें कानन पथ भवन,झेले गुरुतम भार।।
.                       २२ 
देश  राज्य  सीमा बना, ले  हथियार  नवीन।
क्यों लड़ते ,रहने यहीं, जेवर  जोरु जमीन।।
.                       २३ 
धीरज से खोदें खनिज, करले भल पहचान।
रहे   रत्नगर्भा  अमर, अविरल  रहें  निसान।।
.                       २४ 
महि  से रवि शशि दूर है, फिर भी नेह प्रकाश।
चाहे  तन  से  दूर  हों, मन  में   हो  विश्वास।।  
.                       २५ 
गंग  अदिति  पर ही बहे, भागीरथी प्रयास।
निर्मल  रखनी है सदा, जैसे  हरि आवास।।
.                      २६ 
आद्या  सम हैं  नारियाँ, धारक और महान।
सृष्टि चक्र इनसे चले, मत कर नर अपमान।।
.                       २७ 
जगती   पर  जीवन रहे, ईश्वर से  अरदास।
जीवन भी साकार तब, होय प्रदूषण नाश।।
.                       २८ 
सहती   धात्री  देखिए, मानव  के  अतिचार।
मर्त्य जन्म शुभ कर्महित,करले खूब विचार।।
  .                     २९
इसी   निश्चला  पर रहें, प्राकृत  जीव अनंत।
सुर नर मुनि  गंधर्व की, चाह बहार  बसंत।। 
.                      ३० 
खोद  रहे   रत्नावती , बजरी  पत्थर  खेत।
मोती माणिक रत्न भी, खोजे स्वर्ण समेत।।
.                       ३१ 
वासुदेव  श्रीकृष्ण  से, सभी ईश अवतार। 
माने माँ  सम  वसुमती , वीर मिटाए भार।।
.                       ३२ 
विपुला बड़ी विचित्र है,विपुल भरे भण्डार।
सीमित दोहन कीजिए, मत भर घर आगार।।
.                      ३३ 
शस्य श्यामला चाहते,  श्यामा  को घनश्याम।
मीरा, राधा  श्याम को,  सीता  चाहति  राम।।
.                      ३४ 
सहे  सदा  माता   सहा , पूत , दुष्ट  के  दंश।
'लाल' मात के जो कहे, मेटे खल कुल वंश।।
.                      ३५
धारे   सागरमेखला,   सागर  सरिता  सेतु।
पर्वत जंगल  जीव ये, माता, सुत जन हेतु।।
.                      ३६ 
गौ, गौरैया, गिद्ध  गुण, भूल  रहा   इंसान।
उपयोगी जनजीव ये,  गो का हर अरमान।।
.                     ३७
धर्म,जातियाँ गोत्र से, मत कर जनअलगाव।
सूरज    गोत्रा  चंद्र  के,  रहे  एक  सम भाव।।
.                       ३८ 
क्यों  ज्या  को अपमानता, स्वारथ में इन्सान।
माता का  सम्मान कर, जग है  कर्म प्रधान।।
.                      ३९ 
इरा  कभी  देनी नहीं, जन्मत  सीख सपूत।
रजपूतानी  रीति थी, गर्वित  जन रजपूत।।
.                       ४० 
जन्म  इड़ा  पर भाग्य से, करले खूब सुकर्म।
स्वर्ग नर्क  व्यापे नहीं, समझ  धर्म का  मर्म।।
.                     ४१
लड़े भोम हित भोमिया, शीश विहीन कबंध।
शर्मा  बाबू  लाल  के, कुल  में  पुरा  प्रबंध।।
.                 ........
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा,विज्ञ


 .              (दोहा छंद)
.              विरहा सोच बसंत           

सूरज उत्तर पथ चले, शीत कोप हो अंत।
पात पके पीले पड़े, आया  मान  बसंत।।
.                
फसल सुनहरी हो रही, उपजे कीट अनंत।
नव पल्लव सौगात से, स्वागत प्रीत बसंत।।
.                 
बाट निहारे  नित्य ही, अब तो  आओ  कंत।
कोयल सी कूजे निशा, ज्यों ऋतुराज बसंत।।
.                
वस्त्र हीन तरुवर खड़े, जैसे तपसी संत।
कामदेव सर बींधते,मन मदमस्त बसंत।।
.                
मौसम ले अंगड़ाइयाँ, दामिनि गूँज दिगंत।
मेघा तो बरसे कहीं, विरहा  सोच  बसंत।।
.               
नव कलियाँ खिलने लगे, आएँ भ्रमर तुरंत।
विरहन मन बेचैन है, आओ पिया  बसंत।।
.                  
सिया सलौने गात है, मारे चोंच  जयंत।
राम बनो रक्षा करो, प्रीतम काल बसंत।।
.                
प्रीतम पाती प्रेमरस, अक्षर  जोड़ अजंत।
विरहा लिखती लेखनी, आओ कंत बसंत।।
.                 
प्रेम पत्रिका  लिख रही, पढ़ लेना श्रीमंत।
भाव समझ आना पिया, चाहूँ मेल बसंत।।
.                
जैसी उपजे सो लिखे, प्रत्यय संधि सुबन्त।
पिया मिलन की आस में,भटके भाव बसंत।।
.                 
परदेशी  पंछी  यहाँ, करे  केलि  हेमंत।
मन मेरा भी बावरा, चाहे मिलन बसंत।।
.                 
कुरजाँ ,सारस, देखती, कोयल पीव रटन्त।
मन मेरा बिलखे पिया, चुभते तीर बसन्त।।
.                
बौराए   वन   बाग  है, अमराई   जीवंत।
सूनी सेज निहारती ,बैरिन   रात  बसंत।।
.                
मादकता चहुँ ओर है, कैसे  बनू  सुमंत।
पिया  बिना बेचैन मन, कैसे कटे बसंत।।
.                
काम देव  बिन सैन्य  ही, करे  करोड़ो  हंत।
फिर भी मन माने नहीं, स्वागत करे  बसंत।।
.                
मैना   कोयल  बावरे, मोर   हुए  सामंत।
तितली भँवरे मद भरे, गाते राग  बसंत।।
..               
कविमन लिखता बावरा, शारद सुमिर पदंत।
प्राकृत में जो देखते, लिखती कलम बसन्त।।
.               
शारद सुत कविता गढ़े, लिखते गीत गढंत।
मन विचलित ठहरे नहीं, रमता फाग बसंत।।
.             
गरल सने सर काम के, व्यापे संत असंत।
दोहे लिख ऋतु राज के, कैसे  बचूँ बसंत।।
.            
कामदेव का  राज है, भले  बुद्धि  गजदंत।
पलकों में पिय छवि बसे, नैन न चैन बसंत।।
.              
ऋतु राजा की शान में, मदन भटकते पंत।
फाग राग ढप चंग से, सजते गीत बसंत।।
.              
मन मृग तृष्णा रोकती, अक्षर लगा हलन्त्।
आँसू रोकूँ  नयन के, आजा  पिया  बसंत।।
.              
चाहूँ प्रीतम कुशलता, अर्ज करूँ भगवंत।
भादौ से दर्शन  नहीं, अब तो मिले बसंत।।
.               
ईश्वर से  अरदास  है, प्रीतम  हो  यशवंत।
नित उठ मैं पूजा करूँ, देखूँ   बाट बसंत।।
.             
फागुन में साजन मिले, खुशियाँ हो अत्यंत।
होली  मने  गुलाल  से, गाऊँ  फाग बसंत।।
.            
मैं परछाई आपकी, आप पिया कुलवंत।
विरहा मन  माने नहीं, करता याद बसंत।।
.               
शकुन्तला को याद कर, याद करूँ दुष्यंत।
भूल कहीं  जाना नहीं, उमड़े  प्रेम  बसंत।।
.               
रामायण गीता पढ़ी, और पढ़े सद् ग्रन्थ।
ढाई अक्षर  प्रेम के, मिलते  माह  बसंत।।
.                
प्रीतम हो परदेश में, आवे कौन सुपंथ।
पथ पूजन कर आरती, मै तैयार बसंत।।
.               
नारी  के सम्मान  के, मुद्दे उठे  ज्वलंत।
कंत बिना क्या मान हो, दे संदेश बसंत।।
.                
प्रीतम चाहूँ प्रीत मै, सात जन्म पर्यन्त।
नेह सने दोहे लिखूँ , साजन चाह बसंत।।
.               ________
© बाबू लाल शर्मा, "बौहरा", विज्ञ


.      सोच समझ मतदान
.            (दोहा-छंद)
1.
मत अयोग्य को दें नहीं, चाहे  हो वह  खास।
वोट देय हम योग्य को, सब जन करते आस।।
2.
समझे क्यों जागीर वे, जनमत के मत भूल।
उनको मत देना नहीं, जिनके  नहीं   उसूल।।
3.
एक वोट  शमशीर है, करे जीत या हार।
इसीलिए मतदान कर, एक  वोट  सरकार।।
4.
मतदाता पहचान को, लेय कार्ड  बनवाय।
निर्भय हो निर्णय करें, वोट देन  को जाय।।
5.
वर्ष अठारह होत ही, बी.एल.ओ पहि जाय।
मतदाता सूची बने, तुरतहि  नाम  लिखाय।।
6.
अपना मत निर्णय करे, सत्य बात यह मान।
यही समझ के कीजिए, सोच समझ मतदान।
7.
लोखतंत्र मे ही मिला, यह अनुपम  उपहार।
अपने मत से हम चुनें, अपनी  ही  सरकार।।
8.
भारत के हम नागरिक, मत अपना अनमोल।
संसद और  विधायिका, चुनिए  आँखे खोल।।
9.
ई.वी.एम. को  देखिए, चिन्ह  चुनावी  देख।
अंतर्मन  से  वोट  दें , तर्जनि  अंगुलि  टेक।।
10.
सबको यह समझाइए, देना वोट  विवेक।
लोकतंत्र कायम रहे, चुनिए मानस  नेक।।
11.
बड़े बुजुर्गन  साथ ले, चलना  अपने  बूथ।
मत का हक छोड़ें नहीं, चाहे भीड़ अकूथ।।
12.
नर  नारी  दोनो  चलें, पंक्ति  भिन्न  बनवाय।
बारी  बारी वोट दो, सबको यह समझाय।।
13.
सबसे वर  जनतंत्र है, भारत  देश महान।
मतदाता  उसके  बनें, यही  हमारी  शान।।
14.
जन प्रतिनिधि सारे चुने, अपने मत से आप।
फिर  कैसा  डर  आपको, कैसा  पश्चाताप।।
15.
सगा सनेही मीत जन, सबको यह समझाय।
अपना हक मतदान है, विरथा कभी न जाय।।
.            ___________
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा", विज्ञ


.                    शब्द संपदा
.                   
झंझा-
तेज हवा  अंधड़ चले, या  शीतोष्ण समीर।
आँधी झंझा वात से, मत हो मनुज अधीर।।
संझा-
शाम सांध्य संध्या कहे, संझा  सायं काल।
सूर्य अस्त, दिवसान में, लौटे गउ गोपाल।।
मंझा-
मंझा, माँझा, डोर से,  उड़े  पतँग आकाश।
मध्य बीच धागा कहें, समझें शब्द प्रकाश।।
मुक्त-
बंधन रहित, स्वतंत्र हो, या  कह  दें आजाद!
मुक्त कहें शब्दार्थ यह, कर विमुक्त मन याद!!

बंधन से मन मुक्त  अब, एकल अब परिवार!
मात पिता गुरुजन तजे, स्वार्थ भरा व्यवहार!!
मुक्ति-
आजादी  का  अर्थ  है, यह स्वतंत्रता    मान!
मुक्ति  इसे  कहते  सखे, शब्द शब्द पहचान!!

मिले  मुक्ति  आतंक  से, हो विकास सद्भाव!
स्वर्ग  तुल्य  कश्मीर  फिर, भरे पुरातन घाव!!
मुक्ता-
मोती  सुंदर  सीप  का, आभा  श्वेत  प्रमाण!
मुक्ता कहते हैं सभी, प्रिय लगता सम प्राण!!

स्वाति  बिंदु  की  चाह  में, सीप  रहे  बेचैन!
सुंदर  मुक्ता   हार   में, चाहत  रमणी   नैन!!
मुक्तक-
चार पदों में  छंद लिख, मात्रा  रखो  समान!
पद तृतीय अतुकांत हो, मुक्तक रचो सुजान!
पूर्व  पश्च  से  मुक्त हो, बात  कथा   सम्पूर्ण!
मुक्तक मुक्ता सम सजे, बने काव्य की शान!
.                  °°°°°°°°°°°
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


दुर्गा चण्डी रूप लो....
.                   (दोहा छंद)
जन्म दिया  माँ  ने हमें, कहती रही सपूत।
सच में सोचो क्या बने, ऐसे हम भी पूत।।

नारी से सजता सखे, नर का   घर संसार।
बिन  नारी के तो लगे, भवन भूत आगार।।

वसुधा के  शृंगार  है, पर्वत नदियां नीर।
छीन रहा  शृंगार ही, मानव बन बेपीर।।

पर्यावरण सुधारते, लगे धरा  परिधान।
पेड़ सदा  दाता रहे, काटो मत  इंसान।।

विद्या देती  है सदा,    सरस्वती  माँ  रूप।
संगति संगम से मिले, नदियाँ मात अनूप।।

बनो नहीं अबला  सखी, होना है मजबूत।
दुर्गा  चण्डी  रुप लो, क्षमता धारि अकूत।।

होता है  सिंदूर  का, बड़ा जटिल अरमान।
सिर पर धारे गर्व से, मिटे  शहादत  शान।।

है अधिकार  समानता ,भारतीय संविधान।
जागरूक होकर रहो, पूरित कर अरमान।।

देश भक्ति की  नायिका , रानी झाँसी मान।
हर नारी है नायिका, सबकी  अपनी शान।।

उद्धव  हारे  प्रेम सन , गये भूल सब ज्ञान।
सखियाँ  मन कान्हा बसे,हुए भ्रमर हैरान।।
.                       
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा" ,विज्ञ


.              (दोहा छंद)
1. बरसात
होती है  सौभाग्य से, धरती पर बरसात।
नीर सहेजो मेह का, लाख टके की बात।।
2. बूँद
बूँद  बूँद  है  कीमतन, पानी  की  अनमोल।
बिंदु बिंदु मिलकर करे,सरिता सिंधु किलोल।
3.   फुहार
रिमझिम वर्षा है भली, धरती रमे फुहार।
जल स्तर ऊँचा रहे, छाए फसल  बहार।।
4.  पानी
पानी  आँखों  का गया, सरवर  रीते  कूप।
बिन पानी सब सून है,रहिमन कही अनूप।।
5.   आँगन
नैना  बरसे  सेज पर, आँगन  बरसे  मेह।
होड़ मची है झर लगे, सावन सजनी नेह।।
6.   छतरी
बिकती है बाजार में,लगती खेत,जमीन।
सेहत वर्षा धूप में, इक छतरी गुण तीन।।
7.  सतरंगी
इन्द्रधनुष आकाश मे,धरा फसल अनुराग।
सत रंगी दोनो हुए, अनुपम  बरसा  भाग।।
8.   ओस
आएगी  सर्दी  सखी, रात ठिठुरती ओस।
खेतों  में साजन  रहे, मैं  मन रहूँ मसोस।।
9.  हरियाली
हारिल,हरियल बाग में, पंछी नेक अनेक।
हर हरियाली तीज पर, झूला झूलन टेक।।
10.  आनंद
दोहों  की   प्रतियोगिता, देती  है  आनंद।
सीखो लिखो विवेक से,अनुपम दोहा छंद।।
_          _____________

© बाबू लाल शर्मा, बौहरा,विज्ञ


.                  शब्द संपदा

अनल-
पावक अग्नि आग भी, कहते अनल  सुजान!
व्याप्त जीव निर्जीव में, सुप्त प्रकट प्रतिमान!!
अनिल-
हवा समीरण अरु  मरुत, वात समीर बयार!
पंच तत्व में है अनिल,  जग जीवन आधार!!
अंबु-
आपु तोय जल वारि सर, अंबु आब पय नीर!
अंभ उदक पानी  सलिल , मेघपुष्प कह धीर!!
अंबर-
गगन अभ्र   अंबर   कहें, अधर अर्श  आकाश!
आसमान कहते फलक, विविध पिंड आवास!!
अचला-
अचला  धरा  वसुंधरा, क्षमा रसा भू भूमि!
धरती वसुधा मेदिनी, धारक जीवन उर्मि!!
.                      
अनल आब अंबर अनिल, अचला के संयोग!
पंच तत्व  का  मेल  हो, तब मानुष तन भोग!!
.                    ____
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


.                  शब्द संपदा

अमल-
अमल वारि है ज्यों सुधा, निर्मल करे शरीर!
विमल  बुद्धि  दातार  है, माँ  गंगा  तव  नीर!!

नवल-
रात   अँधेरे   कष्ट   पल, पतझड़   पीले  पात!
काल चाल बदले सभी, प्रतिदिन नवल प्रभात!!

धवल-
हिम हिमगिरि रद चंद्रिका, पय दधि सविता धूप!
श्वेत   दूधिया  रजत सम, धवल   सफेद  अनूप!!
.                       °°°°°°°°°°°°
अमल धवल निर्मल कमल,
.                            खिलते नवल  प्रभात!
शर्मा   बाबू   लाल   मन,
.                            भूल   घात   प्रतिघात!!
.                      °°°°°°°°°°°
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


 .               शब्द संपदा

कदली--
कदली फल तरु पात मय, पावन पुण्य पवित्र!
काटे  बिन  फलते  नहीं, प्राकृत  चित्र  विचित्र!!

कदली चाह कपूर हित, विष हित चाहे सर्प!
सीप चाह  मोती बने,  चातक स्वाति  सदर्प!!
कजली--
पावन भादो माह में, तृतीया कजली पर्व!
सदा  सुहागिन बन रहे, नारी चाह  सगर्व!!

गायें  नागौरी  भली, कजली धवल विशेष!
बछड़े बैल प्रसिद्ध हैं, कृषक खेत परिवेश!!
कमली--
कमली काली श्याम की, झीनी धवल कबीर!
ओढ़  जतन से सब चले, कितने  संत प्रवीर!!

भ्रमर भ्रमित भावुक करे, क्षणिक रसिक रस रंग!
कमली  पगली  चाह  मत, पथिक  प्रेम  पर संग!!
.             _______
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


कुछ दोहे अनमोल
.         (दोहा छंद)

दूर प्रदूषण कीजिए, सोच विकासी काज।
सभी  देश  संसार के, धरा बचाएँ  आज।।

मत कर दूषित नीर को, कर उपयोग सतोल।
पानी बिन जीवन नहीं, बचा  रत्न अनमोल।।

मानव तन क्षमता विपुल, करले जो उपयोग।
करो  परिश्रम  साधना, नित ही करिये योग।।

आडम्बर  से दूर हो, सुफल कर्म पथ धार।
करते हैं कर्तव्य तो, स्वतः मिले अधिकार।।

मँहगाई  बढ़ती  रही, दिन दिन  बढ़ते  भाव।
चरित गिरावट रोकिये, जीवन मनुज बचाव।।

सोच समझ के बोलिये, वाणी मधुर निहाल।
लगे काग सबको बुरा, बिना  काम वाचाल।। 

पूत निकम्मा  जो रहे, अखरे पास पड़ोस।
मात पिता मजबूर हो, खो देते निज होंश।।

मानव हो मानव बनो, तजिये  मनो विकार।
जाति धर्म  बंधन मिटा, कर अछूत उद्धार।।

सभी मनुज शिक्षित बने, ऐसा कर संकल्प।
इसी हेतु मैने चुना, शिक्षक काज विकल्प।।

कोमल मन भावों भरा, कवि का रहे स्वभाव।
रचे  काव्य  रस से भरे, अपने मन  के भाव।।
.             ________
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


.                  शब्द संपदा

संजय-
सजी सैन्य कुरु क्षेत्र में, संजय चाह विवेक!
संजय  से  धृतराष्ट्र  तब, करते प्रश्न अनेक!!

धनंजय-
त्याग धनंजय  मोह को, धर्मयुद्ध  हित पार्थ!
महा समर में युद्धरत, माधव मित हित सार्थ!!

मृत्युंजय-
मृत्युंजय संगत उमा, पूजित प्रथम गणेश!
करूं  वंदना  मैं  सदा, हे  परमेश  जगेश!!
.                   •••••••••••
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


 .                    शब्द संपदा
.           
मुक्त-
बंधन रहित, स्वतंत्र हो, या  कह  दें आजाद!
मुक्त कहें शब्दार्थ यह, कर विमुक्त मन याद!!

बंधन से मन मुक्त  अब, एकल अब परिवार!
मात पिता गुरुजन तजे, स्वार्थ भरा व्यवहार!!
मुक्ति-
आजादी  का  अर्थ  है, यह स्वतंत्रता    मान!
मुक्ति  इसे  कहते  सखे, शब्द शब्द पहचान!!

मिले  मुक्ति  आतंक  से, हो विकास सद्भाव!
स्वर्ग  तुल्य  कश्मीर  फिर, भरे पुरातन घाव!!
मुक्ता-
मोती  सुंदर  सीप  का, आभा  श्वेत  प्रमाण!
मुक्ता कहते हैं सभी, प्रिय लगता सम प्राण!!

स्वाति  बिंदु  की  चाह  में, सीप  रहे  बेचैन!
सुंदर  मुक्ता   हार   में, चाहत  रमणी   नैन!!
मुक्तक-
चार पदों में  छंद लिख, मात्रा  रखो  समान!
पद तृतीय अतुकांत हो, मुक्तक रचो सुजान!
पूर्व  पश्च  से  मुक्त हो, बात  कथा   सम्पूर्ण!
मुक्तक मुक्ता सम सजे, बने काव्य की शान!
.                  °°°°°°°°°°°°°
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ


लोक भलाई बात
.            ( दोहा)
.   

करें  ईष्ट  की साधना, लोक भलाई बात।
पूजा  अर्चन  भावमय, माता के नवरात।।

क्षणभंगुर काया मनुज, यह असार संसार।
कर्म भले कर लीजिये, लोभ कामना मार।।

बना धर्म  निरपेक्ष है, अपना  भारत देश।
धर्म युद्ध कैसा यहाँ, रहना मिल परिवेश।।

सब में जो मिलकर रहे, प्राणी मिश्रज मान।
मानव मन सद्भावना, निज पर की पहचान।।

नारी   ही    नारायणी, सृष्टि   रूप   वरदान।
नर की जननी नारि है,मतकर नर अभिमान।।

मीठी वाणी  बोलते , रखे  भावना  स्निग्ध। 
ठग  होते  चालाक  हैं, झपटे  जैसे  गिद्ध।।

द्रुपद सुता  ने कृष्ण कर,बाँधी साड़ी चीर।
चीर बढ़ायो कृष्ण ने, हर कृष्णा की पीर।।

सर्वेश्वर  महादेव हे, जग जननी के नाथ।
कैलाशी  वासी  प्रभो, तुम्हें नवाऊँ माथ।।

राजा  रजवाड़े  कभी ,  लेते   बहु   बेगार।
गढ़ तो,अब होटल बने, महल  संग्रहागार।।

जग  की  पीड़ा  दूर कर, दीन  बंधु  करतार।
त्रिभुवनपति भगवान हे,आदि शक्ति कांतार।
.            ___________   
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ


.                 शब्द संपदा

कोकिला-
मधुर बोल,रस छल करे, गुण कटु काग कुनैन!
पर शिशु पाले, ज्वर हरे, मिष्ठ  कोकिला  चैन!!

कुहुके  काली  कोकिला, करती भोर विभोर!
विरहन  प्रियतम  याद में, भीगे काजल कोर!!
काकली-
मैना, सारन पिक वचन, मृदु रव साठी धान!
कैंची  घुँघची,भोर ध्वनि, कहें काकली मान!!
कंकाली-
आदि शक्ति आराधना, महिमा मात अनूप!
दुष्ट दलन   दुर्गा  करे, धर   कंकाली  रूप!!
.              
करे कोकिला काकली, कवि कविताई कर्म!
कंकाली  के  कोप  से, बचे  धरा  मनु  धर्म!!
.             ____________
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


.               शब्द संपदा
.                         
सागर  मंथन  जब  हुआ, चौदह निकले रत्न।
अन्वेषण   नित कर रहे, सतत समस्त प्रयत्न।।
सम्प्रेषण   होता  रहे, भव  भाषा  भू  ज्ञान।
विश्व राष्ट्र  परिकल्पना, हो  साकार सुजान।।
अपनी  रही  विशेषता, सब जन के परि त्राण।
बना  विशेषण  हिन्द यह, सागर हिन्द प्रमाण।।
 अन्वेषण  करिए सतत,  सम्प्रेषण  कर ज्ञान।
बने   विशेषण   मानवी, विश्व राज्य सम्मान।।
खिलते  फूल  बसंत जब, करते  अलि  गुंजार।
कोयल  कुहुके  हे  सजन, विरहा  चुभे बहार।।
करना है  आक्रोश अब, सैनिक सुनो जवान।
सीमा पर आतंक  का, बचे  न नाम  निशान।।
करिये आप   प्रशस्त पथ, पढ़िये बन  विद्वान।
देश धरा हित कर्म कर, कलम वीर   गुणवान।।
प्रांजल  पथ कश्मीर  हो, अवसर सर्व समान।
जाति  धर्म  आतंक मिट, लागू नया विधान।।
छंद लिखें  नवनीत  सम, भाषा मधुर सुजान।
हिन्दी हिन्दुस्तान अरु, काव्य कलम अरमान।।
पूछी कठिन   प्रहेलिका , समझ  न पाए छात्र।
उतना ज्ञान बखानिये, समुचित जितना पात्र।।
१०
नेता  वर   वक्ता   बने , करते  भाषण   नित्य।
जनता को बहका  रहे,  चाह  मान  आदित्य।।
११
भोर काल में फैलता, नित  भू  पर   आलोक।
आशा रखिए  हे मनुज, व्यर्थ करो मत शोक।।
१२
बनती  कली   प्रसून   जब, भ्रमर  चाह  मकरंद।
आते अवसर स्वार्थ सब, समझ मनुज मतिमंद।।
१३
पहल   करे  आतंक कर, छली  पड़ोसी  पाक।
शांति अहिंसा  छोड़ अब, शक्ति दिखाएँ धाक।।
१४
आदि  सृष्टि विधि ने रचे, जीवन विविध प्रकार।
मनु  सतरूपा  मनुज  तन, संतति  हेतु  प्रसार।।
१५
वृक्ष  धरा  परिधान  सम, सजते  ज्यों  शृंगार।
पाँच   वृक्ष   वट   के   लगे, पंचवटी।  समहार।।
१६
समझ शब्द सब संपदा, जोड़ लिखे बहु छंद।
शर्मा  बाबू  लाल  मन , चाह  मिटे भव  द्वंद।।
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© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


 .             शब्द संपदा
.                    
. अरुणा ~ भोर
बीते कठिन विभावरी, अरुणा आए नित्य!
भोर दुपहरी साँझ में, भिन्न  रूप आदित्य!!

करुणा ~ दया
उर अंतर  सबके बसे, करुणा  प्रेम  विचार!
मिले भाव अनुकूल जब, प्रकट करे संचार!!

तरुणा ~युवती
तरुणा होती जब शरद,  लगे बाल आदित्य!
तरुणाई  हो  भानु  की, गये शरद लालित्य!!
.               ________
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


.                     (दोहा)

1.छन्द--
विद्या दो माँ शारदे, लिखूँ  गीत शुचि छंद!
कविता  दोहा  सोरठा, भाव  भरूँ निर्द्वंद!!
2. नेता--
नेता  वे  नायक  भले, करे  सदा  नेतृत्व!
गाँधी, भीम सुभाष से, भाव भरे भ्रातृत्व!!
3.राजनीति--
राजनीति   का   धर्म  से , रहे  संतुलित  मेल!
देश धरा हित में मनुज, चाल कुचाल न खेल!!
4.मुस्कान---
मात  पिता  को  कर  नमन, गुरुजन को  सम्मान!
सबसे हिल मिल बात कर, मुख पर रख मुस्कान!!
5.विभूति---
महा विभूति विद्वान वर, राधाकृष्णन धीर!
बने   राष्ट्रपति  देश  के, ज्ञानवान   गंभीर!!
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© बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ


.                विवेकानंद जी को शब्दांजलि
.                       
विभा---
विभा नित्य  रवि से लिए, धरा चंद्र बहु पिण्ड!
ज्ञान  मान  अरु  दान  दो, रवि सम रहें प्रचंड!!

विभा   विवेकानंद  की, विश्व  विजेत  समान!
सभा  शिकागो  में  उदय, हिंद  धर्म   विज्ञान!!

चंद्र  लिए  रवि  से  विभा, करे   धरा उजियार!
ज्ञानी कवि शिक्षक करे, शशिसम ज्ञान प्रसार!!

विभात----
रवि रथ  गये  विभावरी, नूतन   मान  विभात!
संत मनुज गति धर्मपथ, ध्रुवसम विभा प्रपात!!

रात बीत  फिर  रवि उदय, ढले  सुहानी  शाम!
होता नित्य विभात है, विधि से विधि के काम!!

विभूति--
रामकृष्ण   थे    संतवर, परमहंस    गुण छंद!
पूजित  महा विभूति  गुरु, शिष्य विवेकानन्द!!

संत    विवेकानंद   जी, ज्ञानी   महा  विभूति!
गृहण  युवा  आदर्श  कर, माँ यश पूत प्रसूति!!

शर्मा  बाबू  लाल  मैं, लिख  कर   दोहे  अष्ट!
हे  विभूति  शुभकामना, मिटे  देश  भू  कष्ट!!
.              _________
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ


 .               शब्द संपदा
.             
अगम्य = दुर्गम
जीवन मनुज अगम्य पथ, साहस उद्यम सार।
धीरज रख चलना सखे, पर्वत  भँवर विचार।।

अदम्य = प्रबल,प्रचण्ड
साहस रखें अदम्य हम, आपद भले अपार।
सागर भव सागर उतर, थाम  कर्म पतवार।।

अक्षम्य = क्षमा न करने योग्य
द्रोही जो  निज देश  के, करते कर्म अक्षम्य।
करो दमन दण्डित उन्हे, रखिये धरा सुरम्य।।
.                         
पंथ  अगम्य, अदम्य रिपु, करता कर्म  अक्षम्य।
भारत माँ के लाल कर, दमन दण्ड, पथ गम्य।।
.                °°°°°°°°°°
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


.                  शब्द संपदा

यावत्, तावत्---
यावत् सत्य  सनातनी, रीति प्रीति परिवेश!
उमा शम्भु माता पिता, तावत् पूज्य गणेश!!

यावत् हिमगिरि है अचल,गंग यमुन जल धान!
शस्य श्यामला  भारती, सहित हरित परिधान!!

सूर्य चंद्र तारक  धरा, यावत्  नीर समीर!
तावत् भारत मात हित, जन्में संत प्रवीर!!
ऐरावत--
सागर  मंथन  से  मिला, ऐरावत  गजराज!
इंद्रहस्ति गजअग्रणी , कुंजरपति सुर साज!!

श्वेतहस्ति  वारन  सजे, ऐरावण   मातंग!
ऐरावत मदकल करी, देवराज शचि संग!!
.                   _____
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


.              शब्द संपदा

भामा-- -वैभव ,आभा, क्रुद्ध नारी
भाभा भामाशाह से, परिचित हिन्दुस्तान!
राणा की आभा बना, गर्वित  राजस्थान!!

भामा  पद्मिनि जब हुई, गौरा  बादल वीर!
केशरिया चित्तौड़ सब, जौहर सैनिक नीर!!

वामा--     देवी रूप, पत्नि
मीरा  वामा  भोज  की, जन्म  मेड़ता  मान!
कृष्ण भक्ति में रम गई, मन मोहन अरमान!!

लक्ष्मी   दुर्गा  जानकी, गौरा  रूप  अनूप!
शारद सादर शक्तियाँ, वामा मान स्वरूप!!

जामा--. चुन्नटदार ( कुर्ते जैसा) वस्त्र
जामा पाजामा पहन, नूतन वसन विधान!
अरबी  अंग्रेजी बने, भूल  सनातन   शान!!

भवन बना नभ चूमता, गुम्बज मान गुमान!
जामा मस्जिद गूँजती, आयत आन कुरान!!

बने योजना देश की, कृषक  खेत कल्याण!
अमली जामा ले पहन, बचे  किसानी प्राण!!
.                
भावुक  भामा  भामिनी, डरें  पड़ौसी चोर!
सविता सा जामा पहन, वामा करती शोर!!
.                    ______
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ


.                  शब्द संपदा

डोंगा---
डोंगा कह माँझी सुनो, करलें धारा पार!
अहम् छोड़ साझे चलें , गहरा पारावार!!

वर्षा जल में खेलते, बालक बिन पतवार!
कागज, डोंगा की बना, नाव बहाए  धार!!
चोंगा---
धातु बाँस से बन सके, चोंगा कागज काठ!
अधिवक्ता  पहने  करे, दूरभाष  पर  ठाठ!!
पोंगा---
पनपे  पोंगा  पंथ  बहु, दे  लबार उपदेश!
धर्म सनातन को  भुला, ढोंगी  धारे  वेश!!

पोंगा पंथ  पड़ौस का, पतित  पाक़ पथभ्रष्ट!
आज आड़ आतंक के, करता करम निकृष्ट!!
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© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


.              शब्द सम्पदा 
.  
भावन~ मन को प्रिय लगने वाला

रामकथा कहि शिव उमा, भावन मुनि आवास।
कागा  गरुड़  उवाच  जन, मानस  तुलसीदास।।

सावन मन भावन हुआ, रिमझिम बरसे मेह।
चातक कोयल मोर सम, चाहत विरहा  नेह।।

भावना~ मनोभाव
देश प्रेम सद् भावना, जन गण मन अभिराम।
झलक छलक गणतंत्र में, अमर तिरंगा थाम।।

जन  गण मन की भावना, अपना  देश  महान।
रहे जगत गुरु मान पद, कनक विहग पहचान।।

भवानी~ पार्वती
समर भवानी  सी  लगी, कर असि बैठ तुरंग।
गुंजित जय जय भारती, झाँसी  लक्ष्मी  संग।।

.  उमा  भवानी  पार्वती, गौरा  सुता-हिमेश।
.  भावन भारत देश वर, चाहत वरण महेश।।
.                  
शर्मा   बाबू   बौहरा, दोहे   सप्त   प्रमाण।
भाव भवानी भावना, भावन  भरमें प्राण।।
.                     _____
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


.                शब्द संपदा
.                        
लपट--
लौ उठती जो  आग में, गंधित  तपित  बयार!
अग्निशिखा ज्वाला लपक, लपट कहे संसार!!

लपक दामिनी की लपट, झुलसाये द्रुमपात!
नीड़  पखेरू जल गये, सह न सके आघात!!

लंपट--
व्यभिचारी कामी कहें, विषयी  कामासिक्त!
कामुक लंपट मीत तज, जैसे भोजन तिक्त!!

विजय निर्भया को मिली, हारे  लंपट  लोग!
जैसा  करते  कर्म  जो, पड़े भुगतने  भोग!!

लिपट--
लिपट चढ़े तरु के लता, सोच सहारा मान!
आलिंगन  कर पेड़ की, बढ़ जाती है शान!!

लिपट लिपट दोनो मिले, भ्राता शक्ति प्रताप!
नाले तट पर  दृग उभय, बहे  आप में  आप!!
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© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


.               शब्द सम्पदा
.                          

आँका, बाँका, झाँका, ताका

आँका जब  रघुवीर धनु , बाँका  शम्भु  पिनाक।
झाँका राज समाज सब,विकल रही सिय ताक।।

आँका जटिल सवाल जब, झाँका  हो  बेचैन।
पंथ   अगम   बाँका  लगे, ताका  करते  नैन।।

देखा  आँका  काल  को, बाँका मान कराल।
ताका   झाँका   ही   करे, शर्मा  बाबू  लाल।।
.                      °°°°°°°
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ


.                 शब्द संपदा
.                           
सपत्नी ~ सौत
रहे सपत्नी संग खुश, रुक्मनि नागर कृष्ण।
राधा  तो  आदर्श  थी, मीरा  सदा  अतृष्ण।।

सपत्नीक ~ पत्नि के साथ
यज्ञ  हवन  घर  गृहस्थी, पावन तीर्थ सुधाम।
सपत्नीक होते फलित, भज मन सीता राम।।

प्रोषितपतिका ~ जिस स्त्री का पति बाहर या परदेश में रहता हो,वह विरह पीड़ित स्त्री

प्रोषितपतिका   की   तरह, थी   गोपी   बेचैन।
दुखित हुआ ज्ञानी भ्रमर, बहे  उभय जल नैन।।
.                   °°°°°°
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


 .                 शब्द सम्पदा
.                     

घन ~ बादल
गरजे घन  घनघोर सुन, शोर  कलापी  रैन।
रिमझिम सावन में सखी, बरसे विरहा नैन।।

उमड़ी घुमड़ी घन घटा, तड़पी विरहिन देह।
होड़ लगी  दोनो झरे, सावन घन  अरु नेह।।

पन~ प्रण
प्राण प्रतिष्ठा पद प्रथा, पालन पन परिताप।
पंथ   प्रतापी   पालते, पत्नी   पूत   प्रताप।।

चातक से चेतक भला, किया न स्वाति प्रलाप।
आन  बान  पन  मरु  धरा, पाले  धीर  प्रताप।।

सन ~ रेशेदार पौधा/जूट
सन का बन का है नही, पटसन भाँति गुमान।
ऐसे  नर  से  सन  भला, बोरी  बने   सुजान।।

.    सन पटसन या जूट से, डोरी बना समान।
.    बोरा, बोरी  सूतली, रस्सा  खाट  विधान।।
.                    
शर्मा   बाबू  लाल  ने, लिख  कर   दोहे   सप्त।
शब्द अर्थ साहित्य हित, किया स्वयं मन तृप्त।।
.                     °°°°°°
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


.               शब्द सम्पदा
.                      
रज ~ धूल
चंदन रज कण कण कनक, मरुधर वीर दकाल।
हार  नही   माने  मनुज, जीवन   शान  अकाल।।

समर क्षेत्र की रज उठा, करो तिलक हे वीर।
मात  भारती  देश हित, रक्षण  व्रती  सुधीर।।

रजक ~ धोबी
लेखक कवि शिक्षक कृषक,सैनिक श्रमी सुजान।
करते विमल समाज  को,  नागर  रजक  समान।।

झीनी चादर तन रखें, बनकर रजक कबीर।
ज्यों  की  त्यों  देना सखे, देश धरोहर धीर।।

रंजक ~ रँगने वाला, प्रसन्न करने वाला
सृष्टि  धरा  प्राकृत  गगन, सप्त रंग लालित्य।
विविध रंग रंगत मनुज, रंजक प्रभु आदित्य।।

.  देश प्रेम  के रंग में, भारत  माँ  का चीर।
.  रक्त प्राण बलिदान दे, रँगते रंजक वीर।।
.                        
.  दोहे  लिख  पढ़ सात अब, शर्मा बाबू लाल।
. सात रंग सातों वचन, सात जन्म प्रण पाल।।
.                           °°°°°°
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ



.              शब्द सम्पदा
.                        
कलाधर--
चंद्र   कलाधर   चंद्रमा, राकापति  राकेश!
सोम  इंदु रजनीश  विधु, धारे शीश महेश!!

हिमकर चाँद सुधांशु शशि, निशिकर और मयंक!
कहे कलानिधि हम नमन, मातुल मनुज  निशंक!!

जलधर---
जलधर वारिद  घन घटा, बादल अंबुद अब्र!
वारिवाह नीरद जलद, सलिलद तोयद अभ्र!!

मेघ  वारिधर  अंबुधर, घटा  पयोधर  आप!
हमें बताओ  शत्रुता, क्या  मरुधर पर शाप!!

हलधर---
कहें अन्नदाता कृषक, हलधर  धीर किसान!
बड़े भ्रात भी  कृष्ण के, थे  बलराम  महान!!

वीर सुयोधन  के  सगे, गुरुवर  मुदगर  युद्ध!
नंद पुत्र बलराम जी, हलधर  मन  के  शुद्ध!!

शर्मा  बाबू  लाल अब, समझ कलाधर नेह!
हलधर हित में माँगिए, तुम जलधर से मेह!!
.                  °°°°°°°
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


.             शब्द सम्पदा
.                      
पावनी~पवित्र करने वाली
सुरसरिता  सुरधुनि  कहें, पतित पावनी गंग।
गौरा भगिनी हिम सुता, कहते विविध प्रसंग।।

गंगा तन मन पावनी, जन मन मात समान।
तीर्थ धाम तट घाट सब, धर्म कर्म की शान।।

लावनी~ संगीत-राग,लोकनृत्य,सौन्दर्ययुक्त
लोकनृत्य  संगीत  हित, राग लावनी  छंद।
लिखें पढ़े गाएँ सहज, मिलता मन आनंद।।

सोलह चौदह मात्रिका, दो पद लिखो समांत।
छंद  चार  पद  लावनी, मुक्त  मान  चरणांत।।
 
छावनी~ सैन्य शिविर,डेरा,पड़ाव
सैन्य  छावनी  में   रहे, डेरा  शिविर   विशेष।
शिक्षण रक्षण हित चले, नमन सैन्य गणवेष।।

साधु संत बहु विधि भजे, नागा पंथ प्रकार।
रखते अपनी  छावनी, अस्त्र शस्त्र तलवार।।
.                   
शर्मा  बाबू  बोहरा, दोहा  लिख  कर सात।
करे समर्पित मात पद, चाहत भव सौगात।।
.                   °°°°°
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


.       बचा रत्न अनमोल

दूर प्रदूषण कीजिए, सोच विकासी काज।
सभी  देश  संसार के, धरा बचाएँ  आज।।

मत कर दूषित नीर को,कर उपयोग सतोल।
पानी बिन जीवन नहीं, बचा  रत्न अनमोल।।

मानव तन क्षमता विपुल, करले जो उपयोग।
करो  परिश्रम  साधना, नित ही करिये योग।।

आडम्बर  से दूर हो, सुफल कर्म पथ धार।
करते हैं कर्तव्य तो, स्वतः मिले अधिकार।।

मँहगाई  बढ़ती  रही, दिन दिन  बढ़ते  भाव।
चरित गिरावट रोकिये, जीवन मनुज बचाव।।

सोच समझ के बोलिये, वाणी मधुर निहाल।
लगे काग सबको बुरा, बिना  काम वाचाल।। 

पूत निकम्मा  जो रहे, अखरे पास पड़ोस।
मात पिता मजबूर हो, खो देते निज होंश।।

मानव हो मानव बनो, तजिये  मनो विकार।
जाति धर्म  बंधन मिटा, कर अछूत उद्धार।।

सभी मनुज शिक्षित बने,ऐसा कर संकल्प।
इसी हेतु मैने चुना, शिक्षक काज विकल्प।।

कोमल मन भावों भरा,कवि का रहे स्वभाव।
रचे  काव्य  रस से भरे, अपने मन  के भाव।।
.             ________
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ



..          कंटक पंथ कठोर

नभ में  दमके दामिनी, बरसे मूसलधार।
तड़पे विरहा है यहाँ , पिया समंदर पार।। 

असुर देव सुर नाग नर,भारत भू की चाह।
वन्दन धरती का करें, सत्य  अहिंसा राह।।

ईश्वर  तू  दातार  हैं, चाहूँ   सबकी  खैर।
अभिलाषा मानव बनूँ, नही स्वर्ग की सैर।।

करते नाक नकेल जो, अपराधी बदमाश।
होेगी तय उनकी सजा, हमें  पूर्ण विश्वास।।

राज काज या हो बणिज, रखो मीत ईमान।
लोभ  मोह  लालच तजो, बनो नेक इंसान।।

राम सिया वन को चले, कंटक पंथ  कठोर।
कानन दुर्गम गिरि गुहा, कहीं निशाचर घोर।।

जीवन  के आसार हों, औषध कर विश्वास।
पथ्य अपथ्य विचारकर,सदाचार प्रभु आस।।

ग्रहण,चन्द्रमाँ को लगे, चन्द्र,धरा गतिमान।
समय चक्र बलवान है,सूरज ग्रहण प्रमान।।

स्वर्ण चिड़ी भारत कभी, लगे बात गई रीत।
देख आज का ये समय, यूँ मत भूल अतीत।।

वाह कल्पना चावला, अंतरिक्ष करि सैर।
रखे दृष्टि आकाश में, भले  धरातल पैर।।
.               _______   
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा", विज्ञ


 .                शब्द संपदा
.                        
अजीर्ण~अपचन, प्रकीर्ण~फैला हुआ
निर्धन का दुख भूख भय, पीड़ा धनी अजीर्ण।
जगत पेट के हित मरे, विधना  रीति  प्रकीर्ण।।

हरड़े   भरड़े   आँवला,  कूट  पीस  कर  छान।
त्रिफला सेवन गर्म जल, मिटे अजीर्ण निशान।।

विदीर्ण~टूटा हुआ
होता हृदय  विदीर्ण  है, देख  देख  अपघात।
मानवता अब  खो  रही, षड़यंत्री   मनुजात।।

राजनीति में  तो हुआ, झूठ  कपट  विस्तीर्ण।
दीन कृषक मजदूर जन,सतपथ हुए विदीर्ण।।

विस्तीर्ण~विस्तृत, कंटकाकीर्ण~काँटो से भरा
आतंकी षड़यंत्र से, भय अशांति  विस्तीर्ण।
मानवता   के  पंथ  को,  करे  कंटकाकीर्ण।।
.                       
होता दृष्टि अजीर्ण अब, सतपथ देख विदीर्ण।
भ्रष्टाचार  प्रकीर्ण से, तिमिर कपट  विस्तीर्ण।।

शर्मा   बाबू  लाल  ने, लिख  कर  दोहे  सात।
मानवता हित चित कही, अपने मन की बात।।
.                    °°°°°°
© बाबू लाल शर्मा,विज्ञ

 .               
.        रिपु बन जाए मित्र                 

कोमल  कोमल  कोंपले, कलियाँ खिलते फूल।
दान करे  तरु पात  तब, फागुन  हो अनुकूल।।

सबको है औत्सुक्य  यह, जीते कौन चुनाव।
सबने ही  छल छंद बहु, कितने किये बनाव।।

घृणा  ईर्ष्या  त्याग कर, उत्तम  रखो  चरित्र।
प्रीत रीत  रखना  सदा, रिपु  बन जाए मित्र।।

हर  अंचल  में काम हो, होगा  तभी  विकास।
नई चुनी  सरकार  से, रखे  सभी जन आस।।

धड़कन जीवन भर चले, रुके  हृदय-गति  मौत।
पति करते  शुभकामना, मरण   चाह मन सौत।।

होली पर ढप  बज रही, संगत  चंग  मृदंग।
नर  नारी  बालक  सभी,  रँगे   रँगाए  रंग।।

चतुर   शशक  ले  शेर  को, चला कूप  के पंत।
छाँव दिखा भ्रम डालकर, किया बुद्धि से अंत।।
पंत =रास्ता

सिंदूरी   नभ  हो  रहा, दिनकर   होते  अस्त।
अपने घर को लौटते, खग गौ ग्वाल समस्त।।

 वैश्विक शांति  हितार्थ था, पंचशील का मान।
भारत जग  कल्याण हित, करता आया गान।।

क्रोध  गरल  सम मानिये, रहना  है अति दूर।
हानि स्वयं की ही करे, रखना ध्यान जरूर।।

राजा  औरस  पुत्र  को, बना  रहे  युवराज।
इसीलिए उत्सव सजा, संगत बजते साज।।

विपिन  विटप कटते रहे, दिया न हमने ध्यान।
वन्य  जीव   कैसे  बचे, वनज  पीर  पहचान।।
`.                °°°°
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


संशय करो न आप
.                   
शिव  भोले  की   वंदना , गाएँ  सब  संसार।
चतुरानन  जिनको  कहें, सभी देव  आभार।।
.                     
देवासुर    संग्राम    मे,   देव  रहे   जब  हार।
ऋषि दधीचि तन दान से,बना वज्र हथियार।।
.                   
कहता कवि धीरज रखो,सीमा पाक विकार।
 आग्रह   सबसे  है  यही, लेना  है  प्रतिकार।।
.                    
सभी करें कर्तव्य तो, मन  वांछित   हो जाय।
बातें ही अधिकार की,स्वार्थसिद्धि कहलाय।।
.                    
भारत की सेना प्रबल,  संशय  करो न आप।
अगर युद्ध होगा सखे, मिटे पाक  का पाप।।
.                    
अभिनंदन  है  वीर का, नाम काम अनुरूप।
पाक जमीं  पर कूद कर, लौटा  वीर अनूप।।
.                    
सेना  दोनो ओर   है,  शंखनाद  की  बाट।
मानवता के हित सधे, मिले युद्ध की काट।।
.                    
धन्य भारती  मात को, जाए  पूत  महान।
देश धरा पर  दे रहे, वीरोचित   बलिदान।।
.                    
पाक  दनुजता   दीनता, मानवता से घात।
बने   जिहादी  घूमते , लोग   मरे  बेबात।।
.                    
संगति सम्पद मानिए, त्यागो सदा  कुसंग।
मोर पंख सुन्दर लगे, श्याम मुकुट के संग।।
.                  
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा" , विज्ञ


शब्द पहेली- आपत्ति, उत्पत्ति,  सम्पत्ति
.          
देश   हितैषी   काम   में, नही   आपत्ति   ठीक!
जन हित में  सद् कर्म कर, कहना बात सटीक!!

पंच  तत्व   के  मेल  से, कर   उत्पत्ति   सजीव!
सूरज  है  सविता   बना, शुभ   संसार  अतीव!!

सुख कुछ पल का जानिए,  सम्पत्ति  अतिथि जान!
सच   विपत्ति  स्वीकार कर, सत पथ  चल इंसान!!
.            °°°°
© बाबू लाल शर्मा बौहरा, विज्ञ


बोल मधुर रस घोल

सीमा  पर  रक्षा  करे, अपने  वीर  जवान।
मरते मान  शहीद  से, जीते उज्ज्वल शान।।

प्रेम दिवस पर है  विनय , सुनिये सभी सुजान।
मात  पिता  को  नेह  दें, मन  विश्वासी  मान।।
३. 
न्यौछावर   हैं    देश   पर , मातृभूमि  के  पूत।
त्याग और बलिदान हित, क्षमता लिए अकूत।।

मातृ शक्ति  को कर नमन, नारी का सम्मान।
सृष्टि संतुलन संचरण, रखें  आन  अरु शान।।

मात जन्म  देती  हमें, पाल  पोष   संस्कार।
लेना नित आशीष तुम, करना सच सत्कार।।

मात पिता गुरुदेव के, ईश  धरा  अरु देश।
हम  कृतज्ञ  इनके  रहें, सद्भावी  परिवेश।।

माने   तो   पितृ देव   हैं,  दे   जीवन   पर्यन्त।
कविजन लिखते हारते, महिमा अमित अनंत।।

मात लगाती  वाटिका , रक्षक  पिता सुजान।
मात पिता का श्रम सखे, फल भोगे संतान।। 

मात पिता पूजन दिवस, आज मने त्यौहार।
दो   प्रसून   सप्रेम  तुम,  उत्तम मृदु  आहार।। 

मात पिता के बोल शुभ, अनुभव है  अनमोल।
मान  सदा  उनका  करें, मधुर बोल रस घोल।।
.                   °°°°°
© बाबू लाल शर्मा बौहरा, विज्ञ



 .                  चित्र मित्र इत्र विचित्र
.                          
चित्र  रचित कपि देखकर,डरती सिय सुकुमारि।
अगम  पंथ  वनवास में, रहती  जनक  दुलारि।।

मित्र  मिले यदि कर्ण सा, सखा कृष्ण सा साथ।
विजित  सकल  संसार भव, बने त्रलोकी नाथ।।

गन्धी  चतुर  सुजान  नर, बेच  रहे  नित   इत्र।
सूँघ  परख  कर  ले  रहे, ग्राहक  बड़े  विचित्र।।

मित्र  इत्र  सम  मानिये, यश  सुगंध  प्रतिमान।
भव सागर  के  चित्र को, करते  सुगम सुजान।।

शर्मा   बाबू  लाल  ने,  दोहे  लिख  कर  पाँच।
इत्र  मित्र  के  चित्र  को, शब्द  दिए मन साँच।।
.                  _____
© बाबू लाल शर्मा,विज्ञ


.  शुभकामनाएँ
.       (दोहा छंद
.                
करूँ  सदा  शुभ कामना, उन्नत  होवे  देश।
भूमण्डल सरनाम हो, उज्ज्वल हो परिवेश।।

देश  वासियों   के  लिये, नये  साल   संदेश।
जनता को शुभकामना, खुशियाँ सभी प्रदेश।।

सामाजिक  परिवेश में, मानव  मान समाज।
सबके हित शुभकामना, नये साल की आज।।

नारी को शुभकामना, मैं  देता  करजोर।
शक्ति देश की ये बने, बढ़े  उन्नति  ओर।।

राजनीति ऐसी करो, जो  होवे  निष्पाप।
नेताओं शुभकामना, देश  सँवारो  आप।।

छात्र   सभी  अच्छेे  पढ़ें, ऊँचा कर दे नाम।
भावि उज्ज्वला के लिए, शुभाशीष शुभकाम।।

ऐसी है  शुभकामना, मानवता  हित मान।
दीन हीन दिव्यांग का, करें भला  सम्मान।।

सैनिक को शुभकामना, जयति शहीद, जवान।
अनदाता दुख दूर हो, जय हम कहे किसान।।

लेखक जो साहित्य के, गुरुजन सभी सँभार।
है उनको शुभकामना, जिन पर गुरुतर भार।।

मात पिता के स्वप्न सब, करने हैं साकार।
दें उनको शुभकामना, ऊँचे रखो विचार।।

मजदूरों हित में रहे, नीति नियम सरकार।
सच्ची है शुभकामना, वे असली पतवार।।

हिन्दी हित शुभकामना, शुभ हो हिन्दुस्तान।
अपनी ताकत समझकर, झेंपें पाकिस्तान ।।

रीत  प्रीत  सद्भावना, रहे  सभी  इंसान।
प्यारी सी  शुभकामना, नेह नीति ईमान।।

बिटिया सबको हो प्रिये, रहे मान अरमान।
मेरी  है   शुभ कामना, बेटी  बने   महान।।

उन सबको शुभकामना, रहा जिन्हे मैं भूल।
शर्मा  बाबू लाल  की, करना  दुआ  कबूल।।
.                    _________
 ©बाबू लाल शर्मा "बौहरा" ,विज्ञ



.       मकर  से ऋतुराज बसंत
.           .     (दोहा छंद)
.         
सूरज जाए  मकर में, तिल तिल बढ़ती धूप।
फसले सधवा नारि का, बढ़ता रूप स्वरूप।।
.           
पशुधन कीट पतंग भी, नवजीवन मम देश।
वन्य जीव पौधे सभी, कली खिले परिवेश।।
.           
तितली भँवरे मोर पिक, करते  हैं  मनुहार।
ऋतु बसंत के आगमन, स्वागत करते द्वार।।
.           
मानस बदले वसन ज्यों, द्रुम दल बदले पात।
ऋतु राजा जल्दी करो, बिगड़ी  सुधरे  बात।।
.           
शीत उतर राहत मिले ,होवें शुभ सब काज।
उम्मीदें  ऋतुराज  से, करते हैं  सब  आज।।
.           
ऋतु राजा भी आ रहे, अब तो आओ कंत।
विरहा  के  मनराज हो, मेरे  मनज  बसंत।।
.           
रथी उत्तरायण चला, अब  तो प्रिय रविराज।
प्रिये मिलन को बावरी, पाती लिखती आज।।
.            
प्रियतम आओ तो प्रिये, ऋतु बसंत के साथ।
सत फेरों  की  याद  कर, वैसे  पकड़ें  हाथ।।
.             
कंचन निपजे देश में, कनक विहग सम्मान।
चाँदी सी  धरती तजी, परदेशी   मिथ शान।।
.                        
आजा प्रियतम  देश  में, खूब  मने संक्रांति।
माटी अपने देश हित, मिटा पिया मन भ्रांति।।
.             
प्रीतम तिल तिल जोड़ती, लड्डू बनते आज!
बाँट  निहारूँ  साँवरे, तकूँ   पंथ    आवाज।।
.          __________
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा" , विज्ञ


 .                वट पूजा
.                      (दोहा छंद)
.                        
वट सावित्री पूज कर, जो रखती उपवास।
धन्य धन्य है भारती, प्राकत  नारी  आस।।

ढूँढे  पूजन  के  लिए, बरगद  दुर्लभ  पेड़।
पथ  भी  दुर्गम हो  रहे, हुई  कँटीली  मेड़।।

पेड़ सभी है काम के, रखना इनका ध्यान।
दीर्घ आयु होता सखे, वट का पेड़  महान।।

पुत्र  सरीखे  पालिए, सादर  तात  समान।
फूल छाँव फल दे यही, ईंधन काष्ठ प्रमान।।

बरगद  पीपल पूजना, हो तब ही साकार।
पौधारोपण   से  करें, धरती  का   शृंगार।।
.                     ______
© बाबू लाल शर्मा, बोहरा , विज्ञ


 .             (दोहा छंद)
नई ईसवी साल में,
.        बड़े दिनों की आस।
.                
स्वागत  नूतन वर्ष  का, करते भाव विभोर।
गुरु दिन भी होने लगे, मौसम भी चित चोर।।
.                
माह दिसंबर में रहे, क्रिसमस का त्यौहार।
संत शांता क्लाज करे, वितरित वे उपहार।।
.               
सकल जगत में मानते, ईसा  ईश महान।
चला ईसवीं साल भी, इसका ठोस प्रमान।।
.                
साज सज्ज सर्वत्र हो, खूब मने यह रीत।
रहना मेल मिलाप से, भली निभाएँ  प्रीत।।
.                 
ईसा के उपदेश का, सब हित है उपयोग।
जैसे सब के हित रहे, प्राणायाम  सुयोग।।
.                 
देख सुहाना दृश्य कवि, गँवई, मंद,गरीब।
भाव उठे मन में कई, करते नमन सलीब।।
.               
नूतन वर्ष विकास की, संगत क्रिसमस रात।
गृह  लक्ष्मी  दीपावली , सजे  उजाले  पाँत।।
.               
उच्च मार्ग देखें निशा , मन में उठे विचार।
सुन्दर पथ ऐसा लगे, इन्द्र लोक  पथ पार।।
.               
ऊँचे चढ़ते मार्ग से, लगता हुआ विकास।
लगातार ऊँचे चढ़े, छू  लें  चन्द्र  प्रकाश।।
.               
नीचे  सागर पर्व  सा, ऊपर लगे  अकाश।
तारक गण सी रोशनी, फैले निशा प्रकाश।।
.               
नभ को जाते पंथ को, खंभ रखें ज्यों शीश।
नव विकास सदमार्ग की, राह बने  वागीश।।
.               
आए शांता क्लाज जो, शायद  यही सुमार्ग।
उपहारों  से  पाट दें,  गुरबत  और  कुमार्ग।।
.               
शहर सिंधु सरिता खड़े, ऐसे  पुलिया  पंथ।
लगते पंख विकास के, त्यागें सभी कुपंथ।।
.               
नई  ईसवीं  साल  का , नया  बने  संकल्प।
तमस गरीबी क्यों रहे, नवपथ नया विकल्प।।
.               
अभिनंदन नव साल का, करिए उभय प्रकार।
युवकों संग किसान के, श्रमी सपन साकार।।
.               
बिटिया  प्राकृत  शक्ति है, बढ़े  प्रकाशी पंथ।
पथ बाधाओं रहित हो, उज्ज्वल भावि सुपंथ।
.               
सत पथ भावी पीढियाँ, चलें विकासी चाल।
सबको संगत लें बढ़ें, रखलें वतन खयाल।।
.               
नये  ईसवीं साल  में, बड़े  दिनों  की आस।
रोजगार  अवसर मिले, नूतन पंथ विकास।।
.               
जीवन में किस मोड़ पर, हों खुशियाँ भरपूर।
साध चाल चलते चलो, दिल्ली क्यों हो दूर।।
.               
विकट मोड़ घाटी मिले, अवरोधक भी साथ।
पार पंथ खुशियाँ मिले, धीरज कदमों हाथ।।
.               
सड़क पंथ  जड़ है भले, करते हैं गतिमान।
सही चाल चलते चलो, नवविकास प्रतिमान।
.               
पथ में अवरोधक भले, पथ दर्शक भी होय।
पथिक,पंथ मंजिल मिले, सागर सरिता तोय।
.                
उच्च मार्ग  अवधारणा, सोच  विचारों उच्च।
जातिवर्ग मजहब नहीं,उन्नति लक्ष्य समुच्च।।
.               
पाँव  धरातल  पर रहें, दृष्टि भले  आकाश।
चलिए सतत सुपंथ ही, होंगे नवल विकास।।
.               
रोशन करो सुपंथ को, सुदृढ स्वच्छ विचार।
रीत  प्रीत विश्वास का, करिए  सदा  प्रचार।।
.               
नई  साल  नव  पंथ  से , मिले  नए  सद्भाव।
दीन गरीब किसान के, अब तो मिटे अभाव।।
.               
नव पथ  नूतन  वर्ष  के, संकल्पी  संदेश।
नूतन सृजन  सँवारिए, नूतन  हो परिवेश।।
.               
क्रिसमस  का  त्यौहार  है, सर्व देश परदेश।
सबको ये खुशियाँ रहें, मिले न दुखिया वेश।!
.               
शांता  क्रिसमस में बने, जैसे  दानी कर्ण।
दीन हीन दिव्यांग  को, लगता अन्न सुवर्ण।।
.               
बनो  शांता क्लाज करो, उपहारी  शृंगार।
मानव बम आतंक सब, करदें शीत अंगार।।
.              
नव पथ नूतन साल के, लिख दोहे इकतीस।
शर्मा  क्रिसमस पे करे, नमन  मसीहा  ईस।।
.               _______
© बाबू लाल शर्मा "बौहरा", विज्ञ


गोवर्धन
.                      (दोहा छंद)
गिरि गोवर्धन नख धरे, करे  वृष्टि से रक्ष!
दिए चुनौती इन्द्र को, जन गोधन के पक्ष!!

महिमा हुई पहाड़ की, करे परिक्रम लोग!
मानस गंगा पावनी, गिरिधर  पूजन भोग!!

द्वापर  में  संदेश  वर, दिया  कृष्ण  भगवान!
गो,गोधन पशुधन भले, कृषि किसान सम्मान!!

भारत कृषक प्रधान है, गोधन वर धन मान!
कृष्ण रूप सैनिक सभी, यह  गोवर्धन ज्ञान!!

गिरि वन वन्य बचाइये, नीर नदी तालाब!
भू संरक्षण  से बचे, यह  प्राकृत  नायाब!!
_            _________
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ


 .            (दोहा छंद)
.               बापू
.                    
भारत ने थी ली पहन, गुलामियत जंजीर।
थी  अंग्रेज़ी  क्रूरता, मरे   वतन  के   वीर।।
.                  
काले पानी  की सजा, फाँसी हाँसी खेल।
गोली  गाली साथ ही , भर  देते  थे  जेल।।
.                  
याद करे जब देश वह, जलियाँवाला बाग।
कायर  डायर  क्रूर  ने, खेला  खूनी फाग।।
.                  
मोहन, मोहन  दास बन, मानो  जन्मे  देश।
पढ़लिख बने वकीलजी, गुजराती परिवेश।।
.                  
देखे  मोहन दास  ने, साहस  ऊधम  वीर।
भगत सिंह से पूत भी, गुरू गोखले धीर।।
.                
बापू के  आदर्श थे, लाल बाल  अरु पाल।
आजादी हित अग्रणी, भारत माँ के लाल।।
.                          
अफ्रीका  मे  वे  बने, आजादी  के  दूत।
लौटे  अपने देश फिर, मात भारती पूत।।
.                  
अंग्रेजों की क्रूरता, पीड़ित था निज देश।
बैरिस्टर  हित देश के, पहना खादी वेश।।
.                   
कूद पड़े मैदान में, चाह स्वराज  स्वदेश।
कटे दासता बेड़ियाँ, हो स्वतंत्र  परिवेश।।
.                 
सत्य अहिंसा शस्त्र से, करते  नित्य  विरोध।
जनता को ले साथ में, किए विविध अवरोध।।
.                  
सत्याग्रह के साथ ही, असहयोग हथियार।
सविनय वे करते सदा, नाकों दम  सरकार।।
.                   
गोल मेज मे भारती, रखे पक्ष निज देश।
भारत का वो लाडला, गाँधी  साधू  वेश।।
.                   
गोरे  काले  भेद  का, करते  सदा   विरोध।
खादी चरखे कातकर, किए स्वदेशी शोध।।
.                   
कहते सभी महातमा, आजादी अरमान।
बापू  अपने  देश  का, लौटाएँ   सम्मान।।
.                   
 गाँधी की आँधी चली, हुए फिरंगी पस्त।
आजादी  दी  देश को, पन्द्रह माह अगस्त।।
.                   
बँटवारे  के  खेल में, भारत  पाकिस्तान।
गांधीजी के हाथ था, खंडित हिन्दुस्तान।।
.                   
आजादी खुशियाँ मनी, बापू का सम्मान।
राष्ट्रपिता  जनता कहे, बापू  हुए  महान।।
.                  
तीस जनवरी को हुआ, उनका तन निर्वाण।
सभा  प्रार्थना  में  तजे, गाँधी   जी  ने  प्राण।। 
.                  
दिवस शहीदी मानकर, रखते हम सब मौन।
बापू   तेरे   देश  का, अब  रखवाला  कौन।।
.                  
महा पुरुष माने सभी, देश विदेशी  गान।
मानव मन होगा सदा, बापू का अरमान।।
.                   
बापू को करते नमन, अब तो सकल ज़हान।
धन्य भाग्य  माँ  भारती, गांधी  पूत  महान।।

शर्मा बाबू लाल ये, लिख  दोहे  बाईस।
बापू को अर्पित करूँ, आज झुका निज शीश।।
.                  _________
© बाबू लाल शर्मा,"बौहरा", विज्ञ


 .              (दोहा छंद)
.              आपदा
.                   
.                       १
भोर  कुहासा  शीत ऋतु, तैर रहे  घन मेह।
बगिया समझे आपदा, वन तरु समझे नेह।।
.                       २
तृषित पपीहा  जेठ में, करे मेह हित शोर।
पावस समझे आपदा, कोयल कामी चोर।।
.                       ३
करे  फूल  से  नेह  वह,  मन भँवरे नर देह।
पंथ निहारे  मीत का, याद  करे  हिय  गेह।।
.                       ४
ऋतु  बासंती  आपदा,  सावन  सिमटे  नैन।
विरहा तन मन कोकिला, खोये मानस चैन।।
.                       ५
दुख में सुख को ढूँढता, मन को करे विदेह।
करे  परीक्षण  आपदा, दुर्लभ  मानुष  देह।।
.                _______
© बाबू लाल शर्मा , विज्ञ


 .            (दोहा छंद)
.              रक्षक
सैनिक व सिपाही को अर्पित दोहा पच्चीसी
बलिदानी पोशाक है, सैन्य पुलिस परिधान।
खाकी  वर्दी  मातृ  भू, नमन  शहादत मान।।
खाकी  वर्दी  गर्व  से, रखना स्व अभिमान।
रक्षण  गुरुतर  भार  है, तुमसे  देश महान।।
सत्ता शासन स्थिर नहीं, है स्थिर सैनिक शान।
देश  विकासी  स्तंभ है, सेना  पुलिस  समान।।
देश  धरा  अरु  धर्म हित, मरते  वीर  सपूत।
मातृभूमि   मर्याद    पर , आजादी  के  दूत।।
आदि काल से  हो रहे, ऐसे  नित  बलिदान।
वीर शहीदों को करें, नमन सहित अभिमान।।
आते  गिननें  में  नहीं, इतने    हैं   शुभ नाम।
कण कण में बलिदान की, गाथा करूँ प्रणाम।।
आजादी हित पूत जो, किए शीश का दान।
मात भारती,हम हँसे, उनके बल बलिदान।।
गर्व करें  उन पर  वतन, जो  होते कुर्बान।
नेह  सपूते  भारती, माँ  रखती   अरमान।।
अपना भारत हो अमर, अटल तिरंगा मान।
संविधान  की भावना, राष्ट्र  गान  सम्मान।।
१०
सैनिक भारत देश के, साहस रखे अकूत।
कहते हम जाँबाज हैं, सच्चे   वीर  सपूत।।
११
रक्षित   मेरा   देश  है, बलबूते   जाँबाज।
लोकतंत्र  सिरमौर  है, बने विश्व सरताज।।
१२
विविध मिले  हो एकता, इन्द्रधनुष सतरंग।
ऐसे  अनुपम  देश  के, सभी सुहावन अंग।।
१३
जय जवान की वीरता,धीरज वीर किसान।
सदा सपूती भारती, आज  विश्व  पहचान।।
१४
संविधान  सिरमौर  है, संसद हाथ  हजार।
मात भारती के चरण ,सागर  रहा  पखार।।
१५
मेरे  प्यारे  देश  के, रक्षक   धन्य   सपूत।
करे चौकसी रात दिन, मात  भारती पूत।।
१६
रीत प्रीत  सम्मान  की, बलिदानी सौगात।
निपजे सदा  सपूत ही, धरा  भारती मात।।
१७
वेदों में  विज्ञान है, कण कण में भगवान।
सैनिक और किसान से, मेरा देश महान।।
१८
आजादी  गणतंत्र की, बनी  रहे  सिरमौर।
लोकतंत्र फूले फले, हो विकास चहुँ ओर।।
१९
मेरे   अपने   देश  हित, रहना  मेरा  मान।
जीवन अर्पण देश को, यही  सपूती आन।।
२०
रक्षण  सीमा  पर  करे, सैन्य  सिपाही  वीर।
शान्ति व्यवस्था में पुलिस,रहे संग मतिधीर।।
२१
सोते  पैर  पसार  हम, शीत  ताप में  सैन्य।
कर्मशील को धन्य हैं, हम क्यों बनते दैन्य।।
२२
सौदा  अपने  शीश का, करता वीर शहीद।
मूल्य  तिरंगा  हो कफन, है आदर्श हमीद।।
२३
हिम घाटी मरुथल तपे, पर्वत शिखर सदैव।
संत  तुल्य  सैनिक  रहे, गिरि कैलासी शैव।।
२४
रक्षक हिन्दी हिन्द के, तुम्हे नमन शत बार।
खाकी  वर्दी आपको ,पुण्य हृदय आभार।।
२५
शर्मा  बाबू लाल अब, दोहा  लिख  पच्चीस।
सैनिक वीर जवान हित, नित्य नवाए शीश।।
.                   ______
© बाबू लाल शर्मा बौहरा, विज्ञ
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान

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