१०१ *मात्रिक छंद मय विधान*
" विज्ञ " रचित - प्रमुख १०१, *मात्रिक छंद*
१. ~ हरिगीतिका-छंद ~
११२१२,११२१२,११२१२,११२१२
चार चरण समतुकांत हो
. ~ ईश वंदन ~
. ~~~~~
हर श्वाँस में मन आस ये,
निभती रहे जग में प्रभो।
मन में प्रभा बन आप की,
विसवास से तन में विभो।
तन आपके चरणों पड़ा,
नित चाहता पद वंदनं।
मन की कथा कुछ भिन्न है,
मम कामना तव दर्शनं।
. ~~~~~
हर मौज में व्यवहार में,
प्रभु, आप ही रखवार हो।
हम से न सेवन बंदगी,
हरि, नाम खेवनहार हो।
हमको करो मत दूर हे,
हरि ,आप तारनहार हो।
दुख शोक रोग वियोग में,
हरि,आप पालनहार हो।
. ~~~~~
हम दीन हीन अनाथ हैं,
प्रभु पार तो हमको करो।
नव आस त्राण विधान दें,
वह मान भी सबको सरो।
जन दास *लाल* तिहार है,
अवमानना हरि क्यो़ं करो।
तन तार दे , मन मार दे,
तम कामना मन की हरो।
. ~~~~~
इस लोक में तम नाश हो,
हरि रोशनी तुम दीजिए।
तव लोक में मम वास हो,
मम आस पूरण कीजिए।
भव तार दे मन आस है,
हरि काज ये मन लीजिए।
हरि "लाल" के तन त्रास भी,
दुख पीर पय सम पीजिए।
. ~~~~
©~~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ
२. लावणी छंद
विधान:- १६+१४ प्रति चरण
चरणांत स्वैच्छिक
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
. __नमन__
वीणा पाणी, ज्ञान प्रदायिनी,
ब्रह्म तनया माँ शारदे।
सतपथ जन प्रिय सत्साहित,हित
कलम मेरी माँ तार दे।
मात शारदे नमन् लिखादे,
धरती, फिर नभ मानों को।
जीवनदाता प्राण विधाता,
मात पिता भगवानों को।
मात शारदे नमन लिखा दे,
सैनिक और किसानों को।
तेरे वरद पुत्र,माँ शारद,
गुरु, कविजन, विद्वानों को।
मात शारदे नमन लिखा दे,
भू पर मरने वालों को।
अपना सर्व समर्पण कर के,
देश बचाने वालों को।
मात शारदे नमन लिखा दे,
संसद अरु संविधान को।
मातृ भूमि की बलिवेदी पर,
अब तक हुए बलिदान को।
मात् शारदे नमन् लिखा दे,
जन मन मान कल्याण को।
भारत माँ के सत्य उपासक,
श्रम के पूज्य इंसान को।
मात शारदे नमन लि खादे,
माँ भारती के गान को।
मैं तो प्रथम नमामि कहूँगा,
माँ शारदे वरदान को।
- ---------
©~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा"बौहरा"
३. सार छंद
विधान:-- १६,१२ मात्राएँ प्रति चरण
. चरणांत मे गुरु गुरु
. ( २२,२११,११२,या ११११)
. नेह नीर मन चाहत
ऋतु बसंत लाई पछुआई,
बीत रही शीतलता।
पतझड़ आए कुहुके,कोयल,
विरहा मानस जलता।
नव कोंपल नवकली खिली है,
भृंगों का आकर्षण।
तितली मधु मक्खी रस चूषक,
करते पुष्प समर्पण।
बिना देह के कामदेव जग,
रति को ढूँढ रहा है।
रति खोजे निर्मलमनपति को,
मन व्यापार बहा है।
वृक्ष बौर से लदे चाहते,
लिपट लता तरुणाई।
चाह लता की लिपटे तरु के,
भाए प्रीत मिताई।
कामातुर खग मृग जग मानव,
रीत प्रीत दर्शाए।
कहीं विरह नर कोयल गाए,
कहीं गीत हरषाए।
मन कुरंग चातक सारस वन,
मोर पपीहा बोले।
विरह बावरी विरहा तन मे,
मानो विष मन घोले।
विरहा मन गो गौ रम्भाएँ,
नेह नीर मन चाहत।
तीर लगे हैं काम देव तन,
नयन हुए मन आहत।
काग कबूतर बया कमेड़ी,
तोते चोंच लड़ाते।
प्रेमदिवस कह युगल सनेही,
विरहा मनुज चिढ़ाते।
मेघ गरज नभ चपला चमके,
भू से नेह जताते।
नीर नेह या हिम वर्षा कर,
मन का चैन चुराते।
शेर शेरनी लड़ गुर्रा कर,
बन जाते अभिसारी।
भालू चीते बाघ तेंदुए,
करे प्रणय हित यारी।
पथ भूले आए पुरवाई,
पात कली तरु काँपे।
मेघ श्याम भंग रस बरसा,
यौवन जगे बुढ़ापे।
रंग भंग सज कर होली पर,
अल्हड़ मानस मचले।
रीत प्रीत मन मस्ती झूमें,
खड़ी फसल भी पक ले।
नभ में तारे नयन लड़ा कर,
बनते प्रीत प्रचारी।
छन्न पकैया छन्न पकैया,
घूम रही भू सारी।
. ____ ©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
.
४. विष्णुपद छंद
विधान --- १६,१० चरणांत गुरु
चार चरण,दो-दो चरण समतुकांत
........... क्या क्या जतन करें ?
. °°°°°°°
तुम्ही बताओ राधा रानी, क्या क्या जतन करें।
मन मोहन गिरधारी छलिया, काहे नृतन करे।
गोवर्धन को उठा कन्हाई, गिरधर नाम किये।
उस पर्वत से भारी जग में, बेटी जन्म लिये।
बेटी के यौतक पर्वत सम, कैसे पिता भरे।
आज बता हे नंद दुलारे, चिंता चिता जरे।
तुम्ही...........
लाक्षागृह से बचवाकर तू, जग को भ्रमित कहे।
घर घर में लाक्षा गृह सुलगे, क्या वे विवश दहे।
महा समर लड़वाय कन्हाई, रण मे नृतन करे।
घर-घर में कुरु क्षेत्र बने अब, रण के सत्य भरे।
तुम्ही..................
इक शकुनी की चाल टली कब?नटवर स्वयं बने।
अगनित नटवरलाल बने अब, शकुनी स्वाँग तने।
मित अर्जुन का मोह मिटाने, गीता कहन करे।
जन-मन मोहित माया भ्रम में, समझे मथन करे।
तुम्ही बताओ.........
नाग फनों पर नाच कन्हाई, हर फन कुचल दिए।
नागनाथ कब साँपनाथ फन,छल बल उछल जिए।
अब धृतराष्ट्र,सुयोधन घर पथ, सच का दमन करे।
भीष्म,विदुर,सब मौन हुए अब, शकुनी करन सरें।
तुम्ही बताओ.........
एक कंस हो तो हम मारे, इत उत कंस यथा।
नहीं पूतनाओं की गिनती,तम पथ दंश कथा।
मानव बम्म बने आतंकी, सीमा सदन भरे।
अन्दर बाहर वतन शत्रु अब, कैसे पतन करें।
तुम्ही बताओ..........
इक मीरा को बचा लिए थे, जिस से गरब थके।
घर घर मीरा घुटती मरती, कब तक रोक सके।
शिशू पाल मदमाते हर पथ, कैसे शयन करे।
कुन्ती गांधारी सी दुविधा, पट्टी नयन धरे।
तुम्ही............
विप्र सुदामा मित्र बना कर, तुम उपकार कहे।
बहुत सुदामा, विदुर घनेरे, लाखों निबल रहे।
जरासंध से बचते कान्हा, शासन सिंधु करे।
गली गली में जरासंध है, हम कित कूप परे।
तुम्ही बताओ.........
मन मोहन गिरधारी छलिया, काहे नृतन करे।
. --------
© ~~~~~~ बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
५. ककुभ छंद
विधान:--
. १६,१४...... मात्रा प्रति चरण
चरणांत.२२ गुरु गुरु
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __नव उम्मीदें__
नव उम्मीदें,नया आसमां,
यही विकासी सपना है।
जागृत हुआ गौर से देखा,
सारा भारत अपना है।
साहित्यिक सेवा भी करनी ,
. सत्य विरासत होती है।
नव उम्मीद..रूपमाला के,
. हम तुम सच्चे मोती हैं।
.
हर मोती की कीमत होती,
. सच ही यह सच्चाई है।
सब मिल जाते माला बनती,
. अच्छी यह अच्छाई है।
बनकर अच्छे मीत प्रलेखूँ
. सुन्दर माला का मोती।
जन गण मन की पीर लिखूँ जो,
. भारत माता को होती।
.
नव उम्मीदें,नया आसमां,
. तब नव आयाम रचेंगे।
काव्य कलम मुखरित हो जाए,
. फिर नव साहित्य सजेंगे।।
नव उम्मीदें, नया आसमां,
. सुधिजन रचनाकारों का।
सबके सब मिलके कर देंगे,
. युग को नव आकारों का।
.
चाहे जितनी बाधा आए,
. कवि का धर्म निभाना है।
नई सोच से नव उम्मीदें,
. नव पथ भी दिखलाना है।
मुक्त परिंदे बन के हम तो,
. नित फिर आसमान नापें।
नव उम्मीद भरेंगें मिलकर,
. बाधाओं से क्या काँपें।
.
निज नीड़ों को क्यों भूलें हम,
. भारत की संस्कृतियों को।
पश्चिम की आँधी को रोकें
. मिलकर सब विकृतियों को।
हिन्दी के हित नव उम्मीदें,
. देश,धरा मानवता की।
नया आसमां हम विचरेंगे,
. कविता गाने सविता की।।
. ------+---
©~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ
६. दोही छंद
विधान:- दोहे की तरह चार चरण होते हैं।
विषम चरण- १५ मात्रा, चरणांत २१२
सम चरण में- ११ मात्रा, चरणांत २१
. सावन
. .............
. १
सावन शृंगारित कर रहा, वसुधा, नारि, पहाड़।
सागर सरिता शिव सत्य हैं, नाग विल्व वन ताड़।।
. २
दादुर पपिहा पिक मोर शुक, नारी धरा किसान।
सबकी चाहत जल नेह की, सावन सरस सुजान।।
. ३
नारि केश पिव घन नीर को, देख नचे मन, मोर।
निशदिन ही सपन सुहावने, पिवमय चाहत भोर।।
. ४
लता लिपटती तन पेड़ से, धरा चाहती मेह।
जीव जन्तु नर सब रत रति, विरहा चाहत नेह।।
. ५
कंचन काया सी कामिनी, प्राकृत मय ईमान।
पेड़ लगाले जल संचयन, सावन काज महान।।
. ________
© ~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा,"बौहरा" विज्ञ
७. सगुण छंद
विधान:-- १९ मात्रा प्रति चरण
१,६,११,१६,१९ वीं मात्रा लघु हो।
चरणांत- १२१ हो।
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __पावन प्यार__
सुनें हम मन की कहें सत्य विचार।
करें हम मन की, सुनें भिन्न प्रकार।
पथी हम सब हैं, चले राह सँभाल।
मिले पथ पर भी, कई चाल कुचाल।
रहें श्रम रत ही लिए हाथ कुदाल।
लगे तरु पथ में बनें छाँव कमाल।
बढे हर पग तो बजे सावन राग।
मिले जन जन से, सजे पावन फाग।
रहे नभ घन में गिरे रिमझिम धार।
बजे लय स्वर से खिंचे सरगम तार।
मिले प्रिय मन से लिए साजन हार।
बहे रस मधु सा पले पावन प्यार।
. -------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
८. सुमेरु छंद
विधान:-- प्रति चरण में, १२+७=१९
या १०+९=१९ मात्रा होती है।
१,८,१५ वीं मात्रा लघु अनिवार्य है।
चरणांत २२१,१२१,२१२,२२२ वर्जित
चरणांत २२ से छंद अच्छा बनता है।
. ..........
. प्रीत पालन
. १
चढ़ी घटा नभ काली, रात सजना।
कहे हवा पुरवाई, चैन तजना।
खड़ी सखी सब हँसती, दंत भींंचे।
बया युगल रति क्रीड़ा, ध्यान खींचे।
. २
लता लिपट तरु शाखा, देख लजती।
कभी विरह फिर यादें, स्वप्न सजती।
डरूँ कभी तन कंपन, रात सावन।
करूँ विनय मन साजन, प्रीत पालन।
. ३
गये बहुत दिन बीते, याद आती।
निशा गहन मन मचले, गीत गाती।
कहूँ आज मन बतियाँ, प्रीत भावे।
महा मिलन यह सावन, रीत लावे।
. ---------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९. शास्त्र छंद
विधान:--- २० मात्रा प्रति चरण
१,८,१५,२०,वीं मात्रा लघु हो
चरणांत २१ गुरु लघु हो
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __मानस__
सभी का सावन सा जीवन हो नित्य।
प्रकाशित हो मन में पावन आदित्य।
सुवासित हो वन भी मानव की प्रीति।
प्रभावित मानस भव सागर की रीति।
सदा ही मानव का यौवन आनंद।
जरापन जीवन मे व्यापित पैबंद।
हरा हो सावन सा फागुन में गीत।
चलें वे फागुन की सावन में रीत।
प्रवाहित हो जल में नीरज मकरंद।
प्रताड़ित हैं मन से मानव मतिमंद।
नदी के सागर से उत्तम सम्बन्ध।
सभी के मानव से पावन अनुबंध।
. -------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१०. सिन्धु छंद
विधान:-- २१ वर्ण प्रति चरण
१,८,१५ वीं मात्रा लघू हो
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __भुला दे प्रीत परदेशी__
हिमालय ताज कहलाता रजत जैसा।
बहाती गंग नद पानी अमृत जैसा।
हमारा देश अपना है हृदय मानो।
भुला दे प्रीत परदेशी वतन जानो।
महासागर चरण धोता सजल करता।
जहाजो का सुगम पंथी वचन भरता।
हमारा देश जग नेता गगन चढ़ता।
उठालें वीर बस ऐसा कदम बढ़ता।
किसानी कर्म दाता का उदर भरना।
जवानी धर्म मानव का समर मरना।
हमारा देश मानित है जगत गुरु था।
भगाए यवन हमने ही, नृपति पुरु था।
. --------+--------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
११ . दिगपाल/मृदुगति छंद
विधान:-- २४ मात्रा प्रति चरण
१२,२४ वीं मात्रा पर यति
आदि में समकल हो
५,८,१७,२०, वीं मात्रा लघु हो
. __भारत लगे सुहाना__
पावन रहे सदा ही धारा नदी बहे तो।
सावन रहे धरा पर मानव श्रमी रहे तो।
सूरज करे प्रकाशित भू को कृपा विधाता।
मौसम सदा सुवासित भावन लगे सुहाता।
धरती सदा सुहागिन लगती रहे हरी तो।
जननी रहे सपूती अपनी हरी भरी तो।
भारत लगे सुहाना वीरों तुम्ही भरोसे।
आरत मिटा भगाओ धीरों खुशी परोसें।
सीमा बने सुरक्षित अपनी भुजा उठाओ।
दुश्मन रहे सशंकित ऐसी जुगत बिठाओ।
मानव बने विचारक ज्ञानी सहज सनेही।
शासन सरल स्वतंत्र हमारा निभे विदेही।
. -------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१२. बिहारी छंद
विधान:-- २२ मात्रा प्रति चरण
१४,२२वीं मात्रा पर यति
५,६,११,१२,१७,१८ वीं मात्रा लघु हो।
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
__नटवर नागर मेरे__
हे कृष्ण तुम्ही हो नटवर, नागर मेरे।
मैं शरण तुम्हारी गिरधर, प्रेम चितेरे।
हे श्यामल मीरा बन कर, गीत सुनाऊँ।
राधे बन श्याम बिलखकर, मीत बनाऊँ।
हूँ द्रुपद सुता सा भय मय, चीर बढाओ।
मैं गरल सनेही पथ पर,अमिय पिलाओ।
हे नाथ सुदामा द्विज दर, मीत निभाना।
यह ठीक नहीं यूँ दर दर, भीख मँगाना।
मैं भक्ति विलासी कविजन, नेह रचाता।
ले कलम कबीरा सत पथ, छंद बनाता।
हे पार्थ सखे हे गुरु वर, स्वप्न् बिहारी।
ले प्राण भले ले तन धन, 'विज्ञ' विचारी।
. ----------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१३. कुण्डलिनी छंद
. (विषम मात्रिक)
विधान:-- २४ मात्रा प्रति चरण
दोहा + अर्द्ध रोला
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
छंद के आदि का शब्द अंत में हो।
. राजा
. °°°°°°°
राजा रजवाड़े सभी , राजतंत्र अंग्रेज!
शाह सल्तनत रानियाँ, हुए आज निस्तेज!
हुए आज निस्तेज, हटे था समय तकाजा!
जीवित सभी निशान, शान से रहते राजा!
राजा लड़ते थे सदा, रही फूट में लूट!
लाभ उठाते गैर थे, नीति विदेशी कूट!
नीति विदेशी कूट, बजाते अपना बाजा!
टला नहीं दुर्भाग्य, लड़े अब भी नव राजा!
. __भोला__
भँवरे भामा भामिनी, भंग भजन भगवान!
भाव भलाई भावना, भावुक भले भवान!
भावुक भले भवान, यथा मति जीवन सँवरे!
भाग्य भरोसे भास, भ्रमें मत मानस भँवरे!
. °°°°°°°°°°°
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१४. निश्चल छंद
. (सम मात्रिक)
विधान :-- २३ मात्रा प्रति चरण
१६,२३ वीं मात्रा पर यति
चरणांत २१ गुरु लघु हो
चार चरण, दो दो समतुकांत
. भोर
. ---------
भोर काल जल्दी उठ भाई, बिस्तर छोड़।
आलस मत खोवे तरुणाई, मानस मोड़।
जग कर नमन करो तुम धरती, माता मान।
दूजा नमन पिता अरु जननी, हैं अरमान।
नीर नवाया पी भर लोटा, हितकर पान।
श्वाँस कभी मत लेना छोटा, यह लो जान।
शौच क्रिया कर मंजन करना, साथी नित्य।
तन में आलस कभी न भरना,भर आदित्य।
आसन बैठ कलेवा करना, घर का शुद्ध।
दैनिक जीवन हेतु सँवरना, जैसे युद्ध।
सत्य अहिंसा रखना मन में, पावन प्रीत।
अवगुण दूर रखो जीवन में, सुन लो मीत।
. ------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१५. शंकर छंद
विधान :-- २६ मात्रा प्रति चरण
१६,२६ वीं मात्रा पर यति
चरणांत गुरु लघु ( २१ )
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __मानव मानस पशु में अंतर__
शिक्षा जीवन का है मोती, सत्य सुन मनमीत।
सबको आवश्यकता होती, मित्र गाओ गीत।
मानव मानस पशु मे अंतर, विज्ञ कर पहचान।
शिक्षा से बढ़ रहा निरंतर, सिद्ध भव विज्ञान।
शिक्षा से जनजीवन सँवरे,सिंधु शोध विधान।
बिन शिक्षा के भटके भँवरे, बिना पंख उड़ान।
रोजगार के अवसर मिलते, योग्य युवको हेतु।
शिक्षा से सरोज मन खिलते, सिंधु बाँधे सेतु।
आज समस्या बेरुजगारी, बनी यह विकराल।
आलस ने सब बात बिगारी, पूत खोए काल।
शिक्षा सहित बने श्रमजीवी, श्वेद चमके भाल।
नर दोनों बिन बन परजीवी, विज्ञ बाबू लाल।
. ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१६. पदपादाकुलक छंद
विधान-- १६ मात्रा प्रति चरण
आदि में द्विकल अनिवार्य है
चार चरण, दो-दो समतुकांत
__पाँचों पूज्या पावन माई__
प्रात: नमन मात को करना।
धरती गौ माँ सम आचरना।
माँ धरती सम धरती माँ सम।
मन से वन्दन करना हर दम।
गौ माता भी मात सरीखी।
बचपन से ही हमने सीखी।
माँ गंगा है पतिता पावन।
यमुना सबको हृदयाभावन।
शारद माता विद्या देती।
तम अज्ञान सभी हर लेती।
पाँचो पूज्या पावन माई।
शर्मा 'विज्ञ' छंद मय गाई।
. ------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१७. जयकरी / चौपई छंद
विधान:-- १५ मात्रा प्रति चरण
चरणांत में गुरु लघु २१ हो
चार चरण दो-दो समतुकांत हो
. __मनभावन प्रीत__
. .....
सावन मास पुन्य मनमीत।
मोर पपीहा दादुर गीत।
नभ में छाएँ बादल श्याम।
रिमझिम वर्षा प्रात: शाम।
पूजे कनक चढ़ा जल आक।
मूर्ति शिंभु सेवक नित ताक।
झूलन चाह कुमारी पींग।
याद रहे नट कान्हा धींग।
हर्षित कृषक बावरे खेत।
भरते गमले पौधे रेत।
सर सरिता वन बाग तलाव।
नीर भार खुशहाली बाव।
प्रियतम से मिलने की होड़।
जड़ चेतन तट बंधन तोड़।
सावन पावन वर सुख रीत।
भक्ति शक्ति मनभावन प्रीत।
. ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१८. पादाकुलक छंद
विधान:-- १६ मात्रा प्रति चरण
चार चौकल हों, त्रिकल वर्जित
चार चरण, दो-दो समतुकांत
__पालीथिन के खतरे__
क्या देखोगे दिन में तारे।
पाँलीथिन के खतरे भारे।
पालीथिन बढ़ता धरती पर।
मैं कहना चाहूँ विनती कर।
गौ माता अपनी माता है।
कहना ही सबको आता है।
आवारा सड़को पर डोले।
कचरा पालीथिन पर टोले।
भारत माँ धरती को कहते।
कैसे अपमानों को सहते।
व्यापित है हर नद रेती में।
पालीथिन ज्यो फल खेती में।
----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१९. शुद्ध गीता छंद
विधान:-- २७ मात्रा प्रति चरण
१४,२७ वीं मात्रा पर यति
आदि में २१ होता है।
३,१०,१७,२४,२७ वीं मात्रा लघु रहे।
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
. __मिलन मीत__
. १
भोर कुहासा ऋतु शीतल,
तैर रहे घन दल मेह।
बाग बगीचे विमल बनें,
वन तरु जाने नभ नेह।
तृषित पपीहा तप भीषण,
बोल मेह के हित शोर।
पावस समझे विपद इसे,
कोयल कामी जन चोर।।
. २
चाह फूल से मन मेले,
मन भँवरे हर नर देह।
पंथ निहारे मिलन मीत,
याद करे सब हिय गेह।।
रीत बसंती विपद सहे,
सावन सिमटे नम नैन।
विरह कोकिला कुहुक रही,
'विज्ञ' मानसिक तज चैन।
. ~~~~
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
२०. सारस छंद
विधान :-- २४ मात्रा प्रति चरण
१२,२४ वीं मात्रा पर यति
आदि में विषम कल हो
३,४,९,१०,१५,१६,२१,२२ वीं
मात्रा अनिवार्यतः लघु हो।
. धूप सहे यौवन भी
. °°°°°°°
. १
धूप दुपहरी चुभती,
पकती फसलें झरती।
शाम सुबह ये मधु सी,
नष्ट विषाणू करती।
माह फरवरी लगते,
मंद पछुवात चलती।
धूप सहे यौवन भी,
फसल तपे से पकती।
. २
धूप खिले कलियाँ भी,
फूल तितलियाँ चखती।
चमक पलाश चमकती,
नारि विरह में तकती।
फसल पकेगी तप सह,
तन मन रंग सरगमी।
फाग मय राग जलती,
यौवन होली गरमी।
. °°°°°°°°°°
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
२१. मुक्तक
विधान:- सम मात्रिक
किसी भी छंद आधारित या मापनी आधारित चार चरण की रचना।
चारों चरण में मात्रा भार समान हो।
१,२,४,चरण समतुकांत हो जबकि तृतीय चरत अतुकान्त हो
. __विधाता छंद मुक्तक__
. __सपूतों की सदा जय हो__
विदेशी, राजतंत्री निज, फिरंगी तंत्र ढोने तक।
गुलामी की निशानी से, वतन आजाद होने तक।
धरा को *लाल* कर दी थी, सपूतों ने लहू से ही।
नही झिझकी महा माता, करोड़ों पूत खोने तक।
तिरंगा जा रहा नभ तक,झलक लगती रुहानी है।
शहीदों की बदौलत ही, विरासत की कहानी है।
करोडों *लाल* खोए तब, हुए आजाद हम साथी।
शहादत की इबादत में, अमानत यह बचानी है।
सिपाही देश के सैनिक, जवानों की सदा जय हो।
हमारे अन्न दाता की, किसानों की सदा जय हो।
किये आजाद निज सिर वे,वतन आजाद होने को।
शहीदों के पिताओं की, सपूतों की सदा जय हो।
शहीदों की चिताओं पर, यही सौगंध ले लेना।
रखें हम मान भारत का, यही सौगात दे देना।
पड़ोसी हो, पराया हो, नहीं भू इंच भर देंगे।
जमाने को यही साथी, सदा पैगाम कह देना।
. -------+-------
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
२२. रोला छंद
विधान:-- २४ मात्रा प्रति चरण
विषम चरण-११ मात्रा, चरणांत २१, सम चरण - १३ मात्रा चरणांत २२ वाचिक भार
११पर यति पश्चात त्रिकल हो।
चार चरण, दो-दो समतुकांत
__गीता के उपदेश__
गीता के उपदेश, पार्थ को कृष्ण सुनाते।
अर्जुन त्यागो मोह, सभी तो आते जाते।
रिश्ते नाते नेह, सभी जीवित के नाते।
मृत्यु सत्य सम्बंध, साथ नही कोई पाते।
क्या लाए थे साथ, नहीं लेकर कुछ जाना।
अमर आत्म पहचान, लगे बस जाना आना।
सभी ईश मुख जाय, निकलते सभी वहाँ से।
करते रहो सुकर्म, ईश दें सुफल यहाँ से।
लगे धर्म को हानि, अवतरे ईश धरा पर।
संतो हित सौगात, मरे सब दुष्ट सरासर।
उठो पार्थ तत्काल, धर्म हित करो लड़ाई।
करो पूर्ण कर्तव्य, भावि में मिले बड़ाई।
धरा मिटे संताप, अधर्मी पापी मारो।
सत्य धर्म हित मान, कौरवी दल संहारो।
समझो सब को मर्त्य,मिले अमरत्व मनुजता।
सृष्टि चक्र सु विचार,मिटे बल सोच दनुजता।
. ---------+---------
©~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
२३. कुण्डलिया छंद
विधान-- २४ मात्रा प्रति चरण
एक दोहा+ एक रोला
६ चरण का छंद है, दो-दो समतुकांत हो।
जिस शब्द से प्रारंभ हो उसी से अंत हो।
__ऋतु बासंती प्रीत__
आता है ऋतुराज जब,चले प्रीत की रीत।
तरुवर पत्ते दान से, निभे धरा-तरु प्रीत।
निभे धरा-तरु प्रीत, विहग चहके मनहरषे।
रीत प्रीत मनुहार, घटा बन उमड़े बरसे।
शर्मा बाबू लाल, सभी को मदन सुहाता।
जीव जगत मदमस्त, बसंती मौसम आता।
भँवरा तो पागल हुआ, देख गुलाबी फूल।
कोयल तितली बावरी, चाह प्रीत, सब भूल।
चाह प्रीत,सब भूल, नारि-नर सब मन महके।
चाहे पुष्प पराग, काम हित खग मृग बहके।
शर्मा बाबू लाल, मदन हित हर मन सँवरा।
विरह-मिलन के गीत, सुने सब गाता भँवरा।
चाहे भँवरा पुष्परस, मधुमक्खी मकरंद।
सबकी अपनी चाह है, हे बादल मतिमंद।
हे बादल मतिमंद, बरस मत खारे सागर।
रीत प्रीत की ढूँढ, धरा मरु खाली गागर।
बासंती मन *लाल*,भरो मत विरहा आहें।
कर मधुकर सी प्रीत, चकोरी चंदा चाहे।
. --------+-------
©~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
२४. विधाता छंद
विधान-- २८ मात्रा प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
मापनी १२२२ १२२२, १२२२ १२२२
__प्रार्थना__
सुनो ईश्वर यही विनती, यही अरमान परमात्मा।
मनुजता भाव हो मुझमें,बनूँ मानव सुजन आत्मा।
रहूँ पथ सत्य पर चलता, सदा आतम उजाले हो।
करूँ इंसान की सेवा, इरादे भी निराले हो।
गरीबों को सतत ऊँचा, उठाकर मान दे देना।
यतीमों की करो रक्षा, भले अरमान दे देना।
प्रभो संसार की बाधा, भले मुझको सभी देना।
रखो ऐसी कृपा ईश्वर, मुझे अपनी शरण लेना।
सुखों की होड़ में दौड़ूँ, नहीं मन्शा रखी मैने।
उड़े आकाश में ऐसे, नहीं चाहे कभी डैने।
नहीं है मोक्ष का दावा, विदाई स्वर्ग तैयारी।
महामानव नहीं बनना, कन्हैया लाल की यारी।
रखूँ मैं याद मानवता, समाजी सोच हो मेरी।
रचूँ मैं छंद मानुष हित, करूँ अर्पण शरण तेरी।
करूँ मैं देश सेवा में, समर्पण यह बदन अपना।
प्रभो अरमान इतना सा, करो पूरा यही सपना।
यही है प्रार्थना मेरी, सुनो अर्जी प्रभो मेरी।
नहीं विश्वास दूजे पर, रही आशा सदा तेरी।
. -----------
©~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
२५. सरसी छंद
विधान
१६ + ११ मात्रा ,पदांत २१(गाल)
चौपाई+दोहा का सम चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
__हम तुम छेडें राग__
बीत बसंत होलिका आई, अब तो आजा मीत।
फाग रमेंगें रंग बिखरते, मिल गा लेंगे गीत।
खेत फसल सब हुए सुनहरी, कोयल गाये फाग।
भँवरे तितली मन भटकाएँ, हम तुम छेड़ें राग।
घर आजा अब प्रिय परदेशी, मैं करती फरियाद।
लिख कर भेज रही मैं पाती, रैन दिवस की याद।
याद मचलती पछुआ चलती, नही सुहाए धूप।
बैरिन कोयल कुहुक दिलाती, याद तेरे मन रूप।
साजन लौट प्रिये घर आजा, तन मन चाहे मेल।
जलता बदन होलिका जैसे, चाह रंग रस खेल।
मदन फाग संग बहुत सताए, तन अमराई बौर।
चंचल चपल गात मन भरमें, सुन कोयल का शोर।
निंदिया रानी रूठ रही है, रैन दिवस के बैर।
रंग बहाने से हुलियारे, खूब चिढ़ाते गैर।
लौट पिया जल्दी घर आना, तुमको मेरी आन।
देर करोगे, समझो सजना, नहीं बचें मम प्रान।
. ---------+--------
©~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
२६. सार छंद
विधान-- २८ मात्रा प्रति चरण
(१६,१२ मात्राएँ) चरणांत मे गुरु गुरु
( २२,२११,११२,या ११११)
. __नेह नीर मन चाहत__
ऋतु बसंत लाई पछुआई, बीत रही शीतलता।
पतझड़ आए कुहुके,कोयल,विरहा मानस जलता।
नव कोंपल नवकली खिली है,भृंगों का आकर्षण।
तितली मधु मक्खी रस चूषक,करते पुष्प समर्पण।
बिना देह के कामदेव जग, रति को ढूँढ रहा है।
रति खोजे निर्मलमनपति को,मन व्यापार बहा है।
वृक्ष बौर से लदे चाहते, लिपट लता तरुणाई।
चाह लता की लिपटे तरु के, भाए प्रीत मिताई।
कामातुर खग मृग जग मानव, रीत प्रीत दर्शाए।
कहीं विरह नर कोयल गाए, कहीं गीत हरषाए।
मन कुरंग चातक सारस वन, मोर पपीहा बोले।
विरह बावरी विरहा तन मे, मानो विष मन घोले।
विरहा मन गो गौ रम्भाएँ, नेह नीर मन चाहत।
तीर लगे हैं काम देव तन, नयन हुए मन आहत।
काग कबूतर बया कमेड़ी, तोते चोंच लड़ाते।
प्रेमदिवस कह युगल सनेही, विरहा मनुज चिढ़ाते।
मेघ गरज नभ चपला चमके, भू से नेह जताते।
नीर नेह या हिम वर्षा कर, मन का चैन चुराते।
शेर शेरनी लड़ गुर्रा कर, बन जाते अभिसारी।
भालू चीते बाघ तेंदुए, करे प्रणय हित यारी।
पथ भूले आए पुरवाई, पात कली तरु काँपे।
मेघ श्याम भंग रस बरसा, यौवन जगे बुढ़ापे।
रंग भंग सज कर होली पर,अल्हड़ मानस मचले।
रीत प्रीत मन मस्ती झूमें,खड़ी फसल भी पक ले।
नभ में तारे नयन लड़ा कर, बनते प्रीत प्रचारी।
छन्न पकैया छन्न पकैया, घूम रही भू सारी।
. ------+------
©~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
२७. आल्हा/वीर छंद
विधान:-- १६,१५ ,पर यति कुल ३१ मात्रा
मात्रिक छंद ,दो पंक्तियों मे
तुकांत गुरु लघु
. __हल्दीघाटी समर__
हल्दीघाटी समरांगण में,सेना थी दोनो तैयार।
मुगलों का भारी लश्कर था,इत राणा,रजपूत सवार।
आसफ खाँन बदाँयूनी भी,लड़ते समर मुगलिया शान।
शक्ति सिंह भी बागी होकर,थाम चुका था मुगल मचान।
राणा अपनी आन बान की,रखते आए ऊँची शान।
मुगलों की सेना से उसने,कीन्हा युद्ध बड़ा घमसान।
सूरी हाकिम खान दागता,तोपें गोले बारम्बार।
तोप सामने जो भी आते,मुगलों की होती बरछार।
तोप धमाके भील लड़ाके,मुगल अश्व हाथी बदकार।
मानसिंह बेचैन हो गया,उत काँपे अकबर दरबार।
राणा घायल थकित समर में,चेतक होता लहूलुहान।
झाला मान वंश बलिदानी,आया बीच समर में मान।
आन बान को खूब निभाया,चेतक स्वामिभक्त बलवान।
राणै नैन मेघ से झरते,चेतक सखा वीर वरदान।
युद्ध विजेता किसको कह दूँ,धर्म विजेता शक्ति प्रताप।
ऐसे वीर हुए जिस भू पर,हरते मातृभूमि संताप।
वन वन भटका था वो राणा,मेवाड़ी रजपूती भान।
हरे घास की रोटी खाकर,रखता मातृभूमि की आन।
धन्य धन्य मेवाड़ी धरती, राणा एकलिंग दीवान।
गढ़ चित्तौड़ उदयपुर वंदन,हल्दीघाटी धरा महान।
मन के भाव शब्द बन जाते, लिखता शर्मा बाबू लाल।
चंदन माटी हल्दीघाटी,उन्नत सिर मेवाड़ी भाल।
जून अठारह सन पन्द्रह सौ,साल छिहेत्तर की है बात।
महाराणा प्रताप प्रतापी,मायड़़ की अनुपम सौगात।
. -------+-----
©~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
२८. मधुमालती छंद
विधान. २२१२, २२१२
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __माँ...जानकी__
.
पद पायलें, अनमोल थी,सिय राम के,मन बोल थी।
दसकंठ ने, हर जानकी,बाजी लगा, दी जान की।
हाः राम जी,प्रभु मान भी,मानी न मैं,वह आन भी।
दशकंठ ली, हर पातकी,दोषी बनी ,निज जानकी।
क्रोधी जटायू था भिड़ा,जाने न दे ,सिय को अड़ा।
सिय राम के,हित मान की,चिंता नहीं , तब जान की।
पथ में लखे,कपि थे भले,पटकी वही,..पद पायलें।
मग शैल वे, पहचान की,मन सोच के,तब जानकी।
वन राम जी, मग डोलते,खोजत फिरे ,मन बोलते।
बजती,सुने,सिय मान की,मन पायले, बस जानकी।
हनुमान जी, द्विज वेष में,प्रभुभक्ति के, परिवेश मे।
प्रभु से कही,अरमान की,वन राम के, मन जानकी।
गिरि पे मिले, सुग्रीव से,मन मीत से, भगवान से।
कहि बंधु के,वरदान की,करि खोजने,प्रण जानकी।
प्रभुराम जी,कहि भ्रात से,लक्ष्मण सुनें,मन ध्यान से।
पायल यही ,क्या जानकी,भैया, क्षमा,मम जान की।
पद पूज्य वे ,पहचान के,रज पूजता ,पद मात के।
पर पायलें, नहि भान की,पदरज नमन,माँ जानकी।
जग मात है, वरदान है,सिय भारती ,पहचान है।
रघु वंश के ,सन् मान की,रघुवर प्रिया,माँ जानकी।
. -------+-----
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
२९. चौपाई छंद
विधान-- १६ मात्रा प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत
चरणांत- २२ वाचिक भार
. __माँ__
एक दंत का नाम उचारूँ। हंस वाहिनी भाव विचारूँ।।
मात पिता गुरुजन की सेवा। शरण रहूँ गौरी गण देवा।।१
प्रात नमन माता को करना। धरती गौ माँ सम आचरना।।
माँ धरती सम धरती माँ सम। मन से वंदन करलें हरदम।।२
गौ माता है मात सरीखी। बचपन से ही हमने सीखी।
माँ गंगा है पतितापावन। यमुना सबको हृदयाभावन।।३
शारद माता विद्या देती। तम अज्ञान सभी हर लेती।।
माँ से बढ़कर नाम न कोई। इस से छोटा शब्द न होई।।४
प्रथम गुरू कहलाती माता। ईश्वर तुल्य जन्म नर पाता।।
माँ है त्याग क्षमा की मूरत। देखी प्रथम उसी की सूरत।।५
माँ तक ही खुशियों का मेला। माँ जाए मन हुआ अकेला।।
माँ की महिमागान असंभव। करले सेवा तो सब संभव।।६
ईसा ईश्वर पीर संत वर। माँ के उदर पले धरनी पर।।
प्रसव काल लख संकट भारी। धरती गर्भ सृष्टि संचारी।।७
तन मन सुख न्यौछावर करती। सारे दुख सहती सम धरती।।
भूख प्यास सुख चैन भुलाती। पहले निज शिशु कौर खिलाती।।८
जन व्यवहारी शिक्षा देती। संतति हित जग से लड़ लेती।।
माँ हमको आजीवन सहती। संतति हित सब बातें कहती।।९
भारत माता हमको प्यारी। वस्त्र तिरंगा शुभ तनधारी।।
धन्य जन्म मानस जो पाए। माता वृद्धाश्रम क्यों जाए।।१०
ममता त्याग प्रेम की सूरत। दया भावना माता मूरत।
शर्मा बाबू लाल दुहाई। माँ पितु को अर्पित चौपाई।।११
. -------+-----
©~~~~~~~~~~~`बाबूलालशर्मा
३०. ताटंक छंद
विधान-- ,३० मात्रा प्रति चरण
१६,१४, मात्रिक छंद,चरणांत में,
तीन गुरु (२२२) अनिवार्य है।
दो, दो चरण समतुकांत हो।
चार चरण का एक छंद होता है।
. __दीप शिखा__
. (रानी झांसी से प्रेरणा )
सुनो बेटियों जीना है तो,शान सहित,मरना सीखो।
चाहे, दीपशिखा बन जाओ,समय चाल पढ़ना सीखो।
रानी लक्ष्मी दीप शिखा थी,तब वह राज फिरंगी था।
दुश्मन पर भारी पड़ती पर,देशी राज दुरंगी था।
बहा पसीना उन गोरों को,कुछ द्रोही रजवाड़े में।
हाथों में तलवार थाम मनु,उतरी युद्ध अखाड़े में।
अंग्रेज़ी पलटन में उसने,भारी मार मचाई थी।
पीठ बाँध सुत दामोदर को,रण तलवार चलाई थी।
अब भी पूरा भारत गाता,रानी वह मरदानी थी।
लक्ष्मी, झाँसी की रानी ने, लिख दी अमर कहानी थी।
पीकर देश प्रेम की हाला,रण चण्डी दीवानी ने।
तुमने सुनी कहानी जिसकी,उस मर्दानी रानी ने।
भारत की बिटिया थी लक्ष्मी,झाँसी की वह रानी थी।
हम भी साहस सीख,सिखायें,ऐसी रची कहानी थी।
दिखा गई पथ सिखा गई वह,आन मान सम्मानों के।
मातृभूमि के हित में लड़ना,जब तक तन मय प्राणों के।
.
नत मस्तक मत होना बेटी,लड़ना,नाजुक काया से।
कुछ पाना तो पाओ अपने,कौशल,प्रतिभा,माया से।
स्वयं सुरक्षा कौशल सीखो,हित सबके संत्रासों के।
दृढ़ चित बनकर जीवन जीना, परख आस विश्वासों के।
.
मलयागिरि सी बनो सुगंधा,बुलबुल सी चहको गाओ।
स्वाभिमान के खातिर बेटी,चण्डी ,ज्वाला हो जाओ।।
तुम भी दीप शिखा के जैसे,रोशन तमहर हो पाओ।
लक्ष्मी, झांसी रानी जैसे,पथ बलिदानी खो जाओ।
बहिन,बेटियों साहस रखना, मरते दम तक श्वांसों में।
रानी झाँसी बन कर जीना, मत आना जग झाँसों में।
बचो,पढ़ो तुम बढ़ो बेटियों,चतुर सुजान सयानी हो।
अबला से सबला बन जाओ, लक्ष्मी सी मरदानी हो।
दीपक में बाती सम रहना,दीपशिखा, ज्वाला होना।
सहना क्योंं अब अनाचार को,ऐसे बीज धरा बोना।
नई पीढ़ियाँ सीख सकेंगी,बिटिया के अरमानों को।
याद रखेगी धरा भारती,बेटी के बलिदानों को।
शर्मा बाबू लाल लिखे मन,द्वंद छन्द अफसानों को।
बिटिया भी निज ताकत समझे,पता लगे अनजानों को।
बिटिया भी निजधर्म निभाये,सँभले तज कर नादानी।
बिटिया,जीवन में बन रहना,लक्ष्मी जैसी मर्दानी।
. ----+----
©~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
३१. शिव छंद
विधान-
. ११ मात्रा प्रति चरण
३,६,९, वीं मात्रा लघु अनिवार्य
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
__मानस मतदान हो__
देश राग कामना।
शुद्ध भाव भावना।
आन बान शान हो।
मानस मतदान हो।
जन्म भूमि भारती।
नित्य सत्य आरती।
वीरवर गुमान हो।
मानस मतदान हो।
वतन में अमन रहे।
शांति की मलय बहे।
संविधान मान हो।
मानस मतदान हो।
रीत प्रीत की निभे।
मीत गीत गा शुभे।
गर्व राष्ट्र गान हो।
मानस मतदान हो।
. -----+----
~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
३२. गीता छंद
विधान-
. २६ मात्रा प्रति चरण
२२१२ २२१२ २२१२ २२१
१४,१२ पर यति,
चार चरण, दो-दो पद समतुकांत
. " पंछी पिया कलरव करे "
होली मचे फागुन रमें, फसलें रहे आबाद।
पंछी पिया कलरव करे, उड़ते फिरे आजाद।
मैं तो हुई बेचैन हूँ, मिलने तुम्हे पिव आज।
आओ प्रिये फागुन चला,अबतो सँवारो काज
फसलें पकी हैं झूमती,मिलके करें खलिहान।
सखियाँ सभी है खेलती, बिगड़े हमारी शान।
आजा विदेशी पाहुने, खेलें स्वदेशी रंग।
साजन हमारे साथ हों, फरके पिया मम अंग।
कोयल सनेही बोलती,लागे अगन सुन गीत।
ये रंग भँवरे फूल पर, वह राग भी सुन मीत।
फागुन सनेही मीत है, तू मान मेरी बात।
कैसे बताऊँ भोर की, जो बीतती है रात।
कब तक निहारूँ बाट मैंं, साजन बने बे पीर।
नदिया बनीे आँखे बहे, अब पीव हम दो तीर।
मिलना लिखे हो भाग्य में,होली निहारूँ बाट।
कैसे मिलूँ मै जीवती, पकड़ी मनो हूँ खाट।
,. -----+---
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
३३. तंत्री छंद
विधान- प्रतिचरण ३२ मात्रायें
८,८,६,१० मात्रा पर यति
चरणांत २२, चार चरण
दो दो चरण समतुकांत।
. " नयन तीसरा नही खोलना "
हे कैलाशी , घट घट वासी,
मन मेरा ,दर्शन अभिलाषी।
हे शिव शंकर , प्रलयंकारी,
तांडव कर,भोले अविनाशी।
डमरू वाले , गौरी शंकर,
कर त्रिशूल, बाघम्बर धारी।
हे,जगपालक, जगसंहारक,
भूतनाथ, शिव मंगलकारी।
कंठ हार में, नाग सोहते,
नीलकंठ, भोले त्रिपुरारी।
जटाजूट सिर, चन्द्र गंग है,
भंग विल्व, संगत आहारी।
हे परमेश्वर , करता सेवा,
विनती सुन, ले नाथ हमारी।
दुष्टदलन कर,भक्तों के हित,
निर्मल जग,देना अविकारी।
नयन तीसरा, नहीं खोलना,
समय नहीं, देवा आया है।
सृष्टि हमारी ,कृपा आपकी,
चलने दो, प्रभु की माया है।
ध्यान रखों प्रभु,ध्यान लगाते,
उत्तम पथ, मानव मन धारें।
अन्यायी अरु, आतंकी के,
सम्मुख प्रभु,हम कभी न हारे।
. ------+-----
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
३४.. सोरठा छंद
विधान-
सोरठा चौबीस मात्रिक छंद है। चार चरण होते हैं।
दोहे से उलट - विषम चरण ११ मात्रिक और सम चरण १३ मात्रिक होते हैं।
विषम चरण समतुकांत हो,चरणांत २१ गुरु लघु अनिवार्य है।
सम चरणांत २१२ गुरु लघु गुरु हो।
. 'सोरठा सृजन'
पटल करे सम्मान, नये सृजक आवें भले।
१११ १२ २२१, १२ १११ २२ १२
एक यही अरमान, सीखें हिन्दी हिन्द हित।
२१ १२ ११२१, २२ २२ २१ ११
लिखूँ सोरठा छंद, शारद माता ज्ञान दे।
रहा अभी मतिमंद, शर्मा बाबू लाल तो।।
आओ मिलकर साथ, पुण्यपटल पर सीखलें।
कलम बढ़ाओ हाथ, लिखें छंद सोरठ सखे।।
दोहे से विपरीत, विषम चरण समतुक रखो।
लिखें छंद हे मीत, कठिन नहीं सोरठ सृजन।।
चौबिस मात्रिक छंद, ग्यारह तेरह गिन लिखें।
मीत विषम चरणांत, समतुकांत भावन भरे।।
. "दोहा-सोरठा-दोहा सम्बंध
दोहा-
सीखें साथी से अमित, कृपा करें नंदलाल।
चाहत सोरठ सीखना, शर्मा बाबू लाल।।
सोरठा-
कृपा करें नंदलाल, सीखें साथी से अमित।
शर्मा बाबू लाल, चाहत सोरठ सीखना।।
. -----+----
©~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
३५. दोहा छंद
विधान - २४ मात्रा १३+११
विषम चरण १३ मात्रा, चरणांत २१२
सम चरण ११ मात्रा, चरणांत २१
. " जीवन है अनमोल "
.
दुर्लभ मानव देह जन, सुनते कहते बोल।
मानवता हित 'विज्ञ' हो, जीवन है अनमोल।।
धरा जीव मय मात्र ग्रह, पढ़े यही भूगोल।
सीख 'विज्ञ' विज्ञान लो, जीवन है अनमोल।।
मानव में क्षमता बहुत, हिय दृग देखो खोल।
व्यर्थ 'विज्ञ' खोएँ नहीं, जीवन है अनमोल।।
मस्तक 'विज्ञ' विचित्र है,नर निजमोल सतोल।
खोल अनोखे ज्ञान पट, जीवन है अनमोल।।
'विज्ञ' सत्य ही बोलिए, वाणी में मधु घोल।
जन हितकारी सोच रख, जीवन है अनमोल।।
थिर रख 'विज्ञ' विचार को,वायुवेग मत डोल।
शोध सत्य निष्कर्ष ले, जीवन है अनमोल।।
'विज्ञ' होड़ मन भाव से, रण के बजते ढोल।
समरस हो उपकार कर, जीवन है अनमोल।।
कठिन परीक्षा है मनुज,खेल समझ मत पोल।
सजग 'विज्ञ' कर्तव्य पथ, जीवन है अनमोल।।
कर्तव्यी अधिकार ले, करिए कर्म किलोल।
देश हितैषी 'विज्ञ' बन, जीवन है अनमोल।।
दीन हीन दिव्यांग की, कर मत 'विज्ञ' ठिठोल।
सबको शुभ सम्मान दो, जीवन है अनमोल।।
'विज्ञ' छंद दोहे गज़ल, शब्दों की रमझोल।
शर्मा बाबू लाल यह, जीवन है अनमोल।।
. ------+-----
©~~~~~~~~~,~~~~~बाबूलालशर्मा
३६.. रास छंद
विधान-- २२ मात्रा प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत
( शिल्प:- ८+८+ ६ चरणांत--१ १ २ )
. __पर्यावरण विषयक__
.
पेड़ लगाले, पुण्य कमाले, धीर पथी,
धरती अंबर, शुद्ध रहेगा, रश्मि रथी।
सागर-नदियाँ,ताल-तलैया,उज्ज्वल हो,
मानुष प्राणी, प्राकृत वायू, निर्मल हो।।
.
स्वच्छ हवा हो,पावन जल हो,अमल सभी,
पेड़ लगायें, तरु रखवारे, सँभल अभी।
धरा सुरक्षा, सब की रक्षा , मदद करो,
पर्यावरणन, हो संरक्षण, सनद करो।।
.
ओजोन परत,विकिरण नाशी,कवच बड़ा,
उत्तर प्रहरी, हिमगिरि,ऊँचा, अटल खड़ा।
गंगा , यमुना , नर्मद सलिला, सरित बहे,
हो संरक्षण, वचन विनय के, सहित कहे।।
.
अपनी धरती, सागर अंबर, तरु नदियाँ,
अपनी खेती, फसलें होंगी, शत सदियाँ।
सब का तन मन ,हो संजीवन, रोग हरें,
जल, वायु ,धरा, नहीं प्रदूषण, लोग करें।।
. ~~~~~
©~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
.
३७. पुनीत छंद
विधान:- १५ मात्रिक
चार चरण
दो दो चरण समतुकांत
चरणांत ~२२१
. ~~~
. लिख कवि......
. ~~~~~
मीत सुनो प्रिय रचनाकार,
कविता को दें नव आकार।
लिख कवि देशधरा के गान,
मात भारती हित के मान।
लिखना पहले सीना तान,
जय जवान,भारत सम्मान।
पीर किसानी लिखना मीत,
जय विज्ञान निभाती प्रीत।
देश प्रेम रचना संगीत,
इंकलाब मत वाले गीत।
जोश जगाने वाले नाद,
लिखने भगतसिंह आजाद।
लिखना प्यारे रचनाकार,
वीर सपूतो का आभार।
संविधान संसद आवाम,
नई चेतना , नव आयाम।
बिटिया के हित में आवाज,
शिक्षा का हो नव आगाज।
गुरबत संग वतन ईमान,
लिखना देश भक्ति के गान।
लिखना कवि नूतन संवाद,
बच्चों के लिखना आल्हाद।
तोप सामने पाकिस्तान,
लिख मेरे दिल हिन्दुस्तान।
• °°°°°°
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
.३८. त्रिभंगी छंद
विधान- १०,८,८,६ कुल ३२ मात्रा
पदांत गुरु ,जगण रहित,
दो पद सम तुकांत,
प्रथम,द्वितीय चरण समतुकांत
. ------------
. __भारत वंदन__
जय भारत वंदन,जन अभिनंदन,
सैनिक सीमा, रखवाला।
जहँ बहती गंगा, शान तिरंगा,
देश हमारा, मतवाला।
सबकी अभिलाषा, हिन्दी भाषा,
संविधान है, अरमानी।
हम शीश नवाते, वंदन गाते,
भारत माता, सन मानी।
जय हिन्दुस्तानी,रीत सुहानी,
मात भारती,भयहारी।
सागर पद परसे,जन मन हरषे,
लोकतंत्र जन, सुखकारी।
इतिहास पुराना,सब जग जाना,
विश्व गुरू जो,कहलाता।
था स्वर्ण पखेरू,गिरिय सुमेरू,
रजकण जन शुभ,फल दाता।
गंगा अति पावन,जन मन भावन,
यमुना भावे, नद सारी।
बह निर्मल धारा, कूल किनारा,
तीरथ दर्शन, त्रिपुरारी।
हिमगिरि है अविचल,गिरि विन्ध्याचल,
मुकुट मेखला,शुभकारी।
मिट्टी बलिदानी,अमर कहानी,
वतन हिफाजत, हितकारी।
रह वतन सलामत, करें इबादत,
जन गण मंगल, सुखदायी।
मम मात भारती,करें आरती,
मातृभूमि हे, शुभदायी।
खेती लहराती,वर्षा गाती,
जय किसान धन, उप जाए।
वन बाग सुहाने, कलरव ताने,
कोयल मैना ,स्वर गाए।
. -----+----
©~~~~~~~~~~~~~`~बाबूलालशर्मा
३९. . विजात छंद
विधान--
१२२२ १२२२ (१४ मात्रिक)
. .........
मनेंगी होलिका फिर से
. ●●●●●
गुलाबी रंग फूलों में।
सजा है संग शूलो में।
सजे ये ओस के मोती।
धरा अहसास के बोती।
कहें ऋतु फाग होली की।
हवाएँ गीत बोली की।
दहकना है पलाशों का।
गया मौसम हताशों का।
प्रकृति सौगात देती हैं।
धरा उपहार लेती है।
तभी तो रीति होली हो।
सही मन प्रीत भोली हो।
मिलेंगे कृषक खेतों में।
खिलें फसलें चहेतों में।
परीक्षा छात्र अब देते।
मिले जो कर्म फल लेते।
सुहानी याद रह जाती।
बसंती याद बस आती।
पड़ेगा ताप जब आगे।
सभी रौनक लगे भागे।
रहेगी छाँव की चाहत।
मिलेगी नीर से राहत।
करें बस याद यादों की।
सुहाने प्रीत वादों की।
रहेंगे याद हम जोली।
बने जो मीत इस होली।
तिरंगा मान के खातिर।
मिलेंगे मीत हम हाजिर।
पुरानी बीत जाएगी।
नई ऋतु साल लाएगी।
घटाएँ लौट आएँगी।
बहारें फाग गाएगी।
मनेंगी होलिका फिर से।
चलेंगी टोलियाँ घर से।
निराशा क्यों रहे मन में।
भरें आशा सभी जन में।
. •••••
©~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
४०. कुण्डल छंद
विधान-- २२मात्रिक छंद--१२,१० मात्रा पर यति,
यति से पूर्व व पश्चात त्रिकल अनिवार्य,
चरणांत में गुरु गुरु (२२)
दो दो चरण समतुकांत हो।
चार चरण का एक छंद कहलाता है।
..... ------
नीर नेह हारा
. ......
जल ने आबाद किया,सुने है कहानी।
जीवन विधाता बंधु , रीत रहा पानी।
पानी बर्बाद किया, भावि नहीं देखे।
पीढ़ी आज कह रही, कौन देय लेखे।
खोज रहा नीर धीर, मान मानवो में।
खो गया है जो आज,राम दानवों में।
सूख रहे झील ताल ,नदी बाव सारे।
युद्ध से न मान हार, नीर बिन हारे।
सूख गया नैन नीर, पीर देख भारी।
सत्य बात मान मीत,रीत गई सारी।
सिंधु नीर बढ़ रहा, स्वाद याद खारा।
मनुज देख मनुज संग,नीर नेह हारा।
कूप सूख गए नीर, कृषक हताशे है।
नीर देते घट आज, स्वयं पियासे हैं।
नलकूप खोदे नित्य, धरा रक्त खींचे।
मनुज नीर दोउ मीत,नित्य चले नीचे।
सरिताएँ डाल गंद , नीर करें गंदा।
हे मनुज माने मातु , नदी बुद्धिमंदा।
बजरी निकाली रेत,खेत किये खाली।
फूल पौधे खा गये, बाग वान माली।
छेद डाले भू खेत, खोद कूप डाले।
पेड़ नित्य काट रहे, और नहीं पाले।
रेगिस्तान बढ़ रहा, बीत रहा पानी।
कौन फिर तेरी सुने, बोल ये कहानी।
रक्षा कर मीत नीर, जीव जंतु प्यासे।
सारे जल स्रोत रक्ष, देख अब उदासे।
जल बिना जीवन नहीं,सोच बना भाई।
जीवन बचालो बंधु , बात यह भलाई।
. ~~~~
©~~`~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
४१. उडियाना छंद
विधान--
२२मात्रिक छंद--१२,१० मात्रा पर यति,
यति से पूर्व व पश्चात त्रिकल अनिवार्य,
चरणांत में गुरु (२)
दो दो चरण समतुकांत हो।
चार चरण का एक छंद कहलाता है।
..... -----
. __खोज रहा नीर नेह__
. .....
वरुण देव कृपा करे, नीर पीर हरिये।
जल से सब जीव बने,जीव दान करिये।
दोहन मनुज ने किया, रहा जल बीत है।
बिन अंबु कैसे निभे, जीव जग रीत है।
जल ने आबाद किया,सत्य सुने कथनी।
जीवन विधाता बंधु , रीति रही अपनी।
पानी बर्बाद किये, भावि नहीं बचता।
पीढ़ी अफसोस रही, कौन कहाँ रमता।
खोज रहा नीर नेह , मान सम्मान को।
खो रहा है जो आज,नीर वरदान को।
सूख रहे झील ताल ,नदी कूप अपने।
युद्ध से न सके हार, नीर हार सपने।
सूख गया नैन नीर, पीर देख डरते।
सत्य बात मान मीत, रीत प्रीत करते।
सिंधु नीर बढ़ रहा, स्वाद जो खार का।
मनुज देख मनुज संग,नेह जल हार का।
कूप सूख गए नीर, कृषक हताश रहे।
नीर देते घट आज, प्यास खुद ही सहे।
नलकूप खोदे नित्य, रक्त खींच धरती।
मनुज नीर दोउ मीत,नित्य साख गिरती।
नदियों में डाल गंद ,नीर करें गँदला।
हे मनुज माने मातु ,नदी नेह बदला।
बजरी निकाली रेत, खेत रहेे खलते।
फूल पौधे खा गये, बाग लगे जलते।
छेद डाले भू खेत, खोद कूप धरती।
पेड़ नित्य काट रहे, भूमि बने परती।
रेगिस्तान बढ़ रहा, बीत रहा जल है।
कौन फिर तेरी सुने, बोल एक पल है।
रक्षा कर मीत नीर, जीव जंतु तरसे।
सारे जल स्रोत रक्ष, देख मेघ बरसे।
जल बिना जीवन नहीं,सोच बने अपनी।
जीवन बचालो बंधु , बात यही जपनी।
. •••••••
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
४२. पीयूष वर्ष छंद
विधान--
10,9 पर यति प्रति 2 चरण समतुकांत
3, 10, 17 वीं मात्रा लघु अनिवार्य
2 मात्रा भार को 11 लिखने की छूट नहीं
मापनी
2122 2122 212
आज माता भूमि, चाहे वीरता।
शक्ति चाहे भक्ति, चाहे धीरता।
देखलो काश्मीर, घाटी देश की।
मानते है शान, माँ के वेष की।
एकता में शक्ति, भारी जानते।
भारती की आन, को भी मानते।
पाक है नापाक , पापी पातकी।
कर्म से बर्बाद, होता घातकी।
भारती आजाद , ये आबाद हो।
देश के जाँबाज , ये नाबाद हो।
*लाल* ये आजाद, पंछी गान हो।
देश का सम्मान, ऊँची शान हो।
. ---+---
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
४३ एकावली छंद
विधान--- (१०मात्रिक छंद)
५,५ मात्रा पर यति
४ चरण का छंद
२,२ चरण समतुकान्त
. __मुरलिया गीत__
. ........
कृष्ण ले, मुरलिया।
कंध पर,कमलिया।
गुरु कुटी, पढ़ रहे।
स्वप्न नव, गढ़ गृहे।
गुरु सदन, के लिए।
ले चने ,चल दिए।
काटने , लकड़ियाँ।
कृष्ण ले ,मुरलिया।
सुदामा, ले मीत।
बाँसुरी , लय गीत।
वन माँहि , जा रहे।
खग गान, गा रहे।
चमकती,बिजलियाँ।
कृष्ण ले मुरलिया।
श्याम घन ,बरषते।
घन श्याम ,हरषते।
ठंड द्वय ,कँप रहे।
दाँत तक बज रहे।
नेह छल,बदलिया।
कृष्ण ले,मुरलिया।
चने जब, खा रहा।
शीत अति,कह रहा।
दाँत बज रहे सुन।
कृष्ण सिर, रहे धुन।
रीत यह, कन्हैया।
कृष्ण ले , मुरलिया।
छल किया ,छली से।
सखा कह, बली से।
दर्द वह, बन नया।
सालता , बढ़ गया।
मीत वह, भरमिया।
कृष्ण ले मुरलिया।
. ........
©~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
४४. राधेश्यामी छंद (मत्त सवैया)
विधान --
. ३२ मात्राएँ, प्रति चरण
१६,१६ पर यति,चरणांत गुरु ,
दो - दो चरण समतुकांत ।
. __सपने__
. ★★★
हे परमेश्वर हे, मात पिता,
हे मात भारती, दया करो।
घर द्वारे अरु मन मस्तक के,
सब रिक्त कोष अविलम्ब भरो।
हे ईश्वर तुमसे विनती है,
यह जीवन पार लगा देना।
बस शरण आपकी आया हूँ,
इस का अंदाज़ लगा लेना।
इस भारत भू पर जन्म लिया,
बलिदान इसी पर हो जाऊँ।
मानव का जब जन्म दिया तो,
मानवता का धर्म निभाऊँ।
मैं लिखूँ देश की यश गाथा।
इतिहास भले ही हो जाऊँ।
वीर शहीदों के हित प्रभुवर,
मैं वंदन गान सदा गाऊँ।
धरती अम्बर चाँद सितारे,
सागर सरिता बादल अपने।
वन पर्वत अरु वन्य जीव की,
खुशहाली के देखूँ सपने।
. ★★★★
©~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
४५ गगनांगना छंद
विधान---
मापनी मुक्त सम मात्रिक छंद है यह।
१६,९ मात्रा पर यति अनिवार्य चरणांत २१२
दो चरण सम तुकांत,चार चरण का छंद
{सुविधा हेतु चौपाई+नौ मात्रा(तुकांत२१२)}
. __शरद पूनम__
.
सागर मंथन अमरित पाकर,विषघट त्यागते।
अमर हुये सब देव दिवाकर, शिव घट धारते।
सूरज देता दिवस उजाला, ऊर्जा जानिये।
चंद्र चंद्रिका अमरित प्याला, बरसे मानिये।
.
शरद काल की है सूचकता, पूनम आज की।
भोज खीर तन रहे दमकता,सजते साज की।
पथ्य अपथ्य परखना खाना,अमरित खीर है।
मेवा मिश्री चाँवल पय में, सब का सीर है।
.
करता ही रहता हूँ अपने, मन से मंत्रणा।
क्यों देता कब कौन किसी को, ताने यंत्रणा।
बिकते सारे खुले गरल प्रभु, द्वय हर हाट में।
सूर्य शक्ति चंदा अमरित दे, जब दिन रात में।
.
दाता के दर भज गुरु सादर, हरि मनमीत है।
भज हरि भावन गीत मनोहर, शुभ संगीत है।
खीर बनाकर रखो चाँदनी, अमरित योग है।
अर्द्ध रात को, भोग लगाओ, मिटते रोग है।
.
पुण्य शरद की पूनम आई, कर ले आरती।
ऋतुसम पवन भाव सुखदाई, धरती भारती।
खावें खीर, बना साथी फिर, कर आराधना।
चंद्र चंद्रिका अमरित बरसे,कर शशि साधना।
.
माँ कमला भंडार भरेंगी, पूनम को सखे।
श्री विष्णो के संगत आएँ, पय उनको रखें।
रखो क्षीर अमरित बरसेगा, आधी रात को।
सबसे ही साझी कर लेना, साथी बात को।
.
श्वाँस दमा के रोगी भोगी, खायें खीर जो।
भारत भूमि रही अभिमानी,पायें वीर जो।
चंद्र किरण देती संदेशे, धारो धीरता।
मात भारती हित बलिदानी, मानो वीरता।
.
खीर प्रथम पकवान हमारे, वैदिक काल से।
सभी खिलायें आज सजाएँ, चंदा थाल से।
भारत की यह रीत पुरानी, सब पहचानिये।
चंद्र,धरा का नेह मनुज का, मातुल मानिये।
. -----+----
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
४६. मनोरम छंद
विधान--
. मापनी - २१२२ २१२२
चार चरण का छंद है
दो दो चरण सम तुकांत हो
चरणांत में ,२२,या २११ हो
चरणारंभ गुरु से अनिवार्य है
३,१०वीं मात्रा लघु अनिवार्य
मापनी - २१२२, २१२२
. *कल*
. °°°°°°
मानवी मन भाव लाओ।
प्रीत के सब गीत गाओ।
आज भारत के निवासी।
बात करते क्यों सियासी।
काल से संग्राम ठानो!
साहसी की जीत मानो!
आज आओ मीत सारे!
काल-कल बातें विचारे!
सोच ऊँची बात मानव!
भाव होवें मान आनव!
आज है तो कल रहेगा!
सोच कैसे जल बचेगा!
पुस्तकों से नेह जोड़ो!
वेद ग्रंथो को न छोड़ो!
भारती की आरती कर!
मानवी मन भाव ले भर!
कंठ मीठे गीत गाना!
आज को करलें सुहाना!
आज है तो मानले कल!
वायु नभ ये अग्नि भू जल!
चेतना मानव पड़ेगा!
आज से ही कल जुड़ेगा!
दूर दृष्टा सृष्टि पालक!
काल-कल के चक्र चालक!
आलसी क्यों हो पड़े जन!
आज ही कल खो रहे मन!
रुष्ट जन मन को मनाओ!
आज ही कल को जगाओ!
धर्म पंथी बात छोड़ें।
मोह बंधन रीति तोड़ें।
देश हित जीना सिखाएँ।
गीत यश साथी लिखाएँ।
. °°°°°°°°°
( आनव~मानवोचित)
©~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
४७. शृंगार छंद
विधान-- १६ मात्रिक छंद
आदि में ३,२ त्रिकल द्विकल
अंत में २,३ द्विकल त्रिकल
दो दो चरण सम तुकांत
चार चरण का एक छंद
. __श्रेष्ठ हो मेरा हिन्दुस्तान__
. ~~~~~
शान भारत की रखना पूत।
शांति के बने सदा ही दूत।
आपदा पर ही कर दो वार।
शंख से फिर फूँको हूँ कार ।
आरती चाह रही है मात।
भारती अंक मोद विज्ञात।
सैनिको करो प्रतिज्ञा आज।
शस्त्र लो संग युद्ध के साज।
विश्व मानवता हित में कर्म।
सत्य है यही हमारा धर्म।
आज आतंक मिटाना मीत।
विश्व की सबसे भारी जीत।
पाक को पाठ पढाओ वीर।
धारणा में बस रखना धीर।
भावना देश हितैषी पाल।
कूदना बन दुश्मन का काल।
वंदना मातृ भूमि की बोल।
शंख या बजा युद्ध के ढोल।
गंग सौगंध निभे मन प्रीत।
मात का दूध त्याग की रीत।
सूर्य में तम को ढूँढे पाक।
सिंह पूतो पर थोथी धाक।
प्रश्न है संग हुए आजाद।
पाक पापी न हुआ आबाद।
रोक क्या सके विकासी गान।
शत्रु को सिखलादो ये ज्ञान।
एकता की दे कर आवाज।
तोड़ दो आतंकों का राज।
जोड़ दो मन से मन की तान।
भारती की रखनी है शान।
उच्च हो ध्वजा तिरंगा मान।
श्रेष्ठ हो मेरा हिन्दुस्तान।
विघ्न की नष्ट करो प्राचीर।
स्वच्छ हो नदी तलाई नीर।
प्रेम के छंद सनेही गीत।
काव्य भी ऐसा रचना मीत।
. ~~~~
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
. ४८. हंसगति छंद
विधान---
११,९, कुल २० मात्रिक छंद है
यति से पूर्व गुरु लघु(२ १)
यति के पश्चात लघु गुरु (१ २)
एक चरण में एक ही त्रिकल हो
तो गेयता उत्तम रहे
दो दो पंक्तियाँ सम तुकांत हो
. °°°°°°°°°
. __जन चरित्र की शक्ति__
. ------------+
भू पर विपदा आज, ठनी है भारी।
संकट में है विश्व, प्रजा अब सारी।
चिंतित हैं हर देश, विदेशी जन से।
चाहे सब एकांत, बचें तन तन से।
घातक है यह रोग, डरे नर नारी।
भू पर विपदा आज, ठनी है भारी।
तोड़ो इसका चक्र, सभी यों कहते।
घर के अंदर बन्द, तभी सब रहते।
पालन करना मीत,नियम सरकारी।
भू पर विपदा आज, ठनी है भारी।
शासन को सहयोग, करें भारत जन।
तभी मिटेगा रोग, सुखी हों सब तन।
दिन बीते इक्कीस, मिटे बीमारी।
भू पर विपदा आज, ठनी है भारी।
भारत माँ की शान, बचानी होगी।
जन चरित्र की शक्ति, भले संयोगी।
भारत का हो मान, जगत आभारी।
भू पर विपदा आज, ठनी है भारी।
प्यारा हमको देश, वतन के वासी।
पूरे कर कर्तव्य, जगत विश्वासी।
है पावन संकल्प, मनुज हितकारी।
भू पर विपदा आज, ठनी है भारी।
. ----+-----
©~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
:४९. भुजंगप्रयात छंद
विधान:--
१२२ × ४ ( यगण यगण यगण यगण)
चार चरण , दो दो चरण सम तुकांत हो
. ____प्रतीक्षा____
हमारा भरोसा तुम्हारे सहारे।
प्रभो बाग मेरे तुम्ही हो बहारे।
लगी नाव मेरी नदी के किनारे।
प्रभो बोझ भारी इसे पार तारे।
बनाऊँ सुनाऊँ लिखूँ छंद तेरे।
दया हो प्रभो जी हरो कष्ट मेरे।
कहानी लिखूँगा तुम्हारी गुमानी।
रचूँ काव्य दोहा सवैया विहानी।
हमेशा अनेको कथाएँ सुनी है।
इसी हेतु मैने चटाई बुनी है।
पधारो यहाँ बैठ बातें करेंगे।
पुराने सभी घाव दोनो भरेंगे।
धरा भारती मानवी आज चाहे।
मिटाओ सभी कष्ट नासूर आहे।
हरो द्वेष सारे दुखो की कहानी।
बनादो सुहानी नही तो रुहानी।
युगों से यही पीर देखी सुनाई।
लिखे लेखनी गीत नेकी बनाई।
कभी तो सुनोगे दुखों के बहाने।
खड़ी है यहाँ नाव देखो मुहाने।
विवादी हुआ जीव नेकी गँवाता।
बिना बात भारी हताशा कमाता।
भलाई बुराई सभी रोग भारे ।
सुरक्षा प्रतीक्षा करे लोग हारे।
. _______
©~~~~~`` बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
५० __अहीर छंद__
विधान:-- मात्रिक छंद मापनी रहित
११ मात्रिक छंद है, ८ वीं मात्रा लघु
होना अनिवार्य है।
चरणांत में जगण (१२१) अनिवार्य है।
दो दो चरण समतुकांत हो,
चार चरण का एक छंद होता है।
__देह मेह जल प्रीत__
प्रभु ने सब हित काज।
प्राकृत मय शुभ साज।
भू पर अनुपम रीति।
देह मेह जल प्रीत।
पावस ऋतु वरदान।
मेघ धरा अरमान।
भू पर मेघ मल्हार।
भू पर खुशी अपार।
घन जल अमृत समान।
मनुज मूल्य पहचान।
करें कद्र पय नीर।
बचे मनुज जल धीर।
मेह नेह धन मान।
बचे भावि नर जान।
जीव प्रकृति तरु हेतु।
जल ही जीवन सेतु।
. ________
© ~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
५१. आँसू छंद
विधान:--
२८ मात्रा का एक चरण(१४+१४)
दो दो चरण समतुकांत
चार चरण का एक छंद
मात्रा बंटन :- २-८-२-२ के क्रम में
. __भू जल रक्षण__
धरती पर जीवन अमरित, है दिया ईश ने पानी।
सब जीव इसी से जन्मे, वन तरु नीर कहानी।
जल रखें सहेजे भू हित, तो बचा रहे भवजीवन।
अति दोहन हो जल का, विपदा का न्यौते नर्तन।
भू जल रक्षण संरक्षण ही, ये उपाय है बचने का।
दोहन कर बरबादी जल,की हर जीवन मरने का।
बरसाती जल को रोको, अब खेत खेत में टाँका।
घर घर भरो नीर भू तल, में नहीं कहीं हो नाका।
छत का जल नीचे लाएँ, भू गत टैंक बनालें हम।
जल की बूँद बूँद संग्रह, कर के नीर बचाओ तुम।
पानी से ही कल होगा, तरु वन जैव जंतु जीवन।
मानस बदलें हे मानव, जल सच्चा नैनों का धन।
. _________
~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा बौहरा, विज्ञ
५२. उल्लाला छंद
विधान:--
सम मात्रिक छंद है,
२६ मात्रिक ( १३ + १३)
दोहा की तरह कल संयोजन
११ वीं मात्रा लघु रहे।
दो दो चरण समतुल्य हो।
. __सृष्टि सार संयोग__
जल ही जीवन है मनुज, करना सद उपभोग है।
जीव जगत वन वन्य हित, सृष्टि सार संयोग है।
सागर से वाष्पित करे, पवन सूर्य संयोग से।
नभ में जा घन श्याम हो, बने मेह शुभ योग से।
धरती पर बरसे जलद, चूनर धानी मात की।
खेत फसल वन बाग में, खुशहाली बरसात की।
वर्षा नीर सहेजिए, खेत मेड़ मजबूत जब।
घर में भी टाँका बना, पानी मिले अकूत तब।
बचे नीर भू सोखले, मिले कूप में नीर हो।
व्यर्थ बहे बहता चले, खारे सागर सीर हो।
नीर बचे प्राकृत बचे, जैव जगत वन वन्य भी।
नयन नीर मर्याद भव, नहीं कल्पना अन्य भी।
. _________
~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मास बौहरा, विज्ञ
.५३ छप्पय छंद
विधान :--
अर्द्ध सम मात्रिक छंद है। जो दो छंदो
के संयोग से बनता है।
प्रथम चार चरण रोला छंद के, और अंतिम दो चरण उल्लाला छंद के मिलकर ६ चरण का एक छप्पय छंद बनता है।
रोला-- ११,१३ (चरणांत गुरु गुरु)
उल्लाला--१३,१३(११वीं मात्रा लघु)
. __विरहा__
१
सावन बरसे मेह, नयन विरहा के बरसे।
सरसे फसलें खेत, ताप तन विरहा तरसे।
बोले पपिहा मोर, श्वाँस विरहा की फूले।
लख रमणी शृंगार, बाग में डलते झूले।
नभ में गरजे दामिनी, रिमझिम मेघ फुहार है।
विरहा तन सुलगे निशा, कंठ हार मन हार है।
२
कंत गए परदेश, चाह कंचन की भारी।
रमणी कंचन देह, भुला कर याद हमारी।
थकित ताकते नैन, जोहते बाट तुम्हारी।
मन विरहा बिन चैन, जागती रातें सारी।
लोभ करो मत हे पिया,आओ तो निजदेश में।
कंचन माटी भारती, निज परिजन परिवेश में।
. ______
~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
५४ कामरूप /वैताल छंद
विधान:--
२६ मात्रिक छंद (सम मात्रिक)
९,१६,२६ मात्रा पर यति
प्रारंभ गुरु गुरु २२ से हो।
९ मात्रा पर यति पश्चात प्रारंभ २१ से हो।
१६ मात्रा, यति पश्चात प्रारंभ २१ या १२ से।
२६ मात्रा, चरणांत २१(गाल) से हो।
चार चरण का एक छंद,
दो चरण समतुकांत हो।
. __शहीदी बात__
१
हे सैनिक वीर, हे रण धीर, रख तिरंगा शान।
भारत भू मात,शहीदी बात, रख सखे ईमान।
आजाद सुदेश, है परिवेश, बस रहे सब हेतु।
सीमा सुरक्षा, यह परीक्षा, तुम बने भव सेतु।
२
हे सुत हमारे, नयन तारे, कर स्वदेश विकास।
जननी बखाने,तनय माने, मीत ये शुभ आस।
गंगा नर्मदा, जल सर्वदा, हिमालय वरदान।
यमुन सरस्वती, माँ भगवती, देश के अरमान।
. ________
~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
५५. गीतिका छंद
विधान:--
सम मात्रिक छंद
कुल २६ मात्रा(१४,१२ या १२,१४)
चार पद (दो चरण समतुकांत)
वर्ण विन्यास--
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
३,१०,१७,२४वीं मात्रा लघु अनिवार्य है
. __नेह प्यासे__
१.
घाट तीरथ सभ्यताएँ, स्वाति सम तरसे यहाँ।
चंद्र रवि नभ मेघ नीरस, ताकते नभ से यहाँ।
खींच तन से रक्त भू का, क्यूँ उलीचा तोय है।
खेत प्यासे पेड़ प्राणी, आज पंछी मौन है।
२.
शर्म आँखो की गई वह, भूमि-जल संगत सभी।
घाट-गागर में ठनी है, आज क्यूँ तन नेह भी।
हे छलावे दानवी मन, सत्य का पथ छोड़ने।
नेह हारा नीर हारा , प्रीत की बाजी ठने।
३.
कूप नदियाँ ताल बापी, घाट वे जल नेह घट।
स्रोत रीते हो गये सब, नेह प्यासे देह घट।
आपदा को दे निमंत्रण, देख नर सपने विकट।
बोतलों में बन्द पनघट, याद भूले कृष्ण नट।
४.
वारि बिन वन पेड़ पौधे, जीव जंगम खेत सब।
रेत पत्थर ईंट गारे, नीड़ सड़के नित्य अब।
आज वसुधा रो रही माँ, देख सुत करतूत जब।
जल प्रदूषण भूलता नर, चल दिया आकाश तब।
५.
नीर नयनों से निकलता, सागरों में बाढ़ जल।
सूखते वे ताल नदियाँ, बाढ़ विप्लव गान फल।
मानवी हर भूल माँगे, त्रासदी बन मूल्य सम।
नीर दोहन देख भू की, धड़कती है आज दम।
६.
आज मानव विश्व भर का, काल से बे हाल है।
रोग के आगोश में जो, भीरु नर निज प्राण है।
है विकल प्राकृत धरा नभ, चंद्र तारक सूर्य भी।
होड़ के तम पंथ नाशक, बीज मानव आप भी।
. *****
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा बौहरा 'विज्ञ'
५६. चंचरीक (हरिप्रिया) छंद
विधान:--्
चार चरण का सममात्रिक छंद है।
प्रति चरण ४६(१२+१२+१२+१०) मात्रा
दो दो या चारो चरण सम तुकांत हो।
प्रति चरण ७ षटकल चरणांत २२
प्रति चरण आंतरिक समांत हो।
. __जागे भयहारी__
गए श्याम मेले जब, काम धाम छोडे सब,
ग्वाल बाल ढूँढे तब, आए गिरधारी।
दिए दाम मुरली के, नारि एक इकली के,
खींच गाल नथली के, धाए बनवारी।
शिकायती तिय आई, मात यशोमति धाई,
कान ऐंठ कर लाई, रोये गिरिधारी।
गेह गई तिय अपने,हरे कृष्ण मन जपने।
देख रात नव सपने, जागे भयहारी।
. _______
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ
५७. चौपइया छंद
विधान:--
सम मात्रिक छंद प्रति चरण ३० मात्रा
१०,१८,३०वीं मात्रा पर यति
चरणांत गुरु या गुरु गुरु
चरण में प्रथम द्वितीय यति पर समांत।
(२-६-२, ६-२, ६-२-२+२)=३०
. __वर्षा जल__
१
जन मन अति प्यासा,बढ़ी
निराशा,
अब तो मेघा गाओ।
जब वर्षा बरसे, धरती हरषे,
दादुर गान सुनाओ।
हल बैल चलेंगें, खेत हँसेंगे,
बीज खाद ले आओ।
सब जागृत रहना, नीर न बहना,
घर घर टैंक बनाओ।
२
है जल ही जीवन, धरा सजीवन,
रखना नीर सँभाले।
जल सद उपयोगी, नर उपभोगी,
नीर न व्यर्थ बहाले।
कर जल की रक्षा, जैव सुरक्षा,
मत रह बैठे ठाले।
भू सृष्टि बचेगी, प्रकृति हँसेगी,
तब मन गीता गाले।
. ________
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
५८. . जनक छंद
विधान : --
१३ मात्रा(दोहे के विषम चरण की तरह)
वाले तीन चरणों से बनता है जो व्यंग और
कटाक्ष के लिए लिखा जाता है।
ये पाँच प्रकार के होते है------
. __नेता__
१.पूर्व जनक छंद-प्रथम दो चरण समतुकांत हो
राजनीति चलती सखे।
नित्य नियम रिश्वत रखे।
मरे भले जनता सहज।
२.उत्तर जनक छंद-अंतिम दो चरण समतुकांत
है चुनाव खादी पहन।
नेता लड़े चुनाव जब।
करते धर्म बनाव सब।
३. शुद्ध जनक छंद--प्रथम व तृतीय चरण
समतुकांत हो---
मंच चुनावी जब चढ़े।
खोले बोरा झूठ का।
वोट नोट ही जब बढ़े।
४. सरल जनक छंद-- तीनो चरण अतुकान्त हो-
सपने में नेता बने।
खादी की पतलून में।
हुई छेद बीड़ी जले।
५. घन जनक छंद--तीनो चरण सम तुकांत हो--
वादा करे विकास का।
खेले खेल विनाश का।
नेता फूल पलाश का।
©~~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
५९. तोमर छंद
विधान--
१२ मात्रिक छंद (२-३-२-२-३ )
चरणांत में २१ (गाल) अनिवार्य
चार चरण - दो दो सम तुकांत
__मन के भूप__
पढ़ लोग होते ढोर।
सोये रहें हो भोर।
उठ रहे निकले धूप।
ये फिरे मन के भूप।
मन मौज करते गान।
धन नाश मदिरा पान।
कुछ पिये गाँजा भंग।
तन के नवाबी ढंग।
ये बजे पर से ढोल।
बोल बोले बिन मोल।
झूठ के है सिर ताज।
व्यस्त होते बे काज।
पीढ़ियाँ गफलत मंद।
गीत उनके हित छंद।
देश हित पशु वे मान।
नित्य कागा सा गान।
. ________
©~~~~~~~बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
६०. निधि छंद
विधान :--
९ मात्रिक छंद प्रति चरण
चार चरण , दो दो समतकांत
चरणांत २१ (गाल)
( ६+२१ (गाल))
__हित रक्ष__
लिख मन के छंद।
मन के हर द्वंद।
उठा कलम आज।
लिख दोहा साज।
हर भव पथ तंग।
श्वेत श्याम रंग।
जय जवान बोल।
जय किसान बोल।
स्वतंत्र निज देश।
सज्जन परिवेश।
सुबह टहल शाम।
पावन रख धाम।
जीवन हित रक्ष।
चोट सहे वक्ष।
भागे रिपु दुष्ट।
देश मान पुष्ट।
. _____
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
६१. . प्लवंगम छंद
विधान~
२१ मात्रिक छंद( ८-८-२-१-२)
चार चरण -दो दो समतुकांत हो।
१९ वीं मात्रा लघु अनिवार्य है।
. __माता भारती__
वीर शहीदों की यादें सब याद है।
आज हमारा भारत भी आजाद है।
गंगा कलकल बहती नर्मद पावनी।
मेघ मल्हारें रमती रमणी सावनी।
सागर चरण पखारे भारत मात के।
पंछी गीत सुनाते नवल प्रभात के।
घूम घूम कर करे चंद्रमा आरती।
ऋतुएँ भी आने को नित्य निहारती।
लिखते है सौभाग्य कृषक हल नोंक से।
दिनकर उर्जा देता निज आलोक से।
झिलमिल करें सितारे निशि आकाश में।
रिश्ते निभते मातृ भूमि हर श्वाँस में।
पर्वत राज हिमालय सिर पर ताज है।
सरवर सरिता बाँध नहर शुभ साज है।
वन्य वनज से रीत प्रीत व्यवहार है।
बाग बगीचे उपवन तरु गलहार है।
. ___________
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
६२. बरवै छंद
विधान:--
बरवै छंद या बरवै दोहा
अर्द्ध सम मात्रिक छंद है।
विषम चरण-१२ (८+४)मात्रा
चरणांत गुरु(२ या११)
समचरण- ७ (४+३) मात्रा
चरणांत २१(गाल)
__पानी है अनमोल__
. (बरवै छंद)
.
क्षिति जल अग्नि पवन नभ,
. मनुज सतोल।
जीवन है आधारित,
. जल अनमोल।।
.
मेघपुष्प ,जल, पानी , पाथ: तोय।
करनी *विज्ञ* वन्दना , मति दे मोय।।
.
जनहित जलहित वनहित, जागो *विज्ञ*।
जीवन की आशा जल, रक्ष प्रतिज्ञ।।
.
वारि अम्बु जल पुष्कर, अर्ण: नीर।
उदकं, घनरस शम्बर, रख मतिधीर।।
.
नद तटिनी तरंगिणी, सरि सारंग।
नद सरि सरित आपगा, पय जलसंग।।
.
लहरी नदी निम्नगा, नद जलधार।
नदियाँ सदा सनेही, *विज्ञ* विचार।।
.
स्वच्छ रखो जल हे नर, गंद न घोल।
नयन नीर का नर रख, जल अनमोल।।
. . ----+-----
©~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा बौहरा" *विज्ञ*"
६३. मरहठा छंद
विधान :--
२९ मात्रिक छंद,
१०(२+८),१८ (८),२९ (८+३ गाल)
वीं मात्रा पर यति।
चार चरण का छंद।
दो दो चरण समतुकांत।
चरण में अन्त्यानुप्रास हो तो श्रेष्ठ रहे।
. __पृथा पिपासा__
चातक मन प्यासा, मनो
हताशा, जीवन चाहे नीर।
तन पृथा पिपासा, कृषक
निराशा, छूट रहा मन धीर।
तरुवर मुरझाए,दूब नसाए,
तलपट मरु सम खेत।
पपिहा भी गाए, गौ रम्भाए
बया खेलती रेत।
मजदूर पुकारे, वणिक
विचारे, ढोर हुए कमजोर।
घर बाहर गर्मी, तपते
कर्मी, शाम दुपहरी भोर।
आजा अब वर्षा, जन मन
हरषा, मोर कलापे साँझ।
मन राहत पाएँ, पेड़ लगाएँ,
खेत पड़े ज्यों बाँझ।
. _________
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
६४. मुक्तामणि छंद
विधान:-- चार चरण का अर्द्ध सममात्रिक छंद
विषम चरण- १३ मात्रा ( दोहे के विषम चरण जैसा )
सम चरण- १२ मात्रा ( ८+२+२)
दोहे की तरह सम चरण समतुकांत हो
. __आपदा__
. १
भोर कुहासा शीत ऋतु, तैर रहे नम बादल।
बगिया समझे आपदा, वन तरु समझे आँचल।।
. २
तृषित पपीहा जेठ में, विहग मेह हित बोले।
पावस समझे आपदा, कोयल कामी भोले।।
. ३
करे फूल से नेह वह, मन भँवरे नर नारी।
पंथ निहारे मीत का, याद करे हिय भारी।।
. ४
ऋतु बासंती आपदा, सावन सिमटे पावन।
विरहा तन मन कोकिला, खोये मानस भावन।।
. ५
दुख में सुख को ढूँढता, मन को करे विदेही।
करे परीक्षण आपदा, दुर्लभ मानुष नेही।।
. -------+-----
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
.
६५. राधिका छंद
विधान:--
कुल २२ मात्रिक छंद है। १३ +९=२३
यति के पूर्व व पश्च त्रिकल अनिवार्य,
चरणांत गुरु गुरु
दो दो पद समतुकांत,
चार चरण का एक छंद।
.
. __नवरात्रि__
.
है आदि भवानी मात, वही नव रूपा।
जो भजते है मन भाव, भिखारी भूपा।
नौ दिन के माँ नौ रूप, धरे जग माता।
है महा पर्व नवरात्रि, दशहरा लाता।
.
यह श्राद्धपक्ष के बाद, दिवस है आता।
सब के मन में सद्भाव, मात को भाता।
बेटी सब बहिनें मात, पराई अपनी।
यह श्रेष्ठ एक संदेश, मात हे जननी।
.
कन्या का पूजन पर्व, अंत में रखते।
घर लाते घर से ढूँढ, दक्षिणा धरते।
हर बिटिया का सम्मान, सदा हो भैया।
नारी ही दुर्गा रूप, बहिन सब मैया।
. ✨✨✨✨
©~~~~~~~`बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
६६. सुजान छंद
विधान :-- २३ मात्रिक छंद है।
दो दो चरण समतुकांत हो।
२३ = १४ + ९ चरणांत २१ (गाल)
. __दिवस मातृ पितृ पूजन__
.
दिवस मातृ पितु पूजन प्रिय, करिये संकल्प।
ईश मान पितु माता को, तज सभी विकल्प।।
घर में ही भगवान रहे, जीवन दातार।
मात पिता का मान करे, कर उनसे प्यार।।
जन्म दिया मित्र आपको, रख वर्षो आस।
पाला बस अरमान बचे, माँ पितु विश्वास।।
पाल पोष पहचान दिये, वे परिजन शान।
खोया निज को आप रहे, रख सखे गुमान।।
जीवन संतति हेतु जिए, निज तज अरमान।
अब उनका विश्वास बनो, माँ पितु भगवान।।
शर्मा बाबू लाल कहे, पद लिख के षष्ट।
विनय आपसे, रहे नही, माँ पितु को कष्ट।।
. °°°°°°°°°
© ~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा बौहरा, विज्ञ
६७. हाकलि छंद
विधान:--
प्रति चरण १४ मात्रा का छंद है
प्रति चरण तीन चौकल बने
चरणांत सगण ११२ अनिवार्य है।
चार चरण, दो दो समतकांत हो
. __चार दीप__
.
एक दीप उनका रखना।
जब लक्ष्मी पूजन करना।
जिनके प्राण थमे तब थे।
सीमा पर चौकस जब थे।
एक दीप की आशा रखते।
जय किसान ताका करते।
शासन पहले ही चुप था।
प्रभु वश जीवन यापन था।
धर्म न होता निर्धन का।
जाति बंधुआ जीवन का।
एक दीप रखना उनका।
गलती कर भूले जन का।
दीप एक गुरु का सपना।
शिक्षक कवि साथी अपना।
जगमग होंगे जग जगती।
चार दीप यदि तुम धरती।
_________
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ
६८. "रूपमाला छंद
विधान":--
२४ मात्रिक अर्द्धसममात्रिक छंद
२४ = १४(३२२ ३२२) + १०(३२२२१)
तीन सतकल चरणांत गाल
चार चरणीय छंद
दो दो पद समतुकांत हो।
. __नीर आँखो में रहा तो__
नीर सृष्टा की धरोहर, मनुज नीर सहेज।
पीर प्राणी की मिटाने, खर्च में परहेज।
नीर आँखों में रहा तो, देख ले हर पीर।
नीर महिमा ही बड़ी है, समझ लो सुधीर।
सरित सागर सर नदी भी, सत्य रखते नीर।
सभ्य मानव बस्तियाँ भी, पुरा इन के तीर।
वायु से ही जल बने यह,वायु जल से नेक।
प्राण वायू दो गुनी है, हाइ ड्रोजन एक।
बचा पानी को हमेशा, भूमि जन हित वीर।
जैव जंगल तरु पखेरू, प्राण चाहत नीर।
कुण्ड बनवा गेह बाबू, लाल शर्मा विज्ञ।
नीर है तो कल रहेगा, बनो दृढ़ी प्रतिज्ञ।
. _______
©~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
६९. " किशोर छंद "
विधान :-- २२ मात्रा प्रति चरण
१६, २२वीं मात्रा पर यति
चार चरण (द्वय यति) समतुकांत,
चरणांत २२२ गुरु गुरु गुरु
. *बालाजी*
संकट में बस एक सहारा, बालाजी।
प्रभुवर दीनानाथ तुम्हारा, बालाजी।
रघुनंदन का काज सँवारा, बालाजी।
जन्म देह नर भाग्य हमारा, बालाजी।
रचूँ छंद दोहा चौपाई, बालाजी।
आप कृपा से मन सौदाई, बालाजी।
रघुनंदन की तुम्हे दुहाई, बालाजी।
सदा करो तुम भक्त सहाई, बालाजी।
देश हितैषी चले कलम यह, बालाजी।
धरा धर्म निर्वाह करे वह, बालाजी।
कलुष द्वेष मनमानी के दह, बालाजी।
कर्म धर्म विधना संगत सह, बालाजी।
. +++🙏+++
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
[
७०. विज्ञ छंद
विधान:-- २९ मात्रा प्रतिचरण
१६,२९ वीं मात्रा पर यति
चरणांत २१२
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __मेरे गांव में....__
रम्बू बकरी भेड़ चराता,
घटते लुटते खेत में,
मल्ला काका दांव लगाता
कुश्ती दंगल रेत में।
भोले भाले खेती करते
रात ठिठुरे पाणत रात में।
मजदूरों के टोल़े मे भी
बात चले हर बात में।
नेताओं के बँगले कोठे
अब तो मेरे गाँव में,
रामसुखा की वही झोंपड़ी
कुछ शीशम की छाँव में।
अमरी दादी मंदिर जाती,
नित तारो की छाँव में,
भोपा बाबा झाड़ा देता ,
हर बीमारी भाव मे।
फटे चीथड़े गुदड़ी ओढ़े,
अब भी नौरँग लाल है,
स्वाँस दमा से पीड़ित वे तो,
असली धरती पाल है।
धनिया अब भी गोबर पाथे,
झुनिया रहती छान मे,
होरी अब भी अगन मांगता,
दें कैसे ...गोदान में।
------------
©~~~~~~~~~`बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७१. आख्यानिकी छंद
विधान~ प्रथम चरण १८
~ द्वितीय चरण १७ मात्रा
चरणांत में गुरु गुरु
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __राणा मतवाला__
हल्दी घाटी समरांगण भारी।
करे युद्ध की सैनिक तैयारी।
मुगलों का लश्कर भी वे हाथी।
इत राणा,रजपूत भील साथी।
आसफ खाँन बदाँयूनी संगी।
लड़ते समर तलवारें नंगी।
शक्ति सिंह बागी होकर आया।
थाम चुका था मुगल सरमाया।
राणा अपनी आन बान वाले।
रखते ऊँची शान वे झाले।
रण में मुगलों की सेना काटी,
लड़े युद्ध में निभा परिपाटी।
आन बान को बलवान निभाया,
चेतक स्वामी भक्त तज काया।
वन वन भटका राणा,मत वाला।
मेवाड़ी असि हाथ वह भाला।
. ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७२. चंचल छंद
विधान:-
चार चरण क्रमश:१६,१५,१५,१४
मात्रा के हों
दो-दो चरण समतुकांत हो।
चरण के आदि अंत में त्रिकल हो
तृतीय के अलावा तीनो चरणों में
चरणांत त्रिकल (वाचिक भार १२)
की पुनरावृत्ति हो।
. __भज वरुण वरुण__
नीर बिना तरसे नगर नगर,
प्यास भर ताके नजर नजर।
भूमि रज तपती कठिन मगर,
कुंड वारि भर डगर.....डगर।
खेत रहे जल से मचल मचल,
मदन मद दादुर उछल उछल।
सावन सरोवर खिले कमल,
स्वेद मेघ जल पिघल..पिघल।
नीर बिना है नर मरण मरण,
मीत मानव भज वरुण वरुण।
कुंड जल भरिए विमल धरण,
'विज्ञ' मेघ घट शरण...शरण।
. --------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७३. सुगीतिका छंद
विधान~ २५ मात्रिक
१५,२५ वीं मात्रा पर यति
आदि लघु, चरणांत गुरु लघु
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
. __पावन पुण्य पुनीत पल__
प्रियतम मम प्राण अधार है, सुर सरगमी साज।
करूँ जन्मदिन आए तभी,स्वरुचि का शुभकाज।
पल पावन पुन्य पुनीत पर, प्रण प्रीत प्रतिपाल।
शुभ जन्मदिवस हो आपका, रहो प्रिय खुशहाल।
.
प्रिय पत्नी प्रण को पालती, प्राण प्रिय पति संग।
यह जन्मदिवस युग युग जपूँ, सँग सुहाग अभंग।
प्रियतम प्रण पाती प्रेमरस, प्रति पठाई पंथ।
जब जागूँ जोहू जन्मदिन, जग जनाऊँ कंत।
.
जनमे जग में जो जानिए, जन्मदिन जगभूप।
प्रिय परिजन प्रिय परिवार पर,प्रेमपति प्रतिरूप।
शुभ जन्म दिवस शुभकामना, कहूँ कंत विशेष।
प्रियतम मैं तुझमें ही रहूँ, मान मनज महेश।
.
सत फेरे के सातों वचन , सात छंद बनाय।
तन सात बार न्यौछार दूँ, सात युग पिवपाय।
लिखता है शर्मा छंद यह, 'विज्ञ' भाव विशेष।
सब की पूरित हो कामना, वंदन तव गणेश।
. -------+-------
©~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७४. विषम छंद
विधान:-- १९ मात्रिक
प्रथम व तृतीय चरण में- १२ मात्रा
द्वितीय व चतुर्थ चरण में- ७ मात्रा
सम चरणांत में जगण या तगण
से छंद छटा बढ़ जाती है।
. __गोबरधन__
गिरि गोवर्धन नख धरि, वृष्टि सुरक्ष।
दिए चुनौती सुरेश , गो जन पक्ष।
महिमा उस पहाड़ की, पूजन योग।
मानस गंगा पावन, गिरिधर भोग।
द्वापर युग योग्य वर, दिया भवान।
गो, गोधन खेती हित, कृत सम्मान।
भारत कृषि प्रधान है, गोबर प्रमान।
कृष्ण रूप हैं सैनिक, भगवन ज्ञान।
गिरि वन वन्य बचायें, नद तालाब।
भूमि संरक्षण करें, धृति नायाब।
पर्व महा गोबरधन, गोधन पूज।
गोवर्धन बाद मना, भैया दूज।
. ------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७५. लावनी छंद
विधान:-- २२ मात्रा प्रति चरण
चरणांत में गुरु गुरु
( लावणी छंद और
लावनी छंद भिन्न भिन्न हैं )
चार चरण दो-दो समतुकांत हो।
. __नीड़ों को क्यूँ भूले__
.
हर मोती की कीमत जग सच्चाई है।
मिल जाते माला में, यह अच्छाई है।
बनिए अच्छा साथी, माला का मोती।
मन की पीर लिखूँ जो, माता को होती।
.
नव उम्मीदें, नभ में, नव रीति रचेंगे।
काव्य कलम भाषायी,साहित्य सजेंगे।
कवि से नव उम्मीदें, रचनाकारों से।
सब मिल के भर देंगे, युग आकारों से।
.
चाहे बाधा आए, धर्म निभाना है।
नई सोच से आशा, पंथ दिखाना है।
मुक्त परिंदे बन के, आसमान नापें।
नव उम्मीदे मिल के,भय से क्या काँपें।
.
नीड़ों को क्यूँ भूलें,निज संस्कृतियों को।
पश्चिम आँधी रोकें, पर विकृतियों को।
हिन्दी हित उम्मीदें, कवि मानवता की।
नया आसमाँ गाने, कविता सविता की।
. -------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७६. महाशृंगार छंद
विधान:-- १६ मात्रा प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
चरणांत गुरु लघु २१ से हो
प्रथम व तृतीय चरण समतुकांत हो
द्वितीय व चतुर्थ चरण समतुकांत हो।
आदि में त्रिकल द्विकल और
अंत में द्विकल त्रिकल हो।
. __करवा चौथ व्रत__
शम्भु की प्रिया हे उमा मात।
छटा तुम्हारी शिव का भाव।
चौथ मात का व्रत विज्ञात।
करें नारी गौरी हित चाव।
चंद्र दर्श करना पिया संग।
मनो कामना भरना मात।
रहे अंग सुहागन का रंग।
मिले नित्य आशीष संज्ञात।
पिया हेतु जीवन दिया मान।
चाह प्रीत नित का रहे स्वप्न।
पिया दीर्घ जीवे निभे आन।
करूँ माँ, प्रभु की सेवा रत्न।
शिंभु नारि गौरी जगत मात।
आज तुम्हारे द्वार मैं दीन।
रहूँ मैं सुहागिन युगों सात।
खुशी से पति सेवा आधीन।
चंद्र चौथ के दे रहे साख।
पिया प्राण प्यारे रहे साथ।
दर्श -धर्म फिर नीर व्रत राख।
प्रीत- रीत पावन बढ़ा हाथ।
. -------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७७. कर्ण छंद
विधान:-- ३० मात्रा प्रति चरण
१३,३० वीं मात्रा पर यति
चरणांत में गुरु गुरु २२
__अमर __
आजादी के हित लड़े,
. उनको शीश सदा झुकाते हैं।
भगत सिंह सुखदेव राज,
. गुरू अमर शहीद कहातें हैं।
*भगतसिंह* तो बीज सम,
. जीवित है मंत्र अरमानों में।
भारत और भगतसिंह
. गिनते है सत्य सम्मानों में।
*राजगुरु* आदर्श बने,
. नवयुवा पीढ़ी की थाती है।
इंकलाब की ज्योति थी,
. दीपक वाली रीत बाती है।
*सुख देव* हर बच्चे में,
. मात शान भारती चाहत है।
जब तलक नाम रहेगा,
. मान अमर तिरंगा भारत है।
जिनकी गूँज क्षत देती,
. आज, अंग्रेज़ों की छाती में।
वे हूंकार हम भेजें,
. धीर वीर शहीदी पाती में।
इन्द्रधनुष के रंग वे,
. आजादी के विहग परवाने।
उन बेटों की याद हम,
. वीर शहादत लें सनमाने।
,. --------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विक्ष*
७८. नित छंद
विधान:-- १२ मात्रा प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
. __ममता__
ममता से मात बनी।
पाल पोषित जीवनी।
ममता मोह दुलारी।
गुण उर माता धारी।
.
ममता मान मायका।
माँ सनेही जायका।
ममता से हर जीवन।
संतति नेह प्रसारन।
माया सभी ईश की।
सतसार आशीष की।
ममता तज दे माता।
कौन धरा पर दाता।
देश धरा मर्यादा।
पन्ना - चंदन ज्यादा।
ममता में महतारी।
उम्र गंँवा दे सारी।
. °°°°°°°°°°
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७९. दीप छंद
विधान:-- १० मात्रा प्रति चरण
अंतिम पाँच मात्रा ११२१ हो
चार चरण दो-दो समतुकांत
__पीहर व ससुराल__
माने मन विचार।
है मात मनुहार।
भेट मय भरमार।
बहिन भावन भार।
वृक्ष दौर दुलार।
प्रेम प्रिय परिवार।
प्रीत रीत सु गीत।
खेल खेल सुमीत।
सीख विषम प्रहार।
याद कर हर बार।
बालपन बकवास।
बड़भाग बहु सास।
ननद देवर जेठ।
गँवार अकल पैठ।
भावे सुघड़ नार।
इसी बात पर रार।
. ----+---
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८०. शोकहर/सुभंगी छंद
विधान:-- ३० मात्रा प्रति चरण
८,१६,२४,३० वीं मात्रा पर यति
चार चरण, चारों समतुकांत
. माँ
माँ की ममता, त्याग अनोखे, धारण धरती, सी क्षमता।
रीत प्रीत मय, प्रेम असीमित, अनुपम उत्तम, है समता।
प्राणी जगती, सर्वस देखो, माँ के जैसा, प्रेम नहीं।
संतति के हित, मरें मार दें, मिलता कब ये, क्षेम कहीं।
समझे खतरे, प्रसव उठाती, माता संतति, चाहत को।
कष्ट बहुत ही, भोगे तन मन, शिशु अपने की, राहत को।
कब सोती कब, जगती है वो, क्या कब खाती, वह पीती।
सदा हारती, संतानो से, तो भी लगती, माँ जीती।
लगता आँचल, स्वर्ग सरीखा, चरणों में है, जन्नत सुख।
सप्तधाम सम, माँ का तन मन, ईश्वर दर्शन, माँ का मुख।
माँ का होना, खुशी मंत्र है, माँ के जाए, सब खाली।
लगे बाद में, सभी पराये, माँ तक ही तो, कर ताली।
. --------+--------
©~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८१. मुनिशेखर छंद
विधान:-- २८ मात्रा प्रति चरण
(वार्णिक छंद)
चार चरण,चारों समतुकांत हो।
मापनी- ११२१२ ×४
. __मन कामना__
करिए कृपा प्रभु आप ही अब
आपका बस साथ है।
हर लीजिए हर कष्ट को हरि
प्रेम से रख हाथ है।
विनती सुनो प्रभु दीन हूँ बस
ईश ही मम नाथ है।
वरदान भी यह दीजिए कह
. मान 'विज्ञ' सनाथ है।
लिख छंद में मन भावना कवि
आप से भव सामना।
रचना रची सब आपकी सुन
जागती मन भावना।
हरि पूर्ण हो सब आस भी पर
दूर हो मन वासना।
लिख विज्ञ ने यह छंद में निज
चाह ली मन कामना।
. -------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८२. आनंदवर्धक छंद
विधान:--१९ मात्रा प्रति चरण
चरणांत गुरु या लघु लघु
चार चरण दो-दो समतुकांत
. __हाला पी लीजिए__
गीत गाएँ मीत भारत देश हित।
रीति भाए शान सुंदर वेष हित।
सभ्यता प्राचीन अपनी भारती।
विज्ञ रच लें गीत गाएँ आरती।
वीर मेरे देश के बलवान वर।
संयोगी सद्भावी धनवान दर।
नित्य विकासी नारे दे दीजिए।
देश प्रेम की हाला पी लीजिए।
मानव होकर मानवता हेतु जन।
सामाजिक सद्भावो हित सेतु बन।
देश धर्म की रक्षाहित बलिदान दे।
विज्ञ' छंद पढ़ पावन शुभमान दे।
. -------+-------
©~~~~~~~~बाबलालशर्मा *विज्ञ*
८३. सनाई/समान छंद
विधान-- ३२ मात्रा प्रति चरण
१६,३२ वीं मात्रा पर यति
चरणांत- गुरु गुरु या लघु लघु गुरु
. __जीत हुई पर रामानुज की__
काल चाल कितनी भी खेले,आखिर होगी जीत मनुज की।
इतिहास लिखित पन्ने पलटो, हार हुई है सदा दनुज की।
विश्व पटल पर काल चक्र ने, वक्र तेग जब भी दिखलाया।
प्रति उत्तर में तब तब मानव, और निखर नव उर्जा पाया।
त्रेता में तम बहुत बढा जब, राक्षस माया बहु विस्तारी।
मानव राम चले बन प्रहरी, राक्षस हीन किये भू सारी।
मेघनाथ ने खूब छकाया, जीत हुई पर रामानुज की।
काल चाल कितनी भी खेले,आखिर होगी जीत मनुज की।
द्वापर कंश बना अन्यायी,अंत हुआ आखिर तो उसका।
कौरव वंश महा बलशाली, परचम लहराता था जिसका।
यदु कुल की भव सिंह दहाड़े, जीत हुई पर शेषानुज की।
काल चाल कितनी भी खेले,आखिर होगी जीत मनुज की।
महा सिकंदर यवन लुटेरे, अफगानी गजनी अरबी तम।
मद मंगोल मुगल खिलजी के, अंग्रेजों का जगती परचम।
खूब सहा इस पावन रज ने, जीत हुई पर भारतभुज की।
काल चाल कितनी भी खेले आखिर होगी जीत मनुज की।
. _______
©~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा, बौहरा *विज्ञ*
८४. गंग छंद
विधान:-- ९ मात्रा प्रति चरण
चरणांत गुरु गुरु २२
चार चरण, दो-दो समतुकांत
__जल बचाएँ__
जीव हित पानी।
जन मन कहानी।
हम जल बचाएँ।
प्रकृति मन भाएँ।
जल अमृत मानो।
बचत सब ठानो।
व्यर्थ न बहाओ।
पाठ यह पढ़ाओ।
हम तरु लगाएँ।
बिरखा बुलाएँ।
घन जल बचाएँ।
सब हित बताएँ।
. ----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८५. मधुभार छंद
विधान:- ८ मात्रा प्रति चरण
३, ८ वीं मात्रा पर यति
चरणांत जगण १२१
चार चरण, दो-दो समतुकांत
__मधुकर__
तरु फूल फाग।
कुसुमित पराग।
पुहुप रस धार।
सह मधुप भार।
देते मधु भार।
अमृत उपहार।
कह शहद मान।
मक्षि लय तान।
मधुर रस भोग।
मधुकर सुयोग।
मनुज अरमान।
प्रकृति वरदान।
. ----+---
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८६. तांडव रौद्र छंद
विधान:- १२ मात्रा प्रति चरण
चार चरण,दो-दो समतुकांत हो
चरण के आदि अंत में लघु अनिवार्य
_करें शत्रु का विनाश_
बढ़े चलो अब प्रवीर।
उठा शस्त्र ले सुधीर।
करें शत्रु का विनाश।
भरो देश में प्रकाश।
मिटा शत्रु का निशान।
बढ़ा स्वदेश का मान।
करो सीमा सुरक्षित।
हमारे देश का हित।
जनतंत्र मीत विकास।
चलें नाप ले अकाश।
समुद्र सेतु बाँध कर।
रिपु दलों के नाश कर।
. -----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८७. लीला छंद
विधान:-- १२ मात्रा प्रति चरण
चरणांत में जगण हो
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
. __सावन__
सावन आया सुजान।
बरसे वर्षा समान।
भीगे धरती विशाल।
भरे पोखर सर ताल।
खेती फसलें किसान।
पौधे पशुधन विहान।
झूले मचते धमाल।
उड़ते चुनरी रुमाल।
सजती रमणी शृंगार।
वन में मंगल विहार।
शासन सावन सुरेंद्र।
ढूँढे मिलते न चंद्र।
. -----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८८. सखी छंद
विधान:-- १४ मात्रा प्रति चरण
करुण रस प्रधान छंद
चार चरण दो-दो समतुकांत हो
. __जाने अनजाने__
पत्तियों में सरसराहट।
पंछियों की चहचहाहट।
समझो इन संकेतों को।
माँ समझाए बेटों को।
गाड़ियों की घरघराहट।
झाड़ियों में खड़खड़ाहट।
वन्य जीव चेतन होते।
नीड़ माँद सपने बोते।
रोशनी की जगमगाहट।
श्वान अहि की लपलपाहट।
मिटते जन बहु परवाने।
कुछ जाने कुछ अनजाने।
. ------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८९. रजनी छंद
विधान:-- २३ मात्रा प्रति चरण
सप्तक की तीन आवृत्ति + गुरु
३,१०,१७,वीं मात्रा लघु अनिवार्य
मापनी- २१२२ २१२२ २१२२ २
. __अनमोल है पानी__
मीत पानी को बचाना भूमि जीवों को।
मेघ वर्षा नीर पाएँ हित सजीवों को।
आसमानी आस देखें वे किसानों की।
प्यास खेतों की मिटाएँ बेजुबानों की।
बंधु पौधों को लगाना मेड़ खेतों पर।
पंथ छाँया के लिए भी, पेड़ गेंतो पर।
मेघ हरियाली लुभाने, भूमि सरसा दे।
जीव नर पौधे हितों में, मेघ बरसा दे।
कुंड खेतों में बनाएँ, जल सहेजेंगे।
पंथ टाँके में भरें जल, कल बचा लेंगे।
विज्ञ छंदों को पढ़ें अन मोल है पानी।
संग आओ गीत गाएँ, भूल नादानी।
. ---------+++-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९० . मंगल वत्थु छंद
विधान :-- २२ मात्रा प्रति चरण
११,वीं मात्रा पर यति के दोनो
ओर त्रिकल अनिवार्य
चरणांत में गुरु हो।
. __धरा सुरक्षा नीर सुरक्षा__
मीत हवा ये नीर, शुद्ध हो विमल सभी।
पेड़ लगायें मेघ, बुलाएँ सँभल अभी।
धरा सुरक्षा नीर, सुरक्षा मदद करो।
पर्यावरणन सखे, सुरक्षण, सनद करो।
.
ओजोन परत धूम्र, विनाशे कवच बड़ा।
उत्तर प्रहरी महा,हिमालय अटल खड़ा।
गंगा यमुना मात, सरीखी सरित बहे।
हो संरक्षण छंद, गीत ये विनय कहे।
.
अपनी धरती सिंधु, गुमानी तरु नदियाँ।
अपनी खेती हरी, भरी हो शत सदियाँ।
सब का तन मन रहे, सजीवन रोग हरें।
धरा वायु जल नहीं, प्रदूषण लोग करें।
. --------+---------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९१ . तमाल छंद
विधान:-- १९ मात्रा प्रति चरण
चौपाई + गुरु लघु
. __शीत काल__
भोर काल में बजते दंता शीत।
चालीसा भावे बजरंगी गीत।
मन से ही उपजे चौपाई छंद।
धीमे स्वर में कंपित गाते द्वंद।
अवसर मिले रजाई ओढ़े शाल।
बंद किंवाड़ी करते कान्हा ग्वाल।
दूर नींद से नयन हमारे आज।
गीत भजन से बैन उचारे साज।
गजक रेवड़ी लागे खिचड़ी भोग।
वृद्ध जनों की सेहत बिगड़े रोग।
लिखें काव्य कैसे चौपाई गीत।
कँपे हाथ अँगुली थर्राई मीत।
गर्म वसन बाँटो सुखदाई रीति।
अन्न दान कर लो जगताई प्रीति।
पीर नीर की सभी समझते धीर।
जल की बचत काँपते करते वीर।
. -------+++-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९२. अरिल्ल छंद
विधान-- १६ मात्रा प्रति चरण
चरणांत में भगण २११ या यगण ११२
. __हिन्दी भाषा__
बिन्दी भारत मात भाल पर।
हिन्दी भाषा भूषण है वर।
हिन्दुस्तानी यश रामायण।
चाहत बोले हिन्द मीत गण।
जन्म देव वाणी से इसका।
हुआ हस्तिनापुर मेंं जिसका।
सुगम पंथ प्रसरी जन जन में।
हिंदी जन जन के तन मन में।
देवनागरी लिखित सुहावन।
लिखते छंद गीत मनभावन।
सुन्दर वर्णी व्यंजन पालक।
याद हमारे कर लें बालक।
. --------++-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९३. अड़िल्ल छंद
विधान:-- १६ मात्रा प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत
चरणांत में दो लघु या दो गुरु
. __पिता__
. °°°°°
पिता ईश सम हैं दातारी।
कहते कभी नहीं लाचारी।
देना ही बस धर्म पिता का।
आसन ईश्वर सम व्यवहारी।
तरु बरगद सम छाँया देता।
शीत घाम सब ही हर लेता!
संतति हित में जन्म गँवाता।
भले जमाने से लड़ जाता।
बन्धु सखा गुरुवर का नाता।
मीत भला सब पिता निभाता!
धर्म निभाना है कठिनाई।
पिता धर्म जैसे प्रभुताई।
जगते देख भोर का तारा।
पूर्व देख लो पिता हमारा।
पिता धर्म निभना अति भारी।
पाएँ दुख संतति हित गारी।
•. °°°°°
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९४. पद्धरि छंद
विधान :-- १६ मात्रा प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत
यति, १०,१६ या ८,१६ पर
चरणांत जगण हो।
. __तिरंगा__
देश आजादी दिवस महान।
फहरे तिरंगा ध्वजा निशान।
संगत रक्षा बंधन तिवार।
भ्राता बहिन हर्षित हर बार।
राखी बाँधो भारत हितैष।
संविधानी संसद सम पोष।
रक्षण राखी बाँधो तिरंग।
राष्ट्र भावना बजाकर चंग।
जन जन का तिरंगा अरमान।
बहिन भ्रात अरु चंगा विहान।
रक्षा सूत्र तिरंगा लपेट।
दुर्गुण सारे रखलो समेट।
. ------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
.
९५. सिंह विलोकित छंद
विधान:-- १६ मात्रा प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत
चरणांत लघु गुरु १२ हो
. __प्रात: काल__
जगते नमन करो तुम धरनी।
दूजा नमन पिता अरु जननी।
शौच क्रिया कर मंजन करना।
तन में आलस कभी न भरना।
कसरत योगा भ्रमण दौड़ना।
तन मज्जन में मसल योजना।
कुछ पल ईष्ट देव को जपना।
ध्यान चित्त वश में कर अपना।
आसन बैठ कलेवा करना।
दैनिक जीवन हेतु सँवरना।
सत्य अहिंसा रखना मन में।
अवगुण दूर रखो जीवन में।
. ------++-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९६. माहिया छंद
विधान -- ३ चरण
१२ मात्रा प्रथम व तृतीय चरण में
१० मात्रा द्वितीय चरण में।
चरणारंभ और चरणांत गुरु से हो।
२११ व ११२ का प्रयोग सफल है
जबकि
२१२ व १२१ स्वीकार्य नहीं हैं।
यह लोक छंद माना जाता है।
__संग चलें हम__
१
सावन मन को भाए।
मोर नचे वन में
साजन जब घर आए।
२
श्याम घटाएँ छाई।
विद्युत ज्यों नभ में।
मीत मिलन हित आई।
३
झूले पर झूल रही।
चूनर दूर उड़ी।
प्रीतम मन भूल सही।
४
भृंग कुसुम हित आए।
फूल पराग उड़े।
संग चले हम गाएँ।
. ---+---
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९७ . कलहंस छंद
विधान:- २० मात्रा प्रति चरण
११, वीं मात्रा पर यति पूर्व २१ हो
चार चरण दो-दो समतुकांत
. __दीपक__
डरे न तम से मीत, दीप मय बाती।
साथी रहो अभीत, गीत ऋतु गाती।
तारक गगन अनंत,दीप जल भू पर।
तेल बाति पर्यन्त, बैठ मत थक कर।
जलना पर उपकार, दीप से जानें।
दीपक प्रिय करतार, देव भी मानें।
खुशियों का त्यौहार, मने दीवाली।
दीपक विविध प्रकार,जला मतवाली।
पर हित की पहचान, तम दीपक तले।
दुख दुनिया के देख,भूलने निज भले।
रोशन करे जहान, धन्य दीपक तन।
सूरज चंद्र महान, पवन पावक मन।
करें देह का दान, दीप सिखलाता।
मीत सीख विज्ञान, ज्ञान दिखलाता।
जीवन पर हित मान, गेह उजियारे।
मानव सीख सुमित्र, सुजन मत हारे।
. ---------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९८. नरहरि छंद
विधान-- १९ मात्रा प्रति चरण
चरणांत १११२ अनिवार्य
चार चरण, दो-दो समतुकांत
: __स्वर्ण की सीढ़ी चढी है__
चाँदनी उतरी सुनहली, गगन से।
देख वसुधा जगमगाई, मन हँसे।
ताकते सपने सितारे, जग रहे।
अप्सरा मन में लजाई, जब कहे।
शंख फूँका यौवनों में, मन छला।
मीत ढूँढे कोकिलाएँ, तन जला।
सागरों में डूबने हित, सरित भी।
मग्न बहती गीत गाएँ, धुन सभी।
पोखरों में ज्वार आया, सहज ही।
झील बापी कसमसाई, यह मही।
हार कवि ने मान ली है,थकित है।
लेखनी भी दूर छिटकी, चकित है।
घन घटाएँ ओढ़नी नव, विमल है।
तारिकाओं से जड़े से, कमल है।
हिम पहाड़ी वैभवी में तरलता।
स्वर्ण की सीढी चढी है, सरलता।
. --------+--------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९९. संपदा छंद
विधान:-- २३ मात्रा प्रति चरण
११,२३ वीं मात्रा पर यति
चरणांत मे लघु गुरु लघु १२१ हो
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __माँ दुर्गे....___
माँ तुम दातार हो, देय सबको वरदान।
मातृशक्ति मान दो, बेटियों को अरमान।
हर माँ दुर्गा बने, तो बने पूत सपूत।
रात दिवस कामना, माता दीजे अकूत।
माँ दुर्गे सीख दे, सबके हितों मे आज।
सुता सुरक्षित रहे, ये संकल्पित समाज।
माँ दुर्गा दे रही, सब ही रंग शुभ हेत।
तिय के सम्मान हित,रहना सदैव सचेत।
बेटी से देव है, दैवी और भगवान।
करें मान सुता का, मात दुर्गे वरदान।
शर्मा बाबू लाल, करे मत पूजा यज्ञ।
माँ दुर्गे मन नमन, मनुज सेवा से अज्ञ।
. -------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१००. कज्जल छंद
विधान:-- १४ मात्रा प्रति चरण
चरणांत गुरु लघु अनिवार्य
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __पंछी मौन सारे__
. °°°°°°°
रो रहे जंगल मे कौन।
आज पंछी सारे मौन।
देखें नद में थमा शोर।
कूद नहाते थे किशोर।
विश्व क्या अब है बीमार।
मौत के तांडव सी धार।
जीतना नित नित है युद्ध।
व्याधियों से हो कर शुद्ध।
सिंधु की लहरों में विमान।
गर्जना खो रहे जवान।
गिरिशिखर से बहती पीर।
दुबक रहा गंगा का धीर।
रखें रोजड़े दिव्य नेत्र।
फसल निहारे खड़े क्षेत्र।
प्रीति की सब भूले रीत।
धरते शर करारे मीत।
. ------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१०१. हेमंत छंद
विधान:--२० मात्रा प्रति चरण
चरणांत में गुरु लघु गुरु २१२ अनिवार्य
चार चरण, दो-दो समतुकांत
यति बंधन रहित
. __रखना विज्ञ विचार__
आशा तृष्णा द्वेष मानव त्यागिए।
बिना पंख उड़ते जनो से भागिए।
दुर्लभ मानव देह है जन भा रहे।
मानवता के 'छंद' साथी गा रहे।
धरा जीव मय मात्र ग्रह ये जानते।
सीख विज्ञ' विज्ञान में अब मानते।
मानव में क्षमता बहुत, है मानवी।
व्यर्थ विज्ञ' खोएँ नहीं मद दानवी।
.
मस्तक 'विज्ञ' विचित्र है नर मानिए।
खोल अनोखे ज्ञानपट फिर जानिए।
'विज्ञ' सत्य मृदुतम वाणी बोलिए।
जन हितकारी सोच मानस घोलिए।
.
रखना विज्ञ' विचार यूँ,मत डोलना।
शोध सत्य निष्कर्ष लेकर तोलना।
विज्ञ' होड़ मन भाव से, रण साजते।
समरस हो उपकार कर, नर जागते।
. ------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
© सर्वाधिकार सुरक्षित
बाबू लाल शर्मा, बौहरा,विज्ञ
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
pin. ३०३३२६
mob.no. ९७८२९२४४७९
Comments
Post a Comment