१८+२२+११ =१७१ *प्रमुख वार्णिक छंद*

"विज्ञ"  रचित-- *प्रमुख १३८+२२+११ =१७१ वार्णिक छंद*

१.           राधा रमण छंद

विधान:-
नगण नगण  मगण  सगण
१११  १११  २२२  ११२
१२ वर्ण  ४ चरण
दो दो चरण समतुकांत

.         राधे- साँवरिया
.             -----
जब तक तन में श्वाँसे चलती।
विरह विपद में कान्हा भजती।
हम वृष तनुजा हे साँवरिया।
पर सचमुच कान्हा तू छलिया।
.         -------
दिन भर मन में आहें भरती।
हम सब सखियाँ कान्हा तकती।  
अब कुछ हँसले प्यारे सजना।
फिर नटवर  तू  राधे भजना।
 .          ---+--
गिरधर सब की बाते सुनते।
पर निज मनमानी ही करते।
तट  तरु वन में ढूँढा  करते।
पर तुम मन राधा के बसते।
.           -------
©~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ

२.                पंचचामर छंद

विधान:--
१२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ (आठ बार)
१२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ (आठ बार)
दो दो चरण सम तुकांत हो,
चार चरण का छंद होता है।
.                    ‌‌‌‌‌‌       ......
.                         बसंत
.                      ..........
बसंत दूत कोकिला  विनीत मिष्ठ बोलती।
बखान रीत गीत से  बसंत गात  डोलती।
बसंत  की  बहार में  उमा महेश साथ  में।
बजाय कृष्ण बाँसुरी विशेष चाल हाथ में।
 .                       .......
दिनेश  छाँव  ढूँढते   सुरेश  स्वर्ग  पालते।
सुरंग  पेड़  धारते  प्रसून  काम    सालते।
कली खिले बने प्रसून  भृंग संग  सोम से।
खिले विशेष चंद्रिका मही अनंत व्योम से।
.                        .......
पपीह मोर  चातकी  चकोर शोर काम के।
बसंत  बाग  फाग में  बहार बौर आम के।
बटेर   तीतरी  कपोत  कीर  काग  बावरे।
लता  लपेट खाय  पेड़ मौन कामना  भरे।
.                        .......
निपात होय पेड़ जोह बाट फूल पात की।
विदेश पीव  है  बसंत याद  कंत बात की।
स्वरूप  ये  मही सजे  समुद्र छाल  मारते।
पलंग शेष  क्षीर सिंधु विष्णु श्री विराजते।
.                        .......
मचे  बवाल कामना  पिया पिया पुकारते।
बढ़े, सनेह  भावना  बसंत  काम  भावते।
निराश हो न छात्र भी नवीन पाठ सीखते।
बसंत  के  प्रभाव  गीत चंग संग  दीखते।
.                        .......
मने   बसंत  पंचमी  मनाय  मात  शारदा।
मिटे समस्त कामना पले न घोर  आपदा।
विवेक शील ज्ञान संग  आन मान शान दे।
अँधेर नाश  मानवी प्रकाश स्वाभिमान दे।
.                      .......
बसंत  की  उमंग    संग  पूजनीय  शारदे।
किसान भाग्य खेल मात कर्ज भार तारदे।
फले चने  कनेर  आम  कैर बौर  खेजड़ी।
प्रसून खूब  है खिले शतावरी खिले जड़ी।
.                        .....
पके अनाज खेत में  कपोत  कीर  तारते।
नसीब  हाय होलिके  हँसी खुशी पजारते।
विवाह साज  साजते  विधान ईश  मानते।
समाज के विकास को सुरीत प्रीत पालते।
.                        .....
विशेष शीत मुक्ति से सिया समेत राम से।
घरों समेत खेत के  सुकाम मे सभी  लसे।
विशाल भाल भारती नमामि मात आरती।
हिमालयी  प्रपात  नीर  मात गंग  धारती।
.                        .......
अखंड  देश  संविधान  वीर  रक्ष  सर्वदा।
प्रणाम है शहीद को  नमामि  नीर  नर्मदा।
बसंत  की उमंग  फाग संग छंद  भावना।
सुरंग भंग  चंग  मंद  मोर  बुद्धि  मानना।
.                .........
.©~~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा °बौहरा" विज्ञ

३.            वर्ष छंद

विधान - मगण तगण जगण
        २२२  २२१ १२१
९ वर्ण ४ चरण 
दो-दो समतुकान्त

.     __अरमान__      

आतंकी को  दें अब दंड।
होते  जाते   भीरु  उदंड।
आओ वीरों  दें  बलिदान।
नापाकी का  मेट निसान।

कान्हा राधे को अब भूल।
दुष्टों   को  संहार   समूल।
हे   कैलासी  तांडव  धार।
आर्यावर्ती    संकट   टार।

शिक्षा  ऐसी  दो  भगवान।
माता  का  साधे  अरमान।
वीरों  को   देवें  सब  मान।
दें, वीणा  धारी  वह  ज्ञान।

आओ   सारे  भारत  वीर।
माताओं  को  दे मिल धीर।
वीरों की  पत्नी  मय बाल।
सम्भाले   पूँछें  अब  हाल।
.          .......
©~~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ

४.            चंडरसा छंद

विधान:--
१११    १२२
नगण,   यगण
६ वर्ण, ४ चरण,
दो दो सम तुकांत

__शहीदों__

नमन शहीदों।
वतन मुरीदों।
मर मिट जाते।
अमर कहाते।

वतन सँभाला।
बन रखवाला।
अमिट निशानी।
यह बलिदानी।

बन उपकारी।
वजह हमारी।
तन मन वारे।
अमन सँवारे।

कसरत कारी।
हम बलिहारी।
नमन सु वीरों।
सुत रण धीरों।

पवन पुकारे।
चमन निहारे।
अमित जुबानी।
अमर कहानी।

सुजन  निराले।
सरहद    वाले।
हक  मत देना।
जय जय सेना।

जयतु गुमानी।
जय बलिदानी।
सुरग  परिंदों।
नमन शहीदों।
.     ------
©~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ

५.            तिलका छंद

.  विधान:- ११२  ११२
.           सगण  सगण (६ वर्ण)
चार चरण, दो चरण समतुकांत

ध्वज में लिपटे
.      ------

मन  के जप से। 
तन के  तप  से।
मनुवा  सज के।
बल  सूरज  के।

करना   सबका।
अपना   उनका।
उपकार    सदा।
तब क्या विपदा।

अपने पन   का।
निजका पर का।
घर   है   वसुधा।
मन क्या दुविधा।

भगवान    भजे।
अभिमान  तजे।
अरमान    फले।
भय  रीत   टले।

इस    देश   रहें।
परिवेश     कहे।
हर भाँति सुखी।
सम  सूर्य मुखी।

भज मात पिता।
निज देश जिता।
परिवार     रखे।
करतार    सखे।

मन  शान  बना।
सज  के सजना।
ध्वज में  लिपटे।
अरि  से  न हटे।

सजनी  लिपटी।
तनुजा   चिपटी।
सुत   मात  लुटे।
पितु  आस मिटे।

जय हिन्द कहा।
रिपु  सैन्य जहाँ।
बलवान    गया।
असमान   नया।

निभ  रीत तभी।
बलिदान  सभी।
शुभ   नाम  रहे।
मन  छंद   कहे।

बस  रीत  बची।
मन  प्रीत  बची।
परिवार     रहा।
पर  चैन   कहाँ।
.      ------
©~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ

६.        जलधरमाला-छंद

विधान:---
विधान-२२२ २११ ११२ २२२
चार चरण, दो दो समतुकांत
१२ वर्ण, ४ वर्ण पर यति

गीता गाएँ.....
...      कविजन कान्हा वाली
.          -----+-----
सेना सारी, सरहद  चौकी आती।
आतंकी  की, धड़कन  है थर्राती।
हे  माताओं, ललन  तुम्हारे प्यारे।
माँ  की आशा, वतन सुरक्षा धारे।

आजादी की, सरगम खोते पापी।
आतंको से, यह धरती माँ  काँपी।
गीता गाएँ,कविजन कान्हा वाली।
हो तैयारी, रण अब  बाजे  ताली।

शेरों की माँ, निडर सदा ही होती।
है कुर्बानी, कब  समझाती  रोती।
है फौलादी, बहन पिता भी प्यारे।
चाहें  मेरे, सुत   रिपु  को  संहारे।

हिन्दुस्तानी,दम खम देखो बाकी।
गाली  देना, हरकत भी  नापाकी।
शेरों   से  तू,  मत  कर  बेईमानी।
बातें सारी,सुन खल पाकिस्तानी।
.          -------------
©~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ


७.             इन्द्रवज्रा छन्द

विधान:---
विधान-प्रति चरण ११ वर्ण 
२तगण(२२१)+१जगण(१२१)+२गुरु
 दो-दो चरण समतुकान्त
.          ------- ------
कैसे लुटा दें कशमीर क्यारी
.          ------- ------
आओ सभी भारत के निवासी।
चालें चली है अब जो सियासी।
पाकी  पड़ोसी  करता जिहादी।
आतंक  भारी  ज्वर है मियादी। 

.       सीमा  सुरक्षा  अपनी करेंगे।
.       आतंक  कारी  हमसे  डरेंगे।
.       माँ भारती है हमसे सुभागी।
.       होने न देंगे  उसको अभागी।

सींची  लहू  से धरती हमारी।
कैसे लुटा दें कशमीर क्यारी।
देंगे शहीदी  हम तो  जवानी।
सीमा  निहारे  करलें  रवानी।

.       जीते   जियेंगे   वरना   मरेंगे।
.       आवाम  मेरे  हित  ही  करेंगे।
.       माँ भारती का सपना सजा दें।
.       आतंक सारा जड़ से मिटा दें।  

राधे  मुरारी  धरती   तुम्हारी।
देखो कराहे  दुखिया बिचारी।
पाकी पिशाची करते जिहादी।
सोचे न  पापी  मनुता गँवादी।  

.       माने  मनादे   समझे  बतादे।
.       गीता हमे तू फिर से सुना दे।
.       हे सारथी आज पुरा कहानी।
.       माँ भारती के हित दोहरानी।
 
सेना  हमारी  तव अारती के।
हो सारथी तू अब भारती के।
आओ कन्हैया  रथ में हमारे।
साथी भरोसे  हम  है तिहारे।

.       मेटे धरा से फिर  पाप सारे।
.       किस्से  बनेंगे अपने तुम्हारे।
.       पापी मरेंगे सत  ही बचेगा।
.       ईमान धर्मी  रखना  पड़ेगा।
.              -------- -------
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ

८.              भुजंगी छंद

विधान:----
यगण १२२×३+ लघु गुरु
१२२   १२२   १२२  १२

.             कामना
.             ----------
सुनो वीर फौजी  तुम्हारे लिए।
जला दीप घी के सभी ने दिए।
तुम्ही  से रहेगी  सुरक्षा  सखे।
सदाचार   सारे     हमारे  रखें।

बढ़े देश की  शान वीरों चढ़ो।
रखो  मान  ईमान  पंथी बढ़ो।
नही भूलना  गान  पंछी  कहे।
वही पातकी  पाक  पीछे रहे।

सखे भारती  आरती धारती।
भला चाहती भावना पालती।
करे  काम  ऐसे  सधे कामना।
सधे साधना मात की भावना।

करामात  ऐसीेे  हताशा मिटे।
पराधीनता की  निराशा कटे।
जहाँ वीरता ही  सदा धारती।
अहो भारती माँ सुने आरती।

जपे शारदे माँ  कथा पावनी।
कहे भक्त भावे मनो भावनी।
रखो देश मेरा भला ही सदा।
टले  घोर ऐसी, बला  सर्वदा।

करे  देश सेवा  बचा बेटियाँ।
पढ़े बेटियाँ तो  सरे नेकियाँ।
हमारी सभी से  यही बंदगी।
बचाएँ सदा ही धरा जिंदगी।

सुनाएँ कहानी  शहीदी  यही।
बताएँ जवानी   रवानी  मही।
करें वंदना ईश  आओ अभी।
बढ़े देश आगे सँभालो सभी।
.             ----+---
© ~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा

९.             कलाधर छंद

विधान:--
२१×१५+दीर्घ=३१वर्ण, प्रति चरण
चार चरण समतुकांत होते है
        
.                 शिव महिमा
.                  ---+-----
शैल पे विराजते हिमाचली शिला प्रभो,
महेश संग पार्वती गणेश विघ्न टाल के।
भूतिया भभूत  अंग  वस्त्र बाघ चाम हैे,
रहे त्रिशूल हाथ शंख कंठ हार ब्याल के।
काल रात्रि मान  पूजते सभी समादरे,  
सुरेश संग में दिनेश देव  भू पताल के।
विल्व पत्र  भोग  दूध  नीर घी दही चढ़ा,
भजे सभी सुकाल चाह मेट काल जाल के। 
.                ----------
गंग की तरंग  शीश चंद्र  की छटा बने,
जटा विशाल नाग संग नंग भूत के रमें।
सिंह पे सवार  साथ नादिया गणेश भी,
महेश संग शैल ही विराजि मात हे रमें।
रोग नाश योग  देय, भोग शोक नाशनी,
निवार पाप शाप को,अजान हूँ करें क्षमें।
ज्ञान दे  सुकाल के विकासमान  काम दे,
सँवार भाग्य योग क्षेम,शील भाव दें हमें।
.                   -----------©~~~~`~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा

  १०.            अपराजिता छंद

विधान-
नगण नगण रगण सगण लघु गुरु
१११ १११ २१२ ११२ १२
१४वर्ण ४ चरण
दो दो चरण समतुकांत।

.                 तांडवी
.                   -----
डम डम डमरू  बजे शिवरात में।
बम बम सबही कहे अब साथ में।
जय शिव जय पार्वती कह आरती।
जन गण मन शिंभु  शंकर  भारती।

सर हद पर वीर धीर सँभालते।
हर हर  बम  भारतीय उचारते।
सजग सकल देश शिंभु कृपा रखे।
मनुज  मन  रहे  सनेह  दया  सखे।

नियति  नियम मान  ईश्वर भावना।
अजर अमर  मातृ भूमि सुकामना।
मनुज  दनुजता  करे  मनु घातकी।
अवसर अब  पाप  मोचन पातकी।

अब शिव कर तांडवी नृत आज से।
 दनुज  दल  हटे  भगे  हिमताज से।
.         --------+-----
"© ~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा

११.           मत्तमयूर छंद 

विधान:---  १३ वर्णीय 
मगण,तगण,यगण,सगण, गुरु
विधान-२२२ २२१ १२२ ११२ २
.                  ----
.       नारी कल्याणी
.                  ------
माया है  संसार  यहाँ  है सत  नारी।
जन्माती  है, पूत निभाती वय सारी।
बेटी माता  पत्नि बनी वे बहिना भी।
रिश्ते प्यारे खूब  निभे ये कहना भी।

होती है श्रृद्धा मन से ही जन मानो।
नारी  सृष्टी  सार  रही  है पहचानो।
नारी का  सम्मान करे  जो मन मेरे।
हो जाए  कल्याण  हमेशा तन तेरे।

नारी है  दातार  सदा ही बस देती।
नारी माँ के रूप विचारें जब लेती।
नारी पृथ्वी रूप सदा ही सहती है।
गंगा  जैसी  धार  हमेशा बहती है।

माताओ ने  पूत  दिए  हैं  जय होते।
सीमा की रक्षाहित वे जो सिर खोते।
पन्ना धायी त्याग करे जो  जननी है।
होगा  कैसा  धीर करे जो छलनी है।

होती हैं  वे वीर  हमारी बहिने  तो।
भाई को  भेजे  अपना देश बचे तो।
बेटी का तो रूप सदा ही मन जाने।
होती  है  ईश्वर  यही  भारत   माने।

पन्नाधायी रीत निभाती तब माता।
बेटा प्यारा ओढ़ तिरंगा घर आता।
पत्नी वीरानी  मन  सिंदूर  लुटाती।
पद्मा जैसे जौहर की याद दिलाती।

राखी खो जाती बहिनें ये बिलखाती।
नारी का ही रूप तभी तो सह जाती।
दादी  नानी  की  कहनी  है  मनबातें।
वीरो  की  कुर्बान  कथाएँ  सब  राते।

नारी कल्याणी  धरती के सम होती।
संस्कारों के बीज सदा ही तन बोती।
माता  मेरा  शीश  नवाऊँ  पद   तेरे।
बेटी  का सम्मान  करें  ओ  मन मेरे।

नारी कल्याणी जननी है अभिलाषी।
बेटी का सम्मान करो   भारत वासी। 
कैसे  भूलोगे  जननी  को यह बोलो।
नारी भारी त्याग सभी मानस तोलो।

आजादी का बीज उगाया वह रानी।
लक्ष्मी बाई  खूब लड़ी  थी मरदानी।
अंग्रेजों को खूब  छकाया उसने था।
नारी का सम्मान बढ़ाया जिसने था।

सीता राधा की हम क्या बात बताएँ।
लक्ष्मी दुर्गा  की सब को याद कथाएँ।
गौरा  गंगा  भारत  की  शान दुलारी।
नारी कल्याणी सब की है हितकारी।
.                 --------
.©~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा  विज्ञ

१२.             चंद्रिका छंद

विधान:---  १३ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
 नगण,नगण,तगण,तगण गुरु 
.      १११ १११ २२१ २२१ २

.          भारती
.          ‌‌‌------------
मन फितरत आशीष ईमान की।
यह हसरत है आज इंसान की।
कर कुदरत को मुक्त हैवान से।
हजरत सब है रिक्त दीवान से।

अरि दल मन से है बईमान येे।
सच सच कहता गीत ले मान ये।
सरहद पर सेना खड़ी भारती।
हर मजहब की आज ये आरती।

यह विनय सभी भारती कीजिए।
वतन हित यही गीत गा लीजिए।
अब जब यह सीमा सजे शान से।
जन गण मन माँ भारती मान से।

जब सिर उठता शान आवाम में।
तन मन धन को वार दो नाम में।
अब रिपुदल की हार संहार हो।
सरहद पर ही शीश शृंगार हो।

अब अमन तिरंगा रहे शान से।
यह चमन सजे भारती मान से।
बुलबुल कहती गीत जो तान से।
हलधर भरता पेट जो धान से।

जनहित हम भी काम को मान दे।
नव कलरव संगीत सम्मान दें।
परहित अपने काज आगाज हों।
जन मन सब संगी न नाशाज हो।
.              -------
©~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा

१३.       प्रमिताक्षरा छंद

विधान:--
 .           12 वर्ण प्रति चरण
सगण जगण सगण सगण
११२  १२१    ११२  ११२

.   जीत जीत अपनी तय हो
.           ...........
             
प्रभु का जिसे भजन है करना।
मन को सदा  सरल ही रखना।
हर  भारतीय   जन  है  अपने।
अब सिद्ध  होय सब के सपने।

जननी धरा वतन नाज करें।
हम  मानवीय  परिताप हरे।
अरमान वीर  बलिदान करे।
भगवान धीर  मम मान धरे।

रथवान कृष्ण जब गीत कहे।
मन मान पार्थ तब  युद्ध सहे।
नदियाँ   तरे   सतत  वैतरनी।
हमको उन्हे सजल है रखनी।

परिणाम  मान  परखे  रहना।
अनजान राह  तकते  सहना।
हरकाज सिद्ध हित मानवता।
कर  युद्ध  वीर हत  दानवता।

अपना महान यह भारत हो।
हर दुष्ट नीच पर  लानत  हो।
हम कर्म वीर कहलाय सखे।
अब रीत प्रीत हर  मान रखें।

लिख गीत छंद हित मानव के।
शुभ सूत्र धार  बन  आनव के।
डर  देख  हीन  मत  तू बनना।
मन मीत  देख  जगते  सपना।

जग जीत वीर  बनना  तुमको।
फिर  धीर  वीर बढ़ना  हमको।
जय बोल बोल अपनी जय हो।
जग जीत जीत अपनी तय हो।
.             -----+-----
©~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा

 १४.            तामरस छंद 

विधान:---
.  १२ वर्ण,१६ मात्रिक
नगण, जगण,जगण, यगण
१११, १२१, १२१ , १२२
.    दो दो पद सम तुकांत 

.            धरती
.            .....
हम जननी कहते धरती को।
यह  धरती  बसने  रहने को।
जगत  सँवार   सनेह  दुलारे।
हलधर  के  हित नेह  सँवारे।

हर पल भू फिरती चलती है।
दिन महिने ऋतुएँ  बनती है।
जग जननी  कहते हम भाई।
यह धरती  सन प्रीत मिताई।

सृजन  सनेह  धरा  सन माने।
खनिज अनेक धरा तन जाने।
सत उपकार  करे  जग माता।
नमन करे  कर जोरि विधाता।

फसल किसान अनाज उगाता।
हमसब  का  बन जीवन दाता।
तरुवर   भूधर  शोभित  नीके।
शशि सम  दीपक है रजनी के।

सहज  प्रदूषण  रोक  धरा के।
अवनति रोक अनीति जहां के।
सरल  स्वभाव  सुधीर सुमाता।
जनम  मनुष्य  सुकर्मन  पाता।

हम धरती ऋण सोच उतारें।
वन तरु  सागर नीर  विचारें।
सजल रहे  नदियाँ, सर सारे।
सरस बहे कविता  पद न्यारे।

खग पशु जीव बसे जन प्यारे।
नभ  तल  भारत   देश  हमारे।
सुजन  स्वदेश   प्रदेश  विदेशी।
रख  निज मात  उदार विशेषी।

जग जननी  धरणी  महतारी।
अविरल भक्ति करे हम जारी।
हसरत  एक   रहे   मन  मोरे।
अविचल  मात  रहे  तन तोरे।

नभ सविता शशि मंडल तारा।
सर सरिता  नद कूल किनारा।
जनम मिले  मनवा तन धारूँ।
नित नित मात सुगीत उचारूँ।

लिख शरमा पद लालन बाबू।
मन अपने  रख  भावन काबू।
सरस सनेह  लिखूँ  पद गाऊँ।
सजल  सुरीत  सुमात सुनाऊँ।
.             -------
© ~~~~~~~~~~`~बाबूलालशर्मा

१५.             चंपकमाला छंद 

विधान:---
 10 वर्ण , १६ मात्रिक  
भगण  मगण  सगण  गुरु 
२११    २२२   ११२   २
दो दो पद समतुकांत हो।
.             -----------
.       होली मरदानी
.               --------
रंग सजे  सीमा  पर सारे।
शंख  बजाए कष्ट निवारे।
संकट आतंकी  बन  बैठे।
कान  उन्हीं के वीर उमेंठे।

राष्ट्र सनेही  भंग  चढ़ालो।
शत्रु समूहों को मथ डालो।
ओढ़ तिरंगा ले बन शोला।
केशरिया होली तन चोला।

याद  करे  संसार  रुहानी।
खेल सखे होली  मरदानी।
चेत सके आतंक न प्यादे।
चंग  सखे  ऐसी  बजवादे।

फाग रमे  खेले हम होली।
झेल सकें सीमा पर गोली।
लाल  गुलाबी रंगत  होनी।
भूमि हमारी  रक्तिम धोनी।

शीश उतारे  शीश  कटा दें।
भारत माँ की शान बढ़ा दें।
चंग बजा लें  शंख बजा दें।
रंग   लगा  दें  रक्त  बहा दें।

गीत  सुना  हूँकार सुनाएँ।
शेर   दहाड़े  गीदड़  जाए।
देश  हमारे  फागुन  होली।
सैनिक  सीमा रक्त रँगोली।

घात लगाते कायर घाती।
वीर लड़े ये छप्पन छाती।
खूब जलाते हैं हम होली।
युद्ध करें ये सैनिक टोली।

रंग  लगाएँ   प्रेम   करेंगे।
सीम सुरक्षा  काज लड़ेंगे।
मान  तिरंगे का रखना है।
गान शहीदी  का रटना है।

झेल  सको  बंदूक सुवीरों।
खेल सको होली रणधीरों।
देश   हमारा  शान  हमारी।
पर्व  बहाना  बात  सँवारी।

भारत माँ की सूरत भोली।
चाहत सीमा खून व गोली।
ताकत वीरों खूब  सतोली।
मर्द बनो खेलो अब होली।
.               ----
©~~~~~~``~~बाबूलालशर्मा विज्ञ

१६.            वेगवती छंद 

विधान:--
  चार चरण, २,२ चरण
समतुकांत
.    सगण सगण सगण गुरु,
.          (१०वर्ण)
 .      ११२  ११२  ११२  २ 
.              ........
.              चाहत
.                .......
धरती अपनी  जन माते।
शशि से उजली नव राते।
सविता तम को हर लेता।
रचना सब की कर  देता।

रखती  सबसे  अपनापा।
सहती जग के भव तापा।
अपनी जननी जग माता।
मन से निभता यह नाता।

मनभावन  रंग  शहीदी।
लगता हर  मान मुरीदी।
अपनी मजबूत सु बाहें।
बस मान शहादत चाहें।

मन मे  अरमान  तिरंगा।
यह  देश रहे  बस  चंगा।
बस भारत हो यह ऊँचा।
तकता  रह विश्व समूचा।

करता  पद  वंदन  माता।
रचना लिख मैं गुण गाता।
तुमको  सब  अर्पण मेरा।
तन  ये  मन  जीवन तेरा।
.            ---------
©. ~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा

१७.           दोधक छन्द

 विधान:--
.  भगण भगण भगण गुरु गुरु
२११,२११,२११,२२
यति - (६,५ वर्ण पर)
कुल १६ मात्रा,११ वर्ण प्रति चरण।
          ...............
. छंद भला कब कर्ज चुकाते
.         ...............
छंद रचें  कवि, मुक्तक कैसे।
पत्नि कहे नित, लावन पैसे।
पेट भरे कब,  छंद   तुम्हारे।
नित्य कहे हम, तो अब हारे।।

पुत्र  कहे  सुन, तात   हमारे।
शुल्क भरो अब,सोच सकारे।
रोज  सुने  मन, मार तकाजे।
वक्त बुरा  मम, द्वार  विराजे।।

वस्त्र सुता हित,माथ खपाती।
भात  चहे नित, दाल चपाती।
गीत  रचे  मन , प्रीत  जगाते।
पेट  भरे  कब,  रीत   बताते।।

भोजन  औषध, नूतन खर्चे।
बर्तन  भूषण, कर्ज  सु चर्चे।
भाव भरे कब, गीत बिताते।
छंद भला कब, कर्ज चुकाते।।

आस जगी जब,लेख छपेंगे।
भाग्य बने कुछ, दाम मिलेंगे।
छाप  रहे  धन ,लेकर  देखा।
लेखक लेखन के भव लेखा।।

अर्थ  बिना घर, बाल दुखारे।
किस्मत ने हम, खूब बिसारे।
कौन  सके अब, देय  मँजूरी।
शासन की जब,हो न हजूरी।।
.        ............
©. ~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा

१८.       शुभमाल छंद

 विधान:---
.     जगण ,  जगण 
.       १२१ ,   १२१
.      ६ वर्ण, ८ मात्रा
दो दो चरण सम तुकांत
चार चरण का एक छंद

.         स्वदेश महान
.          °°°°°°°°°°
करें जय गान!
शहादत शान!
सुवीर जवान!
स्वदेश महान!

करें  गुण गान!
सुधीर किसान!
पढ़े   इतिहास!
बचे निज त्रास!

धरा निज मात!
प्रणाम  प्रभात!
पिता  भगवान!
सदा  सत मान!

रहे  यश  गान!
स्वदेश  महान!
प्रवीर   जवान!
सुधीर किसान!
.   *****
©. ~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा

१९.             पदममाला छंद 

विधान:--
रगण रगण गुरु गुरु
२१२  २१२  २   २
८ वर्ण, १४ मात्रा
दो दो चरण समतुकांत
चार चरण का एक छंद

.      बेटियों
.       ------
शारदे आप ही आओ।
कंठ मेरे  तुम्ही  गाओ।
शान  बेटी  सयानी के।
बात किस्से गुमानी के।

धाय  पन्ना बनी माता।
मान  मेवाड  है  पाता।
पद्मिनी की कहानी है।
साहसी जो  रुहानी है।

बात  झाँसी महारानी।
शीश हाड़ी दिए मानी।
वीर ले जा निशानी है।
बात सारी सिखानी है।

बेटियों  को  बचानी है।
शान शिक्षा दिलानी है।
कर्म कर्त्तव्य  भी जानें।
वक्त की माँग को मानें।

शान  मानें  तिरंगा  की।
बेटियाँ, आन  गंगा की।
गीत  गाओ सुनाओ तो।
चंग  साथी बजाओ तो।

देश  के   गीत  गाने हैं।
भारती   के   तराने  हैं।
भाव  सद्भाव  वे सच्चे।
पालने   प्रेम  से  बच्चे।

सैनिकों के  हितैषी हों।
बेटियाँ मान  पोषी  हो।
नागरी मान  हिंदी  का।
भारती भाल  बिंदी का।

हिंद  के गीत गाऐं जो।
शत्रु के शीश लाऐं जो।
वीर जन्में शिवा  जैसे।
पूत  पालें  सुता   ऐसे।

छंद  गाएँ  जवानों  के।
अन्नदाता किसानों  के।
बेटियों  वीरता   गाओ।
राष्ट्र  में  धीरता लाओ।

देश की शान  बेटी  हो।
राष्ट्र का मान  बेटी  हो।
सृष्टि का सार  बेटी  हो।
ईश  आभार   बेटी  हो।
.  -------------
© ~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा

२०.            विमला छंद
 
विधान
सगण मगण नगण लघु गुरु
११२   २२२  १११   १   २
११ वर्ण, १६ मात्रा
चार चरण, का छंद
दो दो चरण समतुकांत

.    ‌     घुटती  श्वाँसे
‌.           ---------
बिटिया   कैसे  दुर्दिन  सहती।
किस  से बातें  मानस कहती। 
परखी  जाती  मात  उदर  में।
घुटती   श्वाँसे   घात अधर में।

करते   सारे   लोग  बतकही।
बिटिया जाने रीति अन कही।
मरवा   देंगें   पूर्व  प्रसव  के ।
कटवा  डालें   निर्दय मन के। 
 
बिटिया हत्या  में जन मन है।
बचते  क्या  ऐसे  बचपन  है।
चल   पाए  संसार   सरलता।
रखना  सीखो  भाव तरलता।

करते  हो क्यों नाशक करनी।
तुमको ही  है  आखिर भरनी।
तनया  से ही  सृष्टि निखरती।
समझें भू की शान  बिखरती।

अपमानोगें  जो यदि बिटिया।
तय  मानो  डूबे  जग लुटिया।
कथनी  जैसा  मानस कर ले।
बिटिया  संरक्षा  चित  धर ले।
 .        --------
©~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

२१.     ‌‌‌‌‌‌        गाथ छंद

 विधान:--
८ वर्ण, १३ मात्रा
रगण सगण गुरु गुरु
२१२  ११२  २  २

.        __जय__

भारती कहती आओ।
गीत भारत  के गाओ।
छंद या  कविता दोहे।
मानवी मन  को मोहे।

आज मानव को भारी।
देह   नाशक    तैयारी।
एकता  अब तो  धारो।
शत्रु  का  दल  संहारो।

पातकी जन को जानो।
ईश को अब  तो मानो।
स्वच्छ हो  तन तो तेरा।
देश भी  जय  हो मेरा।
.         -------
©~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा, बौहरा ( विज्ञ )

२२.          विज्ञात छंद 

विधान:--
८ वर्ण , १३ मात्राएँ होती हैं। 
प्रति दो चरण समतुकांत
गण  : भगण रगण गुरु गुरु 
२११  २१२   २२

.            कामना
.               ----
सागर पार  से आया।
रोग वही यहाँ  लाया।
विश्व विनाश ये जाने।
मानवता  नहीं  माने।

नाशक  भावना भारी।
युद्ध   विषाणु  तैयारी।
सत्य  सुनीति को भूले।
स्वार्थ अनीति के झूले।

फैल  रही  महामारी।
भारत  है  सदाचारी।
जीत  सदा  रहे तेरी।
आनव  कामना मेरी।

मानस  भाव विज्ञातं।
आज हुलास संज्ञातं।
भारत  भारती  हिंदी।
विज्ञ लगे भली बिंदी।
.          ~~
© ~~~~~~~बाबू लाल शर्मा ' विज्ञ'

 .२३.       भुजंगप्रयात छंद 

विधान:--
१२२ × ४ ( यगण यगण यगण यगण)
चार चरण , दो दो चरण सम तुकांत हो

.       ____प्रतीक्षा____

हमारा भरोसा  तुम्हारे सहारे।
प्रभो बाग मेरे तुम्ही हो बहारे।
लगी नाव मेरी नदी के किनारे।
प्रभो बोझ भारी इसे पार तारे।

बनाऊँ  सुनाऊँ  लिखूँ छंद तेरे।
दया  हो प्रभो जी हरो कष्ट मेरे।
कहानी लिखूँगा तुम्हारी गुमानी।
रचूँ काव्य दोहा सवैया विहानी।

हमेशा अनेको कथाएँ सुनी है।
इसी  हेतु  मैने चटाई  बुनी  है।
पधारो  यहाँ  बैठ  बातें  करेंगे।
पुराने सभी  घाव  दोनो  भरेंगे।

धरा भारती मानवी आज चाहे।
मिटाओ सभी कष्ट नासूर आहे।
हरो द्वेष सारे दुखो की कहानी।
बनादो  सुहानी नही तो रुहानी।

युगों से यही  पीर  देखी सुनाई।
लिखे लेखनी गीत  नेकी बनाई।
कभी तो सुनोगे दुखों के बहाने।
खड़ी है यहाँ  नाव देखो मुहाने।

विवादी हुआ जीव नेकी गँवाता।
बिना बात भारी हताशा कमाता।
भलाई  बुराई  सभी  रोग  भारे ।
 सुरक्षा  प्रतीक्षा  करे लोग  हारे।
.           _______
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ

२४ .      अनुष्टुप छंद 

विधान:--
८ वर्ण का अर्द्ध समवृत छंद
चारो चरणों में
पहले ४ वर्ण स्वतंत्र, रहते हैं।
चारो चरणों की संरचना--
****१२२२,  ****१२१२
****१२२२,  ****१२१२
सम चरण सम तुकांत रहें।

. __जल सहेज ले__

जल की महिमा भारी,
मर्त्य  जन्म जीव ले।
मनुज  नीर  आभारी, 
याद कर  अतीव  ले।

नर सहेज पानी  को,
भावि संतति भी रहे।
वन   तरु   रहे  पंछी, 
व्यर्थ  जल नही बहे।

घर  घर  बना  टाँके, 
मेह  जल सहेज ले।
जल नही वृथा जाए, 
तू  रख   परहेज ले।

जमीन खेत मेड़ो  से, 
मेह  में  बिरवा लगा।
हरीतिमा  वर्षा  लाए, 
अकाल को परे भगा।
.             __________

©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

२५.          असबंधा छंद

 विधान:--
.              ---- १४वर्ण ----
मगण तगण नगण सगण गुरु गुरु
२२२  २२१  १११  ११२  २   २
दो दो पद समतुकांत हो

.     __गरल शिव पी जाते__

आजादी की कीमत जनमत ने जानी।
आबादी  की  पीर सहज हम ने मानी।
गैरों  का  फौलाद  बदन हम  से हारा।
जीता था  संसार  चकित हम से सारा।

माता के  वे  पूत  सदन  कब के छोड़े।
आतंकी  के  दाँत  कठिन पथ थे तोड़े़।
कुर्बानी  सौगात  वतन  हित  है  मानी।
देते  थे   वे  वीर  सहज  कहते  ज्ञानी।

काया का दे दान  अमर  ऋषि हो जाते।
पीना था जो क्लिष्ट गरल शिव पी जाते।
त्रेता  में   श्री   राम  असुर  कुल  संहारे।
आतंकी  जो  वंश  सहज  हरि  ने  मारे।
.              .  ______
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

२६.            इंदिरा छंद

विधान:--
चार चरणीय छंद, १६ वर्ण
दो दो चरण समतुकांत हो
नगण रगण रगण  लघु गुरु
१११  २१२  २१२  १   २

__प्रणय अग्नि में मर्त्य दाहता__

हृदय  हार तू  प्रीति  रीति  में।
कठिन छंद भी  गीत नीति में।
जगत सत्य को मान कल्पना।
मनुज धारता  व्यर्थ  जल्पना।

समय सत्यता स्वार्थ सिद्धि का।
सफल  गीत  गाएँ  प्रसिद्धि का।
हृदय   मानवी    प्रेम    चाहता।
प्रणय   अग्नि  में  मर्त्य  दाहता।

कठिन   पंथ  है   प्रीति   बावरी।
उदित   सूर्य    लागे    विभावरी।
तमस   राह   में   अंध   भावना।
मनुज देह  की   नित्य   कामना।

सहज  त्याग  ही  प्रेम  साधना।
विमल  प्रीति  में  मीत  बाँधना।
जटिल   प्रेम   का  पंथ मानवी।
सरल   राह   है   प्रीति  दानवी।

.        --------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा  विज्ञ

२७.         उपवेन्द्रवज्रा  छंद

 विधान:--
.------११ वर्ण------
चार चरण का छंद
दो दो चरण समतुकांत
जगण तगण जगण गुरु गुर
१२१  २२१  १२१  २  २

. __नीर निबंध नाली__

जलं डुबो  डूब  रही  तलाई।
झरे    नित्य    बही   ललाई।
नदी  कुएँ पोखर बंध खाली।
सखे  बहे  नीर  निबंध नाली।

सखे    वारि    बहाव   रोको।
अनीति के कर्म कृपालु टोको।
प्रकाश का  सागर  मूर्ख जाने।
सुकाल में  गागर  'विज्ञ'  माने।

रुके  बहे  नीर  सुजान  सारे।
कहो  यही  आपद आज टारे।
जलं बिना धीर किसान खोए।
फँसे  बिना  नीर  अनाज बोए।
 
कुएँ  बनालो  जल  रोकना है।
सखे  सभी को यह टोकना है।
रहे  बचे  जीवन भावि  मानो।
सखे  सभी कीमत नीर जानो।
.             ______

©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

२८.           कण्ठी छंद 

विधान:-----
५ वर्ण , चार चरण
दो दो चरण समतुकांत
जगण  गुरु  गुरु
१२१    २     २

_सदा जगाते_

स्वदेश  मानो।
प्रदेश   जानो।
विदेश  त्यागो।
भवान   जागो।

सुविज्ञ  संगी।
सखी  पतंगी।
मयूर     नाचे।
पपीह    वाचे।

किसान जागे।
मिठास  लागे।
बसंत    आए।
पिकी  फुलाए। 

विभात रोना।
विधान धोना।
अतीव चोखा।
अमित्र धोखा।

विचित्र   बातें।
विनीत   घातें।
पुनीत     रातें।
सदा    जगाते।
.  ____
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

२९.          कुसुम सुमुदिता छंद 

विधान :---
कुल १० वर्ण प्रतिचरण
चार चरण का छंद
दो दो चरण समतुकांत हो
 भगण  नगण  नगण  गुरु
  २११   १११   १११   २

 .          पिता
.          °°°°°
है पितु प्रभु सम भरता।
कर्म  सुवन हित करता।
आसन हरि सम रखना।
छाँवन   वरद  परखना।

शीत  तपन घन हरता।
श्वेद  सहित तन करता।
जन्म मरण  हित सरते।
संतति  हित पितु मरते।

अम्बर  सम सत रहता।
भीषण तम सब सहता।
बन्धु सुजन गुरु बनता।
शत्रु दलन  पितु तनता।

तारक नभ ध्रुव स्थिरता।
नीड़ हित पितु विचरता।
यौवन तज सब सुखदा।
तात समझ सुत विपदा।
•.            °°°°°°°°
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

 ३०.       --: कनक मंजरी छंद :--

विधान :---
४ लघु(१) +६ भगण (२११)+ गुरु
११११+२११+२११+२११
२११ + २११ + २११ + २
चार चरण, दो-दो समतुकांत

.      __लक्ष्मण शक्ति__

रघुवर सोच करे मन में जब
लक्ष्मण के तन घाव लगा।
वन वन में भटके प्रिय लक्ष्मण
कष्ट सहे तन भाव जगा।
अब रण मे तुम मूर्छित हो तब
कौन रहा मम साथ सगा।
हनुमत बोल पड़े तब लो प्रभु
लाउँ सजीवन जाउँ भगा।

जब कुछ शोक मिटा प्रभु का तब
धीर कहे हनुमान सखा।
गिरि पर जाकर औषध लाकर
लक्ष्मण के भव प्राण रखा।
हनुमत जा पहुँचे गिरि औषध
ला प्रभु के पद पास रखे।
अनुज उठे प्रभु को कर जोड़त
धन्य प्रभो हनुमान सखे।

.          _________
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

३१.        गजपति छंद

 विधान:--
८ वर्ण प्रति चरण का छंद
चार चरण, 
दो दो चरण समतुकांत
नगण  भगण  लघु  गुरु
१११    २११    १    २

__बचा जल सखे__

जल सदा परखना।
बचत  नीर  करना।
जल सजीवन करे।
वन  हरे  तन  भरे।

जन सुनो जल बचे।
जन तभी  भव नचे।
रख बचा जल सखे।
जग बचा  जन रखें।

मनुज  नीर न  बहे।
वनज  पीर  न सहे।
तरु  रहे    द्रुम  रहे।
जल  बचे सब कहें।

कम विदोहन  करें।
फिर  धरा तल भरें।
पय   बराबर  सखे।
जल  सजीवन रखे।
.        ____
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

'३२.           गिरिधारी छंद

 विधान:--
१२ वर्ण, प्रति चरण 
चार चरण, दो-दो समतुकांत
सगण   नगण   यगण   सगण
११२     १११   १२२  ११२

.      __तृष्णा मचली__

छलिया सजन दिखाते सपने।
सजनी  विरह  बखाने  अपने।
तकती दिवस निशा मैं उनको।
तितली बन  मन चूमें जिनको।

पपिहा शुक पिक बोले तरु से।
जलते  हृदय  अँगारे   स्वर से।
नयना  पल पल  ताके सजना।
जगते  सपन  हिँडोले  छलना।

सखियों  रिमझिम वर्षा बरसे।
गरजे   घन  मन   मेरा  तरसे।
अब तो तन मन चाहे मिलना।
चढ़ते  पग  पग झूलें खिलना।

पिव क्यों पिक तुम बोली पगली।
चुप  हो  तन  मन  तृष्णा मचली।
चढ़  क्यों  तरु  पर  पींगे  भरती।
हम  तो  पिव  बिन  झूले  डरती।


©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

३३.          घनश्याम छंद 

विधान:--
प्रति चरण १६ वर्ण 
६, १६ वें वर्ण पर यति
चार चरण, दो-दो समतुकांत

जगण जगण भगण भगण भगण गुरु
१२१  १२१  २११    २११  २११  २

.     __किया जब नेह नीर__

कृपा कर  नीर,देव  धरा जल  पीर  हरो।
वृथा जल  नष्ट,कार  उन्हे  अब दंड धरो।
विदोहन दुष्ट,  जो  कर नीर बिगाड़ वृथा।
उन्हे अब दण्ड, दे जल देव सुधार व्यथा।

रहा जल  बीत, है  बिन अंबु   निभाव कहाँ।
निभे  जग  जीव,  रीत  धरापन  भाव  यहाँ।
किया  जब नेह, नीर  तभी जन जन्म हुआ।
रही कब कौन, रीति कहाँ जल को न छुआ।

सुनें  सच  बात, जीव  यहाँ बच नीर रहे।
कहे कवि  छंद, गीत  दुखी मन नीर बहे।
किए जल नष्ट, भावि मरे जन नीर बिना।
बचे फिर कौन, 'विज्ञ' सहे सब पीर गिना।               
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

३४.          " चंचला छंद "

विधान:--
१६ वर्ण प्रति चरण का छंद
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
रगण  जगण  रगण  जगण  रगण  लघु
२१२   १२१   २१२   १२१   २१२   १
गुरु लघु (२१) × ८ = १६ वर्ण

 .          __देव तुल्य धीर पेड़__

कैरियाँ  अनार  आम, कैंत  बैंत  बाँस ढाक।
अन्य वन्य  जीव सर्व , मानवी हिताय आँक।
आक पुष्प  बिल्वपात, दैवयोग पिण्ड साथ।
वेद भक्त  साधु  संत , भाव से  चढाय नाथ।

दूब से  गणेश  पूज, भाव  संग  सौंप  नित्य।
सिद्ध काज होय भक्त,विघ्न को हटाय सत्य।
काट काट  पेड़ नित्य, पाप भार  धार  माथ।
देव तुल्य  धीर  पेड़ , आदमी  सताय  साथ।
.               
पीपली  बबूल  नीम ,आम  जम्बु सागवान।
कैर बेर  खेजड़ी व , धौंक जाल पाल  नेक।
पेड़  आदमी   समान , पेड़  मान  मानवीय।
ये सजीव जाति प्राण, वायु कोष मान एक।

देय और  देय पेड़, लेय  नाहिं   दाम  धीर।
मानवी   हितैष  पेड़ , सर्व  दात्र ज्ञान  पीर। 
हो धरा  हरी  भरी, सु वृक्ष  रोपि पेड़  वीर।
वाटिका  व  बाग गेह , नेह  से सँभाल नीर।

©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*


 ३५.             " चामर छंद "

विधान :-- प्रति चरण १५ वर्ण
चार चरणीय छंद, दो-दो समतुकांत
गुरु लघु ७ बार + गुरु
२१  २१  २१  २१  २१  २१  २१ + २

.       __भाग्य हाय होलिके__

हो बवाल कामना  पिया पिया पुकारते।
ले  सनेह  भावना  बसंत  काम  भावते।
आसवान छात्र भी  नवीन पाठ सीखते।
प्रीत  के  प्रभाव  गीत चंग संग  दीखते।
.                     
ले   बसंत  पंचमी  मनाय  मात  शारदा।
हो समस्त कामना  पले न घोर  आपदा।
नेक शील  ज्ञान संग  आन मान शान दे।
पाप नाश  मानवी प्रकाश स्वाभिमान दे।
.                      
रंग  की  उमंग    संग  पूजनीय  शारदे।
खेत भाग्य खेल मात  कर्ज भार तार दे।
ये चने  कनेर  आम  कैर  बौर  खेजड़ी।
पुष्प खूब है खिले शतावरी खिले जड़ी।
.                       
है अनाज  खेत  में  कपोत  कीर  तारते।
भाग्य हाय होलिके  हँसी खुशी पजारते।
ब्याह साज  साजते  विधान ईश  मानते।
मानवी  विकास को  सुरीत  प्रीत पालते।
.                ________
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

३६..         " तोटक छंद "

विधान:-- प्रति चरण १२ मात्रा
चार चरण, दो-दो समतुकांत
सगण   सगण   सगण   सगण
११२    ११२     ११२    ११२

 __बिरखा जल क्यों बहना__

जल की महिमा सब ही कहते।
जन  जीवन ही जल से मिलते।
गगरी  जल  की मन से रखना।
उस को ढँग से  भरना  ढँकना।

बरसे बिरखा जल क्यो बहना।
जल कुण्ड बना कर के भरना।
बगिया   महके   कपड़े  धुलते।
बिरखा  जल से सर  भी भरते।

सबसे  कहना   सबकी  सहना।
बिरखा जल  व्यर्थ  नही बहना।
रखना इसको  हिय से  मिलता।
सबके हित को जल ही सिलता।
.          ________
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

३८ .      " द्रुतविलम्बित छंद "

विधान :-- प्रति चरण १२ वर्ण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
नगण   भगण  भगण   रगण
१११    २११   २११   २१२

.         __किसान__

तप किसान अनाज उगा रहा।
सब  जियें  धरती  पर गा रहा।
प्रभु यही  वसुधा  पर  मानना।
सतत  चेतन  में  रह  जागना।

रवि तपे तपना  इस को भला।
हिम गिरे  गलना  इसको गला।
सहज  मेह  रहे   तन  भीगता।
ठिठुर  शीत  सहे  तन धूजता।

सरल देव  बना  यह  भूत सा।
कठिन राह किसान सपूत सा।
जटिल काट कृपाण कटार से।
मधुप  मानस   श्वेद  बहार से।
.             ______
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

३८.        " धार छंद "

विधान :-- प्रति चरण ४ वर्ण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
मगण + लघु
२२२  +  १

_सच्चाई_

पानी  रक्ष।
रोपें   वृक्ष।
ज्ञानी संत।
सच्चा पंत।

ऊँची  सोच।
कौआ चोंच।
अत्याचार।
भ्रष्टाचार।

मीठा  बोल।
पूरा    तोल।
अच्छी रीति।
सच्ची प्रीति।

.   ____
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

३९ .     " धुनी छंद "

विधान:--प्रति चरण ७ वर्ण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
भगण + जगण + गुरु
२११  +  १२१  +  २

_प्रेम सपना कहा_

फाग रमना सखे।
रंग   भरना  रखे।
थाप धर चंग की।
घोलकर भंग की।

फागुन चला चले।
मौसम  सहो भले।
गाय अपनी थकी।
धान फसलें पकी।

मेघ  ढलने  लगा।
मेह  टलने  लगा।
ताप बढ़ता हुआ।
शीत घटता हुआ।

मद्य  मँहगा  रहा।
रक्त  सँहगा बहा।
प्रेम  सपना कहा।
देह  अपनी  दहा।
.    ---------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

 ४०.           " नील छंद "

विधान :-- प्रति चरण १६ वर्ण 
चार चरण, दो-दो समतुकांत
भगण भगण भगण भगण भगण+गुरु
२११   २११   २११  २११  २११ + २

.          __प्रेम अधीर__

सावन का मन भावन मौसम है सजना।
आ करलें मन की मन से मन बात बना।
प्रीत सुरीति पले मन पावन  साजन की।
कोयल  मोर  बटेर  कबूतर  के मन की।

झूल रही  बगिया सब साथिन  नाच रही।
हास ठिठोल बनाव सखी सब खाँस रही।
डाल  मरोड़  हवा हिलती तन  ऐंठ  रहा।
खेत  मकान  उठे  नजरें  दिल  बैठ रहा।

आ सपने  करते तुम  प्रेम भरी बतियाँ।
प्रेम अधीर  नहीं  दृग सोवत  हैं रतियाँ।
हेर लिखे मन भाव पढ़ें हिय से पतिया।
प्रीत सुरीति पले सजना धड़के छतिया।
.                -------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

४१. .       " पंक्तिका छंद "

विधान:-- प्रति चरण १० वर्ण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
रगण  यगण  जगण  गुरु
२१२   १२२   १२१  २

.   __पानी बचाइये__

मीत आप पानी  बचाइए।
मेघ पुष्प   दानी  कहाइए।
भावि हेतु आओ सहेजलें।
मेह  नीर  साथी   समेटलें।

पीढियाँ  सरूरी  बनाइए।
नीर तो  जरूरी  बचाइए।
साथियों हमें नीर चाहिए।
आपदा नही खार खाइए।

कुंडियाँ नई खोद लें सखे।
मेह  नीर  पौधे  बचा रखे।
मातृ  भू  कहे नीर चाहिए।
नीर  "विज्ञ" बाबू बचाइये।
.       _________
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

४२.            " पावन छंद "

विधान:-- प्रति चरण १५ वर्ण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
८,१५ वें वर्ण पर यति
भगण नगण जग,ण जगण सगण
२११  १११   १२,१  १२१  ११२

.        __सत सेज सजना__

सावन  सरस   झरे,  गरजे   बरसते।
कोयल  विरह  सुने, दृग से  सरसते।
साजन  शहर  गये, सपना बिखरता।
नैनन  सपन  झरे, हिय भी सिहरता।

भृंग  मधुप  तितली,  बदरे  भटकते।
प्रीत  मिलन  विरहा, सपने  दरकते।
मेघ  सरिस  छलना, बरसे  सरकना।
दर्द  सहज  सहना, चपला चमकना।

आस  प्रियतम बची, मन मीत भँवरे।
स्वप्न निश दिन सजे, तन प्रीत सँवरे।
आप अवसर चुनें, सत सेज सजना।
'विज्ञ' मन जब सहे, कर छंद रचना।

.             ---------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

४३.          " पुट छंद "

विधान :-- प्रति चरण १२ वर्ण
८, १२ वें वर्ण पर यति हो।
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
नगण  नगण  मग,ण  यगण
१११   १११   २२,२    १२२

.   __मिलन बिछुड़ना है__

अहम  खटकता है, भाव  आए।
वहम  भटकता  है,  प्यार  पाए।
मिलन बिछुड़ना  है, रात काली।
हृदय धड़क  जाते, ओष्ठ लाली।

पथ  गुम सकता है, रीति  त्यागे।
भय हट  सकता है, प्रीति  जागे।
फल  कल तजना है,लक्ष्य भारी।
तव हित  सजना है, प्राण प्यारी।

जब मन मिल जाता, स्वप्न आते।
कवि मन  जगता हो, छन्द भाते।
प्रियतम सजना जी, हार  लाओ।
"विज्ञ" मिलन चाहे, आप आओ।

.               ----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

४४.           " पुटभेद छंद "

विधान :-- १७ वर्ण प्रतिचरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
रगण सगण सगण सगण सगण लघु गुरु
२१२  ११२  ११२  ११२  ११२  १  २

.        __शत्रु के हम काल__

साथियों  अपना यह भारत पावन आइए।
भारती जयकार  शहादत  सैनिक चाहिए।
मैं लिखूँ यह छंद नया बस सस्वर गान हो।
आरती जयकार महा व्रत माँ सम मान हो।

मानवी मन भाव भरे  शुभ सावन शान से।
साथ सिंधु  तरंग उठा  मन मानस भान से।
जंग में मिल संग चलाचल  साहस चाहिए।
भारती  शुभ  जीत  धनुर्धर  अर्जुन आइए।

शत्रु के हम काल महाबल  भारत भान हो।
शांति दूत सुकाल महातप  कानन ज्ञान हो।
कृष्ण से ललकार उठो फिर सारथ चाहिए।
धर्म  क्षेत्र  समान वही फिर गायक चाहिए।
.                  _________

©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

४५.      " पवन छंद "

विधान :--१२ वर्ण प्रति चरण
५,१२ वें वर्ण पर यति
चार चरण दो-दो समतुकांत
भगण  तगण  नगण  सगण
२११   २२१   १११  ११२
 
.     __बरस सरकना__

सावन  प्यारा,  गरजत  बरसे।
कोयल  काली,  विरहन तरसे।
साजन आओ,चमन बिखरता।
नैनन   जागे,  सपन  सिहरता।

झूलन   झूले, भ्रमर   भटकते।
कोयल  गाए , सपन   दरकते।
मानस  धोखा, बरस सरकना।
जागत सोना, चपल चमकना।

साहिब  मेरे,   प्रियतम  भँवरे।
प्रीत अनोखी, निश दिन सँवरे।
आस  घनेरी, अवसर  सजना।
'विज्ञ' लिखे ये,भव मन रचना।

.             ---------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

४६ .      " पुण्डरीक छंद "

विधान :-- १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
मगण  भगण  रगण  यगण
२२२   २११   २१२   १२२

.    __घर नीर जान्हवी हो__

वर्षा आए  हर काज  मानवी हो।
कुण्डे खोदें, घर नीर जान्हवी हो।
पानी वाली,भव शान भारती की।
गंगा काशी, हर शाम आरती की।

आशा बोएँ, जल संग्रही बनें तो।
नैना रोये  जल त्रासदी  बने  तो।
खेतों  मेड़ों  पर पेड़ भी लगालें।
मेघो से बारिश  नीर को बुलाले।

डूबेंगे  नाविक   रेत  नीर  खोए।
बाँचेंगे भावि  विनाश, प्राण रोए।
पानी से जीवन प्राण  धीर ठानो।
छंदों की शान सहेज मीत मानो।

•               ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा  विज्ञ

४७ .    " प्रहरण कलिका छंद "

विधान :-- १४ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
नगण नगण भगण नगण लघु गुरु
१११  १११  २११  १११  १   २

.  __तिय कुंडन जल भरती__

घर घर मन  मानस  मचल रहा।
दृग घट शुभ  सावन सरस यहाँ।
विकल विरहिनी  पनघट  तरसे।
रिमझिम झर बादल जल बरसे।

गरज गरजती  विकल बदलिया।
चपल चमकती गगन बिजलिया।
सरवर  सरिता  सरित  विहँसती।
घर घर तिय कुण्डन जल भरती।

मनुज सुजन कुण्ड भरण करते।
घन  सजल सहेज भवन  भरते।
सरस कलम  छंदस कवि रचता।
शुभम कथन सर्वस हित कहता।

.              -------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

४८.        " बिंदु छंद "

विधान :-- १० वर्ण प्रति चरण
६,१० वें वर्ण पर यति
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
भगण  भगण ,  मगण  गुरु
२११     २११ ,  २२२    २

__याद रहे रण हल्दीघाटी__      

भारत  भू  यह , वीरों की है।
जूझ  मरे  रण, धीरों  की है।
बाबर  से  लड़, साँगा राणा।
घाव  घने  तन, जूझा जाना।

बाबर  के  सुत,  के बेटे  से।
खूब  लड़े  तब, थे  हेठे  से।
काँप उठी लख,शाही सत्ता।
वीर लड़े जब, कल्ला फत्ता।

वीर वही वर, राणा  कीका।
आन रखी रिपु, माने नीका।
चेतक कौशल, वाला घोड़ा।
साथ नही वह,  श्वाँसे छोड़ा।

याद  रहे  रण,  हल्दी  घाटी।
चंदन  चेतक ,  सोना  माटी।
जौहर केशर, साका ज्वाला।
भू प्रण रक्षक, खांडा भाला।  

भारत   गौरव,   भू  मेवाड़ी।
वीर महा बल,  चूँडा - हाड़ी।
चंदन  की  बलि, पन्ना माता।
'विज्ञ'' कहे सुन, ज्ञानी गाथा।
.            ------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

.४९.        " बुदबुद छंद "

विधान :-- ९ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
नगण  जगण  रगण 
१११   १२१   २१२

__जल उपहार नेह का__

घन  जल  संग्रही बनो।
तरु वन जीव की सुनो।
जल  पहुँचा  पताल में।
कसर  रही  अकाल में।

घन जल शीश धारलो।
जलज विनाश वारलो।
जल बचना  उजास है।
जन वन  वन्य श्वाँस है।

घर घर कुण्ड लो बना।
घन जल  हेतु  योजना।
जल बहना  विनाश  है।
रख गहना  विकास  है।

जल हित 'विज्ञ' बौहरा।
जल   उपदेश    दोहरा।
जन  रखवार  मेह  का।
जल  उपहार   नेह  का।
.       -------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

५०.         " भक्ति छंद "

विधान :-- ७ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
तगण   यगण   गुरु
२२१    १२२    २

.  __चक्र उठा लूँ तो__

हे  नंद  लला  आओ।
आ दर्श दिखा जाओ।
राधा   बन   जाऊँगी।
मीरा   बन    गाऊँगी।

हे कान्ह  चले आओ।
ये कष्ट   मिटा जाओ।
रुक्मा  सम  चाहूँ  मैं।
सत्या सम  ध्याऊँ  मैं।

हूँ  भारत   की   नारी।
जो  साहस  में   भारी।
लक्ष्मी   बन  जाऊँगी।
दुर्गा   बन    जाऊँगी।

साड़ी खिंचने  दूँ क्यों।
कृष्णा बन  रोऊँ क्यों।
जो चक्र  उठा  लूँ  तो।
बंशी  बजवा  लूँ   तो।
.      ---------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

५१.        " भूमि सुता छंद "

 विधान : --  १२ वर्ण प्रति चरण
( ८,१२वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत
मगण  मगण  मगण   सगण
२२२   २२२   २२२    ११२

         __यादें वे बातें__

मेवाड़ी राणा की गाथा, जो कहते।
आँखों से आँसू के  धारे, तो बहते।
बप्पा की यादें वे  बातें , जो सुनते।
कुम्भा के युद्धों  निर्माणों, से गुनते।

सांगा के हस्सी घावों के, भाव सुने।
पट्टी बाँधे घावों  धावों से, याद बुने।
पन्ना  जैसी  माताओं  के, तेवर की।
संगी साके  पद्मा कर्मा, जौहर  की।

चित्तौड़ी योद्धाओं की जो,खेत रहे।
संतानों को  सौंपें  थे  जो, रीत बहे।
थाती हल्दी घाटी माटी, लाल बनी।
राणा कीका की सेनाए, काल बनी।

यादें खाँडा  भाला चोगा, रीत रखे।
भामा शाही  रीतें  सारी, बात सखे।
मेवाड़ी भू  बेटो  की  वे, वीर कथा।
राणा  रक्षे वो घोड़ा जो, चेतक था।
.               ---------+--------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

५२.            " भृंग छंद "

 विधान:-- २० वर्ण प्रति चरण
( १२,२० वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत
नगण नगण नगण नगण, नगण नगण गुरु लघु
१११  १११  १११  १११,१११ १११  २  १

.          ___गिरत फुहार___

घर घर  मन भर  मचल मचल  गिरत फुहार।  
दृग घट सम  समय  समझ  पनघट पनिहार।
विकल विरहिन विकट विपद मय तरस तीर।
रिमझिम झर  झरत जलद  भल बरसत नीर।

गरजत  गरज  गरज  उमड़   घुमड़  बरसात।
चपल  चमकत    चटक  चहकत   गिर जात।
सरवर सलिल  सरि सरित  सरिस सहज झुंड।
घर  घर हर  तिय जल  भरत  घट घटित कुंड।

मनुज  सुजन  भरण करत  भव हित जल बंध।
घन  सजल  सहज  भवन  भरत   बरषत अंध।
सरस  कलम कवि जन कवि मन  रचियत छंद।
शुभम कथन सब सहित हित कहि मिटहि फंद।

.              -------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

५३.        " मंजुभाषिणी छंद "

विधान:--- १३ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
सगण  जगण  सगण जगण + गुरु
११२   १२१   ११२    १२१   +२

.          __मातृभूमि__

जय मातृभूमि तव शान ही बढ़े।
मम शीश देह तन  रक्त भी चढ़े।
बलिदान वीर सुत  नित्य हो रहे।
तन प्राण देश हित  वीर खो रहे।

अरमान देश  हित  कामना करूँ।
लिख छंद लोकहित भावना भरूँ।
मनभाव वीर हित  गीत बना कहें।
तुलसी कबीर सम छन्द सदा बहे।

मम देश  भारत  जयी  रहे  सदा।
सुत  वीर   सैनिक  सपूत  सर्वदा।
जय  भारतीय  जय  भारती   रहे।
हर  श्वाँस  देह  यह  आरती   बहे।
.              ---------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

५४ .         " मंदाक्रांता छंद "

 विधान:--- १७ वर्ण प्रति चरण
   ( ४,१०,१७ वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत
मगण,भगण,नगण,तगण,तगण,गुरु,गुरु
२२२,२११,१११,२२१,२२१,२ २

.         __आजादी__

आजादी के, पथिक पिछले,
 गीत गाएँ सुनाएँ।
वीरों आओ, सजग सपने,
आज लाएँ सजाएँ।
अंग्रेजों के, कदम उखड़े,
पूत जागे हमारे।
गूँजे नारे, सजग जनता,
भारती मात तारे।

भू माता की, विजय हित में,
दे रहे प्राण बेटे।
काँपे गोरे, पतित डरके,
ले कलेवा समेटे।
गाँधी जी को, नमन करते,
वीर गाते तराने।
भागो गोरों, कुशल बच के,
सत्य होंगे डराने।

.             ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

५५.           " मनविश्राम छंद "

 विधान:--- २१ वर्ण प्रति चरण
( १०,२१,वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत
भगण,भगण,भगण,भगण,भगण,नगण,यगण
२११  २११  २११  २११  २११  १११  १२२

.    __झूल रही मन मार__

आवन सावन मास कही,
पर साजन विरत न आए
कोयल बैरिन कूक रही, 
हिय दाहक अगन लगाए।
मेह धरा मन नेह पिया, 
कब आकर नयन निहारे।
मीत बना मन भूल गये, 
अलि शायद हृदय सहारे।

झूल रही मन मार सखी, 
बस भूलन सजन पियारे।
याद रहे तन भार रहे,
मन सावन शरण सहारे।
प्रीत भले कर रीत पले, 
यह चाहत बदन हमारे।
चैन गया मन रैन खटे,
पिय आवत सहज सँभारे।

.               -------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

५६.        " मनोज्ञा छंद "

विधान :--- ७ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
नगण रगण  गुरु
१११  २१२   २

__शुक कहे कहे रे__

जल  बहे  बहे  रे।
शुक  कहे  कहे रे।
नर जगो उठो भी।
कुछ नये करो भी।

मनुज नीर  आहें।
हृदय  भाव  चाहे।
सरल  बोल वानी।
सजग रोक पानी।

जल  करो सुरक्षी।
जल भरो सुकक्षी।
तृषित  जीव सारे।
विवश  वृक्ष  हारे।

नर  उपाय  लाओ।
जल कक्ष बनाओ।
सब  नीर  बचाओ।
मत व्यर्थ  बहाओ।
.  --------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

५७.      " मलयज छंद "

विधान :-- ८ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
नगण नगण लघु लघु
१११  १११   १    १

__जल हितकर__

सरस विमल जल।
बरषत   पल  पल।
नर जग  कुछ कर।
रख  अमरित  भर।

गगन  कुसुम  वर।
रख जल हितकर।
खग तरु पशु जन।
सब हित जन मन।

शुक पिक मछ बक।
जल  पर  रख  हक।
सरि    घट    सरवर।
जल  रख  भर  कर।

नर जल हितकर।
घर  पथ  जलघर।
सब  हित रह यह।
गुरु कविजन कह।
.       --+--
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा  विज्ञ

५८.          " मालिनी छंद "

 विधान :--- १५ वर्ण प्रति चरण
( ८, १५ वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत.
नगण  नगण  मगण  यगण  यगण
१११   १११   २२२   १२२  १२२

.      __तड़पत क्षत पंखी__

प्रभु  रघुवर  प्यारे, छंद सीखूँ  तुम्हारे।
लिख लिखकर हारा, बंध देखो हमारे।
पितु कर वचनों को, आप पाले सँवारे।
वन वन  भटके  थे, राह  पंथी  निहारे।

निसचर दल मारे, शांति का सेतु साया।
तन मन सच  साधे, संत आशीष पाया।
भजन भवन काया, आपके दास मानी।
विमल मनुज वे  ही, भक्ति धारे सुहानी।

सिय हरण हुआ तो,वो जटायू भिड़े था।
तड़पत  क्षत  पंखी, लक्ष्य हारे पड़ा था।
वन  तप  शबरी  ने, बेर  मीठे  खिलाए।
फिर कपि हनुमंता, ला सुकंठा  मिलाए।

मम कविमन चाहे, दर्श  पाना तुम्हारा।
सच मिथ लिखता हूँ, राम पाने सहारा।
मम मन  तरनी को, ईश तारो  किनारे।
लिख यह पद  बाबू, लाल शर्मा उचारे।
.                  --------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

५९ .          " मोटनक छंद "

विधान :--  ११ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
तगण जगण जगण लघु गुरु
२२१   १२१  १२१    १ २

    __साजन प्रीत वही__

हे मेघ धरा  जल चाह रही।
मेघा मन सावन  प्रीत बही।
झूले तरु में  कवि गीत रचे।
पंछी पिक मोर कपोत नचे।

संगी अब सावन आ रहना।
मेरे मन का तन का कहना।
पानी सिर ऊपर आज चले।
जागे  सपने  अब प्रीत पले।

पेड़ों   पर  बेल  लपेट  लगे।
फूलों  हित  भृंग तुरंत  भगे।
मेरे हिय  मीत बने  तुम  ही।
शर्मा  मन  छंद रचे  हम ही।

सारी  रतिया लग  नैन नहीं।
नैना  भगते  मन चैन  कहीं।
यादें बस साजन  प्रीत बही।
छंदों सँग 'विज्ञ' प्रतीक वही।
.         ------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ

६०.      " मौक्तिम दाम छंद "

विधान :-- १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
जगण  जगण  जगण  जगण
 १२१    १२१    १२१   १२१

 .  __भूमि बचे जब नीर__

सखे यह  भूमि बचे जब नीर।
बचा जल मीत धरा जन पीर।
चढ़े नभ  मेघ  घने घन श्याम।
सचेतन मीत  बना जल धाम।

भरो बिरखा जल भूतल मीत।
करो  नर   नीर  पुरातन  प्रीत।
तभी भव  जीवन जंतु सजीव।
नहीं सब  होय  धरा निर जीव।

बहे जल  मानव  हार  प्रमाण।
रहे  तब  जंगल  जीवन  त्राण।
उठो अब नीर  सँभाल सुजान।
मही पर  जीवन जोखिम मान।

समाज विकास कमान सँभाल।
दिखा  कुछ नूतन मीत कमाल।
बना घर  कुण्ड व  खेत तलाव।
रहे  जल  भू तल  मीत  भराव।
.           -----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

६१.       " यशोदा छंद "

विधान:--- ५  वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
जगण  गुरु  गुरु
१२१    २    २

. __ माता__

विकास कारी।
विनीत  भारी।
अहो  सुमाता।
नही  विमाता।

दया   तुम्हारे।
सभी   सँवारे।
किसान दाता।
पुनीत   माता।

तुम्ही   सपूती।
नहीं    कपूती।
शहीद    दाता।
सुधीर    माता।

कवित्त   गाऊँ।
तुम्हे    सुनाऊँ।
सु'विज्ञ' ध्याता।
सँभाल   माता।
.  -----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

६२.           " रक्ता  छंद "

 विधान:----  ७ वर्ण  प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
रगण   जगण   गुरु
२१२    १२१     २

.  __मात शारदे__

ज्ञान का विचार दो।
बुद्धि का प्रसार दो।
कामना   निरापदा।
आस  मात शारदा।

छंद  ज्ञान  हीन  हूँ।
मोह  के अधीन  हूँ।
अंधता  विनाश  दे।
शारदे   प्रकाश   दे।

भाव  रक्ष गीत को।
संत दक्ष  मीत को।
कष्ट  आपदा  हरो।
ज्ञान  शारदा  भरो।

देश का विकस हो।
मानवी सुवास  हो।
भारती सुखी सदा।
'विज्ञ' मात शारदा।
.    ----+---
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

 ६३.         " रति छंद "

विधान:-- १३ वर्ण प्रति चरण
( ४, १३ वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
सगण  भ,गण  नगण  सगण  गुरु
११२    २,११   १११   ११२  २

.         __गिरिधारी__

गिरधारी,  तुम  नटवर  कन्हैया।
कित भागे, सरपट विकल गैया।
दधि खाते, झट  झपट घटवारी।
भग जाते, मन खिजत महतारी।

लगता  है, पटक  घट  पनिहारी।
तुम  दौड़े, पथिक भगदड़ भारी।
जब राधा, डगर पर  दिखजाती।
भग दौड़ी,तनिक रुक बढ़जाती।

तुम कान्हा,यसुमति व बलदाऊ।
बस थोड़ा, हित वचन समझाऊँ। 
वन ग्वालों, सहित  वन बनवारी।
प्रभु भक्तों, हित रखत गिरिधारी।
.             ________
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

 ६४.           "रत्नकरा छंद "

 विधान:---- ९ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
मगण  सगण  सगण
२२२    ११२   ११२

. __वर्षा का जल संग्रह__

काहे    नीर   बहावत  है।
पानी  व्यर्थ   लुटावत  है।
प्यासी  भूमि कहे  नर से।
पौधे   जंतु  सभी   तरसे।

वर्षा  का  जल  संग्रह हो।
मेघों  का  नहि  विग्रह हो।
कुंडों  को  जल से भरलो।
कूएँ   खोद  नये  कर  लो।

बापी  स्वच्छ  करें चल तो्।
पानी आज  मिले कल तो।
आकाशी जल को रख लो।
भू  के  जीवन को रख लो।

प्राणों को जल ही रखता।
आओ  नीर  रखें  ढँकता।
पानी  जीवन  का रचिता।
आओ  छंद  रचे  कविता।

.        -----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

 ६५.         " रथ पद छंद "

विधान:--- ११ वर्ण प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत हो
नगण नगण सगण गुरु गुरु
१११  १११  ११२   २   २

__जल भर लें कुण्डे__

रिमझिम बरषत  है पानी।
महक  चुनर तर  है धानी।
रिझत फिरत मन गोरी है।
चमकत  नयन कटोरी  है।

तरुवर  पशुधन  की मौजे।
कृषिहर  श्रमकर ही खोजे।
पनघट पथ अब सूना क्यों।
हरषत मन फिर  दूना क्यों।

लजित नयन मन भावों में।
बिछुरत कछुक अभावों में।
चपल चमक दमकी जो है।
कड़क गरज बिजुरी वो है।

नर जन सब अब आओ तो।
कुछ   तरुवर  लगवाओ तो।
भर भर जल  भर लें  कुण्डे।
तपन सहन  कर  भी  ठण्डे।
.         ------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

 ६६.         " रथोद्धता छंद "

 विधान:---- ११ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
रगण  नगण  रगण  लघु गुरु
२१२   १११  २१२   १   २

_ले कुदाल चल आज खेत में_

वीर  पीर  हर  भूमि  नीर की।
पेड़  जंतु खग ताल  तीर की।
मेघ आज नभ चाल  काल है।
देख  अंत  फिर  मंद  हाल है।

चेत  धीर जन  भाव भावना।
ले सहेज  जल भूमि कामना।
मीत  मान यह बात आज ले।
तो सुधार  हर भाँति काज ले।

कूप  कुण्ड भर ले विचार के।
खेत  मेड़  कर  ले  सुधार के।
ले  कुदाल चल आज खेत में।
हो  सँभाल  जल  पंथ  रेत में।

भावि पीढ़ि तब याद  जानती।
नीर  कुंड जल  भोग  मानती।
व्यर्थ  नीर  यदि  आप  ठेलते।
भावि भूत  सब  शाप  झेलते।
.        --------+--------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा   *विज्ञ*

 ६७.         " रमणीयक छंद "

विधान: --- १५ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
रगण  नगण  भगण  भगण  रगण
२१२  १११   २११    २११   २१२

__नैन चाह बस श्यामल सूरत__

रीत  प्रीत  अब सावन भादव हो गई।
प्रेम के विरह ग्वालिन मानस खो गई।
भूल प्रीत तुम  मोहन आज कहाँ रहे।
गोपिका मर रही विरहा अँखिया बहे।

बंध तोड़ कर नीर  बहे दृग  रोक लो।
छंद छूट कर गीत चले प्रभु  टोक लो।
चाह मौत बस आवत पावत नाथ हो।
अंत काल प्रभु नैनन भावन साथ हो।

ज्ञान गीत  यह उद्धव माधव गा रहा।
दर्श पर्श  यह  झूँठ  बताय ठगा रहा।
फूल  फूल  मकरंद  ठगे  भँवरा यहाँ।
द्वंद धुंध भर  निर्गुण  गायन  गा रहा।

कौन मान कर बात अशोभन जी सके।
नैन  चाह  बस  श्यामल सूरत पा सके।
नाथ आस तन अंत  मिटे यह मान लो।
'विज्ञ' छंद यह नित्य पढ़े प्रभु जान लो।
.                --------+--------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

६८.          " रमेश छंद "

विधान :-- १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
नगण  यगण  नगण  जगण
१११   १२२   १११   १२१

.       __प्रेमांकुर__

कुसुम सहेजे जब  मनमीत।
सरल कहानी मन मय प्रीत।
गजल रुबाई  प्रियवर  चाह।
विकल निँगाहे भटकन राह।

अजब कहानी  गजब गढंत।
गहन  विचारे  कबहुँ न अंत।
विवश खिलौने  मन मनुहार।
विजय मिले या नयनन हार।

समर लगे जीवन  तब जान।
अवसर   प्रेमांकुर   पहचान।
नयन  तके  प्रीतम पथ चाप।
सह  न  सुहावें  गुरुजन बाप।

पल पल आँखे सिकुड़ समेट।
पनघट   झाँके  कफन  लपेट।
लिखन लगे  गायन  मय गीत।
समझ  सखे  मानस पथ प्रीत।
.            -----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

६९..              " रसना छंद "

 विधान :---  १७ वर्ण प्रति चरण
( ७,१७ वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
नगण यगण सगण नगण नगण लघु गुरु
१११  १२२  ११२  १११  १११  १   २

.      __नमन तुम्हे__

नमन तुम्हे देव,
मुझे मनुज जनम दिया।
नमन तुम्हे देश, 
हमे सहज शरण लिया।
पथिक पिता मात,
हमें सतह गगन दिया।
विमल सदाचार, 
दिया चमन भवन दिया।

विहग करे गान,
प्रभो फुदक फुदक कहे।
वनज पले प्रीत,
हरे विरल सघन कहे।
अमन रहे देश, 
इसे अमल चमन मिले।
सहज लिखे छंद, 
गीत सरस सुगम चले।
.           -------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

७०.              " रसाल छंद "

 विधान :-- १९ वर्ण प्रति चरण
( ९,१९ वें वर्ण पर यति)
चार चरण, दो-दो समतुकांत
भगण नगण जगण भगण जगण जगण लघु
२११  १११  १२१  २११  १२१  १२१   १

 .       __सैनिक सजग सुजान__

सैनिक सजग सुजान, सत्य रहते है चौकस।
शीत तपन  बरसात, वीर  सहते  सब सर्वस।
सोवत सहज सु देश, जाग रखवार करे तब।
प्रीत विमल मन रीत,गीत बलिदान रचे जब।

देश मनुज हर मान, शान  रखते तज जीवन।
सैनिक पथिक शहीद, धीर बनते जिनके मन।
मानस  वतन  सलाम, मीत करते शुभ भारत।
मौत वतन  जन हेतु, भीरु डरते  भय  आरत। 

देख बहुत यह गर्व, देश  अपना  यह भारत।
देशन  वरद  महान, जाग  रखता यह धारत।
सैनिक सत अरमान, सोच  रखवार शहादत। 
युद्ध सजग मय शान, देश करतार हिफाजत।

देकर निज बलिदान, देश हित सावन लावन।
सैनिक सच सत मान,शान रखते सिखलावन।
भारत वतन सुगीत, मीत  बनता  यह  पावन।
देकर  तन  मन  जान, धीर  रहते मन भावन।
.                ---------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

७१.          " रुचि छंद "

 विधान :-- १३ वर्ण प्रति चरण
(  ४ व १३ वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो दो समतुकांत
तगण भगण सगण जगण गुरु
२२१   २,११  ११२  १२१  २

.    __गिरधर खेलने चले__

आओ सुनो, गिरधर  खेलने चले।
राधा  कहे, तरु  पर  झूलने  डले।
मैया नही, घर  बलदाउ  तो  लड़े।
आए अभी,  तन पर बैंत  तो पड़े।

आराधना,  प्रभु  करता रहा सदा।
तारो  प्रभो,  तुम  करतार  सर्वदा।
है आपदा, पथ  पर  रोकना सभी।
आकाश से,डगर विलोकना तभी।

भू  भारती, रज  पथ  खेलते  रहे।
देखे  रहे, जन  जन  नैन भी  बहे।
राधे  सुने, नटवर  कृष्ण को जपा।
ये  छंद  हैं, कवि पर  शारदे कपा।

.            -----+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

७२ .         " रोचक छंद "

विधान :-- ११ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
भगण  भगण  रगण  गुरु गुरु
२११    २११   २१२   २   २

.  __मेघ चढ़े घने वर्षा के__

 सावन मेघ चढे घने वर्षा के।
बादल नीर  भरे चले हर्षा के।
मोहन के  मन भावना सच्ची।
लोगन की वह कामना अच्छी।

इंद्र कहे  अब  तो  नही माने।
खेत किसान करील भी हाने।
लोग सभी मिल मोहना लाए।
मोहन से  गिरि धारना  आए।

इंद्र झुका तब  कृष्ण भी हासे।
द्वेष  मिटा कर  रोष  भी नासे।
काल कराल  कठोर हो जाता।
देव  सदैव  निभाय  वो  नाता।
.           ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

७३.        " वरूथिनी छंद " 

विधान :--- १९ वर्ण प्रति चरण
( ५,१०,१५,१९वें वर्ण पर यति)
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
जगण नगण भगण सगण नगण जगण गुरु
१२१  ११,१  २११  १,१२ १११,१२१ २

. __अमन स्व देश का__

जवान जय, किसान जय,
विकास कर महान हो।
फले  वचन, सजे  चमन, 
महान  वतन  शान हो।
उठा  कदम, बढ़ा कदम, 
विनाश कर कलेश का।
करो फतह, रहो सतह, 
बढ़ा  अमन  स्व देश का।

निराश तज, सुभाष भज, 
सुकर्म  कर प्रशांत हो।
कमान रख,विमान लख,
विरोध वचन क्लांत हो।
महेश  बन, सुरेश  बन,  
सुदेव  बन  सुकाज  हो।
विचार  कर, पछाड़  कर, 
विरोध पर अकाज हो।
.           ----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

७४.         " वंशस्थ छंद " 

 विधान :-- १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
जगण  तगण  जगण  रगण
१२१    २२१   १२१   २१२

.           __शी त__ 

अलाव में ताप किसान बैठता।
कभी विधाता भर शीत ऐंठता।
बढे  निराशा  मन गीत बोलता।
कभी खड़े होकर नीर खोलता।

किसान  ही  शीत सहे रहे ठगा।
अलाव को मीत बनाय आपगा।
विकास के नाम किसान हारता।
किसान ही  धैर्य  सदैव  धारता।

बना  यही  पूत  सपूत   धारती।
बने  रहें  भूमि  किसान  भारती।
बनी  रही  मीत   सदैव  आपदा।
लिखूँ  सही  पावन  छंद  संपदा।

.         ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

 ७५.      " बसन्त तिलका छंद "

विधान:-- १४ वर्ण प्रति चरण
( ८,१४ वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत
तगण भगण जगण जगण गुरु गुरु
२२१   २११  १२१  १२१  २  २

.   __माता__

वो बर्फ सी पिघलती, 
बन गंग धारा।
जो शीत सी सिहरती,
तज रंग सारा।
आशीष दे विहँसले,
जब पूत आता।
वे चाँद सी चमकती।
भव दात्र माता।

माता सदा शुभ रहे,
शुभ भारती हो।
चाहे तुम्हे चमन ये,
मन आरती हो।
संसार यावत रहे,
कवि छंद गाता।
हे गंग पावन बहो,
यश भाव माता।

हे मात भारत धरा,
वरदान देना।
चाहूँ सदा बिखरना,
तुम अंक लेना।
आतंक दाहक बने,
वह छंद गाता।
हे भूमि धारक रहो,
मन पूज्य माता।
.         ------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

७६.     " विमल जला छंद " 

विधान :--- ८ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
सगण नगण लघु गुरु
११२    १११  १   २

_उठ अंबुज भरले_

जब  नीरज खिलते।
खग गीत  किलकते।
जब  सूरज   उगता।
अँधियार   बिसरता।

नभ  मेघ  घुमड़ते।
घन   घोर  बरसते।
पय पावन  बहता।
नर कायर  सहता।

उठ  अंबुज  भरले।
शुभ  काम सँवरले।
जल कूप  पथ बहे।
घर  कुंड जल  रहे।

जल व्यर्थ न बहना।
कल  जीवन  रहना।
यह नीति सफल हो।
कवि  छंद सरल हो।
.     ------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

 ७७.        " शारदी छंद "

 विधान : --- ७ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
जगण  भगण    लघु
 १२१     २११     १

__हताश युद्ध हर__

हुए  यहाँ  समर।
मिटे  यहाँ  शहर।
पुकार वे  करुण।
निहारता  अरुण।

ललाई  से  वरुण।
विनाश  के  वरण।
विभीषिका शरण।
कँपी  कँपी धरण।

सहेज  लें  मनुज।
बड़े   पढ़े  अनुज।
उठो  विचार  कर।
चलो  विधान  पर।

विकास बालपन।
विनाश  बाँझपन।
सहेज  बाग  वन।
मही  समीर  घन।

हताश  युद्ध हर।
प्रकाश विश्व नर।
विजत्व हार सम।
विकासशील हम।
.     ---+---
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

७८ .     " शार्दूल विक्रीडित छंद "

विधान :--- १९ वर्ण प्रति चरण
( १२, १९ वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
मगण सगण जगण सगण तगण तगण गुरु
२२२  १२२  १२१  ११२, २२१ २२१ २

. __झूला झुलाते रहे__

राधा साँवरे रीति प्रीति समझे, 
झूला झुलाते रहे।
भक्तों के कन्हैया कहावत चले,
ताने सुहाते रहे।
बंशी के बजैया चलें तरु चढ़े,
डाली हिला डालते।
राधा झूलती काँपती डर रही,
ग्वाले हँसे नाचते।

कैसी रीतियाँ पालते चल रहे,
साथी सयाने सगे।
भीगे राधिका झूलती थक रही।
कान्हा धकाने लगे।
वर्षा हो रही सावनी रिमझिमी,
मेघा भिगोता फिरे।
सारे ताल कुण्डे भरे जल छके,
बापी तलैया भरे।

.           ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

७९ .          " शालिनी छंद "

विधान :-- ११ वर्ण प्रति चरण
( ४,११ वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
मगण तगण तगण गुरु गुरु
२२२  २,२१  २२१  २ २

.      __युद्ध गुमानी__

 हल्दी घाटी, युद्ध था ही  गुमानी।
राणा भीलों, की  सनेही  कहानी।
घोड़े हाथी, सैनिको की सुनी थी।
शाही सेना, काँपती  को धुनी थी।

राणा की वो वीरता थी प्रतापी।
भारी सेना मान की भीरु काँपी।
दानी भामाशाह था वित्त पोषी।
योद्धा भी नामी करे नष्ट दोषी।

 झाला मन्ना, वीर जैसा लड़ाका।
भाले खाँडे का लडैया  तड़ाका।
भीलू पूंजा बाण छोड़े खिलाड़ी।
साथी  सूरी  दागता  तोप  भारी।
.             - -+-
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

८०.          " शिखरिणी छंद "

 विधान:--- १७ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
यगण मगण नगण सगण भगण लघु गुरु
१२२  २२२  १११   ११२  २११  १ २

.           __माता भारत__

हमारी माता  भारत, यह सदा पावन रहे।
विधाता गंगा धार विमल सदा पावन बहे।
हमारे खेतों की फसल रखना नीर रखना।
हमारी  सीमा पे सतत  रखना वीर रचना।

रहेगी भाषा भी  सरस अपनी धीर रखना।
विकासी धारा हो सहज सपने पीर रखना।
पड़ौसी  नापाकी  हरकत करे वे सह नही।
बपौती सीमा की शरण समझे वे सह नही।

करो  आतंकी  नाश हरकत रोकें सनसनी।
उठो फैलाओ आस कुदरत होती अनमनी।
पहाड़ी  मैदानी  समरस  त्रिधारा बह चले।
हमारे छंदो  की सरगम  सदा ही हिय पले।
.              -------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज

 ८१.            " शोभावती छंद "

 विधान :--- १० वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
मगण मगण मगण गुरु
२२२  २२२  २२२  २

.        __राणा की गाथा__

मेवाड़ी  राणा  की  गाथा गाते।
आँखों से  आँसू  के धारे आते।
बप्पा की यादें  वे  बातें  थाती।
कुम्भा के युद्धों निर्माणी गाती।

सांगा के  हस्सी  घावों के होते।
पट्टी बाँधे  घावों धावों से धोते।
पन्ना  जैसी माताएँ  औ  बाला।
संगी साके पद्मा  कर्मा ज्वाला।

चित्तौड़ी योद्धाओं की वे जीतें।
संतानों को  सौंपी थे  जो, रीतें।
थाती हल्दी  घाटी माटी  लाली।
भीलू राणा की  सेना की ताली।

यादें खाँडा भाला चोगा साखी।
भामा शाही  रीतें  सारी, राखी।
मेवाड़ी  भू  बेटो  वाला  साका।
राणा  रक्षे वो  घोड़ा जो बाँका।
.         ---------+--------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

 ८२.           " संयुत छंद "

विधान :--- १० वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
सगण जगण जगण  गुरु
११२   १२१    १२१  २

.    __स्वदेश का__

ऋतुराज  भृंग  सहेज  लो।
मधुपान   प्रीत  समेट  लो।
तरु देश  का वन  देश का।
अभिनंदनीय   सुवेश  का।

तितली  पिए रस  फूल  से।
मधुमक्खियाँ मधु फूल  से।
फल फूल भी इस देश का।
अभिवादनीय  सुरेश   का।

नर  नारि  धीर  सुधीर  हो।
कवि  माघ मीर  कबीर हो।
रसपान   पीर  निवेश  का।
रख मान 'विज्ञ'  सुदेश का।

घन  नीर  को  घर धार लो।
बह  नीर  पीर  उबार   लो।
जल देश का कल देश का।
रख  नीर  वीर  स्वदेश का।
.            ----+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

 ८३.         ":सिंहनाद छंद "
विधान :-- १० वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
सगण जगण सगण गुरु
११२   १२१   ११२  २

.         __नारी__

अब वीर  धीर  बन नारी।
भव  पीर चीर  कर सारी।
यह देश  वेश  सब  जागे।
भयभीत भाव  भय भागे।

उठ कर्म धार कर लीला।
तज  शर्म हार तन पीला।
रख देश भूमि  रखवाली।
बन  चंड मुंड कर काली।

कर चक्र तेग  रख भाला।
चख  राष्ट्र प्रेम मय हाला।
चल दीन  हीन  भव तारें।
दुख  कष्ट  नष्ट  कर सारे।

तुम हो  विशेष  सब नारी।
नभ सृष्टि वृष्टि भुव  सारी।
मन प्रीति कीर्ति  वर देना।
कवि 'विज्ञ' छंद पढ़ लेना।
.       +++++
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

८४..          " सुमति छंद "

विधान :- १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
नगण रगण नगण यगण
१११  २१२  १११ १२२

__सजीव अंबुज जन नाता__

बचत नीर  से  मनुज बचेगा।
जलज  नीर से  वनज रहेगा।
सुमति छंद  है सरस  सुहाना।
मनुज नीर से  विहग बचाना।

गगन   मेघ  अंबुज  बरसाता।
विवश वेग से जल  बहजाता।
मनुज चेतना मय  यदि गाता।
सतह खेत में जल बच जाता।

जल बचे कुआ घर बनवाओ।
सरल कुंडियाँ अब चिनवाओ।
कृषक  खेत में सर खुदवा ले।
विविध योजना जल भरवाले।

पथ पदाति कुंडन जल  हो वे।
जलद नीर व्यर्थ न जन खोवे।
सरस  छंद   पावन  मन गाता।
लख सजीव अंबुज जन नाता।
.           --------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ

८५.              " स्त्रग्धरा छंद "

 विधान:---  २१ वर्ण प्रति चरण
( ७,१४,२१ वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
मगण रगण भगण नगण यगण यगण यगण
२२२  २१२ २,११  १११ १२,२ १२२ १२२
.           __भू भारती__

माता भू भारती हे, जय मनुज रहे,
शान तेरी रहेगी।
गंगा मैया बहेगी, जल विमल रहे,
आन तेरी रखेगी।
भाषा हिन्दी चले तो, पद सरस कहे,
बात ऊँची चलेगी।
खेती अच्छी रहे तो, सब उदर भरे,
माँग तेरी सजेगी।

पासे सीधे पड़े, जय विजय बढ़े,
छंद ऐसे बनाने।
साथी नारी बढ़े, हर कदम बढ़े,
संग अच्छे सजाने।
सत्ता अच्छी चले, विधि सहज पले,
स्वप्न सच्चे दिखाने।
शिक्षा दीक्षा बढ़े, शिशु कलम पढ़े,
रंग  पक्के जमाने।
.                -------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

८६.         " हरिणी छंद "

 विधान :-- १७ वर्ण प्रति चरण
(६,१०,१७ वें वर्ण पर यति)
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
नगण सगण मगण रगण सगण लघु गुरु
१११  ११२,  २२२  २,१२  ११२  १ २

.       __कामना__

नमन करता, कान्हा राधा,
मुझे भव तारना।
भजन रचता, सीता रानी,
सदा दुख टालना।
विमल रहता, भोले गौरी,
सुनो प्रण पालना।
सरल रहता, गंगे मैया,
कभी जल डालना।

जन मत बने, संगी साथी,
सभी मत से भले।
शिशु पढ़ सकें, शिक्षा शाला,
रहे सत पे चले।
जन जल बचे, पानी राखें,
सभी विपदा टले।
अरि दल मिटे, भू माता के,
निरी अरिता गले।
.        -----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

 ८७.      " रतिलेखा छंद "

 विधान :--- १६ वर्ण प्रति चरण
( ११, १६ वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
सगण नगण नगण नगण सगण गुरु
११२   १११   १११  ११,१  ११२  २

.         __बरसे__

बरसे  उमड़ घुमड़ जल,
 सघन धारे।
भरते सर घट तट जल,
विहग हारे।
धरती वन वनज सजल,
हरित चारे।
बहती सरि सरित त्वरित,
क्षत किनारे।

रहते भय खग द्रुम दल,
विकल जैसे।
जल से खुश नद जलखग,
कमल वैसे।
तपते तपिश विरह जन,
सुजन ऐसे।
सरसे रिमझिम पट पट,
नटत कैसे।
.       ____________

©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

 ८८.       " मकरंद छंद "

विधान :--- २६ वर्ण प्रति चरण
( ६,१२,२०,२६ वें वर्ण पर यति)
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
नगण यगण, नगण यगण, नगण नगण नग,ण नगण गुरु गुरु
१११   १२२,  १११  १२२,  १११  १११    ११,१  १११  २  २

.       __जलद सुहाए__

मनुज दुहाई, पवन सुहाई,
कमल नयन दल, अँसुवन धारे।
सजन मिताई, निबल सहाई,
सुजन चरण दल, परसत प्यारे।
जलद सुहाए, वन हरषाए,
विहग वनज तरु, सरित किनारे।
शिशु दल खेले, जल पग ठेले,
भवन सतह छत, बह परनारे।

कृषक पसीना, उमस महीना,
रज कण कण जल, पशुधन भागे।
वनज निहारे, जलज पियारे, 
मृग दल भगदड़, सृप बिल त्यागे।
तपन डराए, विरह सताए,
नर तन जल सम, बतरस लागे।
वणिक चितेरे, धनिक घनेरे,
धन पद बल दम, निज हित आगे।
.          +++++++
© ~~~~~~~बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ

८९.      प्रमाणिका छंद
.          (वार्णिक छंद)
विधान:-  ८ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो दो समतुकांत
            जगण, रगण लघु गुरु
मापनी:- १२ १२ १२ १२

__सदा सचेत भारती__

हुआ  प्रभात हे सखे।
जगा जवान को रखें।
किसान जागता कहे।
नदी  हवा  सदा  बहे।

उठो सखे विचारकों।
जगो विचार लेखकों।
जवान  धीर   हारता।
किसान  पीर  धारता।

पड़ोस पाक पातकी।
विरोध चीन  घातकी।
सदा   सचेत  भारती।
प्रभात  'विज्ञ' आरती।
.      -----+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

९०.         वियोगिनी छंद
.              (वार्णिक)
विधान :--   २१ वर्ण
विषम चरण में ११  वर्ण
सम चरण    में  १० वर्ण
विषम- सगण सगण जगण गुरु
.          ११२  ११२   १२१ २
सम- सगण भगण रगण लघु गुरु
.        ११२  २११  २१२  १   २

. __शुभ कर्म मानवी__

प्रभु ने हमको दिए सभी,
जग में सुंदर साज साजते।
मन में यदि बंधु भाव हो,
तुम में  ईश्वर  प्राण  धारते।

कर लें शुभ कर्म मानवी,
जग में जीवन मर्त्य मानिए।
सपने सब मीत भावना,
अपना मानस सत्य जानिए।

मनुजात हितार्थ कामना,
जब जागे जन मीत देश में।
शुभ सूर्य प्रभात नित्य हो,
वसुधा  भारत  शुभ्र वेश में।
.            -----+------
©~~~~~~~~,~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

९१.           हीर छंद

विधान:- १८ वर्ण प्रति चरण
१०,१८ वें वर्ण पर यति
चार चरण , दो-दो समतुकांत
भगण सगण नगण जगण नगण रगण
२११  ११२   १११   १,२१  १११  २१२

.         __आतुर अँखिया__

सावन बरसे रिमझिम, मेघ जल, बहे बहे।
साजन सपने तुम बिन, अश्रु दृग बहे सहे।
बादल बदली अवसर, पा कर बरसे पिया।
गर्जन करते जलधर, साजन धड़के हिया।

मानस मचले पल पल,मीत मिलन कामना।
चाहत मन में प्रियतम, सावन  शुभ भावना।
आतुर अँखिया तरसत, प्रीत अब  निभाइए।
आकर  मिलके मम हिय,आस तुम बँधाइए।

मीत मछलिया जलबिन,धीरज तन खो रही।
प्रीत विरह में  पल पल, नैनन  जल ढो रही।
लौट सजन यौवन जल, राहत तन खोजता।
"विज्ञ" विरह मानस मन, छंद नवल सोचता।
.                 -------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

९२.                  रतिलीला छंद

विधान:-- १९ वर्ण प्रति चरण
चार चरण समतुकांत
जगण सगण जगण सगण जगण सगण गुरु
१२१   ११२  १२१  ११२   १२१  ११२   २

.               __रति रमें रहें__

सदा मन कहे, तुम्ही  मन बसे, बनो  तुम  हमारे।
रहो हिय  सखे, बसो मन सखे, सगे हम  तुम्हारे।
बिना कुछ दिए,बिना कुछ लिए,बिके हम हवाले।
चलो अब गले, तुम्ही  हम मिले, बने हम निराले।

मुझे दृग डुबो, तुम्हे दृग डूबो, विनायक बिठा लें।
कभी तुम कहो, कभी हम कहें, अदावत उठा लें।
बने  मन  रहे,  सजे  तन  रहे, मिलें   हम  रहेंगे।
कभी दुख सहें, कभी सुख सहें, मिले फिर सहेंगे।

फले मिलन  कामना, विरह अंत सावन सजेगा।
बहें फिसल  प्यार में, सरस  रंग फागुन फलेगा।
प्रिये सफल  काम  से, रति रमें  रहें  तन हँसेगा।
लिखें सरस छंद 'विज्ञ' तब ही हमें फल मिलेगा।
.                   -----+----
©~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ

९३.            गिरिधारी छंद

विधान:--  १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
सगण नगण यगण सगण
११२  १११   १२२  ११२

.        __राधा हँसती__

नटते  नटवर  राधा  सजती।
सजते  नटवर  राधा  नटती।
विपदा पलपल  रोती हँसती।
तब ही गिरधर  बंशी बजती।

जब  नंदन  वन  गैया चरती।
तब चिंतन  मन  मैया करती।
कहती  गिरधर  भूखे   रहते।
भटके वन वन  कान्हा सहते।

मिलते  नटखट  राधा भगती।
चहके  तरु खग  राधा हँसती।
शरमा कविमन सोचे कविता।
वर दे  गिरधर  छंदी  कमिता।
.          ------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

९४.             प्रतिभा छंद

विधान:-- १४ वर्ण प्रति चरण
८, १४ वें वर्ण पर यति
चार चरण दो-दो समतुकांत
सगण भगण  तगण  नगण  गुरु गुरु
११२  २११   २२१   १११  २     २

.         __जल वरदानी__

जल है ईश्वर की देन सहज पाए।
करते दोहन नादान  समझ  जाएँ।
रखलो जीवन वे भावि प्रकृति सारी।
कल को काल धुनेगा मति जन मारी।

बरसे मानव वर्षा घट भर पानी।
रखले मानस रोकें जल वरदानी।
सब कुंडे भर वर्षा जल हरषाओ।
चल खेतों पर पानी नर रुकवाओ।

रहना ईश्वर दाता भगवन  साथी।
रखना अंकुश साधे नर तन हाथी।
अपना  जीवन  चाहूँ  गिरधर  राधे।
वसुधा  सावन  पानी मलयज साधे।
.              ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

९५.           पंडव छंद

विधान:- १० वर्ण प्रति चरण
५, १० वें वर्ण पर यति
चार चरण, दो-दो समतुकांत
मगण नगण यगण गुरु
२२२   १११  १२२  २

.   __घर घर टाँके हों__

हारा  मानव  कर नादानी।
वर्षा सावन भर  लो पानी।
धारो मानस अब  मुंडो में।
रोको जीवन  जलकुंडों में।

बाँधो  में  सरवर  में  पानी।
मानें  मानव जल  है  दानी।
खेतों  में जल भर के रोको।
बापी कूप सरित को ढोको।

आकाशी पर वश खेती  है।
आशा भीग  धरण देती  है।
चेतो  तो घर घर  टाँके  हो।
भूलो वे पल जब ताके  हों।
.         ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

९६.             पावन छंद 

विधान:--  १५ वर्ण प्रति चरण
८, १५ वें वर्ण पर यति
चार चरण दो-दो समतुकांत
भगण नगण जगण जगण सगण
२११  १११  १२,१  १२१  ११२

.  __अंबुज विमल बचे__

पावन सलिल बहे,भर कुंड घट लें।
सावन सरस रहे, जल गीत  रट लें।
मानस समझ बने, भवमान भरना।
जीवन सहज चले, अरदास करना।

नीरज जलज रहे,जल स्रोत बचने।
प्राकृत वनज  खगे, नर नीर  रचने।
अंबुज विमल बचे, तब पीर घटनी।
सागर  सरवर  भी, नद कूप तटनी।

कुंड  घर घर बने, जल मेह रखिए।
कूप हर  पथ  भरे, हर खेत भरिए।
जीवन जगत  रहे, जल नेह बचते।
'विज्ञ'जन सब सुने, हम छंद रचते।
.          ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

९७.            बृहत्य छंद 

विधान:-- ९  वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
यगण यगण यगण
१२२  १२२  १२२

__बिना नीर कैसे बचोगे__

सभी  की  रही चाह पानी।
सुनोगे कभी पानी कहानी।
मिलेगा कहाँ से नीर मानी।
बहे ..नीर.....वर्षा रुहानी।

बिना  नीर  कैसे   बचोगे।
सखा  पीर  पानी   रचोगे।
हँसेगी  मशाने  तभी   तो।
बहाते  रहे   नीर   ही  तो।

सखे  नीर वर्षा  बचाओ।
मिटा पीर  लीला रचाओ।
लिखूँ छंद 'बाबू' पढ़ो तो।
बचे  नीर  आगे  बढ़ो तो।
.       ------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९८ .             सुलेखक छंद

विधान:-- १५ वर्ण प्रति चरण
७, १५ वें वर्ण पर यति।
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
नगण जगण भगण जगण रगण
१११  १२१  २,११  १२१  २१२

.         __मधुकर बावरे__

मधुकर बावरे, सगुण कृष्ण  भक्ति हैं।
बतरस क्यों  करे, विरह प्रीत शक्ति है।
रख निज ज्ञान को,समझ ईश वे सखे।
नमन  करें  सदा, जगत  मीत ही रखें।

मधुकर  भाग रे, तितलियाँ नहीं सुने।
अलि मन सोच रे,निगुणियाँ नही गुने।
यह मत भूलना, भ्रमर  गोपिका  कहे।
गिरधर   प्रेम  में, विरह  आपदा  सहें।

मधुकर भीरु रे,सगुण कृष्ण को भजो।
हियमन ज्ञान लो,मिथ गुमान ये तजो।
गिरधर  साँवरा, सहज  नेह   रीति  है।
नटवर  'विज्ञ'  की, विमल ईश प्रीत है।
.            --------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

९९.           रत्नकरा छंद

विधान:--  ९ वर्ण प्रति चरण
चार चरण दो दो-दो समतुकांत हो।
मगण सगण सगण
२२२  ११२  ११२

__झूलों पर रमणी चढ़ती__

आया  सावन  नीर  बहे।
भीगे  भूमि  किसान रहे।
खेतों  में  फसलें  बढ़ती।
झूलों पर  रमणी  चढ़ती।

पौधारोपण  भी   करना।
खेतों में  जल भी भरना।
बैठे  मीत  नही  अब तो।
साधें काज प्रकाशित तो।

साथी प्रीत  चहे मन की।
चाहे रीत  सजे  तन  की।
भावे  गीत सखी बनिता।
शर्मा, छंद लिखे कविता।
.           -----+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१०० .           शील छंद

विधान:-- ११ वर्ण प्रति चरण 
चार चरण समतुकांत
सगण सगण सगण गुरु गुरु
११२   ११२  ११२   २   २

__सिरताज हिमालय गरर्वीला__

करलो अपने  सपने  सच्चे।
तुम भारत के सब हो बच्चे।
अरमान सजाकर जो जाते।
बलिदान कमा कर वे आते।

यह भारत  भूमि  हमारी है।
हर  वीर   यहाँ  बलधारी है।
सिरताज  हिमालय गर्वीला।
हर  एक  श्रमी जन रंगीला।

रिपु जीत यहाँ  कब पाया है।
छल छंद  यहाँ  कब भाया है।
सुत  वीर  यहाँ  रणधीरों  के।
लिख विज्ञ रहा हित वीरों के।
.              -----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१०१ .                रसाल छंद 

विधान:-- १६ वर्ण प्रति चरण
७,१६ वें वर्ण पर यति
चारों चरण समतुकांत हो
जगण सगण तगण यगण रगण लघु
१२१  ११२   २,२१  १२२ २१२ १

.      __बीज उगाएँ शक्ति यंत्र__

महान सपना हो, देश  हमारा  शुभ्र देश।
हिमालय शिवाला, गंग हमारी मात वेश।
सुने हम  कहानी, देश  हमारा स्वर्णधार।
यही जगत देता, विश्व गुरू सम्मान सार।

चले सब किसानों,बीज उगाएँ शक्तियंत्र।
उठो जय जवानों, शक्ति सँवारें युद्ध तंत्र।
जगो तनय सारे, विज्ञ सिखाते युद्ध राज।
मिले विजय ऐसी, देश सँवारे शिक्ष साज।

धरा यह हमारी, दुष्ट  पड़ोसी  चीन पाक।
करें हम तम्हारी, नष्ट घिनौनी झाँक ताक।
रहे हम सदा से, शांति स्वभावी मित्र मान।
कहें तुम सभी से,'विज्ञ' विभावी छंद ज्ञान।
.                 ------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१०२.          हलमुखी छंद

विधान:--  ९ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
रगण नगण  सगण
२१२  १११  ११२

__भारतीय पथ चलना__

रीति  प्रीति  मय रहना।
ज्ञात बात  सब  कहना।
देश   प्रेम  सच   रचना।
मातृ भूमि रज  सजना।

मीत  ईश मन  भजना।
दुष्ट   संग   नर  तजना।
भारतीय  पथ   चलना।
हिंद नाद   जय पलना।

 गीत छंद  मय कविता।
धरा धर्म लिख कमिता।
जै किसान  मन कहना।
जय जवान  जन रहना।
.   ----+--
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा  *विज्ञ*

१०३.                धनमयूर छंद

विधान :--  १७ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
७,१३,१७वें वर्ण पर यति 
नगण नगण भगण सगण रगण लघु गुरु
१११  १११ २,११  ११२  २,१२  १२

१०४.            __गिरधर - राधा__

मन गिरधर को, पल पल ढूँढे, कहाँ कहाँ।
नटखट नट भी, छिपकर  देखे, यहाँ वहाँ।
पनघट  पर  ये, नटवर  आते,  यदा  यदा।
हर घट क्षत हो, अवसर  ऐसा, यदा कदा।

सरल विमल सा, पनघट  होता भरा  भरा।
हृदय मनुज का, प्रतिपल  चाहे, हरा  हरा।
विनय तनय से, निशदिन चाहे सभी पिता।
तपन सतत ही, दिनकर देता, किता किता।

वन वन भटके, गिरधर राधा, कभी  कभी।
तट पर  भगते, सरवर  देखा, अभी  अभी।
गुन गुन  करते, मधुकर  जैसे, कली कली।
हर पथ रमते, हिलमिल कान्हा, गली गली।
.                  -------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१०५.                  शैलसुता छंद
 
विधाश:--  २३ वर्ण प्रति चरण
चार चार चरण दो-दो समतुकांत हो।
लघु लघु सगण सगण सगण सगण
 सगण सगण सगण 
१     १   ११२  ११२  ११२ 
 ११२  ११२  ११२  ११२ 

          *विरहा* 

जब  पिक बोल  सुने  विरहा
मन मोर  शरीर सखी  हुलसे।
अब  रस  रंग  बसंत चढे तन 
आज   मसोस  रही  मन  से।
वन  वन  मोर   नचे   तितली
सब मीत बनात  फिरे कब से।
अलि पिय सावन आकर लौट
 गये  तब  से  न  मिली उनसे।
.                    ......
मन  भँवरे   रस   पान   करे, 
तितली मँडराय रही रस को।
तरु  पिक  कूजत  पीव मिले,
वन मोर चहे वसुधा  रस को। 
बस  यह  रंग    बसंत    यहीं, 
अब खंजन लौट रहे  घर को।
अलि  मम  कंत  विदेश  बसे, 
मन चाहत पीव मिले मन को।
.                  .........
©~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१०६.          अनुकूला छंद 

विधान:-- ११ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
भगण तगण नगण गुरु गुरु
२११  २२१  १११  २   २

.   __शरण तिहारी__

कृष्ण मुरारी प्रभु गिरिधारी।
जीवन  मेरा  शरण तुम्हारी।
आ कर देखो दुख मन मेरा।
मोहन  चाहूँ  नवल   सवेरा।

सावन आए अलि सब झूले।
मोहन, मीरा सुख दुख भूले।
चाहत ले लो शरण  तिहारी।
माधव  आओ अब बनवारी।

माखन  चोरी  नटखट  बाते।
मोहन  चाहूँ   सहज  सुनाते।
हे  गिरिधारी भव  भय  हारी।
पार  लगा  दे  विनय  हमारी।
.        -------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१०७.          अमृतगति छंद

विधान:-- १० वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
नगण जगण नगण गुरु
१११  १२१   १११  २

  __प्रीत मचलती__

दधि घट हेतु लपकना।
वन पथ मेड़ भटकना।
हरि हर ग्वाल यमुन में।
भव भय नाग नथन में।

मनसुख  संग  विचरते।
पनघट   पोर   पहुँचते।
झट घट   रंग  पटकने।
हँस  हँस  पीर गटकने।

तनसुख मीत मिल रहे।
ब्रज वन  गीत घुल रहे।
गिरिधर  प्रीत मचलती।
शुभ जनमानस पलती।
.       ----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१०८.           स्वागता छंद

विधान:-  ११ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
रगण नगण भगण गुरु गुरु
२१२  १११  २११  २  २

.    __वीर भूमि यह __

रीति प्रीत मय बंधन प्यारे।
गीत मीत हित  छंद हमारे।
कर्मभूमि अरमान सुभागी।
देश प्रेम मन  पावक रागी।

वीर भूमि यह  भारत माता।
जन्मभूमि सुर ईश विधाता।
धीर  वीर जन साहस धारी।
जन्म प्राप्त करते भय हारी।

भाव प्रीतमय स्वागत भावी।
राष्ट्र प्रेम जन मीत स्वभावी।
देश शान यह  शुभ्र  तिरंगा।
मात  नद्य  जग पावन गंगा।
.          -------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१०९.            वामा छंद

विधान:-- १० वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
तगण यगण भगण गुरु
२२१  १२२  २११  २

__मानस वाले छंद__

आजाद हमारा भारत है।
आबाद  तिरंगा चाहत है।
है  पावन गीता  वेद यहाँ।
बोलो कब देखे द्वंद कहाँ।

है  मानस  वाले छंद बचे।
जो  पावन  गंगा तीर रचे।
जो  सागर  बाँधे राम हुए।
माता यसुदा के श्याम हुए।

है  भारत  वीरों की धरती।
धीरोचित गीतो से सजती।
निर्बाध हमारी संस्कृतियाँ।
भाएँ मन में वामा कृतियाँ।
.           ----+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

११०.        शंखनादी छंद

विधान:-- ६ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
यगण यगण
१२२  १२२

 _लिखूँ गीत सारे_

सँभालो विधाता।
तुम्ही  छंद  दाता।
बनो   जो  सहारे।
लिखूँ  गीत  सारे।

जगे  भाव  दाता।
भजूँ  मैं  विधाता।
सजे   देश  सारा।
सभी का  दुलारा।

स्वदेशी    सराहें।
विदेशी    निँगाहे।
सुनो   हे   मुरारी।
प्रभो  नाग  धारी।
.     ----+---
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

 १११.   विद्धुल्लेखा/शेषराज छंद

विधान:-- ६ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
मगण  मगण
२२२  २२२

_राणा ही तो जीते_

माटी हल्दी घाटी।
वीरों  ने थी पाटी।
तोपें  दागे    सूरी।
घोड़ा  दौड़ा  नूरी।

भीलो के तीरो ने।
मेवाड़ी  वीरों  ने।
खाँडे ले ले भाटी।
शाही सेना काटी।

हल्दी घाटी लाली।
राणा थाती पाली।
राणा ही तो जीते।
शाही  सेना   रीते।
.     ----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

११२.         विमोहा छंद

विधान:-- ६ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
रगण  रगण
२१२  २१२

_साथ साथी निभे_

प्रेम  प्यारा  पले।
मीत न्यारा मिले।
रीति अच्छी  रहे।
प्रीत  सच्ची  बहे।

भाव  भावे   बढ़ें।
साथ   झूलें  चढें।
मीत  मानो  मुझे।
गीत  भेजूँ   तुझे।

साथ साथी निभे।
बात क्यों ये चुभे।
'विज्ञ' प्यारा सगा।
प्रीत आँखों लगा।
.      ---+---
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

११३ .       माणवक्रीड़ा छंद

विधान:-- ८ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
भगण तगण लघु लघु
२११  २२१   १   १

  __हो सबल__

आज करेंगे  नमन।
देश  बनेगा  चमन।
भारत माते विकल।
संकट काटें सकल।

मीत मिलेगी शरण।
भारत माँ के चरण।
देश  हितैषी विनय।
वीर  बनो  हे तनय।

शत्रु सभी का दमन।
रक्ष  करें  माँ  बदन।
भाव   रखेंंगे  सरल।
वीर रहो हो  सबल।
.    ----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

११४.             मत्ता छंद

विधान:-- १० वर्ण प्रति चरण
४,१० वें वर्ण पर यति
चार चरण, दो-दो समतुकांत
मगण भगण सगण गुरु
२२२  २,११  ११२  २

_.  _तुरग प्रतापी__

हल्दी घाटी, समर  प्रतापी।
शाही सेना,विकल विलापी।
राणा कीका, गहन लड़ाके।
भीलू  राणा, धनु  धर बाँके।

साथी  सूरी , अगन दगाता।
नीला  घोड़ा, तुरग भगाता।
शाही सेना, मुगल   निराशे।
भाले  से  थे, रिपुदल  नाशे।

शाही  सेना, थर  थर काँपी।
देखा  राणा , तुरग   प्रतापी।
झाला मन्ना, सृजक कहानी।
भामा  से थे, मित वर दानी।
.            ----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

११५.                   पृथ्वी छंद

विधान :--  १७ वर्ण प्रति चरण
८,१७ वें वर्ण पर यति
चार चरण दो-दो समतुकांत
जगण सगण जगण सगण यगण लघु गुरु
१२१  ११२  १२,१  ११२   १२२ १  २

.                __अराजक__

सदा  बिखरते  रहे, नयन  स्वप्न खोए तभी।
रहे सिसकते सखे, विमल सोच आए कभी।
धरा तल  गिरे  उठे, फिर  चले गिराए  गए।
अदावत नहीं  किए, सब सहे  विदेही  भए।

यहाँ हम करें नहीं, सजन प्यार की बात भी।
मिलावट मिली बिके, धवल चाँदनी रात भी।
किसान करता रहा, श्रम सदा विधाता  यहाँ।
जवान  मरता  रहा,  वतन  हेतु  रक्षा   वहाँ।

श्रमी  बिलखते  रहे,  चमन  में   बहार  रहे।
महावत  थके  हुए, गज  किए विनाश  रहे।
अराजक  अमानवी, घर नए  ठिकाने  बने।
धरा सिसकने  लगी, नित नए निशाने  तने।
.                  ---------+--------
©~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

११६.                    नील छंद

विधान;-- १६ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
भगण भगण भगण भगण भगण गुरु
२११  २११  २११  २११  २११  २
.           __दृग नीर बहे__

प्रेम  किए मन  से दृग नीर बहे तब से।
नैन मिले  हिय चैन  गया डरते भव से।
नैन चले  कुछ बैन चले  फिर भाव बहे।
ताप चढे  जब सैन  बढ़े फिर घाव सहे।

प्रीत हुई जग रीति छली मन बात खुली।
नीति विकार मनोरथ नाशक वात घुली।
वाहक  दाहक  दौर चले नव  शंक पले।
कोयल के स्वर पावक होकर घाव जले।

भीत हुए तन पीत हुए  मन  मीत छिपे।
निंदक पातक नित्य  छले छुर पीठ घुपे।
मात पिता वर बंधु सखा सब शीश धुने।
'विज्ञ'  ठगा  हमको सबने तब छंद चुने।
.                   --------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

११७.                  मणिमाला छंद

(तीव्र, उज्जवल, चर्चरी, अश्वगति छंद)
विधान:--  १८ वर्ण प्रति चरण
११,१८वें या ८,१८ वें वर्ण पर यति
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
भगण भगण भगण भगण भगण सगण
२११  २११   २११   २१,१  २११  ११२

.           __नीर बहे नयनन से__

प्रेम किए  मन से बस नीर, बहे  नयनन से।
नैन मिले हिय चैन लिवाँय, गये इस मन से।
नैन चले कुछ  बैन चलाय, रहे सजल  बहे।
ताप  चढे  जब  सैन  बढ़ाय, रहे गरल सहे।

प्रीत हुई जगरीति छलाव, गई सकल खुली।
नीति विकार  मनोरथ नाश, हुई पवन घुली।
वाहक  दाहक दौर चलाय, शशंक मन पले।
कोयल के सुर पावक देह, जले जतन जले।

भीत हुए तन पीत पराग, सुमीत कित छिपे।
निंदक पातक  नित्य  कटार, हमार उर घुपे।
मात पिता वर बंधु सखाय, विशेष सिर धुने।
'विज्ञ' ठगा हमको जगरीत, कवित्त रच सुने।
.                   --------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

११८.                 भालचंद्र छंद

विधान:-- १७ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
जगण रगण जगण  रगण जगण गुरु लघु
१२१  २१२  १२, १  २१२  १२१  २    १

.         __बहे बयार शांति की__

किसान  हारते  नहीं, सहे  सदैव ताप  शीत।
जवान  भागते  नहीं, रहे  स्वतंत्र  राष्ट्र  मीत।
प्रभात  सूर्य से सजे, जगे सजीव नित्य कर्म।
विकास गीत गा सखे, निभा सचेत देश धर्म।

प्रदेश  देश  वीर  से, रहे  सुरक्ष  शान  मान।
अनंत  नीर  मेघ में, नदी  नदीश  प्रीत धान।
कपोत  शांति दूत हो, अहिंस कर्म पत्र थाम।
उड़ान  अंतरिक्ष  में, भरे  सचेत   मंत्र  काम।

बढ़े  चलो  बढ़े  चलो, सदा सतर्क  वीर पंथ।
पढ़ो सभी  पढ़ो बढ़ो, सखे सुकर्म  ज्ञान ग्रंथ।
मिटा निराश  पीर को, मिटा मनुष्य बैर भाव।
बहे बयार शांति की, कवित्त 'विज्ञ' छंद नाव।
.               ----------+----------
©~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

११९.                सीता छंद

विधान :-- १५ वर्ण २६ मात्रा प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत हो
२१२२ २१२२ २१२२ २१२

       __नीर नैनों ने निकाला__

वारि हारे  पेड़ पौधे, जीव सारे खेत  भी।
रेत  भाटे  ईंट   गारे, नीड़  हारे  रेत  भी।
आज देखो रो  रही माँ, देख बेटे काश ने।
नीर मैला  भूलता है, दे दिया आकाश ने।

नीर नैनों  ने  निकाला, सागरों  में  बाढ़ है।
सूखते वे ताल नाले, बाढ़  के  ही कोढ़ है। 
मानवी हो भूल  माँगे, त्रासदी  का राज है।
नीर दोहा देख भू भी, काँपती जो आज है।

आज पूरा विश्व देखें, काल से ही त्राण है।
रोग के आगोश में जो, भीरु  सारे प्राण है।
है  डरे आकाश  भू  तो, चंद्र तारे ताप भी।
होड़ के वे  पंथ नाशी, बीज बोए आप भी।
.                      ----+-----
© ~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१२०.           रामा छंद

विधान:-- ८ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
जगण  यगण  लघु लघु
१२१     १२२   १   १

.     __बचे जल__

बहे   यह  वर्षा  जल।
बचा जल प्राणी कल।
धरा  पर   हो  जीवन।
सदा  जल  राखें  वन।

कुए  घट   टाँके  भर।
बना  जल  कुण्डे घर।
बहा  मत  वर्षा  जल।
करे  मत  रीता  कल।

कुए  भर   खेती  कर।
रखें  जल   खेतों  पर।
भरें  जल  जीवों हित।
मिले  तरु  पंछी  नित।

लगा  तरु  मेड़ो   पर।
मिले  फल  पेड़ों  पर।
धरा   हरियाली   बन।
रखें   भव  पानी  घन।
.      ------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१२१.           पदम छंद

विधान:--  ८ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
नगण सगण लघु गुरु
१११   ११२  १   २

___चमन के लिए___

मनुज  बन  मानवी।
तज  चलन  दानवी।
जल विमल पीजिए।
यश  सतत लीजिए।

पथ तरुण लो  चुनो।
नित सपन भी  बुनो।
नव  सृजन कीजिए।
हित  वतन  दीजिए।

जन अमन में जिए।
वन  चमन के लिए।
शुभ समय सोच हो।
मन  बदन लोच हो।
.     -----+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१२२ .          राजहंसी छंद

विधान:-- ११ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
नगण  रगण रगण लघु गुरु
१११   २१२  २१२  १  २

.  __मनुज मानवी प्रीत__

जगत शांति के गीत गाइए।
मनुज  मानवी  प्रीत पाइए।
मन विकार को दूर कीजिए।
यश विवेक से मीत जीतिए।

सरल जीवनी  मित्र चाहिए।
विनत कीजिए  मेल आइए।
प्रकृति  ईश  के  छंद वंदना।
अवनि सृष्टि के गीत सर्जना।

नमन भूमि  को नित्य करेंगे।
जड़ सजीव के सत्य सजेंगे।
जगत  हेतु  हो शुद्ध भावना।
मनुज 'विज्ञ' ये छंद कामना।
.         -------+--------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१२३ .             ब्रह्मरूपक छंद

विधान:-- १६ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
रगण जगण रगण जगण रगण लघु
२१२ १२१  २१२  १२१  २१२  १

.              __शिव रात्रि__

शैल  पे  विराजते  हिमाचली  बयार भंग।
शिंभु देव  पार्वती गणेश  विघ्न टाल संग।
भूतिया  भभूत अंग वस्त्र बाघ चाम नाथ।
है  त्रिशूल हाथ ब्याल कंठ हार गंग माथ।

काल रात्रि  मान  पूजते सभी  विशेष ढंग।   
देश  देश  में  दिनेश देव  भू  पताल  संग।
विल्व पत्र  भोग  दूध  नीर घी दही चढ़ाय।
वे सभी सुकाल चाह मेट काल जाल हाय। 
.             
गंग की  तरंग  शीश चंद्र  की छटा बनाय।
है  जटा  विशाल नाग  संग  नंग भूत राय।
सिंह  पे सवार  साथ नादिया  गणेश  पूत।
शिंभु संग शैल ही  विराजि  मात हेतु दूत।

रोग नाश योग देय  भोग शोक  नाश पंत।
मुक्त पाप शाप से  अजान हूँ  करें  सुअंत।
ज्ञान दे सुकाल के विकासमान काम धाम।
भावि भोग योग क्षेम शील भाव ईश नाम।
.                --------+--------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१२४.
               दीपिकाशिखा छंद

विधान:-- २० वर्ण प्रति चरण
३,९,२० वें वर्ण पर यति
चार चरण दो-दो समतुकांत हो
भगण नगण यगण नगण नगण रगण लघु गुरु
२११,  १११   १२२, १११ १११  २१२  १  २

.           __माधव, चरण पखारे__

सावन, रिमझिम वर्षा, बतरस पति संग नेह से।
साजन, मधुरिम हर्षे, पल पल तिय संग मेह से।
सुन्दर, तरुवर  भीगे, टप टप  घन ढंग  नीर  है।
बोझिल,हर द्रुम झाँके, घर पथ पर मग्न धीर है।

मोहन,नटखट राधा,सखियन सब खेल खेल में।
भावुक, तन मन होते, तब गलियन गैल मेल में।
पावन, यमुन  नहाते, प्रभु  गिरधर  कूद तैर के।
माधव, चरण  पखारे, चुन चुन पद कंट कैर के।

वारिद, गरज  डरावे, नटवर हँस जोर जोर से।
चंचल, तड़ित  झँकावे, नभ तल जल  शोर से।
सूरज, तमहर तापी, अविरल प्रभु दर्श कामना।
भावन, रच पद देखे, नर मन भव छंद साधना।
.                       ------+-------
©~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१२५.         कुसुमविचित्रा छंद

विधान:-- १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
नगण यगण नगण यगण
१११  १२२  १११  १२२

_प्रणय पुराने चितवन वादे_

रिमझिम वर्षा नद तट भाए।
मन विरहा  दादुर  सम गाए।
सजन सनेही  प्रियजन यादें।
प्रणय  पुराने  चितवन  वादे।

जल बरसे सावन हरियाली।
दृग बरसाए तिय  मतवाली।
कृषक अगेती फसल निराए।
पवन पसीना  सहज सुखाए।

पशु खग भीगे वन तरु भीगे।
तिय अलि झूले झटपट पींगे।
मन भटके साजन बिन आए।
कवि लिखते छंद सरस गाए।
.            -----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१२६ .               मणिमाल छंद

विधान:- १९ वर्ण प्रतिचरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
१०,१९ वें वर्ण पर यति
सगण जगण जगण भगण रगण सगण लघु
११२  १२१  १२१  २, ११ २१२ ११२  १

.            __सहते सदा__

भरते  नदीश उदार है, निज  वक्ष भार अतीव।
सहते समुद्र  समान ही, नर मानवी  जन जीव।
सपने किसान सुजान के,हित भूमि जीवन हेतु।
नर जो विवेक भवान हो, भव सागरो हित सेतु।

रमणी सहे हित रीति के, तन कष्ट पालन धर्म।
सहते रहे पितु मात भी, भव हेतु कर्म  अकर्म।
निज देश माँ यह भारती, सहते सदा मनुजात।
भर नीर पावन  जाह्नवी, बहती सहे जन घात।

वन दे रहे  सब आपको, सह ताप शीत अपार।
हिमराज भी  सहता रहे, जन हेतु  शीतल धार।
हम भी बनें हित मानवी,जन जैव जीवन वन्य।
रच छंद गीत कवित्त ये,कवि विज्ञ मानस धन्य।
.             -------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१२७. ‌           कुबलयमाला छंद

विधान:--  १० वर्ण प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत
मगण नगण यगण  गुरु
२२२   १११  १२२  २

_पानी जीवन हर प्राणी का_

पाए  मानव तन क्यों  रोता।
वर्षा  पावन जल को खोता।
पानी  जीवन  हर प्राणी का।
रक्षो  आदर  गुरु  वाणी का।

कूपों में घन जल डालोगे।
चाहोगे तब फिर पा लोगे।
बापी कुंड सहजले नाड़ी।
मोड़ोगे  तब मुड़नी गाड़ी।

खेतों  में तल पट  बाँधे तो।
कुण्डे भी भर कर राखें तो।
खेती में जल भर  के  देना।
अच्छी आमद तुम भी लेना।

कुण्डे  खोद  भवन में यारों।
वर्षा  नीर  सतह  में   धारो।
टाँके नीर  पथिक  को होए।
पानी बूँद मनुज  क्यों खोए।
.            -----+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१२८.        मदकलनी छंद

विधान:-- २० वर्ण प्रति चरण
५,१०,१५,२० वें वर्ण पर यति
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
नगण जगण नगण भगण
 सगण नगण लघु गुरु
१११  १२,१  १११  २,११ 
 ११२, १११  १   २
*(११११२×५)*

.      __कृषक__

बदन  थके, नयन  तके,
नभ छलना, पवन चले। 
कृषक चला, मगन मना,
श्रम करता, विपद छले।
मनन  करे,  खनन  करे,
फसल  उगे,प्रकृति हँसे।
अथक  श्रमी, गुरबत में,
तन  पिचके, रहन फँसे।

जल  बरसे,  जब  हरषे,
सब  सह लें, तरु  सरसे।
जल घट ले, घन  लटके,
बिन  गरजे, बिन  बरसे।
सतत  सहे, कृषक  दहे,
प्रभु  सुनिए, कृषक मरे।
जल   बरसे, तरु  सरसे,
फसल  बढ़े, विपद  टरे।
.       -----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१२९.          चित्रपदा छंद

विधान:-- ८ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
भगण भगण गुरु गुरु
२११   २११  २   २

_चित्र बना शुभकारी_

नीरज जो  मुरझाए।
सावन   नीर  बहाए।
वाह कहीं सुन आहें।
चित्र बना  मन चाहे।

पौध लगा कर  पालें।
रीत निभे फल खालें।
प्राकृत भूमि बचाओ।
पावन  चित्र  बनाओ।

जोहड़ पोखर टाँका।
मूल्य पुरातन आँका।
नीर  बचा भव  सारी। 
चित्र  बना शुभकारी।
.      -----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१३०.          ‌मंगलमंगना छंद

विधान:-- १६ वर्ण प्रति चरण
४,१२,१६ वें वर्ण पर यति
चार चरण दो-दो समतुकांत
नगण भगण जगण जगण जगण गुरु
१११  २,११  १२१  १२१,  १२१  २

.          __श्रम करें, श्रम हरें__

नभ झरे, उठ किसान सँभाल,धरा कहे।
जल बहे,तरु लगा चल मीत, सभी सहे।
पथ रहे, जल मिले तरु संग, सुवासिता।
मन चहे,फल मिले घर नीड़, प्रभाविता।

हम सभी, उठ चलें  हर रंग, प्रभात में।
श्रम करें, श्रम हरें  मजदूर, विभाँति मे।
अरि मिटे, हम जुटें  रणवीर, स्वदेश में।
खुश रहे, सब बढ़े मन भाव, सुवेश में।

विनय है, यह सुने निज देश, महान हो।
सरल हो,विनत वीर उछाह, सुजान हो।
सिर कटे, हम  मिटे  इस देश, सुरक्ष में।
मत भले, सत पले शुभ विज्ञ, सपक्ष में।
.               --------++-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१३१ .        रुक्मवती छंद

विधान:-- ७ वर्ण प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत
मगण  सगण  गुरु
२२२    ११२   २

__प्रीत बुलाती__

कान्हा हे  गिरधारी।
काहे  प्रीत विसारी।
ग्वाले  भी  तरसे हैं।
गायें  भी  तरसे  हैं।

राधा  के  बनवारी।
मीरा भी  मन हारी।
देखो  मीत  दुखारे।
आओ  गीत पुकारे।

भेजा  भी भँवरा है।
चेला  निर्गुणिया है।
यादें  नित्य सताती।
आजा प्रीत बुलाती।
.      ----+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१३२ .           लयग्राही छंद

विधान:--११ वर्ण प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत
तगण  तगण  तगण  गुरु गुरु
२२१    २२१  २२१    २  २

.        __मीरा पुकारे__

मीरा भजे श्याम के गीत राधे।
कान्हा कहाँ मानता मीत राधे।
वे रीति है प्रीति की है निभाई।
मीरा  चली आपके  द्वार आई।

हे कृष्ण मीरा पुकारे सुनो तो।
जो  छंद  गाए सुनाए गुनो तो।
चाहा तुम्हे ही  हमेशा कन्हैया।
मीरा तुम्हारी  कहा मान सैंया।

छोड़ा  ठिकाना सुनो हे मुरारी।
जोड़ा तुम्ही  से निभाना मुरारी।
द्वारे  तुम्हारे  लिखूँ  छंद  गाऊँ।
शर्मा कहे 'विज्ञ' कान्हा सुनाऊँ।
.         -----++------
©~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१३३.        हाइकु छंद-

विधान:-- मूलत: जापानी विधा थी, अब यह हिंदी में जनमानस में प्रचलित है। 
५+७+५=१२ वर्ण का एक छंद पूर्ण रचना है, जो दृश्य का फोटो क्लिक हो, त्वरित आह या वाह हो, दो स्वतंत्र बिम्ब हो।

 १.अमृता लता~
चौके में माँ के हाथ
काढ़ा कटोरी

२.गिलोय वटी~
बेटी के भाल पर
गीला कपड़ा

३. चैत्र वासर~
रोटी पे सहजन 
फूलों की भाजी 

४.चैत्र प्रभात~
सर्पगंधा पुष्प पर
भ्रमर दल

५. मातृ दिवस~
चिता पे चीरा धात्री
शव का पेट

६.सुहाग सेज~
दुल्हन की गोद में
हंँसी बालिका
.    ----+---
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१३४.              ताँका छंद

विधान:--  हाइकु छंद से सम्बद्ध छंद ताँका में -- ५+७+५+७+७ वर्ण होते है। 
हाइकु + ७+७ वर्ण हो।
सार्थक बिम्ब, आशय युक्त पूर्ण कविता रचना हो।

.      विकास

शिक्षा जरूरी
बच्चे के विकास में
सहयोग दें
अच्छा व्यक्ति बनाएँ
सब  को  समझाएँ।

अच्छे बच्चे हों
कहलाएँ सपूत
देश बदले
समाज के हित में
परिवार उजाले।

घर समाज
विकसित होकर
राष्ट्र विकास
मानवता पोषण
संस्कार बन जाते।

सुदृढ़ राष्ट्र 
कठोर संविधान
स्वस्थ आबादी
माकूल शिक्षालय
संतुलित विकास।

जन विकास
लोकतंत्र प्रणाली
प्यारा वतन
हमारा हिन्दुस्तान
सभी का कल्याण हो।
.        ----+-----
©~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा "बौहरा"  विज्ञ

१३५.       सायली  छंद

मराठी कवि इंगले द्वारा विकसित इस विधा में नौ ९ शब्द में पूर्ण व आशय युक्त कविता रचना होती है। शब्द क्रमश: १,२,३,२,१,=९

.        __किसान__
      
दाता
अन्न का
सबका पेट भरे
धरती पुत्र
किसान

कर्जा
बढ़ता जाता
कभी न चुकते
बैंक,साहूकार
धरती 

फसल
अन्न उगाता
सब के लिए
पेट काटता
अपना

उत्पादन
लागत परिश्रम
दूध अनाज सब्जी
मूल्य निर्धारण
व्यापारी

देवता
भूख का
सबकी भूख मिटाता
सिवाय अपने
किसान 
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१३६.        सेदोका विधा

विधान-- छ चरण होते है।
५+७+७+५+७+७
= कुल ३८ वर्ण की सार्थक 
व पूर्ण कविता हो।

.      __सावन__

सावन मेघ
गरजे घनघोर
दामिनी दमकती
दुखी विरहा
धरा वन सरित
तरु वन्य बहके।
२.
दादुर ध्वनि
पावस ऋतु बाजे
विरहिनी तरुणी
मौन कोकिला
नीड़ो में चहकन
धानी धरा चूनर।
.     ----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१३७.       चोका विधा

विधान:- वर्ण गणना आधारित
 लम्बी कविता है। जिसमें वर्णो
 का क्रम क्रमश;-
५+७+५+७.......का क्रम रहता है,
समापन में ७-७ वर्णीय दो पंक्तियाँ
 आवश्यक है। 
भाव कथ्य व प्रवाह  अच्छा हो।

__तुम भी चुप__

सावन झूले
झूमें तरु तरुणी 
पिकी मौन क्यूँ
पूछत विरहिणी
कोयल बोली
सुन हे मतवाली
कद्र नही है
अब अमिया डाली
दादुर छाए
कंटक नींबू लाए
जीव अनेकों
विचरे जहरीले
बहुमत से
गुण कहें कँटीले
तुम भी चुप
बिन मीत सजीले।
जन रंग रँगीले।
....................!
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१३८.          वर्ण पिरामिड़

वर्ण संख्या आधारित विधा है। जिसमे क्रमशः वर्ण रखे जाते हैं। सार्थक आशय युक्त पूर्ण कविता रचना हो। शब्द दोहरान न हो।

(अ) पिरामिड़ -
विधान:- वर्ण संख्या - १,२,३,४,५,६,७,

.       __गणेश वंदन__
हे 
गौरी
नंदन
गणराज
विघ्न मिटाओ
हृदय  विराजो
सभी सुधारो काज
.    -----++----

 (ब)        धनुष पिरामिड़

विधान:-- वर्ण संख्या- १,२,३,४,५,६,७,७,६,५,४,३,२,१,

.        __शिक्षा__

है
शिक्षा
बच्चे का
अधिकार
पढ़़ना बच्चों
समझ विचार
जीवन सुधरता
विद्यालय चलते
सबको पढ़ाते
कमर कसो
पाठ पढ़ो
बदलो
देश 
ये
---+---
©~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ

© सर्वाधिकार सुरक्षित
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
सिकंदरा, दौसा,राजस्थान
pin.३०३३२६
मो.नं. ९७८२९२४४७९
******************************************

.               *सवैया   २२*

छंदों के कई प्रकारों में सवैया भी एक प्रकार का छंद है। 
सवैया चार चरणों का समपाद वर्ण छंद है। वार्णिक वृत्तों में २२ से २६ वर्ण प्रति चरण वाले, जिनमें चार चरण समतुकांत हो,और मापनी आधारित लिखें हो ऐसे जाति छंदों को सामूहिक रूप से हिन्दीशास्त्र में सवैया कहते हैं।
इस प्रकार सामान्य जातिवृत्तों से बड़े और वर्णिक दण्डकों से छोटे छंद को सवैया समझ सकते हैं।
तुलसीदास जी एवं रसखान जी जैसे कविजन दो या अधिक सवैयों के मिश्रण से भी रचना करते थे जिन्हे 'उपजाति सवैया' कहतें हैं।
हिन्दी साहित्य में प्रचलित २२ सवैये क्रमश: निम्न प्रकार मय विधान एवं रचना-उदाहरण के लिख रहा हूँ।
---- ~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ

१.           मदिरा सवैया
.          ( वर्णिक छंद )

विधान :--
चार चरण
२२ वर्ण प्रति चरण
१०-१२ वर्ण पर यति,
चरणान्त गुरु, 
(२११×७) +२
(भगण×७) +गुरु
चारो चरण समतुकांत !
.              _____
.                  माँ
.                 ______
उत्सव  फाग  बसंत तभी
जब मात महोत्सव संग मने।
जीवन  प्राण  बना  अपना,
तन माँ अहसान महान बने।
दूध  पिये  जननी  स्तन  का,
तन शीश उसी मन आज तने।
धन्य  कहें  मनुजात  सभी,  
जन मातु सुधीर सुवीर जने।
.     ..........

भाव  सुनो  यह  शब्द महा,
जनमे सब ईश सुसंत जहाँ।
पेट  पले  सब  गोद  रहे,
अँचरा लगि दूध पिलाय यहाँ।
मात  दुलार  सनेह  हमें,
वसुधा मिल मात मिसाल कहाँ।
मानस  आज  प्रणाम  करें,
धरती बस ईश्वर मात जहाँ।  
  .  .........
पूत  सुता  ममता  समता,
करती सम प्रेम दुलार भले।
संतति  के  हित  जीवटता,
क्षमता तन त्याग गुमान पले।
आँचल  काजल  प्यार  भरा,
शिशु  देय पिशाच बलाय टले।
आज  करे  पद  वंदन  माँ,
पद पंथ निशान पखार चले।
.    ..........
पूत  सपूत  कपूत  बने,
जग मात कुमात कभी न रहे।
आतप  शीत  अभाव  घने,
तन जीवन भार अपार सहे।
संत  समान  रही  तपसी,
निज चाह विषाद कभी न कहे।
जीवन  अर्पण  मात  करे,
तब क्यों अरमान तमाम बहे।
    ............
©~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ



.२.           सुखी सवैया

विधान:- आठ सगण + लघु लघु
११२×८+११(१२,१४ पर यति)
.              .......
.             फागुन
.   .       .........
जब से यह फागुन माह लगे,
तब से मन चाह बसंत समेटन।

अरदास करुँ ,भगवान भजूँ,
असमान तकूँ,अरमान सहेजन।

मन भावन सावन याद करूँ,
तब आय न साजन वे दिन सालन।

प्रभु से मन से विनती करती,
अब साजन बाँह जरूर मरोरन।
.  .            ..........
©~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ

 ३.            सुख सवैया

विधान:-आठ सगण + लघु गुरु
११२×८+१२(यति १२,१४ पर)
.          ------------
.             फागुन
.               ...........
जब से यह फागुन माह लगे,
तब से मन चाह सु रंग समेटने।

अरदास करुँ ,भगवान भजूँ,
असमान तकूँ,अरमान सहेजने।

मन भावन सावन याद करूँ,
तब आय न साजन वे दिन सालने।

प्रभु से मन से विनती करती,
अब साजन बाँह जरूर मरोरने।
.            .........
©~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ

४.           दुर्मिल सवैया

विधान:- आठ सगण ११२×८
१२,१२यति,४चरण समतुकांत
.             ........
.             विरहा
.              ........
पिक बोल सुने,तड़पे विरहा,
मन मोर शरीर सखी हुलसे।
अब रंग बसंत चढा सबको,
तन आज मसोस रही मन से।
वन मोर नचे तितली भँवरे,
सब मीत बनात फिरे कब से।
पिय सावन आ कर लौट गये,
तब से न मिली तन से उनसे।
.           ......
भँवरे रस पान करे फिरते,
तितली मँडराय रही रस को।
पिक कूजत पीव मिले मन के,
वन मोर चहे वसुधा रस को। 
बस रंग बसंत यही समझे,
अब खंजन लौट रहे घर को।
मम कंत बने हुलियार सखी,
मन चाहत पीव मिले मन को।
.            ..........
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा

५.             किरीट सवैया-

विधान:--
२११×८    भगण× ८
२४ वर्ण,  १२,१२ पर यति
चार पद समतुकांत
.         ----------
    चाह शहादत मानस भारत
.           --------------
भारत  देश  महान  बने सब,
लोग  निरोग रहे जन भावन।
मेल  मिलाप  रहे  सब धर्मन,
जाति सबै मिल देश बनावन।
सीम सुरक्ष  करे  बल सैनिक,
शत्रु बिसात पड़े कस आवन।
*लाल*  हमार स्वदेश हिते सब,
मानव  मानस  मान  मनावन।

रीत सु प्रीत निभे अपनी बस,
चाह  शहादत  मानस भारत।
आन निभे अरमान निभे सब,
देश  हितैष  निछावर  चाहत।
आज यही बस है मन मे अब,
काज करूँ  मन मानुष राहत।
मानवता  हित जीवन  अर्पण,
दूर  सभी  कर  भारत आरत।

शान  तिरंग सँभाल सकूँ बस,
मान स्वदेश सदा  अपना पन।
जन्म मिले फिर भारत मानुष,
तो बलिदान करूँ अपना तन।
जीवन ज्योति चले मन में बस,
याद शहीद  यही  जपना मन।
देश समाज सुकाज करूँ नित,
भाव  रचूँ  कविता मन भावन।

साहित साधन  साज सरे सब,
शान सुराज  सुरक्षण   भारत।
गीत लिखूँ ममता समता जब,
मीत सुरीत  समाज निभावत।
भाव स्वभाव  भरे तन  भीतर,
मानव  मानस   प्रीत कहावत।
संकट  हो   जब  देश धरा पर,
मानस  चाहत  *लाल* शहादत।

पास पडौ़स  छिपे कुछ दानव,
काज करे नित  मान अपावन।
मानवता  पर   भार कलंकित,
केवल  ये  धन लोभ लुभावन।
दीन  जिहाद  विधर्म  सने मन,
चाहत  है बस  स्वर्ण कमावन।
द्वेष  भरे  यह  काम  करे बस,
मानव  मानस  *लाल* सतावन।

भारत भूमि  मिले हर जीवन,
दूँ अपना  तन  भारत अर्पण।
दुश्मन  के दिल चीर करूँ पर,
देश  हितैष करूँ  न समर्पण।
दुष्ट जनों  हित  होकर  दानव,
मार करूँ उनका फिर तर्पण।
छंद  रचूँ  मन  चेतन  हो जन,
देखि सके मुख आपन दर्पण। 
.              --------
©~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ

  ६.         सुमुखि सवैया छंद

विधान:-- सात जगण + लघु गुरु
१२१ × ७ + १२,
११,१२ वर्ण पर यति,
दो पद सम तुकांत
.               .........
.               हुलियार
.               ..........
बसंत चले पुरवाइ थमे ,
.    तब,भोर सुहावन लागि भली।
अनाज पके,सरसों सिमटे,
.     मन मोर नचे मन चाह अली।
गुलाब,कनेर गुँथे गजरे,
.    रमणी मिलने मनमीत चली।
दिनेश तजी निज शीतलता,
.    मन होलिन मानस प्रीत पली।
.                .........
सुरंग,गुलाल अबीर लिए,
.    हुलियार बने सब साथ चले।
कन्हाइ बने सिरमौर सभी,
 . मन चाह सखी सब गैल मिले।
छिपाइ सखी वृष भानु सुता,
.    तब पीपल पेड़ विशाल तले।
निगाह पड़ी सब की उन पे,
 .   फिर खूब सुरंग गुलाल मले।
.       .       ..........
सनेह सुधारस पान किए,
.    सब गोरि कपोल अबीर सने।
सखी वृषभानु सुता मिलके,
.  तब कान्ह सखा सब संग जने।
मचा हुड़दंग अबीर उड़े,
.     हुलियार विचित्र चरित्र बने।
कहीं तन रंग सने मन में
.   कछु लाजन लाल कपोल घने।
.               ..........
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा


७.           मत्तगयंद सवैया

विधान:--
.  भगण × ७ + २ गुरु,
.      (२११×७ +२२)
.  १२,११ वर्ण पर यति
( चार चरण सम तुकांत )
.            ........
.         शहादत   
.           ......
देश  धरा  पर  संकट हो तब,
रक्षक   वीर  करे   रखवाली।
सैनिक के बल सोय रहे सुख,
जीम  रहे  हम भोजन थाली।
चौकस धीरज धारक सैनिक,
शान   सपूत   रहे  वन माली।
आन निभा कर मान रखे वह,
रीत   शहीद  नई  रच  डाली।
  .            .....
बारिश शीत सहे हिम आतप,
शस्त्र  रखे  अरि शूल मिटाए।
देश रखे  निज  वेष  रखे वह,
मान  शहीद   बड़े   कहलाए। 
गर्व करे हम  वीर सभी पर,
धीर  सपूत  धरा पर  जाए।
और सगर्व  रहे  मम भारत,
रक्षक  वीर  शहीद  कहाए।
.   .          .....
वीर करे  बलिदान धरा हित,
मात  समान  मही  वह माने।
जन्म मिले इस भारत भू पर,
अंतिम  चाह  शहादत  जाने।
सीम हिमालय पर्वत तीरथ,
रेत नदी सब  चाह  सजाने।
शत्रु मार भगा निज ताकत,
शान  शहादत  रीत  रचाने।
.           ......
मान  करे  हम मीत शहादत,
रीत  सु प्रीत  सदा  यश गाएँ।
प्राण दिए उन मात धरा हित,
आज सभी मिल मान बढ़ाएँ।
ईश समान रहे  बन  रक्षक,
मूरत  सुंदर  साज  सजाएँ।
देश धरा यश मान शहादत,
वे परिवार  सभी  अपनाएँ।
.          ...........
पाक अराजकता कर कायर,
मानव  बम्म  दगेे  पुलवामा।
वीर बयालिस भारत भू सुत,
छोड़ गये  परिवार  व वामा।
देश  शहीद  समाज  कहे पर,
वे  भगवान  बसे  सुर  धामा।
आज करे प्रण मान धरा हित,
पावन  मंदिर  मस्जिद जामा।
.         .........
©~~~~~~~बाबू लाल शर्मा "बौहरा


 ८.          अरसात सवैया

विधान: --
.        २११×७+२१२
भगण × ७+ रगण 
( भगण भगण भगण भगण
 भगण भगण भगण रगण)
चार चरण सम तुकांत हो।
.           ...........
.           भावन भारती
.               .......
भारत भाग्य विधान बना तब
लोक सभी मन भावन भारती।
वीर शहादत याद करें सब
लोग करे मन पावन आरती।
शासन भार सँभाल लिया जन
लोक भला सब साधन धारती।
पूत सपूत सभी सुत भारत 
हेतु भला सरकार विचारती।
.          ______'
पूत सपूत कपूत सभी हित
मात समान रहे मन पालती।
चोट खसोंट लगे तन के सुत
मात हिये तब आपद सालती।
बाग गुलाब कनेर सभी द्रुम
फूल सुशोभित मालिन मालती।
आपद कष्ट सुने जब संतति
भाँति अनेक विधा कर टालती।
.              ______
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ

 
९.            मातंगी सवैया 

विधान: --
प्रति चरण (पंक्ति,) ३६ मात्रा १८ वर्ण,
२२२ × ६ 
(मगण मगण, मगण मगण, मगण मगण।)
१२, २४, ३६ मात्रा या
 ६,१२,१८,वर्णों पर यति
चार चरण सम तुकांत हो
.               _______
.              आओ साथी
.                .......
वर्षा भी आएगी, खेती भी झूमेंगी,
झूले डाले जाएँ।
भीगेंगे   भागेंगें,   खेलेंगे   खाएंगे,
 ठाले बैठें गाएँ।
आओ साथी सारे, पौधे पानी लाओ,
गड्ढे खोदें आएँ।
आजादी भाती है,  मैना गाना गाती,
आओ खाना खाएँ।
.                  ________
गंगा की धारा का, पानी प्यारा मीठा,
आओ साथी पीलें।
गंगोत्री  से आती, मैदानों को भाती,
  माँझी काहे ढीले।
खेतो को  हर्षाती, गोते  मारे हाथी,
 दीखे काले नीले।
सर्दी ले  आती है, गर्मी में  गाती है, 
गंगा रेती टीले।
.          ________
© ~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ


 १०.            चकोर सवैया 

विधान: --
(भगण भगण भगण भगण 
भगण भगण भगण + गुरु लघु)
.       (२११ × ७ + २१)
     चार चरण समतुकांत हो

.          __पुरन्दर__

राजत राजन में चतुरानन
मानस उच्च लगे जस बाज।
सुन्दर सोच विचार पुरन्दर
भू हित साधक सावन साज।
खेत हरे मन भाव भले तन
उत्तम सोच बनाकर आज।
भारत भूमि सदा मन भावन
आप  सहेज रखो सुर राज।

.       __मनमोहन__

बालक आँगन में चलता तब
आँचल छोर कसे निज मात।
दौड़ रहा जब द्वार दिशा तब
अंगुलि पोर कसे निज तात।
खेल रहे द्वय संग खड़े लड़
हाथ छुड़ा भगता निज भ्रात।
दूर खड़ी वृषभानु सुता मन
चाह रही मन मोहन  बात।
.            ______
© ~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ

 
११.          अरविंद सवैया
 
विधान:--
.           ११२ × ८ + १
(सगण सगण सगण सगण सगण
सगण सगण सगण + लघु )
.    चार चरण सम तुकांत हो।

.          __यशगान__

कहते सब कृष्ण भजो मन में
वृषभानु सुता हँसती भगवान।
यसुदा कहती सुन कृष्ण भगे
मत आज सुधार रहूँ तव शान।
वसुधा जननी वर भाग सुनो
जिन अंक पले प्रभु जी मय मान।
लिखता पढता कविता कवि जो
शुभ भाव रखे मन मेंं यशगान।

.       __सुत नंद__

वन में जन के मन में तन में 
रहते बसते हँसते सुत नंद।
तपसी जन संत रहे तुम को
सब ठौर निहार थके मतिमंद।
जल में थल में घर में तरु में
हर ओर उजास करे नभ चंद।
फल में दल में अब भी कल भी
वन बाग पहाड़ मिले  मूचुकंद।
.           _________
© ~~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ


 १२.       महा भुजंगप्रयात सवैया

 विधान:--
१२२ × ८ ( यगण यगण यगण
 यगण यगण यगण यगण यगण)
चार चरण ,  सम तुकांत हो

.     __लिखूँ छंद तेरे__

हमारा भरोसा यही है प्रदाता।
प्रभो बाग मेरे तुम्ही हो बहारे।
चली नाव मेरी नदी घाट ढूँढे।
प्रभो बोझ भारी इसे पार तारे।
बनाऊँ  सुनाऊँ  लिखूँ छंद तेरे।
दया  हो प्रभो कष्ट काटो हमारे।
कहानी लिखूँगा तुम्हारी गुमानी।
रचूँ  काव्य दोहा सवैया तुम्हारे।
.         -----------
हमेशा अनेको कथाएँ  सुनाते।
इसी  हेतु  मैने चटाई  बुनी  है।
पधारो  यहाँ  बैठ  बातें  करेंगे।
दया की दवा प्रेम पाने चुनी है।
धरा भारती मानवी आज चाहे।
मिटाओ सभी कष्ट भारी ठनी है।
हरो द्वेष सारे दुखो की कहानी।
बनादो सुहानी नही जो बनी है।
.          -----------
युगों से यही पीर  देखी सुनाई।
लिखे लेखनी गीत मेरी कहानी।
कभी तो पढ़ोगे दुखों के दहाने।
खड़ी है यहाँ  नाव देखो पुरानी।
विवादी हुआ जीव नेकी गँवाता।
बिना बात भारी हताशा बखानी।
भलाई  बुराई  सभी  रोग  भारे ।
सुरक्षा  प्रतीक्षा  सनेही सुजानी।
.           _______
© ~~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ


१३.            वागीश्वरी सवैया

 विधान:--
१२२ × ७ + १२ ( यगण यगण यगण
 यगण यगण यगण यगण लघु गुरु)
चार चरण ,  सम तुकांत हो

.   __नाव देखो वृथा__

हमारा भरोसा यही है प्रदाता।
प्रभो बाग मेरे तुम्ही हो सखे।
चली नाव मेरी नदी घाट ढूँढे।
प्रभो बोझ भारी इसे भी रखें।
बनाऊँ  सुनाऊँ  लिखूँ छंद तेरे।
दया  हो प्रभो कष्ट भारी  चखे।
कहानी लिखूँगा तुम्हारी गुमानी।
रचूँ  काव्य  दोहा  सवैया लखे।
.         -----------
हमेशा अनेको कथाएँ सुनाते।
इसी   हेतु   मैने  चटाई  बुनी।
पधारो  यहाँ  बैठ बातें  करेंगे।
दया की दवा  प्रेम  पाने चुनी।
धरा भारती मानवी आज चाहे।
मिटाओ सभी कष्ट भारी ठनी ।
हरो द्वेष सारे दुखो की कहानी।
बनादो  सुहानी  नही  जो बनी।
.          -----------
युगों से यही पीर  देखी सुनाई।
लिखे लेखनी गीत  मेरी व्यथा।
कभी तो पढ़ोगे दुखों के दहाने।
खड़ी है  यहाँ  नाव देखो वृथा।
विवादी हुआ जीव नेकी गँवाता।
बिना बात  भारी  हताशा  यथा।
भलाई  बुराई  सभी  रोग  भारे ।
सुरक्षा   प्रतीक्षा   सनेही  कथा।
.           _______
© ~~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ


 १४.        सुंदरी/माधवी सवैया 

विधान:--
.           ११२ × ८ + २
(सगण सगण सगण सगण सगण
सगण सगण सगण + गुरु )
.    चार चरण सम तुकांत हो।

.          __सुख दानी_

कहते सब कृष्ण भजो मन में
वृषभानु सुता करती मनमानी।
यसुदा कहती सुन कृष्ण भगे
मत आज सुधार रहूँ अभिमानी।
वसुधा जननी वर भाग सुनो
जिन अंक पले प्रभु जी सुख दानी।
लिखता पढता कविता कवि जो
शुभ भाव रखे मन मेंं जिद ठानी।

.       ____नभ चंदा__

वन में जन के मन में तन में 
रहते बसते हँसते सुत नंदा।
तपसी जन संत रहे तुम को
सब ठौर निहार थके मतिमंदा।
जल में थल में घर में तरु में
हर ओर उजास करे नभ चंदा।
फल में दल में अब भी कल भी
वन बाग पहाड़ मिले  मूचुकंदा।
.           ________
~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

  १५.              वाम सवैया  

विधान:- सात जगण + यगण
१२१ × ७ + १२२,
दो पद समतुकांत,चार चरण का एक छंद
.                .........
.       __लाजन लाल कपोल__
.               ..........
बसंत चले पुरवाइ थमे ,
.    तब,भोर सुहावन लागि भली है।
अनाज पके,सरसों सिमटे,
.     मन मोर नचे मन चाह अली है।
गुलाब,कनेर गुँथे गजरे,
.    रमणी मिलने मनमीत चली है।
दिनेश तजी निज शीतलता,
.    मन होलिन मानस प्रीत पली है।
.                .........
सुरंग,गुलाल अबीर लिए,
.    हुलियार बने सब साथ चले वे।
कन्हाइ बने सिरमौर सभी,
 . मन चाह सखी सब गैल मिले वे।
छिपाइ सखी वृष भानु सुता,
.    तब पीपल पेड़ विशाल तले वे।
निगाह पड़ी सब की उन पे,
 .   फिर खूब सुरंग गुलाल मले वे।
.             ..........
सनेह सुधारस पान किए,
.    सब गोरि कपोल अबीर सने थे।
सखी वृषभानु सुता मिलके,
.  तब कान्ह सखा सब संग जने थे।
मचा हुड़दंग अबीर उड़े,
.     हुलियार विचित्र चरित्र बने थे।
कहीं तन रंग सने मन में
.   कछु लाजन लाल कपोल घने थे।
.             ..........
©~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१६.            मोद सवैया 

विधान :--
चार चरण, समतुकांत
चरणान्त गुरु, 
(२११×५) +२२२+११२+२
(भगण×५) + मगण + सगण + गुरु
चारो चरण समतुकांत !
.              ...........
.    __धरती पर माँ ही ईश बताए__
.           .............
शीश  झुके  इस  भू  हित  में 
मिट जाय धरा माँ भारत पे ही।
वीर    शहीद     धरा   जनमें
हित युद्ध किये हैं आरत के ही।
धीर    सपूत    अनेक    हुये
कवि काव्य रचे हैं चाहत में ही।
पीड़ित  पूत    धरा   पर जो
मनुजात  वही  है आहत नेही ।
.           ...........
भाव  सुनो  यह  शब्द सखे
हम हैं सब, माता ईश्वर जाए।
पेट  पले  सब  गोद  रहे
अँचरा लगि, माता दूध पिलाए।
मात  दुलार  सनेह  हमें,
वसुधा पर, माँ के कारण आए।
मानस  आज  प्रणाम  करें,
धरती पर, माँ ही ईश बताए।  
  .           .........
पूत  सुता  ममता  समता
करती सम, भारी नेह भलाई।
संतति  के  हित  जीवटता
क्षमता तन, त्यागे गेह कमाई।
आँचल  काजल  प्यार  भरा
शिशु  देय पिशाची हाय टलाई।
आज  करे  पद  वंदन  माँ
हित पंथ निशानी पूज्य कहाई।
.        ..........
पूत  सपूत  कपूत  बने
जग मात कुमाता हो न कभी जो।
आतप  शीत  अभाव  घने,
सह जीवन, भारी भार सभी जो।
संत  समान  रही  तपसी
निज चाह विरागी तान तभी जो।
जीवन  अर्पण  मात  करे
बस पूत कपूती आस निभी जो।
            ..........
~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

 १७.        मुक्ताहरा सवैया 

विधान:- आठ  जगण 
१२१ × ८
(जगण जगण जगण जगण
जगण जगण जगण जगण)
चार चरण सम तुकांत
.              .......
.       मानस प्रीत विधान
.               ..........
बसंत चले पुरवाइ थमे ,
.    तब,भोर सुहावन लागि किसान।
अनाज पके,सरसों सिमटे,
.     मन मोर नचे मन चाह वितान।
गुलाब,कनेर गुँथे गजरे,
.    रमणी मिलने मनमीत मचान।
दिनेश तजी निज शीतलता,
.    मन होलिन मानस प्रीत विधान।
.              .........
सुरंग,गुलाल अबीर लिए,
.    हुलियार बने सब साथ विभात।
कन्हाइ बने सिरमौर सभी,
 . मन चाह सखी सब गैल सुहात।
छिपाइ सखी वृष भानु सुता,
.    तब पीपल पेड़ चढे छिप पात।
निगाह पड़ी सब की उन पे,
 .   तब डाल सुरंग गुलाल हठात।
.            ...........
सनेह सुधारस पान किए,
.    सब गोरि कपोल अबीर सनेह।
सखी वृषभानु सुता मिलके,
.  तब कान्ह सखा सब संग सदेह।
मचा हुड़दंग अबीर उड़े,
.     हुलियार विचित्र चरित्र विदेह।
कहीं तन रंग सने मन में
.   कछु लाजन लाल कपोलन नेह।
.              ..........
©~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

 १८.       लवंगलता सवैया 

विधान:- आठ जगण + लघु
१२१ × ८ + १
(जगण जगण जगण जगण
जगण जगण जगण जगण +लघु)
चार चरण सम तुकांत
.              .......
.         मन चाह नटे कब
.            ..........
बसंत चले पुरवाइ थमे ,
.    शुभ भोर सुहावन लागि सबै जब।
अनाज पके,सरसों सिमटे,
.     मन मोर नचे मन चाह नटे कब।
गुलाब,कनेर गुँथे गजरे,
.    रमणी मिलने मनमीत मचे अब।
दिनेश तजी निज शीतलता,
.    मन होलिन मानस प्रीत पले तब।
.              .........
सुरंग,गुलाल अबीर लिए,
.    हुलियार बने सब साथ गुणी जन।
कन्हाइ बने सिरमौर सभी,
 . मन चाह सखी सब गैल सुहावन।
छिपाइ सखी वृष भानु सुता,
.    तब पीपल पेड़ चढे छिपते तन।
निगाह पड़ी सब की उन पे,
 .   तब डाल सुरंग गुलाल हठी मन।
.              ...........
सनेह सुधारस पान किए,
.    सब गोरि कपोल अबीर सनेहन।
सखी वृषभानु सुता मिलके,
.  तब कान्ह सखा सब संग सहेजन।
मचा हुड़दंग अबीर उड़े,
.     हुलियार विचित्र चरित्र विदेहन।
कहीं तन रंग सने मन में
.   कछु लाजन लाल कपोलन नेहन।
.             ..........
©~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१९ .         सर्वगामी सवैया

 विधान  :--                 
  २२१ × ७ + २२
(तगण तगण तगण तगण
तगण तगण तगण + गुरु गुरु)
   चार चरण समतुकांत
.              --------------------
.   __सौंधी रुहानी जवानी मिली__
.                 ---------------
होली  मचे  फाग गाए घुटे भंग
आओ चलें आज आजाद मेले।
पंछी पिया नाच गाए घुले रंग
साथी नये ढूँढ  त्यागें  झमेले।
मैं तो हुई आज बेचैन हे श्याम
झूले नये डाल दो आज खेलें।
गाओ प्रिये फाग की राग में गीत
आया गया पर्व कौड़ी न धेले।
......       _______

आसान है यों चले भी कहीं शाम
गाते रहें गीत गीता नवेली।
बागान मे भी बहे गंध की वात
जूही लता फूल गेंदा चमेली।
आवाज देती हवाएँ चले प्रात
धीमी सुहानी नदी भी अकेली
सौंधी रुहानी जवानी मिली मौज
त्योहार माने कहाँ आज ठेली।
.                _________
~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

२०.          आभार सवैया 

विधान:--              
  २२१ × ८ 
(तगण तगण तगण तगण
तगण तगण तगण तगण)
   चार चरण समतुकांत
.              --------------------
.                    होली
.                 ---------------
होली  मचे  फाग गाए घुटे भंग
आओ चलें आज हों संग आजाद।
पंछी पिया नाच गाए घुले रंग
साथी नये ढूँढ  त्यागें चले याद।
मैं तो हुई आज बेचैन हे श्याम
झूले नये डाल दो आज के बाद।
गाओ प्रिये फाग की राग में गीत
आया गया पर्व कौड़ी न आबाद।
......       _______

आसान है यों चले भी कहीं शाम
गाते रहें गीत गीता नये ढंग।
बागान मे भी बहे गंध की वात
जूही लता फूल गेंदा रमे भंग।
आवाज देती हवाएँ चले प्रात
धीमी सुहानी नदी में नये रंग।
सौंधी रुहानी जवानी मिली मौज
त्योहार माने कहाँ कौन के संग।
.                ______
~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा  विज्ञ

 २१.          गंगोदक सवैया 

विधान:--
.      २१२ रगण × ८
रगण रगण रगण रगण
रगण रगण रगण रगण
चार चरण समतुकांत हो

.              __भारती__
.
भारती की बने शान ऐसे करो,
काम तो नित्य गावें सभी आरती।
आरती ये सखे होय आवाम मे,
वीर की माँ सुने गीत माँ टालती।
टालती पीर  कैसे हमारे हैं सभी,
आज तेरे पड़ी चोट जो सालती।
सालती पाक आगे यही राग हो,
बाज़ ये पालती वीर  माँ भारती।
.             _________

आरती गान भी सैन्य का मान है
ये तिरंगा सदा देश की शान हो।
आइये आप भी नाद ये बोल दें
शीश दानी कही बात का मान हो।
गाइये कृष्ण गीता नये जोश से
पार्थ गाण्डीव से तेज ही बान हो।
एक हो देश ऐसी रहे भावना
भारती मात का नित्य ही ध्यान हो।
.             ______
~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*


२२.          मंदारमाला सवैया

 विधान:--
.      २ + २१२( रगण ) × ७
गुरु + रगण रगण रगण
रगण रगण रगण रगण

चार चरण समतुकांत हो

.    __नित्य ही ध्यान हो__
.
माँ की बने शान ऐसे करो काम 
तो नित्य गावें सभी आरती।
 ऐसे सखे होय आवाम मे वीर 
की माँ सुने गीत जो टालती।
वे वीर  कैसे हमारे हैं सभी आज
 तेरे पड़ी चोट जो सालती।
हे पाक आगे यही राग हो बाज़
 यों पालती वीर  माँ भारती।
.             _________

ये गान भी सैन्य का मान है ये
तिरंगा सदा देश की  शान हो।
लो आप भी नाद ये बोल दें 
शीश दानी कही बात का मान हो।
गा कृष्ण गीता नये जोश से
पार्थ गाण्डीव से तेज ही बान हो।
हो भावना देश ऐसा रहे आज
 से मात का नित्य ही ध्यान हो।
.             ________
✍©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
पिन ३०३३२६
mob. no. ९७८२९२,४४७९

: ********👀👀👀घनाक्षरी👀👀👀***********

विविध - *घनाक्षरी छंद विधान*
_११ प्रकार की घनाक्षरी छंद संरचना_

१.     मनहरण घनाक्षरी
विधान:-- ८,  ८, ८, ७ वर्ण 
आठ,आठ, आठ,सात  वर्ण
संयुक्त वर्ण एक ही माना जाता है।
कुल ३१वर्ण, १६, १५, पर यति हो,( , )
पदांत गुरु(२) अनिवार्य है,  
चार पद सम तुकांत हो,
चार पदों का एक छंद कहलाता है।

.       *होली*

रूप   रंग   वेष   भूषा, 
भिन्न राज्य और भाषा,
देश   हित   वीर    वर, 
बोल   भिन्न    बोलियाँ।

सीमा   पर   रंग   सजे, 
युद्ध   जैसे   शंख  बजे,
ढूँढ    ढूँढ    दुष्ट    मारे, 
सैनिको    की   टोलियाँ।

भारतीय     जन    वीर, 
धारते   है   खूब    धीर,
मारते  है   शत्रुओं   को ,
झेलते      हैं    गोलियाँ।

फाग   गीत   मय   चंग 
खेलते    हैं   सब    रंग
देश    हित   खेलते  हैं, 
खून   से   भी  होलियाँ।

.            👀👀              
✍© बाबू लाल शर्मा °बौहरा" विज्ञ

२.        जनहरण घनाक्षरी
विधान:-- ३१, वर्ण प्रति चरण
( ८८८७) १६,१५ पर यति
चार चरण समतुकांत हो।
प्रति चरण ३० वर्ण लघु और
 अंतिम वर्ण गुरु हो।

.   __प्रभु नटखट__

चल  पथ  पनघट
निरखत जल घट
गिरधर    नटखट
    पटकत घट है।

भय  भगदड़ तब
घर पथ लगि जब
छिपत  रहत अब
     गिरधर नट है

वन पथ छिप कर
दधि घट क्षत कर
झट पट  चट कर
    भग सरपट है।

सर  तट  तरु चढि
लखत लपक बढ़ि
वसन   रखत  दृढ़
    प्रभु नटखट है।

.  ++++++
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

३.      जलहरण घनाक्षरी 
विधान :-- ३२ वर्ण प्रति चरण 
( ८८८८) १६,१६ पर यति
चार चरण समतुकांत
चरणांत लघु गुरु, या लघु लघु 

.    __नीर बहे__

मेघ घटा जल वर्षा
खेत खेत है सरसा
बाग पेड़  सर हर्षा
रोक जन नीर बहे।

नीर  भावि जन शक्ति
उठो धीर  मति व्यक्ति
वारि से  हो  अनुरक्ति
व्यर्थ  यह  नीर   बहे।

जल कुंड बना घर
रख  मेड़  बनाकर
कूप बापी  बेरे भर
 चेत  नर नीर बहे।

उठ  सब  घर वाले
लख  छत  परनाले
जलहित नल डालें
सोच मत नीर बहे।
.   ++++++
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

४.           रूप घनाक्षरी 
विधान:- ३२ वर्ण (८८८८) प्रतिचरण
१६,१६ वर्ण पर यति
चार चरण समतुकांत 
चरणांत गुरु लघु (गाल)

 __भारती वंदन__

मात भारती  वंदन
माटी  तेरी है चंदन,
जन्मे  जो रघुनंदन
आँचल में भगवान।

मान देश का रखते
शान  तिरंगा रखते,
प्राण देह दे  सकते
सपने शुभ अरमान।

लिखते छंद ज्ञान के
देश  धरा  ईमान  के,
सत्ता देश विधान के
गाते  जन  गुणगान।

अरि को नष्ट करेंगें
सब आतंक मिटेंगे,
रंग   सुरंग    भरेंगे
बढ़े सदा तव शान।

.     +++++
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

५.         मदन घनाक्षरी
विधान :- ३२ वर्ण (८८८८) प्रतिचरण
१६,१६ वर्ण पर यति
चार चरण समतुकांत
चलणांत २२ गुरु गुरु

__नीर जरूर बचाएँ__

वर्षा का  नीर सहेजें
संदेश सभी को भेजें,
पुनर्भरण   कर   लो
व्यर्थ न  नीर  बहाएँ।

पेड़ लगाओ सब ही
मेड़ बनाओ तब ही,
खेत खेत जल कुंडे
घर भी  कुंड बनाएँ।

कूप बावड़ी पोखर
भरे  नीर  वर्षा  पर,
हर पथ कुण्ड बना,
बूंद बूंद जल लाएँ।

बाग  बगीची घर की
अपनी हो या पर की,
वर्षा जल कुण्ड बना
नीर  जरूर   बचाएँ।
.     +++++
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

६ .         डमरू घनाक्षरी
विधान :- ३२ वर्ण(८८८८) प्रतिचरण
१६,१६,वर्ण पर यति
चार चरण समतुकांत
समस्त वर्ण मात्रा विहीन हो

. __हँसत नट__

चल  पथ  पनघट
खटकत जल घट,
धर  पद   नटखट
भग  पटकत घट।

भय  भगदड़ तब
घर पथ लग जब,
कहत  रहत अब
अभय हँसत नट।

वन पथ तक कर
छछ घट क्षत कर,
झट पट  चट कर
तब  भग सरपट।

सर  तट  तरु चढ
लखत लपक बढ़,
वसन   रखत  दृढ़
इत  उत  नटखट।

.  ++++++
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

७ .         कृपाण घनाक्षरी
विधान : - ३२ वर्ण(८८८८) प्रतिचरण
चार चरण समतुकांत
८,८,८,८ पर यति हो, एवं
चारो यति समतुकांत अनिवार्य
चरणांत गुरु लघु २१ (गाल)

 . __वर्षा नीर__

माने जाने भू की पीर,
साथी सारे हैं जो धीर,
गायें पौधे  कागा कीर,
रक्षे   भैया  वर्षा  नीर।

ले कुदाली आओ बीर,
चेतो  पानी  रक्षा  गीर,
वर्षा  पानी  औ समीर,
गो   बचालें वर्षा  नीर।

ध्यानी मानी हैं  बे पीर,
पानी  है  तो  है अमीर,
होली    रंगोली  अबीर,
रक्षें  साथी  वर्षा  नीर।

 बापी टाँके  नदी  तीर,
राखो तो साफ  सुधीर,
दोहे   गाए  थे   कबीर,
आओ  रक्षे  वर्षा नीर।

.       +++++
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

८.         विजया घनाक्षरी
विधान :- ३२ वर्ण (८८८८) प्रतिचरण
चार चरण समतुकांत
आंतरिक समान्तता हो
चरणांत नगण १११

__तिरंगा चाह कफन__

भारत माता वंदन
माटी सादर  चंदन,
मानस  अभिनंदन
चरणों में  है नमन।

जन गण का गायन
हर  दिन  हो सावन,
कण  कण है पावन
रहे  आजाद  वतन।

सुन्दर  सुन्दर   वन
पौरुष  वान   बदन,
ईमानी है  जन जन
रहे  आबाद  चमन।

देश की रक्षा का मन
करें   आतंक   हनन,
समर्पित   दैही   धन
तिरंगा  चाह  कफन।
.       -----+----

©~~~~~~~~ बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

९ .         हरिहरण घनाक्षरी
विधान :-- ३२ वर्ण( ८८८८) प्रतिचरण
चार चरण  समतुकांत
आंतरिक समान्तता अपेक्षित
चरणांत लघु लघु ११

.    __परिवर्तन__

हे श्याम वर्ण के घन
नर्मद  सा  हो ये मन,
पत्थर  शिव  जीवन
वसुधा   पर   सावन।

सागर  जैसा हो धन
विहगों जैसा जीवन,
यमुना सी  बंशी धुन
गंगा सा जल पावन।

हे  राधा  तेरा  नर्तन,
मेघों के जैसा गर्जन,
हो    युग   परिवर्तन
माधव   मन  भावन।

मीरा  के पद  गायन,
भारत माता के  जन,
पायलियों का वादन,
छंद विज्ञ  के  गावन,
.       -----+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

१० .      देव घनाक्षरी
विधान:- ३३वर्ण (८८८९) प्रतिचरण
चार चरण समतुकांत
चरणांत नगण१११(पुनरावृत्ति)
(जैसे कदम कदम)

  __कदम-कदम__

लड़ें  सीमा  पर हम,
पातकी जाएगा थम,
कारवाँ  चले  बढ़ेगा,
चलना कदम-कदम।

पाक पड़ौसी बे दम,
सुधारो  उसको तुम,
करना   नहीं   रहम,
वह तो छदम छदम।

चीन भाई धोखे सम,
फैलता है काला तम,
भारती माता  पावन,
झूठ वो सनम सनम।

शत्रु हो कोई आधम,
नष्ट  होगा   हर  बम,
सबक देना ही होगा
तोड़ना  वहम वहम।
.      ----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

११.      सूर घनाक्षरी
विधान:-- ३० वर्ण(८८८६) प्रतिचरण 
चार चरण समतुकांत
चरणांत की कोई शर्त नहीं है।

.   __जल रक्षण__

मनुज  भूल   नादानी,
आज समय की मानी,
बचत  वर्षा  का पानी
सोचो    कुण्ड     बने।

नही  बहा  ये   अमृत
बचा  नीर  से  प्राकृत,
धरा   हेतु   है   सुकृत
टांके     कुण्ड     बने।

ताल   तलैया    बापी
गहराई   कब    मापी,
रेत  खेत   तप  तापी
कूएँ      कुण्ड    बनें।

घर हो  या  दफ्तर हो
ऊँचा  हो  कमतर  हो,
जन  मन   सभी  सुने
पक्के     कुण्ड    बने।

.     -----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
✍©
बाबू लाल शर्मा,  बौहरा, विज्ञ
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
Pin ३०३३२६
Mob.no. ९७८२९२४४७९
👀👀👀👀👀👀👀👀

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