विज्ञ,- छंद प्रभास (पुस्तक)
'विज्ञ' -
छंद प्रभास
- ~ - बाबू लाल शर्मा, बौहरा, 'विज्ञ'
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. " छन्द "
छंद शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है ' आह्लादित " , प्रसन्न होना।
छंद की परिभाषा- 'वर्णों या मात्राओं की नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'।
छंद का सर्वप्रथम उल्लेख 'ऋग्वेद' में मिलता है।
'छंद के अंग'-
1.चरण/ पद-,-
छंद के प्रायः 4 भाग होते हैं। इनमें से प्रत्येक को 'चरण' कहते हैं।
हिन्दी में कुछ छंद छः- छः पंक्तियों (दलों) में लिखे जाते हैं, ऐसे छंद दो छंद के योग से बनते हैं, जैसे- कुण्डलिया (दोहा + रोला), छप्पय (रोला + उल्लाला) आदि।
चरण २ प्रकार के होते हैं- सम चरण और विषम चरण।
2.वर्ण और मात्रा -
एक स्वर वाली ध्वनि को वर्ण कहते हैं, वर्ण= स्वर + व्यंजन
लघु १, एवं गुरु २ मात्रा
3.संख्या और क्रम-
वर्णों और मात्राओं की गणना को संख्या कहते हैं।
लघु-गुरु के स्थान निर्धारण को क्रम कहते हैं।
4.गण - (केवल वर्णिक छंदों के मामले में लागू)
गण का अर्थ है 'समूह'।
यह समूह तीन वर्णों का होता है।
गणों की संख्या-८ है-
यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण, सगण
इन गणों को याद करने के लिए सूत्र-
यमाताराजभानसलगा
5.गति-
छंद के पढ़ने के प्रवाह या लय को गति कहते हैं।
6.यति-
छंद में नियमित वर्ण या मात्रा पर श्वाँस लेने के लिए रुकना पड़ता है, रुकने के इसी स्थान को यति कहते हैं।
7.तुक-
छंद के चरणान्त की वर्ण-मैत्री को तुक कहते हैं।
(8). मापनी, विधान व कल संयोजन के आधार पर छंद रचना होती है।
प्रमुख "वर्णिक छंद"-- ,
-- प्रमाणिका, गाथ एवं विज्ञात छंद (८ वर्ण); स्वागता, भुजंगी, शालिनी, इन्द्रवज्रा, दोधक (सभी ११ वर्ण); वंशस्थ, भुजंगप्रयात, द्रुतविलम्बित, तोटक (सभी १२ वर्ण); वसंततिलका (१४ वर्ण); मालिनी (१५ वर्ण); पंचचामर, चंचला ( १६ वर्ण), सवैया (२२ से २६ वर्ण), घनाक्षरी (३१ वर्ण)
प्रमुख मात्रिक छंद-
सम मात्रिक छंद : अहीर (११ मात्रा), तोमर (१२ मात्रा), मानव (१४ मात्रा); अरिल्ल, पद्धरि/ पद्धटिका, चौपाई (सभी १६ मात्रा); पीयूषवर्ष, सुमेरु (दोनों १९ मात्रा), राधिका (२२ मात्रा), रोला, दिक्पाल, रूपमाला (सभी २४ मात्रा), गीतिका (२६ मात्रा), सरसी (२७ मात्रा), सार (२८ मात्रा), हरिगीतिका (२८ मात्रा), तांटक (३० मात्रा), वीर या आल्हा (३१ मात्रा)।
अर्द्धसम मात्रिक छंद : बरवै (विषम चरण में - १२ मात्रा, सम चरण में - ७ मात्रा), दोहा (विषम - १३, सम - , सोरठा, उल्लाला (विषम - १५, सम - १३)।
विषम मात्रिक छंद : कुण्डलिया (दोहा + रोला), छप्पय (रोला + उल्लाला)।
- ~ - बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
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हिन्दी छंद के लिए- मात्रा ज्ञान
भाषा में लेखन व उच्चारण शुद्ध हो -
स्वर- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ ये सभी २ गुरु ( गा ) हैं।
अ,इ,उ,ऋ, १ लघु ( ल ) है।
व्यंजन - १ लघु मात्रिक- क् ख् ग् .........श् ष् स् ह् ये सभी १ लघु (ल) हैं।
मात्राभार:- अभ्यास के लिए
(1) अनुनासिक 'चन्द्र-बिंदी' ( ँ ) से वर्ण मात्रा भार में कोई अंतर नहीं आता जैसे- ढँकना ११२
(2) लघु वर्ण पर अनुस्वार ( ं ) के आने से मात्रा भार २ गुरु हो जाती है। जैसे - गंगा २२
(3) गुरु वर्ण पर अनुस्वार( ं ) आने से उसका मात्रा भार पूर्ववत २ ही रहता है जैसे- नींद २१
(4).संयुक्ताक्षर :- (क्+ष = क्ष, त्+ र = त्र, ज् +ञ = ज्ञ) यदि प्रथम वर्ण हो तो उसका मात्रा भार सदैव (लघु) १ ही होता है, जैसे – क्षण ११, त्रिशूल १२१ प्रकार १२१ , श्रवण १११,
(5). संयुक्ताक्षर में गुरु मात्रा के जुड़ने पर उसका मात्रा भार (गुरु) २ होता है, जैसे– क्षेत्र २१, ज्ञान २१ श्रेष्ठ २१, स्नान २१, स्थूल २१
(6). संयुक्ताक्षर से पूर्व वाले लघु १ मात्रा के वर्ण का मात्रा भार (गुरु) २ हो जाता है। जैसे- डिब्बा २२, अज्ञान २२१, नन्हा २२,कन्या २२
लेकिन- 'ऋ' जुड़ने पर अंतर नही आता जैसे- अमृत१११,प्रकृति १११, सुदृढ़ १११
(7).संयुक्ताक्षर से पूर्व वाले गुरु २ वर्ण के मात्रा भार में कोई अन्तर नहीं होता है, जैसे-श्राद्ध २१, ईश्वर २११, नेत्र २१,आत्मा २२, रास्ता २२,
(8).विसर्ग ( : ) - लगने पर मात्रा भार २ गुरु हो जाता है जैसे-अत: १२, दु:ख २१,स्वत: १२
(9).अपवाद-
१- यदि 'ह' दीर्घ हो तो-
जैसे-तुम्हारा १२२, कुम्हार१२१, कन्हैया १२२
२. यदि 'ह' लघु हो तो-
कुल्हड़२११, अल्हड़ २११, कन्हड़ २११
- ~ - बाबू लाल शर्मा, बौहरा, "विज्ञ"
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. 'शारद-वंदन'
.
मात नमन हम करें सदा ही,
हमको बुद्धि दान दो।
पढ़ लिख सीखें तमस मिटाएँ,
ज्ञान का वरदान दो।
अज्ञानता को दूर कर माँ,
ज्ञान का पथ भान दो।
पित,मात,गुरु सेवा करूँ माँ ,
भाव संगत मान दो।
मात शारदे वंदन गाता,
चरण कमल पखारता।
तरनी तार मोरि तो माता,
दूर कर अज्ञानता।
नवल प्रकाश ज्ञान का भर दे,
पथ नहीं पहचानता।
मै नादान अभी भी माता,
वंदन पद न जानता।
स्वर संगीत कुछ नहीं जाने,
संग गीत सुनावनी।
कृपा तुम्हारी मातु हमारी,
तरनि पार लगावनी।
राह कठिन है पथ आ मयकंटक,
मातु पंथ सँवारनी।
जीवन मेरा तुझे समर्पित,
कर कमल अपनावनी।
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विधाता छंद मुक्तक-सपूतों की सदा जय हो
विदेशी, राजतंत्री निज, फिरंगी तंत्र ढोने तक।
गुलामी की निशानी से, वतन आजाद होने तक।
धरा को *लाल* कर दी थी, सपूतों ने लहू से ही।
नही झिझकी महा माता, करोड़ों पूत खोने तक।
तिरंगा जा रहा नभ तक,झलक लगती रुहानी है।
शहीदों की बदौलत ही, विरासत की कहानी है।
करोडों *लाल* खोए तब, हुए आजाद हम साथी।
शहादत की इबादत में, अमानत यह बचानी है।
सिपाही देश के सैनिक, जवानों की सदा जय हो।
हमारे अन्न दाता की, किसानों की सदा जय हो।
किये आजाद निज सिर वे,वतन आजाद होने को।
शहीदों के पिताओं की, सपूतों की सदा जय हो।
शहीदों की चिताओं पर, यही सौगंध ले लेना।
रखें हम मान भारत का, यही सौगात दे देना।
पड़ोसी हो, पराया हो, नहीं भू इंच भर देंगे।
जमाने को यही साथी, सदा पैगाम कह देना।
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दोहा मुक्तक - मेरा देश मेरा मान
अपना भारत अमर हो, अमर तिरंगा मान।
संविधान की भावना, राष्ट्र गान सम्मान।
सैनिक भारत देश के, साहस रखे अकूत।
कहते हम जाँबाज है, जय हो वीर जवान।
रक्षित मेरा देश है, बलबूते जाँबाज।
लोकतंत्र सिरमौर है, बने विश्व सरताज।
विविध मिले हो एकता, इन्द्रधनुष सतरंग।
ऐसे अनुपम देश में, रखें तिरंगा लाज।
जय जवान की वीरता,धीरज वीर किसान।
सदा सपूती भारती, आज विश्व पहचान।
संविधान है आतमा, संसद हाथ हजार।
मात भारती चरण जो, धोता सिंधु महान।
मेरे प्यारे देश के, रक्षक धन्य सपूत।
करे चौकसी रात दिन, मात भारती पूत।
रीत प्रीत सम्मान की, बलिदानी सौगात।
निपजे सदा सपूत ही, भारत मात अकूत।
वेदों में विज्ञान है, कण कण में भगवान।
सैनिक और किसान से, मेरा देश महान।
आजादी गणतंत्र की, बनी रहे सिरमौर।
लोकतंत्र फूले फले, हो विकास सद् ज्ञान।
मेरे अपने देश हित, रहना मेरा मान।
जीवन अर्पण देश को, यही सपूती आन।
मिले तिरंगे का कफन, चाहूँ मान शहीद।
लोकतंत्र पर गर्व हो, संविधान अरमान।
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चौपाई मुक्तक - पिता
पिता ईश सम हैं दातारी, कहते कभी नहीं लाचारी।
देना ही बस धर्म पिता का, आसन ईश्वर सम व्यवहारी।१
तरु बरगद सम छाँया देता, शीत घाम सब ही हर लेता!
बहा पसीना तन जर्जर कर, जीता मरता सतत प्रणेता।२
संतति हित में जन्म गँवाता, भले जमाने से लड़ जाता।
अम्बर सा समदर्शी रहकर, भीषण ताप हवा में गाता।३
बन्धु सखा गुरुवर का नाता, मीत भला सब पिता निभाता!
पीढ़ी दर पीढ़ी दुख सहकर, बालक तभी पिता बन पाता।४
धर्म निभाना है कठिनाई, पिता धर्म जैसे प्रभुताई।
नभ मे ध्रुव तारा ज्यों स्थिर, घर हित पिता प्रतीत मिताई।५
जगते देख भोर का तारा, पूर्व देख लो पिता हमारा।
सुत के हेतु पिता मर जाए, दशरथ कथा पढ़े जग सारा।६
मुगल काल में देखो बाबर, मरता स्वयं हुमायुँ बचा कर।
ऋषि दधीचि सा दानी होता, यौवन जीवन देह गवाँ कर!७
पिता धर्म निभना अति भारी, पाएँ दुख संतति हित गारी।
पिता पीत वर्णी हो जाता, समझ पुत्र पर विपदा भारी।८
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रोला छंद - गीता के उपदेश
गीता के उपदेश, पार्थ को कृष्ण सुनाते।
अर्जुन त्यागो मोह, सभी तो आते जाते।
रिश्ते नाते नेह, सभी जीवित के नाते।
मृत्यु सत्य सम्बंध, साथ नही कोई पाते।
क्या लाए थे साथ, नहीं लेकर कुछ जाना।
अमर आत्म पहचान, लगे बस जाना आना।
सभी ईश मुख जाय, निकलते सभी वहाँ से।
करते रहो सुकर्म, ईश दें सुफल यहाँ से।
लगे धर्म को हानि, अवतरे ईश धरा पर।
संतो हित सौगात, मरे सब दुष्ट सरासर।
उठो पार्थ तत्काल, धर्म हित करो लड़ाई।
करो पूर्ण कर्तव्य, भावि में मिले बड़ाई।
धरा मिटे संताप, अधर्मी पापी मारो।
सत्य धर्म हित मान, कौरवी दल संहारो।
समझो सब को मर्त्य,मिले अमरत्व मनुजता।
सृष्टि चक्र सु विचार,मिटे बल सोच दनुजता।
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: कुण्डलिया छंद - ऋतु बासंती प्रीत
आता है ऋतुराज जब,चले प्रीत की रीत।
तरुवर पत्ते दान से, निभे धरा-तरु प्रीत।
निभे धरा-तरु प्रीत,विहग चहके मनहरषे।
रीत प्रीत मनुहार, घटा बन उमड़े बरसे।
शर्मा बाबू लाल, सभी को मदन सुहाता।
जीव जगत मदमस्त,बसंती मौसम आता।
भँवरा तो पागल हुआ, देख गुलाबी फूल।
कोयल तितली बावरी, चाह प्रीत, सब भूल।
चाह प्रीत,सब भूल,नारि-नर सब मन महके।
चाहे पुष्प पराग, काम हित खग मृग बहके।
शर्मा बाबू लाल, मदन हित हर मन सँवरा।
विरह-मिलन के गीत, सुने सब गाता भँवरा।
चाहे भँवरा पुष्परस, मधुमक्खी मकरंद।
सबकी अपनी चाह है, हे बादल मतिमंद।
हे बादल मतिमंद, बरस मत खारे सागर।
रीत प्रीत की ढूँढ, धरा मरु खाली गागर।
बासंती मन *लाल*,भरो मत विरहा आहें।
कर मधुकर सी प्रीत, चकोरी चंदा चाहे।
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कुण्डलिया छंद - श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
छीने शासन तात का, उग्रसेन सुत कंस।
वासुदेव अरु देवकी, करे कैद निज वंश।
करे कैद निज वंश, निरंकुश कंस कसाई।
करता अत्याचार, प्रजा अरु धरा सताई।
कहे लाल कविराय, निकलते वर्ष महीने।
वासुदेव संतान, कंस जन्मत ही छीने।
बढ़ते अत्याचार लख, भू पर हाहाकार।
द्वापर में भगवान ने, लिया कृष्ण अवतार।
लिया कृष्ण अवतार, धरा से भार हटाने।
संत जनो हित चैन, दुष्ट मय वंश मिटाने।
कहे लाल कविराय,दुष्ट जन सिर पर चढ़ते।
होय ईश अवतार, पाप हैं जब जब बढ़ते।
भादव रजनी अष्टमी, लिए ईश अवतार।
द्वापर में श्री कृष्ण बन, आए तारनहार।
आए तारनहार , रची लीला प्रभुताई।
मेटे अत्याचार, प्रीत की रीत निभाई।
कहे लाल कविराय,कृष्ण जन्में कुल यादव।
जन्म अष्टमी पर्व, मने अब घर घर भादव।
लेकर जन्मत कृष्ण को,चले पिता निर्द्वंद।
वर्षा यमुना बाढ़ सह, पहुँचाए घर नंद।
पहुँचाए घर नंद, लिए लौटे वे कन्या।
पहुँचे कारागार, कंस ने छीनी तनया।
कहे लाल कविराय, नेह माता का देकर।
यशुमति करे दुलार, नंद हँसते सुत लेकर।
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कुण्डलिया छंद - वोट
डाले फोटो,वीडियो , करें चुनावी बात।
सामाजिक उद्देश्य की, देते क्या सौगात।
देते क्या सौगात,चुनावी चौसर बिछते।
चार दिना की बात,फेर बस नेता हँसते।
करे स्वयं उपकार, पेट खुद का वो पाले।
नहीं समाजी बात,वोट क्यों उनको डालें।
भाई नागों के बनेे, साँपनाथ श्रीमान।
सब दल दलदल हो गए, सर्प वंश हैरान।
सर्प वंश हैरान, साँप सब डर कर भागे।
जाने कहाँ फरार,साँप बिल धरती त्यागे।
मणि धारी ये लोग ,करें बस खूब कमाई।
सोच समझ मतदान,करो सब प्यारे भाई।
खर्चे होते हैं वहाँ, होते जहाँ चुनाव।
वोट पड़े के बाद मे, कोई न पूछे भाव।
कोई न पूछे भाव, नदारद होंते नेता।
रोते बाद चुनाव, न कोई हमको देता।
काम पड़े अनजान, फिरेंगे उड़ते पर्चे।
चार दिने व्यवहार,लगेंगे फिर तो खर्चे।
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नारी - कुण्डलिया-छंद
नारी जग को धारती, धरती का प्रतिरूप।
पावन निर्मल है सजल, गंगा यमुन स्वरूप।
गंगा यमुन स्वरूप, सभी को जीवन देती।
होती चतुर सुजान, सभी घाटे सह लेती।
कहे लाल कविराय, मनुज की है महतारी।
बेटी .बहू समान , समझ लो दैवी नारी।
नारी शक्ति स्वरूप है, और शक्ति की स्रोत।
नारी के सम्मान पर ,घर खुशहाली होत।
घर खुशहाली होत, देवता भी आ जाते।
सभी ग्रंथ का सार,गुरू जन सभी बताते।
कहे लाल कविराय,जोरि कर हूँ आभारी।
ममता नेह दुलार, शक्ति उपकारी नारी।
नारी माता जन्म दे,भगिनि सुता या नार।
प्रेम समर्पण त्याग की, बहु खण्डी मीनार।
बहु खण्डी मीनार,खण्ड हर नेह सजाती।
नेह निभाए खूब, स्वयं को अहम तजाती।
कहे लाल कविराय ,नेह की नदी हमारी।
इनका हो सम्मान, यही हक चाहत नारी।
रानी झाँसी पदमिनी ,रजिया जैसी होय।
देश धर्म मर्याद हित ,जीवन बाती बोय।
जीवन बाती बोय, उगे बलिदानी खेती।
श्रम शक्ति दे खाद ,बने ये फसल अगेती।
कहे लाल कविराय,जरूरत इसकी खासी।
हर नारी बन जाय,आज फिर रानी झाँसी।
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सरसी छंद विधान
१६ + ११ मात्रा ,पदांत २१(गाल)
चौपाई+दोहा का सम चरण
हम तुम छेडें राग
बीत बसंत होलिका आई, अब तो आजा मीत।
फाग रमेंगें रंग बिखरते, मिल गा लेंगे गीत।
खेत फसल सब हुए सुनहरी, कोयल गाये फाग।
भँवरे तितली मन भटकाएँ, हम तुम छेड़ें राग।
घर आजा अब प्रिय परदेशी, मैं करती फरियाद।
लिख कर भेज रही मैं पाती, रैन दिवस की याद।
याद मचलती पछुआ चलती, नही सुहाए धूप।
बैरिन कोयल कुहुक दिलाती, याद तेरे मन रूप।
साजन लौट प्रिये घर आजा, तन मन चाहे मेल।
जलता बदन होलिका जैसे, चाह रंग रस खेल।
मदन फाग संग बहुत सताए, तन अमराई बौर।
चंचल चपल गात मन भरमें, सुन कोयल का शोर।
निंदिया रानी रूठ रही है, रैन दिवस के बैर।
रंग बहाने से हुलियारे, खूब चिढ़ाते गैर।
लौट पिया जल्दी घर आना, तुमको मेरी आन।
देर करोगे, समझो सजना, नहीं बचें मम प्रान।
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आतंकवाद एक खतरा ( लावणी छंद )
खतरा बना आज यह भारी,विश्व प्रताड़ित है सारा।
देखो कर लो गौर मानवी, मनु विकास इससे हारा।
देश देश में उन्मादी नर, आतंकी बन जाते हैं।
धर्म वाद आधार बना कर, धन दौलत पा जाते हैं।
भाई चारा तोड़ आपसी, सद्भावों को मिटा रहे।
हो,अशांत परिवेश समाजी,अपनों को ये पिटा रहे।
भय आतंकवाद का खतरा, दुनिया में मँडराता है।
पाक पड़ौसी इनको निशदिन,देखो गले लगाता है।
मानवता के शत्रु बने ये,जो खुद के भी सगे नहीं।
कट्टरता उन्माद खून में, गद्दारी की लहर बही।
बम विस्फोटों से बारूदी,करे धमाके नित नाशक।
मानव बम भी यह बन जाते, आतंकी ऐसे पातक।
अपहरणों की नित्य कथाएँ, हत्या लूट डकैती की।
करें तस्करी चोरी करते, आदत जिन्हे फिरौती की।
मादक द्रव्य रखें, पहुँचाए, हथियारों के नित धंधे।
आतंकी उन्मादी होकर, बन जाते है मति अंधे।
रूस चीन जापान ब्रिटानी,अमरीका तक फैल रहे।
भारत की स्वर्गिक घाटी में,देखें सज्जन दहल रहे।
जेल भरे मत बैठो इनसे, रक्षा खातिर बंद करो।
वैदेशिक नीति कुछ बदलो, तुष्टिकरण पाबंद करो।
गोली का उत्तर तोपों से, अब तो हमको देना है।
मानवता को घाव दिए जो, उनका बदला लेना है।
जगें देश मानवता हित में, सोच बनालें सब ऐसी।
करो सफाया आतंकी का, सूत्र निकालो अन्वेषी।
मिलें देश सब संकल्पित हों, आतंकी जाड़े खोएँ।
विश्वराज्य की करें कल्पना,बीज विकासी ही बोएँ।
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: रोला छंद...सजग प्रहरी..शहीद
प्रहरी सजग सुजान,सदा सीमा पर रहते।
शीत घाम बरसात,सभी हिम्मत से सहते।
सोय चैन से देश, जगे रखवाली करते।
प्रीत शहादत रीत, वही बलिदानी रचते।
देश धरा का मान, रखे जो जीवन देकर।
कहते उन्हे शहीद,गये जो यश को लेकर।
करता वतन सलाम, सपूती भारत माता।
मरे राष्ट्र के हेतु, कभी यह अवसर आता।
हमे बहुत है गर्व, वतन भारत है अपना।
मेरा देश महान , हमारा जागृत सपना।
सैनिक के अरमान,तिरंगा कफन सदा से।
लड़े शहीदी शान, सजग प्रहरी विपदा से।
देकर निज बलिदान,नई जागृति वो लाते।
रखे देश ईमान, शहादत जो सिखलाते।
बलिदानी संगीत, बना जाते स्वर लहरी।
देकर अपनी जान, अमर रहते ये प्रहरी।
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. विधाता छंद विधान
मापनी १२२२ १२२२, १२२२ १२२२
प्रार्थना
सुनो ईश्वर यही विनती, यही अरमान परमात्मा।
मनुजता भाव हो मुझमें,बनूँ मानव सुजन आत्मा।
रहूँ पथ सत्य पर चलता, सदा आतम उजाले हो।
करूँ इंसान की सेवा, इरादे भी निराले हो।
गरीबों को सतत ऊँचा, उठाकर मान दे देना।
यतीमों की करो रक्षा, भले अरमान दे देना।
प्रभो संसार की बाधा, भले मुझको सभी देना।
रखो ऐसी कृपा ईश्वर, मुझे अपनी शरण लेना।
सुखों की होड़ में दौड़ूँ, नहीं मन्शा रखी मैने।
उड़े आकाश में ऐसे, नहीं चाहे कभी डैने।
नहीं है मोक्ष का दावा, विदाई स्वर्ग तैयारी।
महामानव नहीं बनना, कन्हैया लाल की यारी।
रखूँ मैं याद मानवता, समाजी सोच हो मेरी।
रचूँ मैं छंद मानुष हित, करूँ अर्पण शरण तेरी।
करूँ मैं देश सेवा में, समर्पण यह बदन अपना।
प्रभो अरमान इतना सा, करो पूरा यही सपना।
यही है प्रार्थना मेरी, सुनो अर्जी प्रभो मेरी।
नहीं विश्वास दूजे पर, रही आशा सदा तेरी।
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. सार छंद विधान
(१६,१२ मात्राएँ) चरणांत मे गुरु गुरु
( २२,२११,११२,या ११११)
नेह नीर मन चाहत
ऋतु बसंत लाई पछुआई, बीत रही शीतलता।
पतझड़ आए कुहुके,कोयल,विरहा मानस जलता।
नव कोंपल नवकली खिली है,भृंगों का आकर्षण।
तितली मधु मक्खी रस चूषक,करते पुष्प समर्पण।
बिना देह के कामदेव जग, रति को ढूँढ रहा है।
रति खोजे निर्मलमनपति को,मन व्यापार बहा है।
वृक्ष बौर से लदे चाहते, लिपट लता तरुणाई।
चाह लता की लिपटे तरु के, भाए प्रीत मिताई।
कामातुर खग मृग जग मानव, रीत प्रीत दर्शाए।
कहीं विरह नर कोयल गाए, कहीं गीत हरषाए।
मन कुरंग चातक सारस वन, मोर पपीहा बोले।
विरह बावरी विरहा तन मे, मानो विष मन घोले।
विरहा मन गो गौ रम्भाएँ, नेह नीर मन चाहत।
तीर लगे हैं काम देव तन, नयन हुए मन आहत।
काग कबूतर बया कमेड़ी, तोते चोंच लड़ाते।
प्रेमदिवस कह युगल सनेही, विरहा मनुज चिढ़ाते।
मेघ गरज नभ चपला चमके, भू से नेह जताते।
नीर नेह या हिम वर्षा कर, मन का चैन चुराते।
शेर शेरनी लड़ गुर्रा कर, बन जाते अभिसारी।
भालू चीते बाघ तेंदुए, करे प्रणय हित यारी।
पथ भूले आए पुरवाई, पात कली तरु काँपे।
मेघ श्याम भंग रस बरसा, यौवन जगे बुढ़ापे।
रंग भंग सज कर होली पर,अल्हड़ मानस मचले।
रीत प्रीत मन मस्ती झूमें,खड़ी फसल भी पक ले।
नभ में तारे नयन लड़ा कर, बनते प्रीत प्रचारी।
छन्न पकैया छन्न पकैया, घूम रही भू सारी।
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मनहरण घनाक्षरी छंद
. नया वर्ष
नई साल आती रहे,मन में हो शुभ भाव,
करते शुभकामना, सभी हम प्यार से।
भारत धर्म संस्कृति,आए न कोई विकृति,
मन में गुमान रख, रहना संस्कार से।
बार बार प्रयास हो,परिश्रम विश्वास हो,
लक्ष्य पर हो निगाह, डरो नहीं हार से।
शीतल स्वभाव रख,सफलता स्वाद चख,
गर्म लोह कट जाए , शीतल प्रहार से।
पंख लगते वक्त को,दोष नहीं सशक्त को,
वक्त ही सिकंदर है, वक्त बलवान है।
समय का सुयोग हो, सदा सदुपयोग हो,
साध लिया समय तो, नर धनवान है।
नष्ट किया समय व्यर्थ,खो दिया जीवन अर्थ,
समय चाल टेढ़ी है, करे अवसान है।
साथ चले वक्त धार, श्रम तप सहे मार,
नई साल सोच यही, मन अरमान है।
नया साल नई बात,बीत गई काल रात,
नवज्योति जलती, नवरात आई है।
हर कोई देव पूजे, देख देख एक दूजे,
पूजते है बालिकाएँ,रीत चलि भाई है।
खेत में किसान रहे,श्रम श्वेद धार बहे,
सींच सींच श्रम श्वेद, फसलें पकाई है।
गेंहूँ चना,तारा मीरा,जौं सरसो और जीरा,
धनिया मेथी साथ ही, हो रही कटाई है।
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मिलना........मेरी प्रीत-शुभे
.. ( लावणी छंद)
सौम्य सुकोमल मन भावों को,भूल नहीं अब पाऊंगा।
जीते जी सब याद रहे फिर,तारों में खो जाऊगाँ।
हँसने और देखने का प्रिय,जो अंदाज निराला है।
प्रीत प्रेम न्यौछावर करता,रूप रंग मतवाला है।
सुघड़ बदन कजरारी आँखे,मन जिनमें खो जाता है।
होंठ,कपोल उरोज नशीले,विरहा तन मन गाता है।
भाग्य हमारे साथ तुम्हारा,संभव कैसे हो पाए।
कोमल पावन भाव हमेशा,बस जीवन भर तड़पाए।
जीवन मे कितने पगबंधन,कैसे तुमको समझाऊँ।
आयु वर्ग के अंतर संगिनि,कैसे इसे लाँघ पाऊँ।
मजबूरी जो उभय पक्ष की,तुम भी समझो ,मैं जानूँ।
जीवन तो बस कटु औषध है,तुम भी मानो,मैं भी मानूँ।
पर भूलूँ प्रिय कैसे यह सब,प्रीत जन्म भर याद रहे।
याद करूँ तो हर लम्हे बस,मन तेरी फरियाद कहे।
जीवन भर यादों का मेला,मन के भाव अकेले हैं।
जीवन भी क्या जीवन मेरा,बस संकट के रेले हैं।
मन के कोमल भावों के प्रिय,मीठे खारे गीत रचूँ।
रहे तराने याद अमर ये,जीवन तन से नहीं बचूँ।
कहते हैं जन्मों का नाता,अगले जन्मों रीत निभे।
सौम्य सुकोमल भावों वाली,मिलना मेरी प्रीत शुभे।
_________________________
: लावणी छंद, (१६,१४ मात्रिक)
क्ष....नमन करूँ
बने नींव की ईंट श्रमिक जो, बहा श्वेद मीनारों में।
स्वप्न अश्रु मिलकर गारे में,अरमानी दीवारों में।
बिना कफन बिन ईंधन उनका,बोलो कैसे दहन करूँ
श्रम पूजक श्रम जीवी जन के,बहे श्वेद को नमन करूँ।
जो धनबल पद के कायल है,उन हित क्यों मैं जतन करूँ।
शोषण के साधक है वे सब,उनको क्योंकर नमन् करूँ।
गाँठ गठान हथेली में हो,उन हाथों का जतन् करूँ।
जिनके पैरों छाले पड़ते,उनके चरणों नमन करूँ।
वे जो श्रम के सत्साधक है,कुल जिनके श्रमचोर नहीं।
तन के मोही वतन भुला दें,इतने जो कमजोर नहीं।
स्वेद बिन्दु से देश को सींचे,उन्हे सलामे-वतन करूँ।
जिनके पैरों फटे बिवाई,उनके चरणो नमन करूँ।
सीमा पर जो शीश कटाते, वे सच्चे अवतारी है।
उनके हर परिजन के हम भी,सच्चे दिल आभारी हैं।
जिनके रहते,वतन सुरक्षित,उन बेटों को नमन करूँ।
जिनके पैर ठिठुरते जलते,उनके चरणों नमन करूँ।
शिक्षा के जो दीप जलाकर,तम को दूर भगाते हैं।
सत्साहित् का सृजन करे नित,नूतन देश बनाते हैं
देश प्रेम पावक के लेखक,जन शिक्षक पदनमन् करूँ।
जन गण मन की पीड़ा गाते,उनके चरणो नमन करूँ।
सर्दातप को सहा जिन्हौने,जन के खातिर अन्न दिया
तन का रूप रंग सब खोया,नंग बदन भू पूत जिया।
भिंचे पेट के उन दीवाने,धीर कृषक को नमन करूँ।
जिनके पैरों छाले पड़ते,उनके चरणों नमन करूँ।
_________________________
. ताटंक छंद विधान
विधान :- १६, १४ मात्राभार
दो दो चरण ~ समतुकांत,
चार चरण का ~ छंद
तुकांत में गुरु गुरु गुरु,२२२ हो।
श्रम~श्वेद
बने नींव की ईंट श्रमी जो,गिरा श्वेद मीनारों में।
स्वप्न अश्रु मिलकर गारे में,चुने गये दीवारों में।
श्वेद नींव में दीवारों में,होता मिला दुकानों में।
महल किले आवास सभी के,रहता मिला मकानों में।
बाग बगीचे और वाटिका,सड़के रेल जमाने में।
श्वेद रक्त श्रम मजदूरों का,रोटी दाल कमाने में।
माँल,मिलो,कोठी या दफ्तर,सब में मिला पसीना है
हर गुलशन में श्वेद रमा है,हँसती जहाँ हसीना है।
ईंट,नींव,श्रम,श्वेद श्रमिक की,रहे भूल हम थाती है।
बाते केवल नाहक दुनिया,श्रम का पर्व मनाती है।
मजदूरों को मान मिले बस,रोटी भी हो खाने को।
तन ढकने को वस्त्र मिले तो,आश्रय शीश छुपाने को।
स्वास्थ्य दवा का इंतजाम हो,जीवन जोखिम बीमा हो।
अवकाशों का प्रावधान कर,छ: घंटे श्रम सीमा हो
बच्चों के लालन पालन के,सभी साज अच्छे से हो
बच्चों की शिक्षा सुविधा सब,सरकारी खर्चे से हो।
_________________________
मनहरण घनाक्षरी छंद विधान
८,८,८,७ वर्ण ,कुल ३१वर्ण,१६,१५,पर यति
पदांत गुरु अनिवार्य,चार पद सम तुकांत हो
. होली
रूप रंग वेष भूषा, भिन्न राज्य और भाषा,
देश हित वीर वर, बोल भिन्न बोलियाँ।
सीमा पर रंग सजे, युद्ध जैसे शंख बजे,
ढूँढ ढूँढ दुष्ट मारे, सैनिको की टोलियाँ।
भारतीय जन वीर, धारते है खूब धीर,
मारते है शत्रुओं को ,झेलते हैं गोलियाँ।
फाग गीत मय चंग ,खेलते हैं सब रंग,
देश हित खेलते हैं, खून से भी होलियाँ।
.
होलिका दहन कर, मन में उमंग भर,
सब संग प्रीत रीत, भावना निभाइए।
देशभक्ति छंद गीत,रचि मन कवि मीत,
जनहित साधना में, प्रेम राग गाइए।
मान रख संविधान, देश मेरा हो महान,
जाति पाँति दूर कर, पंथ भूल जाइए।
होली पर नवरीत, सुनो सब धीर मीत,
भारती की लाज हित,सीमा पर आइए।
.
दीन हित ईमान हो,सच्चे सब इंसान हो,
देश हित संसद में, सत्य के विधान हो।
जय किसान बोल के,जय जवान नाद के,
जय विज्ञान ध्येय से, भारती की शान हो।
राष्ट्र गान जन मन, संविधान सब जन,
देश का तिरंगा ध्वज,सबका गुमान हो।
होली तभी भली लगे, जन मन सुखी लगे,
वंचितों का मान रख,कर्तव्यों का भान हो।
_________________________
आल्हा/वीर छंद--
(16,15,पर यति कुल 31
मात्रिक छंद,दो पंक्तियों मे
तुकांत गुरु लघु)
. हल्दीघाटी समर
हल्दीघाटी समरांगण में,सेना थी दोनो तैयार।
मुगलों का भारी लश्कर था,इत राणा,रजपूत सवार।
आसफ खाँन बदाँयूनी भी,लड़ते समर मुगलिया शान।
शक्ति सिंह भी बागी होकर,थाम चुका था मुगल मचान।
राणा अपनी आन बान की,रखते आए ऊँची शान।
मुगलों की सेना से उसने,कीन्हा युद्ध बड़ा घमसान।
सूरी हाकिम खान दागता,तोपें गोले बारम्बार।
तोप सामने जो भी आते,मुगलों की होती बरछार।
तोप धमाके भील लड़ाके,मुगल अश्व हाथी बदकार।
मानसिंह बेचैन हो गया,उत काँपे अकबर दरबार।
राणा घायल थकित समर में,चेतक होता लहूलुहान।
झाला मान वंश बलिदानी,आया बीच समर में मान।
आन बान को खूब निभाया,चेतक स्वामिभक्त बलवान।
राणै नैन मेघ से झरते,चेतक सखा वीर वरदान।
युद्ध विजेता किसको कह दूँ,धर्म विजेता शक्ति प्रताप।
ऐसे वीर हुए जिस भू पर,हरते मातृभूमि संताप।
वन वन भटका था वो राणा,मेवाड़ी रजपूती भान।
हरे घास की रोटी खाकर,रखता मातृभूमि की आन।
धन्य धन्य मेवाड़ी धरती, राणा एकलिंग दीवान।
गढ़ चित्तौड़ उदयपुर वंदन,हल्दीघाटी धरा महान।
मन के भाव शब्द बन जाते, लिखता शर्मा बाबू लाल।
चंदन माटी हल्दीघाटी,उन्नत सिर मेवाड़ी भाल।
जून अठारह सन पन्द्रह सौ,साल छिहेत्तर की है बात।
महाराणा प्रताप प्रतापी,मायड़़ की अनुपम सौगात।
________________________
माँ..माँ.. मेरी माँ...
. (सरसी छंद)
सृष्टि प्रकृति ब्रह्मांड सितारे,सब संचालन भार।
मातु धरा,जल थल,जड़,जनता,सबका सहती भार।
सही संतुलन सृष्टि बचालें, हम हैं जिम्मेदार।
संरक्षण, धरती जग माता,करना सोच विचार।
मात भारती अमर सुहागी,इतना हो अरमान।
दुष्ट जनों के आतंको से,बचे मातृभू मान।
मातु शारदे सबको वर दे,ज्ञान मान विज्ञान।
चले लेखनी जन हित मेरी,दीन धर्म ईमान।
माँ जननी, माँ दुखहरनी हो,सृजन करे तन प्रान।
माँ का आँचल स्वर्ग सरीखा,कर लें गौरव गान।
माँ के चरणों में जन्नत है, आशीषें है बोल।
माँ के हाथों अमरित रोटी,शक्ति कुंकुम तोल।
वसुधा को कागज माने जो,स्याही सिंधु दवात।
माँ के गुणगौरव लिख देना,मेरी नहीं औकात।
गौ माता है मात सरीखी,भारत में सनमान।
युगों युगों से गौ की सेवा,जन गण मन हितमान।
माँ गंगा,यमुना,कावेरी,ब्रह्मपुत्र जलमाल।
माँ सम नदियां हैं ये सारी,मत फेंको जंजाल।
माँ के प्रतिरूपों का भाई, नहीं चुकेगा कर्ज।
माँ के हितचित कर्म करें तो,निभे हमारे फर्ज।
________________________
लावणी छंद
मात् शारदे...स्तुति
मात् शारदे सबको वर दे,तम हर ज्योतिर्ज्ञान दें।
शिक्षा से ही जीवन सुधरे,शिक्षा ज्ञान सम्मान दे।
चले लेखनी सरस हमारी,ब्रह्म सुता अभिनंंदन में।
फौजी,नारी,श्रमी,कृषक के,मानवता हितवंदन में।
उठा लेखनी,ऐसा रच दें,सारे काज सँवर जाए।
सम्मानित मर्यादा वाली,प्रीत सुरीत निखर जाए।
पकड़ लेखनी मेरे कर में,ऐसा गीत लिखा दे माँ।
निर्धन,निर्बल,लाचारों को,सक्षमता दिलवा दे माँ।
सैनिक,संगत कृषक भारती,अमर त्याग लिखवा दे माँ।
मेहनत कश व मजदूरों का,स्वर्णिम यश लिखवा दे माँ।
शिक्षक और लेखनीवाला,गुरु जग मान,दिला दे माँ।
मानवता से भटके मनु को,मन की प्रीत सिखा दे माँ।
हर मानव मे मानवता के,सच्चे भाव जगा दे माँ।
देश धरा पर बलिदानों के,स्वर्णिम अंक लिखा दे माँ।
शब्दपुष्प चुनकर श्रद्धा से,शब्द माल में जोड़ू माँ।
भाव,सुगंध आप भर देना,मै तो दो 'कर' जोड़ूँ माँ।
मातु कृपा से हर मानव को,मानव की सुधि आ जाए।
मानवता का दीप जले माँ,जन गण मन का दुख गाएँ।
कलम धार,तलवार बनादो,क्रूर कुटिलता कटवा दो।
तीखे शब्दबाण से माता,तिमिर कलुषता मिटवा दो।
_______________________
. ताटंक छंद विधान
विधान- १६,१४ मात्रा प्रति चरण
चार चरण दो दो चरण समतुकांत
चरणांत मगण (२२२)
. वंदन करलो
वंदन करलो मातृभूमि को,पदवंदन निज माता का।
दैव देश का कर अभिनंदन,वंदन जीवन दाता का।
सैनिक हित जय जवान कहें हम,नमन शहीद सुमाता को।
जयकिसान हम कहे साथियों,अपने अन्न प्रदाता को।
विकसित देश बनाना है अब,
जय विज्ञान बताओ तो।
लेखक शिक्षक कविजन अपने,सबका मान बढ़ाओ तो।
लोकतंत्र का मान बढ़ाना,भारत के मतदाता का।
संविधान का पालन करना,जन गण मन सुखदाता का।
वंदन श्रम मजदूरों का तो,हम सब के हितकारी हो।
मातृशक्ति को वंदन करना,मानव मंगलकारी हो।
देश धरा हित प्राण निछावर,करने वाले वीरों का।
आजादी हित मिटे हजारों,भारत के रणधीरों का।
प्यारे उन के परिजन को भी,वंदित धीरज दे देना।
नीलगगन जो बने सितारे,आशीषें कुछ ले लेना।
भूल न जाना वंदन करना,सच्चे स्वाभिमानी का।
नव पीढ़ी को सिखा रहे उन,देश भक्ति अरमानी का।
वंदन करलो पर्वत हिमगिरि,सागर,पहरेदारों का।
देश धर्म हित प्रणधारे उन,आकाशी ध्रुव तारों का।
जन गण मन में उमड़ रही जो,बलिदानी परिपाटी का।
कण कण भरी शौर्य गाथा,भारत चंदन माटी का।
ग्वाल बाल संग वंदन करनाअपने सब वन वृक्षों का।
वंदन भाग्य विधायक संसद,नेता पक्ष विपक्षों का।
भूले बिसरे कवि के मन से,वंदन उन सबका भी हो।
अभिनंदन की इस श्रेणी में,हर वंचित तबका भी हो।
______________________
मधुमालती छंद
विधान. २२१२,२२१२
. *माँ*...जानकी
.
पद पायलें, अनमोल थी,सिय राम के,मन बोल थी।
दसकंठ ने, हर जानकी,बाजी लगा, दी जान की।
हाः राम जी,प्रभु मान भी,मानी न मैं,वह आन भी।
दशकंठ ली, हर पातकी,दोषी बनी ,निज जानकी।
क्रोधी जटायू था भिड़ा,जाने न दे ,सिय को अड़ा।
सिय राम के,हित मान की,चिंता नहीं , तब जान की।
पथ में लखे,कपि थे भले,पटकी वही,..पद पायलें।
मग शैल वे, पहचान की,मन सोच के,तब जानकी।
वन राम जी, मग डोलते,खोजत फिरे ,मन बोलते।
बजती,सुने,सिय मान की,मन पायले, बस जानकी।
हनुमान जी, द्विज वेष में,प्रभुभक्ति के, परिवेश मे।
प्रभु से कही,अरमान की,वन राम के, मन जानकी।
गिरि पे मिले, सुग्रीव से,मन मीत से, भगवान से।
कहि बंधु के,वरदान की,करि खोजने,प्रण जानकी।
प्रभुराम जी,कहि भ्रात से,लक्ष्मण सुनें,मन ध्यान से।
पायल यही ,क्या जानकी,भैया, क्षमा,मम जान की।
पद पूज्य वे ,पहचान के,रज पूजता ,पद मात के।
पर पायलें, नहि भान की,पदरज नमन,माँ जानकी।
जग मात है, वरदान है,सिय भारती ,पहचान है।
रघु वंश के ,सन् मान की,रघुवर प्रिया,माँ जानकी।
_______________________
चौपाई छंद (१६,१६ मात्रिक)
. माँ
एक दंत का नाम उचारूँ। हंस वाहिनी भाव विचारूँ।।
मात पिता गुरुजन की सेवा। शरण रहूँ गौरी गण देवा।।१
प्रात नमन माता को करना। धरती गौ माँ सम आचरना।।
माँ धरती सम धरती माँ सम। मन से वंदन करलें हरदम।।२
गौ माता है मात सरीखी। बचपन से ही हमने सीखी।
माँ गंगा है पतितापावन। यमुना सबको हृदयाभावन।।३
शारद माता विद्या देती। तम अज्ञान सभी हर लेती।।
माँ से बढ़कर नाम न कोई। इस से छोटा शब्द न होई।।४
प्रथम गुरू कहलाती माता। ईश्वर तुल्य जन्म नर पाता।।
माँ है त्याग क्षमा की मूरत। देखी प्रथम उसी की सूरत।।५
माँ तक ही खुशियों का मेला। माँ जाए मन हुआ अकेला।।
माँ की महिमागान असंभव। करले सेवा तो सब संभव।।६
ईसा ईश्वर पीर संत वर। माँ के उदर पले धरनी पर।।
प्रसव काल लख संकट भारी। धरती गर्भ सृष्टि संचारी।।७
तन मन सुख न्यौछावर करती। सारे दुख सहती सम धरती।।
भूख प्यास सुख चैन भुलाती। पहले निज शिशु कौर खिलाती।।८
जन व्यवहारी शिक्षा देती। संतति हित जग से लड़ लेती।।
माँ हमको आजीवन सहती। संतति हित सब बातें कहती।।९
भारत माता हमको प्यारी। वस्त्र तिरंगा शुभ तनधारी।।
धन्य जन्म मानस जो पाए। माता वृद्धाश्रम क्यों जाए।।१०
ममता त्याग प्रेम की सूरत। दया भावना माता मूरत।
शर्मा बाबू लाल दुहाई। माँ पितु को अर्पित चौपाई।।११
________________________
. माँ
. ( लावणी छंद )
माँ की ममता मान सरोवर,आँसू सातों सागर हैं।
सागर मंथन से निकली जो,माँ ही अमरित गागर है।
गर्भ पालती शिशु को माता,जीवन निज खतरा जाने।
जन्मत दूध पिलाती अपना,माँ का दूध सुधा माने।
माँ का त्यागरूप है पन्ना,हिरणी भिड़ती शेरों से।
पूत पराया भी अपनाती,रक्षा करती गैरों से।
माँ से छोटा शब्द नहीं है,शब्दकोष बेमानी है।
माँ से बड़ा शब्द दुनियाँ में,ढूँढ़े तो नादानी है।
भाव अलौकिक है माता के,अपना पूत कुमार लगे।
फिर हमको जाने क्यों अपनी,जननी आज गँवार लगे।
भूल रहें हम माँ की ममता, त्याग मान अरमान को।
जीवित मुर्दा बना छोड़ क्यों,भूले मातु भगवान को।
दो रोटी की बीमारी से,वृद्धाश्रम में भेज रहे।
जननी जन्मभूमि के खातिर,कैसी रीति सहेज रहे।
भूल गये बचपन की बातें,मातु परिश्रम याद नहीं।
आ रहा बुढ़ापा अपना भी,फिर कोई फरियाद नहीं।
वृद्धाश्रम की आशीषों में, घर की जैसी गंध नहीं।
सामाजिक अनुबंधो मे भी,माँ जैसी सौगंध नहीं।
माँ तो माँ होती है प्यारी,रिश्तों का अनुबंध नहीं।
सबसे सच्चा रिश्ता माँ का,क्यों कहते सम्बंध नहीं।
_______________________
. हरिगीतिका-छंद
. ( १४,१४)
. 'मातु-वंदन'
निज माँ सभी,सबसे भली,प्रभु आपकी, मन भावना।
जग में रहे, हर हाल में,जन मानसी, सद् भावना।
यह फर्ज है, हर पूत का,प्रण मात का, प्रतिपालना।
पद उच्च है, जननी सदा,मन मीत ये,सच जानना।
.
कर मात के, चरणों नमन,हम सोच लें,भगवान है।
पढ़ सीखलें, तम को मिटा, रख याद माँ,वरदान है।
करना नहीं, अवमानना,मन मान माँ, अरमान है।
रखना भली, मन भावना, तन मात का,अहसान है।
.
पथ भान हो, यह ज्ञान हो,गुरु मात है,सच बात है।
हर मात का, उपकार है,बस मात ही, बस ज्ञात है।
शिशु पालती, तन वारती,यह मात ही, वह गात है।
मन मे सदा,सन मान हो, प्रभु ने रची, सौगात है।
.
रखना सदा, सुख से सभी,अपना यही, सत धर्म है।
जिसने हमे, निज गर्भ में,रख के किए, नित कर्म है।
करले सखे, यह पुण्य तू,हर तीर्थ का,यह मर्म है।
दुख झेलती,यदि मात तो,अपने लिए, यह शर्म है।
________________________
मनहरण घनाक्षरी ८८८७, १६,१५ यति
. ...बेटियाँ
१
बेटियां चकोर जैसी,चाँदनी को ताकने सी।
चाहती है आगे बढ़े, इन्हे तो बढाइये।
विद्यालय मे भेजना, समय हो तो खेलना।
घर को सम्भाले सुता, खूब ही पढ़ाइये।
रीत प्रीत व्यवहार, सीख सब संस्कार।
भारती की आन को, बेटियों निभाइये।
बेटियाँ ही होगी मात,लक्ष्मी दुरगा साक्षात।
आज बात मेरी मान ,सब को सिखाइए।
. २
बेटियाँ दुलारी माँ की,लाड़ली परिवार की।
मात यह संसार की, ज्ञान जान लीजिए।
छाँया बने माता की, संरचना विधाता की।
सृष्टि चक्र धारती है, जान मान कीजिए।
जन्म इन्हे लेने देवें, खेल कूद पढ़ लेवें।
मुक्त परवाज सुता, शान मान दीजिए।
झूठ की मर्यादा छोड़,बेअर्थी रिवाजें तोड़।
बेटियों को बढ़ने दो, आन बान पीजिए।
.
________________________
लावणी छंद
. माँ
माँ की ममता त्याग अनोखे,
धरती सी धारण क्षमता।
रीत सुप्रीत दुलार असीमित,
अनुपम उत्तम है समता।
प्राणी जगत समूचा देखो,
माँ जैसा सम्बन्ध नहीं।
संतति के हित मरें मार दें,
मिलता न अनुबन्ध कहीं।
प्रसव के खतरे जान उठाती,
प्राकृत संतति चाहत को।
असीम कष्ट भोगती तन मन,
शिशु अपने की राहत को।
कब सोती कब जगती है वो,
क्या कब वह खाती पीती।
सदा हारती संतानो से,
तो भी लगे सदा जीती।
लगती गोद स्वर्ग से सुन्दर,
चरणों में जन्नत का सुख।
सप्तधाम सम माँ का तन मन,
ईश्वर दर्शन माँ का मुख।
माँ का होना खुशी मंत्र है।
माँ के गये बुढ़ापा है।
अब तो लगते सभी पराये,
माँ तक ही अपनापा है।
_________________________
2 पृष्ठ हेतु
. ताटंक छंद विधान--
१६,१४, मात्रिक छंद,चरणांत में,
तीन गुरु (२२२) अनिवार्य है।
दो, दो चरण समतुकांत हो।
चार चरण का एक छंद होता है।
दीप शिखा
. (रानी झांसी से प्रेरणा )
सुनो बेटियों जीना है तो,शान सहित,मरना सीखो।
चाहे, दीपशिखा बन जाओ,समय चाल पढ़ना सीखो।
रानी लक्ष्मी दीप शिखा थी,तब वह राज फिरंगी था।
दुश्मन पर भारी पड़ती पर,देशी राज दुरंगी था।
बहा पसीना उन गोरों को,कुछ द्रोही रजवाड़े में।
हाथों में तलवार थाम मनु,उतरी युद्ध अखाड़े में।
अंग्रेज़ी पलटन में उसने,भारी मार मचाई थी।
पीठ बाँध सुत दामोदर को,रण तलवार चलाई थी।
अब भी पूरा भारत गाता,रानी वह मरदानी थी।
लक्ष्मी, झाँसी की रानी ने, लिख दी अमर कहानी थी।
पीकर देश प्रेम की हाला,रण चण्डी दीवानी ने।
तुमने सुनी कहानी जिसकी,उस मर्दानी रानी ने।
भारत की बिटिया थी लक्ष्मी,झाँसी की वह रानी थी।
हम भी साहस सीख,सिखायें,ऐसी रची कहानी थी।
दिखा गई पथ सिखा गई वह,आन मान सम्मानों के।
मातृभूमि के हित में लड़ना,जब तक तन मय प्राणों के।
.
नत मस्तक मत होना बेटी,लड़ना,नाजुक काया से।
कुछ पाना तो पाओ अपने,कौशल,प्रतिभा,माया से।
स्वयं सुरक्षा कौशल सीखो,हित सबके संत्रासों के।
दृढ़ चित बनकर जीवन जीना, परख आस विश्वासों के।
.
मलयागिरि सी बनो सुगंधा,बुलबुल सी चहको गाओ।
स्वाभिमान के खातिर बेटी,चण्डी ,ज्वाला हो जाओ।।
तुम भी दीप शिखा के जैसे,रोशन तमहर हो पाओ।
लक्ष्मी, झांसी रानी जैसे,पथ बलिदानी खो जाओ।
बहिन,बेटियों साहस रखना, मरते दम तक श्वांसों में।
रानी झाँसी बन कर जीना, मत आना जग झाँसों में।
बचो,पढ़ो तुम बढ़ो बेटियों,चतुर सुजान सयानी हो।
अबला से सबला बन जाओ, लक्ष्मी सी मरदानी हो।
दीपक में बाती सम रहना,दीपशिखा, ज्वाला होना।
सहना क्योंं अब अनाचार को,ऐसे बीज धरा बोना।
नई पीढ़ियाँ सीख सकेंगी,बिटिया के अरमानों को।
याद रखेगी धरा भारती,बेटी के बलिदानों को।
शर्मा बाबू लाल लिखे मन,द्वंद छन्द अफसानों को।
बिटिया भी निज ताकत समझे,पता लगे अनजानों को।
बिटिया भी निजधर्म निभाये,सँभले तज कर नादानी।
बिटिया,जीवन में बन रहना,लक्ष्मी जैसी मर्दानी।
________________________
लावणी छंद---
(शिल्प:-16+14=30 ,
दो दो चरणों में समतुकांत,
चरणांत में लघु,दीर्घ मात्रा
का बंधन नहीं )
स्वच्छ भारत
.
स्वच्छ रखें जन मन भावों को, रखें स्वच्छ भारत अपना।
तन मन स्वच्छ स्वस्थ जन सब हो, तभी फलेगा यह सपना।
जन से घर फिर गली मौहल्ला, गाँव शहर सब स्वच्छ रहे।
कचरे का निस्तारण भी हो, हरित धरा पर वृक्ष रहे।
.
शस्य श्यामला इस धरती को, आओ मिलकर नमन करें।
पेड़ लगाकर उनको सींचे, वसुधा आँगन चमन करें।
स्वच्छ जलाशय रहे हमारे, अति दोहन से बचना है।
भारत स्वच्छ शुद्ध रखलें हम, मुक्त प्रदूषण रचना है।
.
छिद्र बढ़े ओजोन परत में, उसका भी उपचार करें।
कार्बन गैसें बढ़ी धरा पर, ईंधन कम संचार करे।
प्राणवायु भरपूर मिले यदि, कदम कदम पर पौधे हो।
पर्यावरण प्रदूषण रोकें, वे वैज्ञानिक खोजें हो।
तरुवर पालें पूत सरीखा, सिर के बदले पेड़ बचे।
पेड़ हमे जीवन देते है, मानव-प्राकृत नेह बचे।
गऊ बचे अरु पशुधन सारा, चिड़िया,मोर पपीहे भी।
वन्य वनज,ये जलज जीव सब, सर्प सरीसृप गोहें भी।
.
धरा संतुलन बना रहे ये, कंकरीट वन कम कर दो।
धरती का शृंगार करो सब,तरु वन वनज अभय वर दो।
पर्यावरण सुरक्षा से हम, नव जीवन पा सकते हैं।
जीव जगत सबका हित साधें, नेह गीत गा सकते हैं।
.
-------------------------------------
लावणी छंद विधान---
१६+१४ मात्रा चरणांत गुरु २
--- दो दो पद सम तुकांत ,
--- चार चरणीय छंद
. --- मापनी रहित
. अमर शहीद
आजादी के हित नायक थे, उनको शीश झुकाते हैं।
भगत सिह सुखदेव राजगुरु, अमर शहीद कहातें हैं।
'भगतसिंह' तो बीज मंत्र सम, जीवित है अरमानों में।
भारत भरत व भगतसिंह को, गिनते है सम्मानों में।
"राजगुरू' आदर्श हमारे, नव पीढ़ी की थाती है।
इंकलाब की ज्योति जलाती, दीपक वाली बाती है।
'सुख देव'बसे हर बच्चे में, मात भारती चाहत है।
जब तक इनका नाम रहेगा, अमर तिरंगा भारत है।
जिनकी गूँज सुनाई देती, अंग्रेज़ों की छाती में।
वे हूंकार लिखे हम भेजें, वीर शहीदी पाती में।
इन्द्रधनुष के रंग बने वे, आजादी के परवाने।
उन बेटों को याद रखें हम, वीर शहादत सनमाने।
याद बसी हैं इन बेटों की, भारत माँ की यादों में।
बोल सुनाई देते अब भी, इंकलाब के नादों में।
तस्वीरों को देख आज भी, सीने फूले जाते हैं।
उनके देशप्रेम के वादे, सैनिक आन निभाते हैं।
वीर शहीदी परंपरा को, उनकी याद निभाएँगे।
शीश कटे तो कटे हमारे, ध्वज का मान बढ़ाएँगे।
श्रद्धांजलि हो यही हमारी, भारत माँ के पूतों को।
याद रखें पीढ़ी दर पीढ़ी, सच्चे वीर सपूतों को।
.
_______________________''
पीयूष वर्ष छंद विधान
.
10,9 पर यति प्रति 2 चरण समतुकांत
3, 10, 17 वीं मात्रा लघु अनिवार्य
2 मात्रा भार को 11 लिखने की छूट नहीं
मापनी
2122 2122 212
. माता भूमि
आज माता भूमि, चाहे वीरता।
शक्ति चाहे भक्ति, चाहे धीरता।
देखलो काश्मीर, घाटी देश की।
मानते है शान, माँ के वेष की।
एकता में शक्ति, भारी जानते।
भारती की आन, को भी मानते।
पाक है नापाक , पापी पातकी।
कर्म से बर्बाद, होता घातकी।
भारती आजाद , ये आबाद हो।
देश के जाँबाज , ये नाबाद हो।
"विज्ञ" ये आजाद, पंछी गान हो।
देश का सम्मान, ऊँची शान हो।
.
_______________________
. दुर्मिल सवैया
विधान:- आठ सगण ११२×८
१२,१२ पर यति,
४चरण समतुकांत
. विरहा
पिक बोल सुने,तड़पे विरहा,
मन मोर शरीर सखी हुलसे।
अब रंग बसंत चढा सबको,
तन आज मसोस रही मन से।
वन मोर नचे तितली भँवरे,
सब मीत बनात फिरे कब से।
पिय सावन आ कर लौट गये,
तब से न मिली तन से उनसे।
भँवरे रस पान करे फिरते,
तितली मँडराय रही रस को।
पिक कूजत पीव मिले मन के,
वन मोर चहे वसुधा रस को।
बस रंग बसंत यही समझे,
अब खंजन लौट रहे घर को।
मम कंत बने हुलियार सखी,
मन चाहत पीव मिले मन को।
________________________
. गंगोदक सवैया
. विधान - रगण × ८
मापनी - २१२ × ८
.माँ भारती
भारती की बने शान ऐसे करो,
काम तो नित्य गावें सभी आरती।
भावना ये सखे होय आवाम मे,
वीर की माँ सुने गीत माँ भारती।
चोट सीने रखी है हमारे सभी,
आज तेरे पड़ी चोट जो सालती।
देख ले पाक आगे यही राग हो,
बाज़ ये भारती वीर ही पालती।
________________________
. किरीट सवैया-विधान
२११×८ भगण× ८
२४ वर्ण, १२,१२ पर यति
चार पद समतुकांत
'छंद रचूँ मन चेतन हो जन'
साहित साधन साज सरे सब,
शान सुराज सुरक्षण भारत।
गीत लिखूँ ममता समता जब,
मीत सुरीत समाज निभावत।
भाव स्वभाव भरे तन भीतर,
मानव मानस प्रीत कहावत।
संकट हो जब देश धरा पर,
मानस चाहत *लाल* शहादत।
पास पडौ़स छिपे कुछ दानव,
काज करे नित मान अपावन।
मानवता पर भार कलंकित,
केवल ये धन लोभ लुभावन।
दीन जिहाद विधर्म सने मन,
चाहत है बस स्वर्ण कमावन।
द्वेष भरे यह काम करे बस,
मानव मानस *लाल* सतावन।
भारत भूमि मिले हर जीवन,
दूँ अपना तन भारत अर्पण।
दुश्मन के दिल चीर करूँ पर,
देश हितैष करूँ न समर्पण।
दुष्ट जनों हित होकर दानव,
मार करूँ उनका फिर तर्पण।
छंद रचूँ मन चेतन हो जन,
देखि सके मुख आपन दर्पण।
.
_________________________
. रोला छंद
. सजग प्रहरी.....शहीद
.
प्रहरी सजग सुजान,सदा सीमा पर रहते।
शीत घाम बरसात,सभी हिम्मत से सहते।
सोय चैन से देश, जगे रखवाली करते।
प्रीत शहादत रीत, वही बलिदानी रचते।
देश धरा का मान, रखे जो जीवन देकर।
कहते उन्हे शहीद,गये जो यश को लेकर।
करता वतन सलाम, सपूती भारत माता।
मरे राष्ट्र के हेतु, कभी यह अवसर आता।
हमे बहुत है गर्व, वतन भारत है अपना।
मेरा देश महान , हमारा जागृत सपना।
सैनिक के अरमान,तिरंगा कफन सदा से।
लड़े शहीदी शान, सजग प्रहरी विपदा से।
देकर निज बलिदान,नई जागृति वो लाते।
रखे देश ईमान, शहादत जो सिखलाते।
बलिदानी संगीत, बना जाते स्वर लहरी।
देकर अपनी जान, अमर रहते ये प्रहरी।
_______________________
सुमुखि सवैया छंद
विधान:- सात जगण + लघु गुरु १२१ × ७ + १२,
११,१२ वर्ण पर यति, दो पद सम तुकांत
हुलियार
बसंत चले पुरवाइ थमे ,
. तब,भोर सुहावन लागि भली।
अनाज पके,सरसों सिमटे,
. मन मोर नचे मन चाह अली।
गुलाब,कनेर गुँथे गजरे,
. रमणी मिलने मनमीत चली।
दिनेश तजी निज शीतलता,
. मन होलिन मानस प्रीत पली।
.
सुरंग,गुलाल अबीर लिए,
. हुलियार बने सब साथ चले।
कन्हाइ बने सिरमौर सभी,
. मन चाह सखी सब गैल मिले।
छिपाइ सखी वृष भानु सुता,
. तब पीपल पेड़ विशाल तले।
निगाह पड़ी सब की उन पे,
. फिर खूब सुरंग गुलाल मले।
.
सनेह सुधारस पान किए,
. सब गोरि कपोल अबीर सने।
सखी वृषभानु सुता मिलके,
. तब कान्ह सखा सब संग जने।
मचा हुड़दंग अबीर उड़े,
. हुलियार विचित्र चरित्र बने।
कहीं तन रंग सने मन में
. कछु लाजन लाल कपोल घने।
_______________________
सुखी सवैया एवं सुख सवैया
. सुखी सवैया
विधान:- आठ सगण + लघु लघु
११२×८+११(१२,१४ पर यति)
. फागुन-
जब से यह फागुन माह लगे,
तब से मन चाह बसंत समेटन
अरदास करुँ ,भगवान भजूँ,
असमान तकूँ,अरमान सहेजन।
मन भावन सावन याद करूँ,
तब आय न साजन वे दिन सालन।
प्रभु से मन से विनती करती,
अब साजन बाँह जरूर मरोरन।
सुख सवैया-
विधान:-आठ सगण + लघु गुरु
११२×८+१२(यति १२,१४ पर)
. फागुन
जब से यह फागुन माह लगे,
तब से मन चाह सु रंग समेटने।
अरदास करुँ ,भगवान भजूँ,
असमान तकूँ,अरमान सहेजने।
मन भावन सावन याद करूँ,
तब आय न साजन वे दिन सालने।
प्रभु से मन से विनती करती,
अब साजन बाँह जरूर मरोरने।
_______________________
: मत्तगयंद सवैया
.विधान- भगण × ७ + २ गुरु,
. १२,११ वर्ण पर यति
( चार चरण सम तुकांत )
. "देख सपूत भरे पय छाती"
मात पिता सच संकट मोचन,
शेष सभी बस भाव निहारे।
गोकुल ग्वालिन गोधन कानन,
सावन आवन बाट तिहारे।
प्रीत निभे कब पीर मिटे मन,
आय मिले जिन चित्त विचारे।
नंदन कानन धेनु चरावन,
बाल सखा मन मोह निवारे।
माँ जननी सहती धरती सम,
संतति के अरमान सजाती।
पेट रखे महिने वह नौ तक,
प्राण सहेज,सुआस लगाती।
शीत सहे विपदा घन आतप,
काज सभी घर संग चलाती।
संतति हेतु तजे सुख मारग,
देख सपूत भरे पय छाती।
पूत गये जब देश भले हित,
मात गुमान समेत बताती।
भारत मात , सुहाग रहे यह,
बात जुबान अवश्य जताती।
धीर धरा सम मात सनातन,
शान हमेश, स्वदेश बढ़ाती।
मात कुमात, बने न संभव,
पूत कपूत जलावत छाती।
_______________________
हंसगति छंद
विधान-
११,९, कुल २० मात्रिक छंद है
यति से पूर्व गुरु लघु(२ १)
यति के पश्चात लघु गुरु (१ २)
एक चरण में एक ही त्रिकल हो
तो गेयता उत्तम रहे
दो दो पंक्तियाँ सम तुकांत हो
.
'जन चरित्र की शक्ति'
भू पर विपदा आज, ठनी है भारी।
संकट में है विश्व, प्रजा अब सारी।
चिंतित हैं हर देश, विदेशी जन से।
चाहे सब एकांत, बचें तन तन से।
घातक है यह रोग, डरे नर नारी।
भू पर विपदा आज, ठनी है भारी।
तोड़ो इसका चक्र, सभी यों कहते।
घर के अंदर बन्द, तभी सब रहते।
पालन करना मीत,नियम सरकारी।
भू पर विपदा आज, ठनी है भारी।
शासन को सहयोग, करें भारत जन।
तभी मिटेगा रोग, सुखी हों सब तन।
दिन बीते इक्कीस, मिटे बीमारी।
भू पर विपदा आज, ठनी है भारी।
भारत माँ की शान, बचानी होगी।
जन चरित्र की शक्ति, भले संयोगी।
भारत का हो मान, जगत आभारी।
भू पर विपदा आज, ठनी है भारी।
प्यारा हमको देश, वतन के वासी।
पूरे कर कर्तव्य, जगत विश्वासी।
है पावन संकल्प, मनुज हितकारी।
भू पर विपदा आज, ठनी है भारी।
_________________________
शृंगार छंद
विधान-
१६ मात्रिक छंद
आदि में ३,२ त्रिकल द्विकल
अंत में २,३ द्विकल त्रिकल
दो दो चरण सम तुकांत
चार चरण का एक छंद
'मात का दूध - त्याग की रीत'
शान भारत की रखना पूत।
शांति के बने सदा ही दूत।
आपदा पर ही कर दो वार।
शंख से फिर फूँको हूँ कार ।
आरती चाह रही है मात।
भारती अंक मोद विज्ञात।
सैनिको करो प्रतिज्ञा आज।
शस्त्र लो संग युद्ध के साज।
विश्व मानवता हित में कर्म।
सत्य है यही हमारा धर्म।
आज आतंक मिटाना मीत।
विश्व की सबसे भारी जीत।
पाक को पाठ पढाओ वीर।
धारणा में बस रखना धीर।
भावना देश हितैषी पाल।
कूदना बन दुश्मन का काल।
वंदना मातृ भूमि की बोल।
शंख या बजा युद्ध के ढोल।
गंग सौगंध निभे मन प्रीत।
मात का दूध त्याग की रीत।
___________________'
: . शक्ति छंद
विधान-
. (१८ मात्रिक छंद)
१,६,११,१६ वीं मात्रा लघु हो।
दो दो चरण समतुकांत हो।
चार चरण का एक छंद होता है।
मापनी:- -
१२२ १२२ १२२ १२
'सुनाऊँ लिखूँ मैं शहादत कथा'
वतन के सहायक बनेंगे सखे।
जतन भी सही हो सुरक्षा रखे।
शहादत करें देश हित मे रहे।
लहू भी हमारा वतन हित बहे।
तिरंगा सदा ही रहेगा गगन।
हमेशा रहे देश के हित मगन।
बहे धार गंगा सदा ही विमल।
करे युद्ध हम ही हमेशा अमल।
सुनाऊँ लिखूँ मै शहादत कथा।
निभावे सखे त्याग हमदम यथा ।
भुला दें शिकायत जिसे मन बसी।
मनो भाव अपने वतन की हँसी।
कटे शीश चाहे मिलें गोलियाँ।
रहे शान माँ की लहू होलियाँ।
यही रीत हमको निभानी सखे।
तिरंगा हमेशा गगन में रखे।
_________________________
विमला छंद
विधान-
सगण मगण नगण लघु गुरु
११२ २२२ १११ १ २
११ वर्ण, १६ मात्रा
चार चरण, का छंद
दो दो चरण समतुकांत
घुटती श्वाँसे
बिटिया कैसे दुर्दिन सहती।
किस से बातें मानस कहती।
परखी जाती मात उदर में।
घुटती श्वाँसे घात अधर में।
करते सारे लोग बतकही।
बिटिया जाने रीति अन कही।
मरवा देंगें पूर्व प्रसव के ।
कटवा डालें निर्दय मन के।
बिटिया हत्या में जन मन है।
बचते क्या ऐसे बचपन है।
चल पाए संसार सरलता।
रखना सीखो भाव तरलता।
करते हो क्यों नाशक करनी।
तुमको ही है आखिर भरनी।
तनया से ही सृष्टि निखरती।
समझें भू की शान बिखरती।
अपमानोगें जो यदि बिटिया।
तय मानो डूबे जग लुटिया।
कथनी जैसा मानस कर ले।
बिटिया संरक्षा चित धर ले।
_________________________
मदिरा सवैया
विधान-
(सात भगण +गुरु
२ १ १×७ +२
१४,१६,पर यति)
. ' साजन '
. १
मंद हवा तरु पात हिले,
नचि लागत फागुन में सजनी।
लाल महावर हाथ हिना,
पद पायल साजत है बजनी।
आय समीर बजे पतरा,
झट पाँव बढ़े सजनी धरनी।
बात कहूँ सजनी सपने,
नित आवत साजन हैं रजनी।
२
फूल खिले भँवरा भ्रमरे,
तब आय बसे सजना चित में।
तीतर मोर पपीह सबै,
जब बोलत बोल पिया हित में।
फागुन आवन की कहते,
पिव बाट निहार रही नित में।
प्रीत सुरीति निभाइ नहीं,
विरहा तन चैन परे कित में।
________________________
गाथ छंद
विधान-
८ वर्ण, १३ मात्रा
रगण सगण गुरु गुरु
२१२ ११२ २ २
. जय
भारती कहती आओ।
गीत भारत के गाओ।
छंद या कविता दोहे।
मानवी मन को मोहे।
आज मानव को भारी।
देह नाशक तैयारी।
एकता अब तो धारो।
शत्रु का दल संहारो।
पातकी जन को जानो।
ईश को अब तो मानो।
स्वच्छ हो तन तो तेरा।
देश भी जय हो मेरा।
______________________
विज्ञात छंद
विधान-८ वर्ण , १३ मात्राएँ
प्रति दो चरण समतुकांत
गण : भगण रगण गुरु गुरु
२११ २१२ २२
कामना
.
सागर पार से आया।
रोग वही यहाँ लाया।
विश्व विनाश ये जाने।
मानवता नहीं माने।
नाशक भावना भारी।
युद्ध विषाणु तैयारी।
सत्य सुनीति को भूले।
स्वार्थ अनीति के झूले।
फैल रही महामारी।
भारत है सदाचारी।
जीत सदा रहे तेरी।
आनव कामना मेरी।
मानस भाव विज्ञातं।
आज हुलास संज्ञातं।
भारत भारती हिंदी।
विज्ञ सजे भली बिंदी।
______________________
पदममाला छंद
विधान-
रगण रगण गुरु गुरु
२१२ २१२ २ २
८ वर्ण, १४ मात्रा
दो दो चरण समतुकांत
चार चरण का एक छंद
.
'बात सारी सिखानी है'
शारदे आप ही आओ।
कंठ मेरे तुम्ही गाओ।
शान बेटी सयानी के।
बात किस्से गुमानी के।
धाय पन्ना बनी माता।
मान मेवाड है पाता।
पद्मिनी की कहानी है।
साहसी जो रुहानी है।
बात झाँसी महारानी।
शीश हाड़ी दिए मानी।
वीर ले जा निशानी है।
बात सारी सिखानी है।
बेटियों को बचानी है।
शान शिक्षा दिलानी है।
कर्म कर्त्तव्य भी जानें।
वक्त की माँग को मानें।
शान मानें तिरंगा की।
बेटियाँ, आन गंगा की।
गीत गाओ सुनाओ तो।
चंग साथी बजाओ तो।
_________________________
. गगनांगना छंद
विधान-
मापनी मुक्त सम मात्रिक छंद है यह।
१६,९ मात्रा पर यति अनिवार्य चरणांत २१२
दो चरण सम तुकांत,चार चरण का छंद
{सुविधा हेतु चौपाई+नौ मात्रा(तुकांत२१२)}
. शरद पूनम
.
सागर मंथन अमरित पाकर,विषघट त्यागते।
अमर हुये सब देव दिवाकर, शिव घट धारते।
सूरज देता दिवस उजाला, ऊर्जा जानिये।
चंद्र चंद्रिका अमरित प्याला, बरसे मानिये।
.
शरद काल की है सूचकता, पूनम आज की।
भोज खीर तन रहे दमकता,सजते साज की।
पथ्य अपथ्य परखना खाना,अमरित खीर है।
मेवा मिश्री चाँवल पय में, सब का सीर है।
.
करता ही रहता हूँ अपने, मन से मंत्रणा।
क्यों देता कब कौन किसी को, ताने यंत्रणा।
बिकते सारे खुले गरल प्रभु, द्वय हर हाट में।
सूर्य शक्ति चंदा अमरित दे, जब दिन रात में।
.
दाता के दर भज गुरु सादर, हरि मनमीत है।
भज हरि भावन गीत मनोहर, शुभ संगीत है।
खीर बनाकर रखो चाँदनी, अमरित योग है।
अर्द्ध रात को, भोग लगाओ, मिटते रोग है।
.
______________________
मनोरम छंद
विधान-
. मापनी - २१२२ २१२२
चार चरण का छंद है
दो दो चरण सम तुकांत हो
चरणांत में ,२२,या २११ हो
चरणारंभ गुरु से अनिवार्य है
३,१०वीं मात्रा लघु अनिवार्य
मापनी - २१२२, २१२२
'कल'
मानवी मन भाव लाओ।
प्रीत के सब गीत गाओ।
आज भारत के निवासी।
बात करते क्यों सियासी।
काल से संग्राम ठानो!
साहसी की जीत मानो!
आज आओ मीत सारे!
काल-कल बातें विचारे!
सोच ऊँची बात मानव!
भाव होवें मान आनव!
आज है तो कल रहेगा!
सोच कैसे जल बचेगा!
पुस्तकों से नेह जोड़ो!
वेद ग्रंथो को न छोड़ो!
भारती की आरती कर!
मानवी मन भाव ले भर!
.
(आनव~मानवोचित)
_______________________
. वेगवती छंद
विधान-
चार चरण, २,२ चरण
समतुकांत
. सगण सगण सगण गुरु,
. (१०वर्ण)
. ११२ ११२ ११२ २
.
. चाहत
धरती अपनी जननी है।
शशि से उजली रजनी है।
सविता तम को हरता है।
रचना जग की करता है।
रखती सबसे अपनापा।
सहती जग के भव तापा।
अपनी जननी जग माता।
मन से निभता यह नाता।
मनभावन रंग शहीदी।
लगता हर मान मुरीदी।
अपनी मजबूत सु बाहें।
बस मान शहादत चाहें।
मन मे अरमान तिरंगा।
यह देश रहे बस चंगा।
बस भारत हो यह ऊँचा।
तकता रह विश्व समूचा।
करता पद वंदन माता।
रचना लिख मैं गुण गाता।
तुमको सब अर्पण मेरा।
तन ये मन जीवन तेरा।
.
________________________
. दोधक छन्द
विधान-
. भगण भगण भगण गुरु गुरु
२११,२११,२११,२२
यति - (६,५ वर्ण पर)
कुल १६ मात्रा,११ वर्ण प्रति चरण।
"छंद भला कब कर्ज चुकाते"
छंद रचें कवि, मुक्तक कैसे।
पत्नि कहे नित, लावन पैसे।
पेट भरे कब, छंद तुम्हारे।
नित्य कहे हम, तो अब हारे।।
पुत्र कहे सुन, तात हमारे।
शुल्क भरो अब,सोच सकारे।
रोज सुने मन, मार तकाजे।
वक्त बुरा मम, द्वार विराजे।।
वस्त्र सुता हित,माथ खपाती।
भात चहे नित, दाल चपाती।
गीत रचे मन , प्रीत जगाते।
पेट भरे कब, रीत बताते।।
भोजन औषध, नूतन खर्चे।
बर्तन भूषण, कर्ज सु चर्चे।
भाव भरे कब, गीत बिताते।
छंद भला कब, कर्ज चुकाते।।
आस जगी जब,लेख छपेंगे।
भाग्य बने कुछ, दाम मिलेंगे।
छाप रहे धन ,लेकर देखा।
लेखक लेखन के भव लेखा।।
अर्थ बिना घर, बाल दुखारे।
किस्मत ने हम, खूब बिसारे।
कौन सके अब, देय मँजूरी।
शासन की जब,हो न हजूरी।।
_______________'_____
एकावली छंद
विधान-
. (१०मात्रिक छंद)
५,५ मात्रा पर यति
४ चरण का छंद
२,२ चरण समतुकान्त
. मुरलिया
कृष्ण ले, मुरलिया।
कंध पर,कमलिया।
गुरु कुटी, पढ़ रहे।
स्वप्न नव, गढ़ गृहे।
गुरु सदन, के लिए।
ले चने ,चल दिए।
काटने , लकड़ियाँ।
कृष्ण ले ,मुरलिया।
सुदामा, ले मीत।
बाँसुरी , लय गीत।
वन माँहि , जा रहे।
खग गान, गा रहे।
मेघ नभ , छा गये।
भाव खग, वन नये।
चमकती,बिजलियाँ।
कृष्ण ले मुरलिया।
_______________________
शुभमाल छंद
विधान-
. जगण , जगण
. १२१ , १२१
. ६ वर्ण, ८ मात्रा
दो दो चरण सम तुकांत
चार चरण का एक छंद
स्वदेश महान
करें जय गान!
शहादत शान!
सुवीर जवान!
स्वदेश महान!
करें गुण गान!
सुधीर किसान!
पढ़े इतिहास!
बचे निज त्रास!
धरा निज मात!
प्रणाम प्रभात!
पिता भगवान!
सदा सत मान!
रहे यश गान!
स्वदेश महान!
प्रवीर जवान!
सुधीर किसान!
_________________________
राधेश्यामी छंद (मत्त सवैया)
. विधान-
. ३२ मात्राएँ, प्रति चरण
१६,१६ पर यति,चरणांत गुरु ,
दो - दो चरण समतुकांत ।
. सपने
हे परमेश्वर हे, मात पिता,
हे मात भारती, दया करो।
घर द्वारे अरु मन मस्तक के,
सब रिक्त कोष अविलम्ब भरो।
हे ईश्वर तुमसे विनती है,
यह जीवन पार लगा देना।
बस शरण आपकी आया हूँ,
इस का अंदाज़ लगा लेना।
इस भारत भू पर जन्म लिया,
बलिदान इसी पर हो जाऊँ।
मानव का जब जन्म दिया तो,
मानवता का धर्म निभाऊँ।
मैं लिखूँ देश की यश गाथा।
इतिहास भले ही हो जाऊँ।
वीर शहीदों के हित प्रभुवर,
मैं वंदन गान सदा गाऊँ।
धरती अम्बर चाँद सितारे,
सागर सरिता बादल अपने।
वन पर्वत अरु वन्य जीव की,
खुशहाली के देखूँ सपने।
_________________________
शिव छंद
विधान-
. ११ मात्रिक
३,६,९,वीं मात्रा लघु अनिवार्य
मानस मतदान हो
देश राग कामना।
शुद्ध भाव भावना।
आन बान शान हो।
मानस मतदान हो।
जन्म भूमि भारती।
नित्य सत्य आरती।
वीरवर गुमान हो।
मानस मतदान हो।
वतन में अमन रहे।
शांति की मलय बहे।
संविधान मान हो।
मानस मतदान हो।
रीत प्रीत की निभे।
मीत गीत गा शुभे।
गर्व राष्ट्र गान हो।
मानस मतदान हो।
________________________
चंपकमाला छंद
विधान-
10 वर्ण , १६ मात्रिक
भगण मगण सगण गुरु
२११ २२२ ११२ २
दो दो पद समतुकांत हो।
. " राष्ट्र सनेही भंग चढ़ालो "
रंग सजे सीमा पर सारे।
शंख बजाए कष्ट निवारे।
संकट आतंकी बन बैठे।
कान उन्हीं के वीर उमेंठे।
राष्ट्र सनेही भंग चढ़ालो।
शत्रु समूहों को मथ डालो।
ओढ़ तिरंगा ले बन शोला।
केशरिया होली तन चोला।
याद करे संसार रुहानी।
खेल सखे होली मरदानी।
चेत सके आतंक न प्यादे।
चंग सखे ऐसी बजवादे।
फाग रमे खेले हम होली।
झेल सकें सीमा पर गोली।
लाल गुलाबी रंगत होनी।
भूमि हमारी रक्तिम धोनी।
शीश उतारे शीश कटा दें।
भारत माँ की शान बढ़ा दें।
चंग बजा लें शंख बजा दें।
रंग लगा दें रक्त बहा दें।
_________________________
. हरिगीतिका छंद
विधान..
११२१२ ११२१२ ११,
२१२ ११२१२
१६,१२ मात्रा पर यति
चार चरणों का एक छंद,
चारों चरण सम
तुकांत
. नव वर्ष
. १
लगि चैत माह मने नया सन,
सम्वती मय हर्ष है।
फसले पकें खलिहान हो,
तब ही सखे नव वर्ष है।
परिणाम की,जब आस मे बटु,
धारता उतकर्ष है।
मम कामना मन भावना यह,
पर्व हो प्रतिवर्ष है।
. २
नव वर्ष हो शुभ आपको यह,
कामना मन में करें।
सबका सरे शुभ काम जो बस,
भावना मन में भरे।
करलें धरा हित वीर पावन,
कर्म मानव धर्म रे।
अपना भला,जग का भला यह,
सोचना सब ही तरे।
. ३
वरदान दो भगवान जी जग,
शांति का अरमान हो।
मनुजात हो सब ही सुखी हर,
जीव का शुभ मान हो।
करतार हे प्रभु दीन मैं तुम,
दीन बंधु प्रमान हो।
मम अर्ज है, तव फर्ज है जन,
विश्व के,शुभ गान हो।
.
________________________
. उडियाना छंद
विधान-
२२मात्रिक छंद--१२,१० मात्रा पर यति,
यति से पूर्व व पश्चात त्रिकल अनिवार्य,
चरणांत में गुरु (२)
दो दो चरण समतुकांत हो।
चार चरण का एक छंद कहलाता है।
'बीत रहा जल है'
कूप सूख गए नीर, कृषक हताश रहे।
नीर देते घट आज, प्यास खुद ही सहे।
नलकूप खोदे नित्य, रक्त खींच धरती।
मनुज नीर दोउ मीत,नित्य साख गिरती।
नदियों में डाल गंद ,नीर करें गँदला।
हे मनुज माने मातु ,नदी नेह बदला।
बजरी निकाली रेत, खेत रहेे खलते।
फूल पौधे खा गये, बाग लगे जलते।
छेद डाले भू खेत, खोद कूप धरती।
पेड़ नित्य काट रहे, भूमि बने परती।
रेगिस्तान बढ़ रहा, बीत रहा जल है।
कौन फिर तेरी सुने, बोल एक पल है।
रक्षा कर मीत नीर, जीव जंतु तरसे।
सारे जल स्रोत रक्ष, देख मेघ बरसे।
जल बिना जीवन नहीं,सोच बने अपनी।
जीवन बचालो बंधु , बात यही जपनी।
_________________________
. कुण्डल छंद
विधान-
२२मात्रिक छंद--१२,१० मात्रा पर यति,
यति से पूर्व व पश्चात त्रिकल अनिवार्य,
चरणांत में गुरु गुरु (२२)
दो दो चरण समतुकांत हो।
चार चरण का एक छंद कहलाता है।
. नीर नेह हारा
.
जल ने आबाद किया,सुने है कहानी।
जीवन विधाता बंधु , रीत रहा पानी।
पानी बर्बाद किया, भावि नहीं देखे।
पीढ़ी आज कह रही, कौन देय लेखे।
खोज रहा नीर धीर, मान मानवो में।
खो गया है जो आज,राम दानवों में।
सूख रहे झील ताल ,नदी बाव सारे।
युद्ध से न मान हार, नीर बिन हारे।
सूख गया नैन नीर, पीर देख भारी।
सत्य बात मान मीत,रीत गई सारी।
सिंधु नीर बढ़ रहा, स्वाद याद खारा।
मनुज देख मनुज संग,नीर नेह हारा।
कूप सूख गए नीर, कृषक हताशे है।
नीर देते घट आज, स्वयं पियासे हैं।
नलकूप खोदे नित्य, धरा रक्त खींचे।
मनुज नीर दोउ मीत,नित्य चले नीचे।
_______________________
: तामरस छंद
विधान-
. १२ वर्ण,१६ मात्रिक
नगण, जगण,जगण, यगण
१११, १२१, १२१ , १२२
. दो दो पद सम तुकांत
" जग जननी धरणी महतारी "
हम धरती ऋण सोच उतारें।
वन तरु सागर नीर विचारें।
सजल रहे नदियाँ, सर सारे।
सरस बहे कविता पद न्यारे।
खग पशु जीव बसे जन प्यारे।
नभ तल भारत देश हमारे।
सुजन स्वदेश प्रदेश विदेशी।
रख निज मात उदार विशेषी।
जग जननी धरणी महतारी।
अविरल भक्ति करे हम जारी।
हसरत एक रहे मन मोरे।
अविचल मात रहे तन तोरे।
नभ सविता शशि मंडल तारा।
सर सरिता नद कूल किनारा।
जनम मिले मनवा तन धारूँ।
नित नित मात सुगीत उचारूँ।
लिख शरमा पद लालन बाबू।
मन अपने रख भावन काबू।
सरस सनेह लिखूँ पद गाऊँ।
सजल सुरीत सुमात सुनाऊँ।
.
_________________________
. गीता छंद
विधान-
. २६ मात्रा
२२१२ २२१२ २२१२ २२१
१४,१२ पर यति, दो पद समतुकांत
. " पंछी पिया कलरव करे "
होली मचे फागुन रमें, फसलें रहे आबाद।
पंछी पिया कलरव करे, उड़ते फिरे आजाद।
मैं तो हुई बेचैन हूँ, मिलने तुम्हे पिव आज।
आओ प्रिये फागुन चला,अबतो सँवारो काज
फसलें पकी हैं झूमती,मिलके करें खलिहान।
सखियाँ सभी है खेलती, बिगड़े हमारी शान।
आजा विदेशी पाहुने, खेलें स्वदेशी रंग।
साजन हमारे साथ हों, फरके पिया मम अंग।
कोयल सनेही बोलती,लागे अगन सुन गीत।
ये रंग भँवरे फूल पर, वह राग भी सुन मीत।
फागुन सनेही मीत है, तू मान मेरी बात।
कैसे बताऊँ भोर की, जो बीतती है रात।
कब तक निहारूँ बाट मैंं, साजन बने बे पीर।
नदिया बनीे आँखे बहे, अब पीव हम दो तीर।
मिलना लिखे हो भाग्य में,होली निहारूँ बाट।
कैसे मिलूँ मै जीवती, पकड़ी मनो हूँ खाट।
____________________
. मत्तमयूर छंद
विधान-
: १३ वर्णीय
मगण,तगण,यगण,सगण, गुरु
विधान-२२२ २२१ १२२ ११२ २
प्रत्येक दो पंक्ति समतुकांत हो
. " नारी कल्याणी "
माया है संसार यहाँ है सत नारी।
जन्माती है, पूत निभाती वय सारी।
बेटी माता पत्नि बनी वे बहिना भी।
रिश्ते प्यारे खूब निभे ये कहना भी।
होती है श्रृद्धा मन से ही जन मानो।
नारी सृष्टी सार रही है पहचानो।
नारी का सम्मान करे जो मन मेरे।
हो जाए कल्याण हमेशा तन तेरे।
नारी है दातार सदा ही बस देती।
नारी माँ के रूप विचारें जब लेती।
नारी पृथ्वी रूप सदा ही सहती है।
गंगा जैसी धार हमेशा बहती है।
माताओ ने पूत दिए हैं जय होते।
सीमा की रक्षाहित वे जो सिर खोते।
पन्ना धायी त्याग करे जो जननी है।
होगा कैसा धीर करे जो छलनी है।
होती हैं वे वीर हमारी बहिने तो।
भाई को भेजे अपना देश बचे तो।
बेटी का तो रूप सदा ही मन जाने।
होती है ईश्वर यही भारत माने।
पन्नाधायी रीत निभाती तब माता।
बेटा प्यारा ओढ़ तिरंगा घर आता।
पत्नी वीरानी मन सिंदूर लुटाती।
पद्मा जैसे जौहर की याद दिलाती।
.______________________
: अपराजिता छंद
विधान-
नगण नगण रगण सगण लघु गुरु
१११ १११ २१२ ११२ १२
१४वर्ण ४ चरण
प्रत्येक दो चरण समतुकांत।
. " ताण्डवी "
डम डम डमरू बजे शिवरात में।
बम बम सबही कहे अब साथ में।
जय शिव जय पार्वती कह आरती।
जन गण मन शिंभु शंकर भारती।
सर हद पर वीर धीर सँभालते।
हर हर बम भारतीय उचारते।
सजग सकल देश शिंभु कृपा रखे।
मनुज मन रहे सनेह दया सखे।
नियति नियम मान ईश्वर भावना।
अजर अमर मातृ भूमि सुकामना।
मनुज दनुजता करे मनु घातकी।
अवसर अब पाप मोचन पातकी।
अब शिव कर तांडवी नृत आज से।
दनुज दल हटे भगे हिमताज से।
_____________________
. मत्तमयूर छंद
विधान-
१३ वर्णीय
मगण,तगण,यगण,सगण, गुरु
विधान-२२२ २२१ १२२ ११२ २
प्रत्येक दो पंक्ति समतुकांत हो
" कैसे भूलोगे जननी को "
राखी खो जाती बहिनें ये बिलखाती।
नारी का ही रूप तभी तो सह जाती।
दादी नानी की कहनी है मनबातें।
वीरो की कुर्बान कथाएँ सब राते।
नारी कल्याणी धरती के सम होती।
संस्कारों के बीज सदा ही तन बोती।
माता मेरा शीश नवाऊँ पद तेरे।
बेटी का सम्मान करें ओ मन मेरे।
नारी कल्याणी जननी है अभिलाषी।
बेटी का सम्मान करो भारत वासी।
कैसे भूलोगे जननी को यह बोलो।
नारी भारी त्याग सभी मानस तोलो।
आजादी का बीज उगाया वह रानी।
लक्ष्मी बाई खूब लड़ी थी मरदानी।
अंग्रेजों को खूब छकाया उसने था।
नारी का सम्मान बढ़ाया जिसने था।
सीता राधा की हम क्या बात बताएँ।
लक्ष्मी दुर्गा की सब को याद कथाएँ।
गौरा गंगा भारत की शान दुलारी।
नारी कल्याणी सब की है हितकारी।
.
_________________________
विजात छंद
विधान-
१२२२ १२२२
१२२२ १२२२
१४ मात्रिक छंद
" अजंता प्रेम की कूँची "
सुहाना देश भारत है।
शहीदों की विरासत है।
जहाँ गंगा बहे प्यारी।
कथा यमुना कहे न्यारी।
हिमालय शान है ऊँची।
अजंता प्रेम की कूँची।
स्वर्ण पंछी इसे कहते।
गुरू माने सभी रहते।
कहें हम भारती माता।
विधाता मान मैं गाता।
करें हम गाय की पूजा।
बखाने धर्म भी दूजा।
सभी का मान करते हैं।
तभी ईमान निभते हैं।
हमारे देश की जय हो।
शहीदी शान की जय हो।
_______________________
. प्रमिताक्षरा छंद
विधान-
. 12 वर्ण
सगण जगण सगण सगण
११२ १२१ ११२ ११२
प्रत्येक दो पंक्ति समतुकांत हो।
" रथवान कृष्ण जब गीत कहे "
प्रभु का जिसे भजन है करना।
मन को सदा सरल ही रखना।
हर भारतीय जन है अपने।
अब सिद्ध होय सब के सपने।
जननी धरा वतन नाज करें।
हम मानवीय परिताप हरे।
अरमान वीर बलिदान करे।
भगवान धीर मम मान धरे।
रथवान कृष्ण जब गीत कहे।
मन मान पार्थ तब युद्ध सहे।
नदियाँ तरे सतत वैतरनी।
हमको उन्हे सजल है रखनी।
परिणाम मान परखे रहना।
अनजान राह तकते सहना।
हरकाज सिद्ध हित मानवता।
कर युद्ध वीर हत दानवता।
______________________
. त्रिभंगी छंद
विधान- १०,८,८,६ कुल ३२ मात्रा
पदांत गुरु ,जगण रहित,
दो पद सम तुकांत,
प्रथम,द्वितीय चरण समतुकांत
. " हम शीश नवाते, वंदन गाते "
जय भारत वंदन,जन अभिनंदन,
सैनिक सीमा, रखवाला।
जहँ बहती गंगा, शान तिरंगा,
देश हमारा, मतवाला।
सबकी अभिलाषा, हिन्दी भाषा,
संविधान है, अरमानी।
हम शीश नवाते, वंदन गाते,
भारत माता, सन मानी।
जय हिन्दुस्तानी,रीत सुहानी,
मात भारती,भयहारी।
सागर पद परसे,जन मन हरषे,
लोकतंत्र जन, सुखकारी।
इतिहास पुराना,सब जग जाना,
विश्व गुरू जो,कहलाता।
था स्वर्ण पखेरू,गिरिय सुमेरू,
रजकण जन शुभ,फल दाता।
________________________
: . चंद्रिका छंद
विधान-
नगण,नगण,तगण,तगण गुरु
. १११ १११ २२१ २२१ २
प्रत्येक दो पंक्ति समतुकांत हो
. भारती
मन फितरत आशीष ईमान की।
यह हसरत है आज इंसान की।
कर कुदरत को मुक्त हैवान से।
हजरत सब है रिक्त दीवान से।
अरि दल मन से है बईमान येे।
सच सच कहता गीत ले मान ये।
सरहद पर सेना खड़ी भारती।
हर मजहब की आज ये आरती।
यह विनय सभी भारती कीजिए।
वतन हित यही गीत गा लीजिए।
अब जब यह सीमा सजे शान से।
जन गण मन माँ भारती मान से।
जब सिर उठता शान आवाम में।
तन मन धन को वार दो नाम में।
अब रिपुदल की हार संहार हो।
सरहद पर ही शीश शृंगार हो।
अब अमन तिरंगा रहे शान से।
यह चमन सजे भारती मान से।
बुलबुल कहती गीत जो तान से।
हलधर भरता पेट जो धान से।
जनहित हम भी काम को मान दे।
नव कलरव संगीत सम्मान दें।
परहित अपने काज आगाज हों।
जन मन सब संगी न नाशाज हो।
________________________
. तंत्री छंद
विधान- प्रतिचरण ३२ मात्रायें
८,८,६,१० मात्रा पर यति
चरणांत २२, चार चरण
दो दो चरण समतुकांत।
. " नयन तीसरा नही खोलना "
हे कैलाशी , घट घट वासी,
मन मेरा ,दर्शन अभिलाषी।
हे शिव शंकर , प्रलयंकारी,
तांडव कर,भोले अविनाशी।
डमरू वाले , गौरी शंकर,
कर त्रिशूल, बाघम्बर धारी।
हे,जगपालक, जगसंहारक,
भूतनाथ, शिव मंगलकारी।
कंठ हार में, नाग सोहते,
नीलकंठ, भोले त्रिपुरारी।
जटाजूट सिर, चन्द्र गंग है,
भंग विल्व, संगत आहारी।
हे परमेश्वर , करता सेवा,
विनती सुन, ले नाथ हमारी।
दुष्टदलन कर,भक्तों के हित,
निर्मल जग,देना अविकारी।
नयन तीसरा, नहीं खोलना,
समय नहीं, देवा आया है।
सृष्टि हमारी ,कृपा आपकी,
चलने दो, प्रभु की माया है।
ध्यान रखों प्रभु,ध्यान लगाते,
उत्तम पथ, मानव मन धारें।
अन्यायी अरु, आतंकी के,
सम्मुख प्रभु,हम कभी न हारे।
_________________________
: . वर्ष छंद
विधान - मगण तगण जगण
२२२ २२१ १२१
९ वर्ण ४ चरण
प्रत्येक दो-दो चरण समतुकान्त
" कान्हा, राधे को अब भूल "
आतंकी को दें अब दंड।
होते जाते भीरु उदंड।
आओ वीरों दें बलिदान।
नापाकी का मेट निसान।
कान्हा राधे को अब भूल।
दुष्टों को संहार समूल।
हे कैलासी तांडव धार।
आर्यावर्ती संकट टार।
शिक्षा ऐसी दो भगवान।
माता का साधे अरमान।
वीरों को देवें सब मान।
दें, वीणा धारी वह ज्ञान।
आओ सारे भारत वीर।
माताओं को दे मिल धीर।
वीरों की पत्नी मय बाल।
सम्भाले पूँछें अब हाल।
_________________________
: . जलधरमाला-छंद
विधान- २२२ २११ ११२ २२२
चार चरण,
प्रत्येक दो दो पंक्ति समतुकांत
१२ वर्ण, ४ वर्ण पर यति
" गीता गाएँ
... कविजन कान्हा वाली "
सेना सारी, सरहद चौकी आती।
आतंकी की, धड़कन है थर्राती।
हे माताओं, ललन तुम्हारे प्यारे।
माँ की आशा, वतन सुरक्षा धारे।
आजादी की, सरगम खोते पापी।
आतंको से, यह धरती माँ काँपी।
गीता गाएँ,कविजन कान्हा वाली।
हो तैयारी, रण अब बाजे ताली।
शेरों की माँ, निडर सदा ही होती।
है कुर्बानी, कब समझाती रोती।
है फौलादी, बहन पिता भी प्यारे।
चाहें मेरे, सुत रिपु को संहारे।
हिन्दुस्तानी,दम खम देखो बाकी।
गाली देना, हरकत भी नापाकी।
शेरों से तू, मत कर बेईमानी।
बातें सारी,सुन खल पाकिस्तानी।
________________________
. पंचचामर छंद
. विधान :--
१२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ (आठ बार)
१२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ (आठ बार)
दो दो चरण सम तुकांत हो,
चार चरण का छंद होता है।
. " नमामि नीर नर्मदा "
.
मने बसंत पंचमी मनाय मात शारदा।
मिटे समस्त कामना पले न घोर आपदा।
विवेक शील ज्ञान संग आन मान शान दे।
अँधेर नाश मानवी प्रकाश स्वाभिमान दे।
.
बसंत की उमंग संग पूजनीय शारदे।
किसान भाग्य खेल मात कर्ज भार तारदे।
फले चने कनेर आम कैर बौर खेजड़ी।
प्रसून खूब है खिले शतावरी खिले जड़ी।
.
पके अनाज खेत में कपोत कीर तारते।
नसीब हाय होलिके हँसी खुशी पजारते।
विवाह साज साजते विधान ईश मानते।
समाज के विकास को सुरीत प्रीत पालते।
.
विशेष शीत मुक्ति से सिया समेत राम से।
घरों समेत खेत के सुकाम मे सभी लसे।
विशाल भाल भारती नमामि मात आरती।
हिमालयी प्रपात नीर मात गंग धारती।
.
अखंड देश संविधान वीर रक्ष सर्वदा।
प्रणाम है शहीद को नमामि नीर नर्मदा।
बसंत की उमंग फाग संग छंद भावना।
सुरंग भंग चंग मंद मोर बुद्धि मानना।
_______________________
: . पुनीत छंद
विधान:-१५ मात्रिक
चार चरण
प्रत्येक दो दो चरण समतुकांत
चरणांत ~२२१
. " लिख कवि...... "
मीत सुनो प्रिय रचनाकार,
कविता को दें नव आकार।
लिख कवि देशधरा के गान,
मात भारती हित के मान।
लिखना पहले सीना तान,
जय जवान,भारत सम्मान।
पीर किसानी लिखना मीत,
जय विज्ञान निभाती प्रीत।
देश प्रेम रचना संगीत,
इंकलाब मत वाले गीत।
जोश जगाने वाले नाद,
लिखने भगतसिंह आजाद।
लिखना प्यारे रचनाकार,
वीर सपूतो का आभार।
संविधान संसद आवाम,
नई चेतना , नव आयाम।
बिटिया के हित में आवाज,
शिक्षा का हो नव आगाज।
गुरबत संग वतन ईमान,
लिखना देश भक्ति के गान।
लिखना कवि नूतन संवाद,
बच्चों के लिखना आल्हाद।
तोप सामने पाकिस्तान,
लिख मेरे दिल हिन्दुस्तान।
______________________
. तिलका छंद
. विधान :- ११२ ११२
. सगण सगण (६ वर्ण)
चार चरण, दो चरण समतुकांत
" भय रीत टले "
मन के जप से।
तन के तप से।
मनुवा सज के।
बल सूरज के।
करना सबका।
अपना उनका।
उपकार सदा।
तब क्या विपदा।
अपने पन का।
निजका पर का।
घर है वसुधा।
मन क्या दुविधा।
भगवान भजे।
अभिमान तजे।
अरमान फले।
भय रीत टले।
इस देश रहें।
परिवेश कहे।
हर भाँति सुखी।
सम सूर्य मुखी।
भज मात पिता।
निज देश जिता।
परिवार रखे।
करतार सखे।
.______________________
चंडरसा छंद
विधान -
१११ १२२
नगण, यगण
६ वर्ण, ४ चरण,
दो दो सम तुकांत
" ....शहीदों "
नमन शहीदों।
वतन मुरीदों।
मर मिट जाते।
अमर कहाते।
वतन सँभाला।
बन रखवाला।
अमिट निशानी।
यह बलिदानी।
बन उपकारी।
वजह हमारी।
तन मन वारे।
अमन सँवारे।
कसरत कारी।
हम बलिहारी।
नमन सु वीरों।
सुत रण धीरों।
_________________________
: . इन्द्रवज्रा छन्द
विधान- प्रति चरण ११ वर्ण
२तगण(२२१)+१जगण(१२१)+२गुरु
दो-दो चरण समतुकान्त
" कैसे लुटा दें कशमीर क्यारी "
आओ सभी भारत के निवासी।
चालें चली है अब जो सियासी।
पाकी पड़ोसी करता जिहादी।
आतंक भारी ज्वर है मियादी।
. सीमा सुरक्षा अपनी करेंगे।
. आतंक कारी हमसे डरेंगे।
. माँ भारती है हमसे सुभागी।
. होने न देंगे उसको अभागी।
सींची लहू से धरती हमारी।
कैसे लुटा दें कशमीर क्यारी।
देंगे शहीदी हम तो जवानी।
सीमा निहारे करलें रवानी।
. जीते जियेंगे वरना मरेंगे।
. आवाम मेरे हित ही करेंगे।
. माँ भारती का सपना सजा दें।
. आतंक सारा जड़ से मिटा दें।
_______________________
. भुजंगी छंद
विधान -
यगण १२२×३+ लघु गुरु
१२२ १२२ १२२ १२
प्रत्येक दो पंक्ति समतुकांत हो
.
" पढ़ें बेटियाँ तो सरे नेकियाँ "
जपे शारदे माँ कथा पावनी।
कहे भक्त भावे मनो भावनी।
रखो देश मेरा भला ही सदा।
टले घोर ऐसी, बला सर्वदा।
करे देश सेवा बचा बेटियाँ।
पढ़े बेटियाँ तो सरे नेकियाँ।
हमारी सभी से यही बंदगी।
बचाएँ सदा ही धरा जिंदगी।
सुनाएँ कहानी शहीदी यही।
बताएँ जवानी रवानी मही।
करें वंदना ईश आओ अभी।
बढ़े देश आगे सँभालो सभी।
________________________
: सरसी छंद विधान--
{सरसी छंद 16+11=27 मात्रा,
चरणांत गाल, 2 1}
" पनघट मरते प्यास "
सास ससुर की बाते करती, रमणी भोली जान।
करे शिकायत कभी प्रशंसा,पनिहारिन अभिमान।
याद कहानी होकर घटते,प्रीत रीत विश्वास।
मन की प्यास शमन करते वे,पनघट मरते प्यास।।
प्रेम कहानी घर के झगड़े, सहते मौन स्वभाव।
कभी चुहल देवर भौजाई, ईश भजन समभाव।
जल घट डोर वे डोल बाल्टी, दर्शन ही परिहास।
मन की प्यास शमन करते वे,पनघट मरते प्यास।।
प्रियजन,पंछी,पथिक पाहुने,गायें लौटत हार।
वृद्ध जनो से अवसर पा के,दुआ लेत पनिहार।
सबको अपना हक मिलता था,कोय न हुआ हताश।
मन की प्यास शमन करते वे,पनघट मरते प्यास।।
वर्तमान की अंध दौड़ में,भूल गये संस्कार।
आभूषण पनिहारिन रखती,वस्त्रों संग सँभार।
याद रहे बस याद कहानी,मर्यादा के हास।
मन की प्यास शमन करते वे,पनघट मरते प्यास।
दंत खिलकती,नैन छलकती,झिलमिल वे शृंगार।
देख दृष्य वे खूब विहँसती,मूक स्वरों पनिहार।
मौन गवाही पनघट देते,रीते लगे पलाश।
मन की प्यास शमन करते वे,पनघट मरते प्यास।
_______________________
: . राधा रमण छंद
विधान:-
नगण नगण मगण सगण
१११ १११ २२२ ११२
१२ वर्ण ४ चरण
प्रत्येक दो दो चरण समतुकांत हो।
. " सचमुच कान्हा तू छलिया "
.
जब तक तन में श्वाँसे चलती।
विरह विपद में कान्हा भजती।
हम वृष तनुजा हे साँवरिया।
पर सचमुच कान्हा तू छलिया।
.
दिन भर मन में आहें भरती।
हम सब सखियाँ कान्हा तकती।
अब कुछ हँसले प्यारे सजना।
फिर नटवर तू राधे भजना।
गिरधर सब की बाते सुनते।
पर निज मनमानी ही करते।
तट तरु वन में ढूँढा करते।
पर तुम मन राधा के बसते।
.
____________________
: . रास छंद
( शिल्प:- ८+८+६=२२ चरणांत--१ १ २ )
दो दो चरण समतुकांत
चार चरण का एक छंद
" अपनी धरती सागर अंबर "
.
पेड़ लगाले, पुण्य कमाले, धीर पथी,
धरती अंबर, शुद्ध रहेगा, रश्मि रथी।
सागर-नदियाँ,ताल-तलैया,उज्ज्वल हो,
मानुष प्राणी, प्राकृत वायू, निर्मल हो।।
.
स्वच्छ हवा हो,पावन जल हो,अमल सभी,
पेड़ लगायें, तरु रखवारे, सँभल अभी।
धरा सुरक्षा, सब की रक्षा , मदद करो,
पर्यावरणन, हो संरक्षण, सनद करो।।
.
ओजोन परत,विकिरण नाशी,कवच बड़ा,
उत्तर प्रहरी, हिमगिरि,ऊँचा, अटल खड़ा।
गंगा , यमुना , नर्मद सलिला, सरित बहे,
हो संरक्षण, वचन विनय के, सहित कहे।।
.
अपनी धरती, सागर अंबर, तरु नदियाँ,
अपनी खेती, फसलें होंगी, शत सदियाँ।
सब का तन मन ,हो संजीवन, रोग हरें,
जल, वायु ,धरा, नहीं प्रदूषण, लोग करें।।
______________________
. सोरठा छंद
विधान-
सोरठा चौबीस मात्रिक छंद है। चार चरण होते हैं।
दोहे से उलट - विषम चरण ११ मात्रिक और सम चरण १३ मात्रिक होते हैं।
विषम चरण समतुकांत हो,चरणांत २१ गुरु लघु अनिवार्य है।
सम चरणांत २१२ गुरु लघु गुरु हो।
. 'सोरठा सृजन'
पटल करे सम्मान, नये सृजक आवें भले।
१११ १२ २२१, १२ १११ २२ १२
एक यही अरमान, सीखें हिन्दी हिन्द हित।
२१ १२ ११२१, २२ २२ २१ ११
लिखूँ सोरठा छंद, शारद माता ज्ञान दे।
रहा अभी मतिमंद, शर्मा बाबू लाल तो।।
आओ मिलकर साथ, पुण्यपटल पर सीखलें।
कलम बढ़ाओ हाथ, लिखें छंद सोरठ सखे।।
दोहे से विपरीत, विषम चरण समतुक रखो।
लिखें छंद हे मीत, कठिन नहीं सोरठ सृजन।।
चौबिस मात्रिक छंद, ग्यारह तेरह गिन लिखें।
मीत विषम चरणांत, समतुकांत भावन भरे।।
. "दोहा-सोरठा-दोहा सम्बंध
दोहा-
सीखें साथी से अमित, कृपा करें नंदलाल।
चाहत सोरठ सीखना, शर्मा बाबू लाल।।
सोरठा-
कृपा करें नंदलाल, सीखें साथी से अमित।
शर्मा बाबू लाल, चाहत सोरठ सीखना।।
_____________________
: दोहा छंद
विधान -
विषम चरण १३ मात्रा, चरणांत २१२
सम चरण ११ मात्रा, चरणांत २१
. " जीवन है अनमोल "
.
दुर्लभ मानव देह जन, सुनते कहते बोल।
मानवता हित 'विज्ञ' हो, जीवन है अनमोल।।
धरा जीव मय मात्र ग्रह, पढ़े यही भूगोल।
सीख 'विज्ञ' विज्ञान लो, जीवन है अनमोल।।
मानव में क्षमता बहुत, हिय दृग देखो खोल।
व्यर्थ 'विज्ञ' खोएँ नहीं, जीवन है अनमोल।।
मस्तक 'विज्ञ' विचित्र है,नर निजमोल सतोल।
खोल अनोखे ज्ञान पट, जीवन है अनमोल।।
'विज्ञ' सत्य ही बोलिए, वाणी में मधु घोल।
जन हितकारी सोच रख, जीवन है अनमोल।।
थिर रख 'विज्ञ' विचार को,वायुवेग मत डोल।
शोध सत्य निष्कर्ष ले, जीवन है अनमोल।।
'विज्ञ' होड़ मन भाव से, रण के बजते ढोल।
समरस हो उपकार कर, जीवन है अनमोल।।
कठिन परीक्षा है मनुज,खेल समझ मत पोल।
सजग 'विज्ञ' कर्तव्य पथ, जीवन है अनमोल।।
कर्तव्यी अधिकार ले, करिए कर्म किलोल।
देश हितैषी 'विज्ञ' बन, जीवन है अनमोल।।
दीन हीन दिव्यांग की, कर मत 'विज्ञ' ठिठोल।
सबको शुभ सम्मान दो, जीवन है अनमोल।।
'विज्ञ' छंद दोहे गज़ल, शब्दों की रमझोल।
शर्मा बाबू लाल यह, जीवन है अनमोल।।
.
____________________
. मत्तमयूर छंद
विधान-
१३ वर्णीय
मगण,तगण,यगण,सगण, गुरु
विधान-२२२ २२१ १२२ ११२ २
प्रत्येक दो पंक्ति समतुकांत हो।
"रोग जिहादी विष धीमा "
मेरी प्यारी भारत माँ की जय बोेलो।
दीवानों का देश स्वयं के मन तोलो।
आजादी का दौर अनूठा मत भूलो।
हिन्दुस्तानी वीर शहीदी मन झूलो।
फैलाते जो रोग जिहादी विष धीमा।
आतंकी घातें चल रोकें अब सीमा।
मेरा प्यारा भारत होगा जग जीता।
आएगा वो दौर पुराना अब बीता।
सीमाओ का रक्षण सेना पर छोड़ो।
गद्दारों को छाँट सभी का मुँह तोड़ो।
ईमानी हो बात हमारी सुन लेना।
देंगे साथी जान हमारी कह देना।
माताओं के पूत शहीदी वर लेते।
इंसानी जज्बात वही तो सिर देते।
देशों में संग्राम नही हो सुन लेना।
संस्कारों का नाश नहीं हो कह देना।
धर्मो की दीवार न यारों हम माने।
ऊँची होवे सोच हमारी हम जाने।
हैवानी संहार सको तो जय बोलो।
इंसानों को तार सको तो मन तोलो।
____________________
सरसी छंद
{सरसी छंद १६ + ११= २७ मात्रा,
चरणांत गाल, २१
दो दो चरण समतुकांत हो।
" वे पनघट "
.
नीर धीर दोनोे मिलते थे,सखी-कान्ह परिहास।
था समय वही,,अब कथा बने,रीत गये उल्लास।
तन मन आशा चुहल वार्ता,वे सब दौर उदास।
मन की प्यास शमन करते वे,पनघट मरते प्यास।।
वे नारी वार्ता स्थल थे,रमणी अरु गोपाल।
पथिकों का श्रम हरने वाले,प्रेमी बतरस ग्वाल।
पंछी जल की बूंद आस के,थोथे हुए दिलास।
मन की प्यास शमन करते वे,पनघट मरते प्यास।
बनिताएँ सरिता होती थी,प्यासे नीर निदान।
वे निश्छल वाणी ममता की,करती थी जल दान।
कान्हा राधे की उन राहों में,भरते घोर कुहास।
मन की प्यास शमन करते वे,पनघट मरते प्यास।
पनघट संगत पनिहारिन भी,रहे मसोसे बाँह।
नीर भरी प्यासी अँखियाँ वे,ढूँढ रही है छाँह।
जरापने सब दुख ही पाते,टूटे सबकी आस।
मन की प्यास शमन करते वे,पनघट मरते प्यास ।।
रीते सरवर ताल तलैया,कूएँ सूखे सार।
घट गागर भी लुप्त हुए हैं,रस्सी सुप्त विचार।
दादी नानी , बात कहानी,तरसे कथ परिहास।
मन की प्यास शमन करते वे,पनघट मरते प्यास।।
रीत प्रीत से लोटा डोरी,बँध रहते दिन रात।
ललनाओं से चुहल कहानी,अपनेपन की बात।
रिश्तों में मर्याद ठिठोली,देवर भाभी हास।
मन की प्यास शमन करते वे,पनघट मरते प्यास।।
________________________
: . तिलका छंद
. विधान:- ११२ ११२
. सगण सगण (६ वर्ण)
चार चरण, दो चरण समतुकांत
" सजनी लिपटी "
मन शान बना।
सज के सजना।
ध्वज में लिपटे।
अरि से न हटे।
सजनी लिपटी।
तनुजा चिपटी।
सुत मात लुटे।
पितु आस मिटे।
जय हिन्द कहा।
रिपु सैन्य जहाँ।
बलवान गया।
असमान नया।
निभ रीत तभी।
बलिदान सभी।
शुभ नाम रहे।
मन छंद कहे।
बस रीत बची।
मन प्रीत बची।
परिवार रहा।
पर चैन कहाँ।
._____________________
. प्रमिताक्षरा छंद
विधान-
. 12 वर्ण
सगण जगण सगण सगण
११२ १२१ ११२ ११२
प्रत्येक दो पंक्ति समतुकांत हो।
" जीत जीत अपनी तय हो "
परिणाम मान परखे रहना।
अनजान राह तकते सहना।
हरकाज सिद्ध हित मानवता।
कर युद्ध वीर हत दानवता।
अपना महान यह भारत हो।
हर दुष्ट नीच पर लानत हो।
हम कर्म वीर कहलाय सखे।
अब रीत प्रीत हर मान रखें।
लिख गीत छंद हित मानव के।
शुभ सूत्र धार बन आनव के।
डर देख हीन मत तू बनना।
मन मीत देख जगते सपना।
जग जीत वीर बनना तुमको।
फिर धीर वीर बढ़ना हमको।
जय बोल बोल अपनी जय हो।
जग जीत जीत अपनी तय हो।
._______________________
. त्रिभंगी छंद
विधान- १०,८,८,६ कुल ३२ मात्रा
पदांत गुरु ,जगण रहित,
दो पद सम तुकांत,
प्रथम,द्वितीय चरण समतुकांत
" मुकुट मेखला शुभकारी "
गंगा अति पावन,जन मन भावन,
यमुना भावे, नद सारी।
बह निर्मल धारा, कूल किनारा,
तीरथ दर्शन, त्रिपुरारी।
हिमगिरि है अविचल,गिरि विन्ध्याचल,
मुकुट मेखला,शुभकारी।
मिट्टी बलिदानी,अमर कहानी,
वतन हिफाजत, हितकारी।
रह वतन सलामत, करें इबादत,
जन गण मंगल, सुखदायी।
मम मात भारती,करें आरती,
मातृभूमि हे, शुभदायी।
खेती लहराती,वर्षा गाती,
जय किसान धन, उप जाए।
वन बाग सुहाने, कलरव ताने,
कोयल मैना ,स्वर गाए।
__________________________
. दोहा छंद
विधान-
विषम चरण १३ मात्रा चरणांत २१२
सम चरण ११ मात्रा,चरणांत २१
.
"धरती जीवन धार"
धारण करती है सदा, जल थल का संसार।
जननी जैसे पालती, धरती* जीवन धार।।
भूमि* उर्वरा देश की, उपजे वीर सपूत।
भारत माँ सम्मान हित,हो कुर्बान अकूत।।
पृथ्वी* पर्यावरण की , रक्षा कर इन्सान।
बिगड़ेगा यदि संतुलन,जीवन खतरे जान।।
*धरा हमारी मातु सम, हम है इसके लाल।
रीत निभे बलिदान की,चली पुरातन काल।।
*भू पर भारत देश का, गौरव गुरू समान।
स्वर्ण पखेरू शान है,आन बान अरमान।।
*रसा रसातल से उठा,भू का कर उपकार।
धारे रूप वराह का, ईश्वर ले अवतार।।
चूनर हरित वसुंधरा*,फसल खेत खलिहान।
मेड़ मेड़ जब पेड़ हो, हँसता मिले किसान।।
वसुधा* के शृंगार वन, जीवन प्राकृत वन्य।
पर्यावरण विकास से, मानव जीवन धन्य।।
अचला* चलती है सदा, घुर्णन सें दिन रात।
रवि की करे परिक्रमा, लगे साल संज्ञात।।
क्षिति* जल पावक अरु गगन, संगत मिले समीर।
जीव जीव में पाँच गुण,धारण, तजे शरीर।।
वारि इला* पर साथ ही, प्राण वायु भरपूर।
इसीलिए जीवन यहाँ, सुन्दर प्राकृत नूर।।
_______________________
चंपकमाला छंद
विधान-
10 वर्ण , १६ मात्रिक
भगण मगण सगण गुरु
२११ २२२ ११२ २
दो दो पद समतुकांत हो।
" सैनिक सीमा रक्त रंगोली "
गीत सुना हूँकार सुनाएँ।
शेर दहाड़े गीदड़ जाए।
देश हमारे फागुन होली।
सैनिक सीमा रक्त रँगोली।
घात लगाते कायर घाती।
वीर लड़े ये छप्पन छाती।
खूब जलाते हैं हम होली।
युद्ध करें ये सैनिक टोली।
रंग लगाएँ प्रेम करेंगे।
सीम सुरक्षा काज लड़ेंगे।
मान तिरंगे का रखना है।
गान शहीदी का रटना है।
झेल सको बंदूक सुवीरों।
खेल सको होली रणधीरों।
देश हमारा शान हमारी।
पर्व बहाना बात सँवारी।
भारत माँ की सूरत भोली।
चाहत सीमा खून व गोली।
ताकत वीरों खूब सतोली।
मर्द बनो खेलो अब होली।
.
______________________
: . भुजंगी छंद
विधान -
यगण १२२×३+ लघु गुरु
१२२ १२२ १२२ १२
प्रत्येक दो पंक्ति समतुकांत हो
" रखो मान, ईमान पंथी बढ़ो "
.
सुनो वीर फौजी तुम्हारे लिए।
जला दीप घी के सभी ने दिए।
तुम्ही से रहेगी सुरक्षा सखे।
सदाचार सारे हमारे रखें।
बढ़े देश की शान वीरों चढ़ो।
रखो मान ईमान पंथी बढ़ो।
नही भूलना गान पंछी कहे।
वही पातकी पाक पीछे रहे।
सखे भारती आरती धारती।
भला चाहती भावना पालती।
करे काम ऐसे सधे कामना।
सधे साधना मात की भावना।
करामात ऐसीेे हताशा मिटे।
पराधीनता की निराशा कटे।
जहाँ वीरता ही सदा धारती।
अहो भारती माँ सुने आरती।
______________________
तामरस छंद
विधान-
. १२ वर्ण,१६ मात्रिक
नगण, जगण,जगण, यगण
१११, १२१, १२१ , १२२
. दो दो पद सम तुकांत
" हलधर के हित नेह सँवारे "
.
हम जननी कहते धरती को।
यह धरती बसने रहने को।
जगत सँवार सनेह दुलारे।
हलधर के हित नेह सँवारे।
हर पल भू फिरती चलती है।
दिन महिने ऋतुएँ बनती है।
जग जननी कहते हम भाई।
यह धरती सन प्रीत मिताई।
सृजन सनेह धरा सन माने।
खनिज अनेक धरा तन जाने।
सत उपकार करे जग माता।
नमन करे कर जोरि विधाता।
फसल किसान अनाज उगाता।
हमसब का बन जीवन दाता।
तरुवर भूधर शोभित नीके।
शशि सम दीपक है रजनी के।
सहज प्रदूषण रोक धरा के।
अवनति रोक अनीति जहां के।
सरल स्वभाव सुधीर सुमाता।
जनम मनुष्य सुकर्मन पाता।
.________________________
. विजात छंद
मापनी- १२२२ १२२२ (१४ मात्रिक)
प्रत्येक दो पंक्ति सम तुकांत हो
"मनेंगी होलिका फिर से"
रहेगी छाँव की चाहत।
मिलेगी नीर से राहत।
करें बस याद यादों की।
सुहाने प्रीत वादों की।
रहेंगे याद हम जोली।
बने जो मीत इस होली।
तिरंगा मान के खातिर।
मिलेंगे मीत हम हाजिर।
पुरानी बीत जाएगी।
नई ऋतु साल लाएगी।
घटाएँ लौट आएँगी।
बहारें फाग गाएगी।
मनेंगी होलिका फिर से।
चलेंगी टोलियाँ घर से।
निराशा क्यों रहे मन में।
भरें आशा सभी जन में।
.
_______________________
चंडरसा छंद
विधान -
१११ १२२
नगण, यगण
६ वर्ण, ४ चरण,
प्रत्येक दो दो चरण सम तुकांत
" जय जय सेना "
पवन पुकारे।
चमन निहारे।
अमित जुबानी।
अमर कहानी।
सुजन निराले।
सरहद वाले।
हक मत देना।
जय जय सेना।
जयतु गुमानी।
जय बलिदानी।
सुरग परिंदों।
नमन शहीदों।
जय जय माता।
जन सुख दाता।
तुम महतारी।
मनु उपकारी।
___________________
. मत्तमयूर छंद
विधान-
१३ वर्णीय
मगण,तगण,यगण,सगण, गुरु
विधान-२२२ २२१ १२२ ११२ २
प्रत्येक दो पंक्ति समतुकांत हो
" कैसे भूलोगे जननी को "
राखी खो जाती बहिनें ये बिलखाती।
नारी का ही रूप तभी तो सह जाती।
दादी नानी की कहनी है मनबातें।
वीरो की कुर्बान कथाएँ सब राते।
नारी कल्याणी धरती के सम होती।
संस्कारों के बीज सदा ही तन बोती।
माता मेरा शीश नवाऊँ पद तेरे।
बेटी का सम्मान करें ओ मन मेरे।
नारी कल्याणी जननी है अभिलाषी।
बेटी का सम्मान करो भारत वासी।
कैसे भूलोगे जननी को यह बोलो।
नारी भारी त्याग सभी मानस तोलो।
आजादी का बीज उगाया वह रानी।
लक्ष्मी बाई खूब लड़ी थी मरदानी।
अंग्रेजों को खूब छकाया उसने था।
नारी का सम्मान बढ़ाया जिसने था।
सीता राधा की हम क्या बात बताएँ।
लक्ष्मी दुर्गा की सब को याद कथाएँ।
गौरा गंगा भारत की शान दुलारी।
नारी कल्याणी सब की है हितकारी।
.____________________
. इन्द्रवज्रा छन्द
विधान- प्रति चरण ११ वर्ण
२तगण(२२१)+१जगण(१२१)+२गुरु
दो-दो चरण समतुकान्त हो
" आओ कन्हैया रथ में हमारे "
राधे मुरारी धरती तुम्हारी।
देखो कराहे दुखिया बिचारी।
पाकी पिशाची करते जिहादी।
सोचे न पापी मनुता गँवादी।
. माने मनादे समझे बतादे।
. गीता हमे तू फिर से सुना दे।
. हे सारथी आज पुरा कहानी।
. माँ भारती के हित दोहरानी।
सेना हमारी तव अारती के।
हो सारथी तू अब भारती के।
आओ कन्हैया रथ में हमारे।
साथी भरोसे हम है तिहारे।
. मेटे धरा से फिर पाप सारे।
. किस्से बनेंगे अपने तुम्हारे।
. पापी मरेंगे सत ही बचेगा।
. ईमान धर्मी रखना पड़ेगा।
.
___________________
. विजात छंद
विधान-
१२२२ १२२२ (१४ मात्रिक)
प्रत्येक दो पंक्ति समतुकांत
'सजे ये ओस के मोती'
गुलाबी रंग फूलों में।
सजा है संग शूलो में।
सजे ये ओस के मोती।
धरा अहसास के बोती।
कहें ऋतु फाग होली की।
हवाएँ गीत बोली की।
दहकना है पलाशों का।
गया मौसम हताशों का।
प्रकृति सौगात देती हैं।
धरा उपहार लेती है।
तभी तो रीति होली हो।
सही मन प्रीत भोली हो।
मिलेंगे कृषक खेतों में।
खिलें फसलें चहेतों में।
परीक्षा छात्र अब देते।
मिले जो कर्म फल लेते।
सुहानी याद रह जाती।
बसंती याद बस आती।
पड़ेगा ताप जब आगे।
सभी रौनक लगे भागे।
________________________
. पंचचामर छंद
. विधान --
१२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ (आठ बार)
१२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ (आठ बार)
दो दो चरण सम तुकांत हो,
चार चरण का छंद होता है।
. " विदेश पीव , है बसंत "
.
बसंत दूत कोकिला विनीत मिष्ठ बोलती।
बखान रीत गीत से बसंत गात डोलती।
बसंत की बहार में उमा महेश साथ में।
बजाय कृष्ण बाँसुरी विशेष चाल हाथ में।
.
दिनेश छाँव ढूँढते सुरेश स्वर्ग पालते।
सुरंग पेड़ धारते प्रसून काम सालते।
कली खिले बने प्रसून भृंग संग सोम से।
खिले विशेष चंद्रिका मही अनंत व्योम से।
.
पपीह मोर चातकी चकोर शोर काम के।
बसंत बाग फाग में बहार बौर आम के।
बटेर तीतरी कपोत कीर काग बावरे।
लता लपेट खाय पेड़ मौन कामना भरे।
.
निपात होय पेड़ जोह बाट फूल पात की।
विदेश पीव है बसंत याद कंत बात की।
स्वरूप ये मही सजे समुद्र छाल मारते।
पलंग शेष क्षीर सिंधु विष्णु श्री विराजते।
.
मचे बवाल कामना पिया पिया पुकारते।
बढ़े, सनेह भावना बसंत काम भावते।
निराश हो न छात्र भी नवीन पाठ सीखते।
बसंत के प्रभाव गीत चंग संग दीखते।
__________________
लेखक परिचय-
बाबू लाल शर्मा, बौहरा ' विज्ञ'
पिता का नाम- श्री चिरंजी लाल शर्मा, बौहरा
माता का नाम- श्रीमती शुक्ली देवी
जन्म स्थान - सिकंदरा, 303326
जिला - दौसा, राजस्थान
लेखन, - नई रोशनी, नया आकाश, छंद प्रकाश, दोहे करते बात, कुण्डलिया दर्पण
एवं उपन्यास,( बोलती मूरत, प्रेत मुक्ति)
कई - साझा संकलन
व्यवसाय व अनुभव- राजस्थान शिक्षा विभाग में वरिष्ठ अध्यापक पद पर कार्यरत
साहित्यिक सम्मान- कलम के भीष्म,, काव्य पुरोधा, साहित्य सारथी सम्मान
एवं अन्य कई साहित्य संस्थाओं से सम्मानित
सम्प्रति- स्वान्त: सुखाय:, साहित्य सृजन
बेटी बचाओ,बेटी पढाओ, परिवार साक्षरता,समाज सेवा आदि के लिए स्वैच्छिक सेवा हेतु तत्पर एवं स्व संकल्पित।
सम्पर्क सूत्र - बाबू लाल शर्मा, बौहरा, 'विज्ञ'
निवास - बौहरा भवन ,सिकंदरा पिन 303326
जिला - दौसा ,राजस्थान
मो. नं. 9782924479
E,mail- babuskd000@gmail.com
© बाबू लाल शर्मा
पुस्तक का नाम-
विज्ञ
छंद प्रभास
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© बाबू लाल शर्मा
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