विज्ञ छंद विज्ञान में

[12/25, 11:57 PM] Babulal Bohara Sharma: .         हंसमति छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - ८ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण दो- दो समतुकांत हो
सगण भगण गुरु लघु 
११२  २११   २    १

.     _मतदान_

करना  है  मतदान।
रचना नव्य विधान।
जनता तंत्र  चुनाव।
रखिए सत्य लगाव।

भय से मुक्त विचार।
तज दो मीत विकार।
अपना  भारत  मान।
मन  से  हो मतदान।

तजिए बैर स्वभाव।
मत का अर्थ चुनाव।
रचिए 'विज्ञ' विधान।
करना   है   मतदान।
.        ----+---
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/25, 11:57 PM] Babulal Bohara Sharma: .      सुन्दर छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - ८ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
मगण भगण गुरु लघु 
२२२  २११  २     १

.    _संत सुंदरदास_

दौसा के सुन्दर दास।
दादू के भक्त सुभास।
माने  साहित्य  प्रवीर।
ज्ञानी आदित्य सुधीर।

दौसा के वैष्य कुलीन।
दादू के  शिष्य  प्रवीन।
काशी में भी कर वास।
सीखे  साहित्य सुवास।

दादू  पंथी  जग मान।
ज्ञानी थे भानु समान।
देखे  लेखे  मन भाव।
दादू से  सत्य  लगाव।
.        ----+----
©~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/25, 11:57 PM] Babulal Bohara Sharma: .       विराट छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - ८ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
तगण जगण लघु गुरु 
२२१  १२१   १   २

.    _पार्थ विराट_

बैराठ  पुरातन   है।
सम्मान रहा धन है।
प्राचीन धरोहर भी।
संयोग मनोहर भी।

आए वनवास रहे।
वे पार्थ विराट रहे।
कृष्णा पचबंधु वही।
थी  बात पुरातन ही।

थी मौर्य युगीन कला।
खोजा मठ बौद्ध मिला।
गंगा  सम बाण नदी।
सम्भ्रांत अनेक सदी।
.      ----+---
©~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/25, 11:57 PM] Babulal Bohara Sharma: .            कुशाग्र   छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - ८ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
लगण भगण गुरु गुरु 
२१२   २११  २    २

.    _छंद विज्ञान_

हिन्द हिन्दी रखने हैं।
भाव  भाषा अपने है।
देश का  मान  रखेंगे।
छन्द   विज्ञान  रचेंगे।

भारती  मात  हमारी।
देश की शान सँवारी।
शारदे की जय बोलो।
मीत दोनो दृग खोलो।

विज्ञ के छन्द निराले।
सीखलो मानव ठाले।
छन्द  विज्ञान सँवारो।
नाव को  पार उतारो।
.         ----+----
©~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/25, 11:59 PM] Babulal Bohara Sharma: .         चेटक छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - ९ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
मगण सगण मगण
२२२  ११२  २२२

.     _सनेही माटी_

राणा चेतक  दोनो संगी।
कूदे थे रण  में हो  जंगी।
दोनों युद्ध  सनेही साथी।
ऐसा अश्व लगे जो हाथी।

भारी थे मुगलो से दो ही।
भागे  शत्रु बचे  दोनो ही।
राणा रक्त  भला मेवाड़ी।
देता अश्व नहीं जो आड़ी।

छाए थे रण  हल्दी घाटी।
थी चित्तौड़  सनेही माटी।
गाए 'विज्ञ' नवाएँ  माथा।
देखो छन्द  सुनाएँ गाथा।
-              -----+---
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/25, 11:59 PM] Babulal Bohara Sharma: .         मरु छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - ९ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
रगण यगण तगण
२१२  १२२  २२१

.      _राजस्थान_

आन मान का राजस्थान।
कैर- खेजड़ी-  रेगिस्तान।
वीर भूमि वीरों  की मात।
स्वर्ण प्रात चाँदी सी रात।

सन्त देव  योद्धा भी पूत।
शत्रु  हेतु  जाने  हो  दूत।
मात  भारती  चाहे  युद्ध।
पूत  युद्ध  में  होते  क्रुद्ध।

है अरावली आड़ी  शान।
पाग  बाँधते  माने  आन।
कैर साँगरी  वाला  साग।
'विज्ञ' छंद में  गाते फाग।
.         ----+---
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/25, 11:59 PM] Babulal Bohara Sharma: .            कीर्ति छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - ९ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
भगण भगण रगण
२११  २११  २१२

.    _प्राण समान_

भारत भूमि महान है।
पावन प्राण समान है।
सत्य सनेह  बना रहे।
निर्मल वायु सदा बहे।

मात कहें  हम भारती।
नित्य करें शुभ आरती।
सादर  हो  जग  वंदित।
पूजन  से  मन  हर्षित।

देव  धरा  कहते   सभी।
विश्व कहे गुरु भी कभी।
'विज्ञ' करे  भव कामना।
छंद लिखे  शुभ भावना।
.            -----+----
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/25, 11:59 PM] Babulal Bohara Sharma: .           विहंगपति छंद


बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान -  ९ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत है।
 नगण भगण यगण
१११  २११  १२२

.      _भरत तुल्य_

भगत सिंह बन जाए।
सबल  देश बन  गाए।
विमल  नीर सम  होवे।
मिथक नींद सब खोवें। 

 विजय भारत हमारा।
 प्रबल मानस सँवारा।
 अटल मान रखना है।
 सतत  कर्म करना है।

भरत तुल्य बन जाओ।
सरस राग रच गाओ।
सुजन सीख सकते हैं।
सजल  भाव बहते हैं।
.      ------+----
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/25, 11:59 PM] Babulal Bohara Sharma: .     प्रकृति छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - ९ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
सगण मगण सगण
११२  २२२  ११२

.     _रक्षण हो_

मन चाहे  निर्माण  करे।
हर काया  निर्वाण करे।
मिल पाँचों से  एक बने।
बस काया में  नेक बने।

बनती  हड्डी  चर्म सभी।
चलती श्वाँसे थाम कभी।
बहता  देखें  सत्य  यही।
सहते  जाने  नित्य वही।

तन मे आती सोच सुनो।
मन में सारी  बात  गुनो।
बिन पाँचों  के देह  नहीं।
सब जाते हैं  और  कहीं।

नर ये पाँचों  तत्व  बचें।
इस काया के सत्व रचे।
इन तत्वों का रक्षण हो।
कब सोचेंगे तत्क्षण हो।
.      ------+-----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/25, 11:59 PM] Babulal Bohara Sharma: .        द्वंदमति छन्द

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - ९ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
रगण यगण मगण
२१२  १२२  २२२

.    _युद्ध आत्म से_

द्वन्द छन्द का पाला है तो।
युद्ध आत्म से ठाना है तो।
वर्ण शुद्ध हो  बाजे  ताली।
धार शब्द की  गीता वाली।

गीत प्रीति का गाया है तो।
रीति प्रेम की  जोड़ी है तो।
भाव आत्म में होवें सच्चा।
सत्य बंध‌ ये  होता  कच्चा।

द्वन्द भक्ति का ठाना है तो।
ईष्ट आत्म  में जाना  है तो।
ज्ञान छन्द का  सीखो संगी।
'विज्ञ'  जीवनी   होगी  रंगी।
.            -----+----
©~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/25, 11:59 PM] Babulal Bohara Sharma: .              राधासुत छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान: - ९ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
राधेय छंद का आधा है यह छंद 
रगण भगण भगण
२१२ २११ २११

.        _शापित_

कृष्ण का शापित जीवन।
और  मीरा  भजती  मन।
कैद  में  जन्म  लिये वह।
देवकी  त्याग   दिये  वह।

गाय वे नित्य चराकर।
दूध घी सत्व चुराकर।
नाचते तक्र पिये नित।
भागते दोष छुपे हित।

प्रीति राधा करती वह।
थी  रुहानी पलती वह।
भागते  युद्ध  तजे हरि।
जीवनी शापित श्रीहरि।
.          -----+----
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:01 AM] Babulal Bohara Sharma: .            हर्षद छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १० वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
रगण यगण सगण गुरु 
२१२  १२२  ११२  २

.        _आभानेरी_

चाँद बावड़ी  हर्षद माता।
देश देश से दर्शक आता।
ये निकुम्भ चौहान बनाए।
चन्द्र राज राजा कहलाए।

आठवीं सदी से नवगाथा।
विष्णु देव को  नम माथा।
कुंड खोद निर्माण कराया।
भव्य  धाम दैवी बनवाया।

विश्व मान्य  सीढ़ी गहराई।
लोक  मात पीढ़ी  ठहराई।
ये प्रसिद्ध आभा  नगरी है।
'विज्ञ' छंद गाओ लहरी है।
.       -----+----
©~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:01 AM] Babulal Bohara Sharma: .          पशुपति छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १० वर्ण, प्रति चरण 
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
तगण यगण सगण गुरु 
२२१  १२२  ११२  २

.       _रीति बुरी है_

सीता पर भी दोष लगे हैं।
होते जग में  कौन सगे हैं।
मीरा विष पीवे जन जाने।
राधा करती प्रीति न माने।

कृष्णा सहती चीर खिंचाती।
आजा अब तो कृष्ण बुलाती।
गोपी   विरहा   मोहन  गाती।
ज्ञानी जन को प्रीति न भाती।

माना जग की रीति बुरी है।
आशा तज ती प्रीति डरी है।
गाओ लिख लो छंद सुहाने।
बाधा  टलती  जान  बहाने।
.           -----+----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:01 AM] Babulal Bohara Sharma: .             तीर्थ छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १० वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
सगण मगण भगण गुरु 
११२  २२२   २११  २

.         _आँख बही_

कितनी  मीरा  वृन्दावन में।
भटके  राधा  गोपी जन  में।
कितनी नारी आयी भजती।
कितनी आयी दौड़ी भगती।

सच में जानो पीड़ा उनकी।
मन की पूछो चाहे तन की।
विधवा  हो  वे  संताप सहे।
दृग  दोनों  आँसू  धार बहे।

प्रभु की माता नारी वह थी।
तिय राधा मीरा भी वह थी।
फिर क्यों भोगे संन्यास रही।
हरि नारी की क्यों आँख बही।
.          ----+---
©~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:01 AM] Babulal Bohara Sharma: .          ईशत्व छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ,द्वारा
अन्वेषित छंद--
विधान - १० वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
रगण जगण यगण गुरु 
२१२  १२१  १२२  २

.         _पाँच तत्व_
पाँच तत्व प्राकृत में होते।
आज आप में कल वे खोते।
देह जीव की इनसे जानो।
मूल तत्व प्राकृत में मानो।

भूमि धारती तन माटी से।
वायु श्वाँस में नित आती से।
रक्त नीर से बन जाता है।
प्राण अग्नि से यह आता है।

देह जीव चेतनता सारी।
मर्त्य मान अम्बर से धारी।
संग पंच का तन हो पाता।
एक छूटता तन खो जाता।

मेल पाँच का तन निर्माणे।
भिन्न एक भी तन निर्वाणे।
"विज्ञ" मानते सब विज्ञानी।
मिथ्य धारणा नर नादानी।
.         -------+-----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:01 AM] Babulal Bohara Sharma: .          क्षेम छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद
विधान -  १० वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
यगण नगण सगण गुरु 
१२२  १११  ११२   २

.         _शहनाई_

बजे  मौत  पर  शहनाई।
सजे  चौक मन सुखदाई।
चले 'विज्ञ' जन गुण गाते।
भले मीत  पथ  पर जाते।

कहे प्रीति पथ चलना है।
भले रीति यह  छलना है।
रहे भाव  पल  पल सच्चे।
चुके छूट मिथ मन कच्चे।

रचे छन्द निश दिन गाओ।
सुनो मीत हर सुख पाओ।
कहे  'विज्ञ' तुम  हरषाओ।
सुधा  प्रेम   रस  बरषाओ।
.             ---+---
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:01 AM] Babulal Bohara Sharma: .            साध्य छन्द

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १० वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
रगण नगण भगण गुरु 
२१२ १११  २११   २

.       _मौन चले_

सृष्टि दृष्टि मन  सेतु बना।
ईष्ट  देव  जन  हेतु  घना।
भूल मान  पथ  मौन चले।
शब्द कथ्य मन ज्ञान पले।

देह मोह तज आत्म चुनी।
तार  तार  प्रिय  हेतु बुनी।
प्रीत  मीत  नव गीत  रहे।
बाँध  सत्य  मनमीत  रहे।

ईष्ट   देव  भगवान  भजे।
शुद्ध बुद्ध अभियान सजे।
शब्द वर्ण  यति भाव रखे।
ईष्ट प्रीति श्रमसाध्य सखे।
.       -----+----
©~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:01 AM] Babulal Bohara Sharma: बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित--

.          स्मृति छंद

स्मृति आनंद रीवा द्वारा निर्मित छंद --
विधान:-- १० वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
भगण भगण सगण गुरु
२११   २११  ११२   २

. _क्षमा सब कर देना_

भूल क्षमा सब कर देना।
वन्दन मानस रख  लेना।
प्रीत निभा अब बनवारी।
मीत बना कर गिरिधारी।

शारद माँ शिव गण सारे।
'विज्ञ' कहे  तन मन हारे।
छंद लिखे बहु गण साधे।
नित्य रखे  मन  हरि राधे।

राम- सिया गुरु जन सारे।
संग रहे स्मृति कवि प्यारे।
पाठक भी पढ़कर गाओ।
छन्द सुधा  रस बरसाओ।
.        -----+----
©~ ~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:02 AM] Babulal Bohara Sharma: .        राजमति छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - ११ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण दो- दो समतुकांत हो
सगण भगण भगण गुरु गुरु 
११२  २११   २११   २   २

.     _चुनाव करेंगे_

करना है  मतदान अभी तो।
रचना नव्य विधान तभी तो।
जन  का  तंत्र चुनाव  करेंगे।
भव  से  सत्य  लगाव  रहेंगे।

भय से मुक्त विचार बनाएँ।
मन से मीत विकार भगाएँ।
अपना  भारत मान हमारा।
मन से हो मतदान तुम्हारा।

तजिए बैर स्वभाव विरोधी।
मत से अर्थ चुनाव विशोधी।
रचिए 'विज्ञ' विधान सरूरी।
करना   है   मतदान जरूरी।
.             ----+---
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:02 AM] Babulal Bohara Sharma: .          केशरिया छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान -- ११ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत
भगण मगण भगण  गुरु
२११   २२२  २२१   १२

.          __नाते__

केशरिया वीरों की भूमि रही।
शत्रु विनाशे  लोहू  धार बही।
भूमि हमारी हो माता अपनी।
मानव जागो है काली रजनी।

सावन  पानी भी भारी  बरसे।
ताल  तलैया  से  नाले  सरसे।
खेत  हँसे तो कोए भी  लगते।
मानस  पौधों  के नाते सजते।

पर्व  नवेला रक्षा  बंधन  हो।
शीश  लगाते रिश्ते वंदन हो।
विज्ञ' सनेही सीखे छंद सखे।
आप पढ़ें तो छंदों को परखे।
.           -----+----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:02 AM] Babulal Bohara Sharma: .            जौहर छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - ११ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
तगण रगण रगण लघु गुरु 
२२१  २१२  २१२  १   २

     .      _चित्तौड़गढ़_

चित्तौड़ दुर्ग है गर्व देश का।
मेवाड़  केशरी वेश देश का।
है  दुर्ग पर्वती  राज दूत सा।
संग्राम  ठानता वीर पूत सा।

सम्मान देश का वीर देश के।
है तीर्थ देश का धीर वेश के।
मेवाड़  पाग है आन बान है।
राणा लड़े  वही धार शान है।

संगीत युद्ध  के  ढोल  गूँजते।
थे  शत्रु  काँपते  गात  धूजते।
उद्घोष जीत के  अश्व टाप के।
ज्यों शब्द गूँजते हों प्रताप के।

है 'विज्ञ' छंद विज्ञान ग्रन्थ में।
मेवाड़ वीर सा काव्य पंथ में।
चित्तौड़ युद्ध के छंद  ठानता।
ये 'विज्ञ' दुर्ग को तीर्थ मानता।
.           -----+----
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:02 AM] Babulal Bohara Sharma: .           कार्तिक छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - ११ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
यगण जगण जगण लघु गुरु
१२२  १२१  १२१   १    २

.        _तिय रक्षण_

बनी द्रौपदी कितनी गिनिए।
जली नारियाँ कितनी चुनिए।
रही वंचिता रमणी कितनी।
सजी डोलियाँ तब भी इतनी।

कटी लाश के कपड़े बिखरे।
कहीं लोथड़े शव के छितरे।
बनी गोपियाँ रटती कितनी।
हुई साधिका भजती कितनी।

नहीं देव भी तिय रक्षण को।
रही बाड़ भी रति भक्षण को।
अरे 'विज्ञ' क्या रचना करते।
सभी छंद क्या मन में बसते।
.           -----+----
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:02 AM] Babulal Bohara Sharma: .           धेनु छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - ११ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
सगण मगण नगण लघु गुरु 
११२  २२२  १११  १     २

.       _कविता रानी_

तुकबंदी  मंचो पर चलती।
कविता बेढंगी  बन पलती।
रचता कोई  गान  कर रहा।
लिखते डूबे मान फल बहा।

करते भौंडी हास्य बतकही।
कविता रानी डूब जल बही।
लिखते गाते छंद विफल हैं।
हँसते  चीखे  गंद सफल है।

जन भाषा हिन्दी चुप रहती।
रचना हो छन्दी  छिप डरती।
हर कोई संभ्रांत  लिख  रहा।
हर ढोंगी  सम्मान  चख रहा।
.         ------+----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:02 AM] Babulal Bohara Sharma: .           कबीर छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - ११ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
नगण रगण नगण गुरु गुरु 
१११  २१२  १११  २   २

.         _आज कवि_

यदि कबीर आज कवि होते।
गत  विचार  भाव सब खोते।
तुम  विकार  त्याग  करते थे।
सब   विवाद  भाव  हरते  थे।
 
कवि लकीर लाँघ कर आते।
जन सुभाव बात कह जाते।
मिथ विशेष  फूहड़  पना है।
विमल  छंद  गायन मना है।

रसिक हास्य गीत मतवाले।
मन  मलीन बात जन पाले।
कवि विचित्र ढंग  रस जाने।
मिथ महीप 'विज्ञ'  पहचाने।
.           -----+----
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:02 AM] Babulal Bohara Sharma: .         शिक्षक छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - ११ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
भगण मगण सगण गुरु गुरु 
२११  २२२  ११२   २   २

.         _आदर्श_

शिक्षक का सम्मान बढ़ाना है।
ज्ञान लिया  सम्मान बचाना है।
भारत का निर्माण नया होगा।
सागर का भी मान नया होगा।

शिक्षक को आदर्श यथा जानो।
ईश्वर  से  भी  पूर्व  इन्हें  मानो।
हो गरिमा से बात सुनो बोलो।
सत्य सनेही ज्ञान भरा खोलो।

'विज्ञ' हमारे  भी गुरु जी होवें।
क्यों हम माथा थाम यहाँ रोवें।
शिक्षक ही  दातार  सदा होते।
हे हरि ऐसे  मानव क्यों खोते।
.            -----+----
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:02 AM] Babulal Bohara Sharma: .              बापू छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - ११ वर्ण, प्रति चरण 
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
भगण भगण तगण लघु गुरु 
२११   २११  २२१  १   २

.    _घायल छन्द हुआ_

छंद लिखे क्षमता हो कवि में।
फूल खिले सविता है  रवि में।
वर्ण  गिने  कर  मात्रा गिनती।
शारद  से  करनी   है  विनती।

कथ्य रहे गण अच्छे लिखने।
भाव भले  लय गा के रखने।
द्वंद मनोबल  तोड़े  रुक लो।
आँख थके तब थोड़े थम लो।

छन्द समीक्षक खोजे गलती।
श्वाँस  थमें कुछ धीमें चलती।
घायल छन्द हुआ ज्यों लगता।
मानस 'विज्ञ'  बना के भजता।
.           ----+---
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:02 AM] Babulal Bohara Sharma: .             कर्मा छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - ११ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
सगण भगण रगण लघु गुरु 
११२  २११  २१२  १    २

.          _मिथ्य मेल है_

कवि का कर्म कठोर मानिए।
कविता काल मराल जानिए।
लिखना गाकर काव्य ढंग हो।
कहना  रोकर  आँख  बंद हो।

रवि का ताप  विकास जन्य है।
कवि का काव्य सुभाष मान्य है।
गण मात्रा यति तान कथ्य हो।
कवि को केवल ज्ञान सत्य हो।

कवि ही दीपक बाति तेल भी।
रहता  एकल  मिथ्य  मेल भी।
धन  का  अर्जन  पन्थ बन्द है।
कवि का  मानस  छन्द द्वंद है।
.           -----+----
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:02 AM] Babulal Bohara Sharma: .             प्रतीक्षा छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - ११ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
भगण मगण यगण लघु गुरु 
२११  २११  १२२   १   २ 

.           _छले द्वन्द भी_

मोहन आकर बजा बाँसुरी।
छंद लिखूँ हरि सुना बाँसुरी।
प्रीत करूँ हरि सदा आपसे।
आप डरो कब सगे बाप से।

हे मन मोहन  करूँ याचना।
शुद्ध विचारित भरो भावना।
हे नट नागर  लिखूँ छन्द भी।
आप छले मन छले द्वन्द भी।

'छंद' विधा रच रहे 'विज्ञ' हैं।
लोग कहे यह  निरा अज्ञ है।
हे   यदु नन्दन  चले आइए।
प्रीति भरे  पद सुना  गाइए।
.              ----+----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:02 AM] Babulal Bohara Sharma: .         हियगति छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान -  ११ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
भगण मगण नगण लघु गुरु 
२११  २२२  १११  १    २

.      _देश हमारा_

देश हितैषी जीवन जिसका।
है उपकारी  मानस  उसका।
देश  हमारा  है यह  अपना।
मान  बढाना जागृत सपना।

भारत माता की जय जय हो।
सैनिक सेना की नित जय हो।
उच्च तिरंगा  हो  यह  अपना।
कर्म  प्रकाशे  हो  श्रम सपना।

वेद  पढ़ें तो  ज्ञान  सँवरता।
छन्द रचें तो वाच्य सुधरता।
'विज्ञ'  सनेही छन्द रच रहा।
सत्य दृगों  में  नीर बह रहा।
.             ------+----
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:02 AM] Babulal Bohara Sharma: .               योग छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - ११ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
भगण भगण भगण गुरु गुरु 
२११   २११  २११  २    २

.         _मौत मिले_

हे परमेश्वर  मौत मिले तो।
हे रघुनंदन  पुष्प खिले तो।
सत्य सनेह  तुम्हें रखना है।
प्रीति प्रतीति बना रहना है।

हे मन मोहन  प्रीति पुरानी।
नित्य प्रसंग दिनेश सुनानी।
मानव मानस भाव भरोसा।
पावन  सावन  नीर परोसा।

छन्द रहे जन मानस  स्रोता।
ढंग नहीं तब  पाठक खोता।
छन्द बना नव छन्द बनाओ।
'विज्ञ' कहे नवरीति चलाओ।
.               ----+----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:04 AM] Babulal Bohara Sharma: बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित -

.         अभिलाषा छंद

अभिलाषा चौहान 'सुधी' द्वारा
 निर्मित छंद -
विधान:- १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
तगण यगण नगण यगण
२२१  १२२  १११  १२२

.          _अभिलाषा_
पूरी करना हे  हरि अभिलाषा।
हिन्दी रचना मानस मन भाषा।
गाएँ लिख लें  छन्द पद सुहावें।
गा   भारत के गीत हम रिँझावें।

हैं वर्ण  सुहाने  सहज लुभाए।
ये व्यंजन सारे  सरल सिखाए।
सच्चे स्वर भाए बचपन सीखे।
बच्चे हँस गाएँ  भजन सरीखे।

प्यारी यह हिन्दी जनमत चाहे।
गीता  लिख डाले हरि चरवाहे।
साथी सब मेरे मिल कर गाओ।
जो 'विज्ञ' रचे हैं पढ़कर जाओ।
.         ------+----
©~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:04 AM] Babulal Bohara Sharma: .             मूमल छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान:- १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
भगण भगण नगण यगण
२११  २११  १११  १२२

 _हे नटनागर हरि गिरिधारी_

कौन सुने प्रभु विनय हमारी।
हे  बृज मोहन शरण तुम्हारी।
लो अपना अब प्रभु बनवारी।
हे नट नागर  हरि  गिरि धारी।

लो  मुरलीधर  अधर  धरो जी।
लो मुरली स्वर सुयश भरो जी।
पीर विशेष प्रबल दुख क्यों है।
दूर  सनेह  सुयश सुख क्यों है।

मौन हुए सुर स र ग म सारे।
सत्य कहो हरि तन मन हारे।
छन्द  रचे प्रभु सुगम सुधारो।
'विज्ञ' कहे घर सुजन पधारो।
.         -----+----
©~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:04 AM] Babulal Bohara Sharma: .            सुभाष छंद 

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
जगण रगण यगण यगण
१२१  २१२  १२२  १२२

.            _सुभाष बोस_

सुनो सुभाष बोस वाली कहानी।
सुना रहा वही सुनी जो जवानी।
विशेष जीवनी रही बोस की थी।
विदेश और देश में जोश की थी।

रही सुभाष बोस  में धीरता थी।
सुभाष संग सैन्य की वीरता थी।
लड़े यहाँ  वहाँ  जहाँ  भी रहे वे।
निनाद देश हिन्द का ही कहे वे।

प्रवेश जर्मनी किए बोस जाते।
चले समुद्र मार्ग  जापान आते।
विशेष दंग  सैन्य  अंग्रेज भारे।
 रचे  प्रसंग 'विज्ञ' के छंद सारे।
.           -----+-----
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:04 AM] Babulal Bohara Sharma: बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित -
.            माधवी छंद

माधवी श्रीवास्तव द्वारा निर्मित छंद -
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
रगण रगण नगण रगण
२१२ २१२ १११ २१२

.   _छंद हो फलित ग्रन्थ से_
शारदे मात हो सुफल कामना।
वन्दना आपकी सतत साधना।
देश में कर्मधार बढ़ते चले।
वेश ले कर्णधार बनते भले।

मानवी जन्म हो सुफल पन्थ से।
माधवी छन्द हो फलित ग्रन्थ से।
'विज्ञ' भी  छन्द ग्रन्थ  रचते कहे।
आपसी  प्रेम से  सुजन  जो  रहे।

भारती मान वीर  सब से बड़ी।
सैन्य भी संग धीर धरती खड़ी।
मात तेरा विकास जब से हुआ।
'विज्ञ' बेटा स्वतंत्र तब से हुआ।
.         ------+----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:04 AM] Babulal Bohara Sharma: .            विज्ञईष्ट छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
अन्वेषित मापनी आधारित छंद -
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
रगण नगण यगण नगण
२१२  १११  १२२  १११

.         _कृपा मान कर_

ईष्ट सत्य तुम  जगन्नाथ हरि।
शम्भु देव शिव उमानाथ हरि।
नाथ आप हरि रमा संग प्रभु।
मैं चकोर सम तकूँ विज्ञ विभु।

हो महेश सुत गजानन्द तुम।
विघ्न कष्ट हर सदा देव मम।
राम नाम नित रटे विज्ञ' तन।
द्वेष मुक्त यह बने 'अज्ञ मन।

सत्य देव तव कृपा मान कर।
'विज्ञ' छन्द रच रहे ज्ञान भर।
खोज छंद नव विधा रंग नव।
'विज्ञ' देश हित करे यत्न रव।
.          -----+----
©~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:04 AM] Babulal Bohara Sharma: .          विज्ञनयन छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित छंद -
विधान - १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
नगण रगण भगण सगण
१११  २१२  २११  ११२

.        _सोच तरल हो_

प्रभु महेश को सत्य समझिए।
दिन दिनेश आदित्य परखिए।
विमल 'विज्ञ' साहित्य रच रहे।
नवल छन्द ले खोज सच कहे।

सरल भाव की सन्तति रमता।
नयन तारिका 'विज्ञ' समझता।
तनय एक है  एक  सु तनया।
सुत महेश पूजा मम बिटिया।

सहज नाम है भाव सरल हो।
चरित नेक है  सोच तरल हो।
अजिर 'विज्ञ' के छंद रचित हों।
सदय कृष्ण की भक्ति सतत हो।
.             -----+----
©~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:04 AM] Babulal Bohara Sharma: .          विज्ञहृदय छन्द

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित छंद -
विधान - १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
भगण नगण जगण मगण
२११  १११  १२१  २२२

.          _संग है शान्ता_

सोच गणित हरि की रहे रंगी।
विज्ञ' हृदय अति नम्र है संगी।
कृष्ण अमर पद राधिके रानी।
मर्त्य रचित सब वस्तु विज्ञानी।

शांत सरल चित पत्नि है शांता।
बोध सहज नित संग है कान्ता।
वर्ण धवल मन शुद्ध है शीला।
नेत्र  चमक मय स्नेह  रंगीला।

संगति पग पग संग है आली।
द्वे जन मिल कर ही बजे ताली।
नित्य भजन करती रहे वे तो।
छन्द सरस रचता रहा मै तो।
.             ----+----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:04 AM] Babulal Bohara Sharma: .            विज्ञमति छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित छंद -
विधान - १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण दो- दो समतुकांत हो।
भगण रगण नगण सगण
२११  २१२  १११ ११२

.      _तंत्र शुभ कर दो_

हे भगवान भाव रस भर दे।
दे मति 'विज्ञ' छंद नव रच दे।
देव गणेश आप कर रचना।
भाव समेत मिष्ठ लय रखना।

कृष्ण मुरारि रास तब रचिए।
'विज्ञ' रचेत छन्द पद रखिए।
शम्भु महेश आप निज कर से।
शुद्धि करो तभी  सरस बरसे।

हे दशमेश वीर रस भर दो।
देश विकास, तंत्र शुभ कर दो।
मान विशेष मंद मति हम को।
बुद्धि प्रदाय क्षीण कर तम को।
.           ------++--
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:04 AM] Babulal Bohara Sharma: .              विज्ञात्म छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित छंद 
विधान - १२ वर्ण प्रति चरण 
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
तगण नगण भगण मगण
२२१ १११  २११  २२२

.       _कर्म विमल हो_

हे मानव कुछ कर्म करो न्यारे।
जो लोक मनुज के हित हो प्यारे।
हो कर्म विमल हो श्रम भी सारे।
सम्मान सजगता फिर क्यों हारे।

संगीत मधुर हो लय साधो तो।
हो छंद जनित जो घट बाँधो तो।
जो शब्द सरसता समझे गाए।
वे गीत तरलता मन को भाए।

आवेश सुजन मानस में होना।
हो धर्म सजगता मन में बोना।
हे 'विज्ञ' विनय ये सुन ले रंगी।
हो छन्द सरस वे धुन हो संगी।
.            ------+----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:04 AM] Babulal Bohara Sharma: बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित छंद -

.           नीलम छंद

नीलम सिंह द्वारा निर्मित छंद -
विधान- १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
भगण रगण नगण यगण 
२११  २१२  १११  १२२

.               _बहिन_
नीलम सिंह है बहिन हमारी।
पावन कामना सतत तुम्हारी।
मानस प्रीति संगति धन पाए।
पालन रीति  मंगल  भव गाए।
             _सागर_
पावन सिन्धु है चरण पखारे।
भारत भारती सुयश निखारे।
सागर हिंद दक्षिण दिश धारे।
पोत जहाज ले पथिक सहारे।
.             _सावन_
सावन माह में जलद सुहावे।
वारि  सनेह  बादल बरसावे।
खेत निकेत में सजल कहानी।
'विज्ञ' विवेक ने सरस बखानी।
.          -----+----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:04 AM] Babulal Bohara Sharma: बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित -

.          .डोगरा छंद

अरुणा डोगरा शर्मा द्वारा निर्मित छंद - 
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
नगण रगण मगण सगण
१११  २१२  २२२  ११२

.               _डोगरा_
अरुण डोगरा शर्मा छंद लिखे।
पद रचे सुहाने सच्चे भाव रखे।
सतत नित्य अभ्यासी वे रहती।
प्रबल साधना कष्टों को सहती।
.            _हरि राधे_
हरि सुनो हमारे कान्हा रसिया।
अब रहे अकेले  घूमें   गलियां।
मन मसोस  राधा रानी  रहती।
भजन भाँति कान्हा राधे रटती।

सरल गोपिका राधा दौड़ पड़ी।
सुजन कन्हैया ताके संग खड़ी।
विमल भक्ति राधे की विज्ञ करे।
रचित छन्द कान्हा के ग्रंथ भरे।
.             -----+-----
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:04 AM] Babulal Bohara Sharma: बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित -

.           यदु मीरा छंद

केवरा यदु मीरा द्वारा निर्मित -
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
रगण जगण यगण मगण
२१२  १२१  १२२  २२२

.               _मीरा_
छंद ग्रंथ में  लिख दूँ कान्हा राधा।
कृष्ण आपका तन है राधा आधा।
सत्य साधना भव गीतों  की होगी।
भ्रष्ट  मानिये  अब होंना  ही योगी।

कृष्ण  राधिका भजती मीरा बाई।
गेह त्याग के  झट  दौड़ी  वे आई।
मीत कृष्ण को पति मीरा ने माना।
सत्य बात को जग सारा ही जाना।

विज्ञ' छंद साधक गाए मीरा को।
वे सुजान कृष्ण सनेही धीरा को।
बात विज्ञ की जग की तेरी मेरी।
मीत कृष्ण हे हरि आराध्या चेरी।
.             -----+---
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:04 AM] Babulal Bohara Sharma: .          विश्वकर्मा छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
रगण  यगण मगण रगण
२१२  १२२  २२२  २१२

.      _झूठी है आरती_

कूप सूख सारे  बापी ये घाट भी।
स्रोत रिक्त होते खेती ये हाट भी। 
आपदा निमंत्री नादानी आप की।
बोतले बिकाई जानो ये शाप की।

नीर सूख पौधे भी सूखे है पेड़ तो।
रेत  ईंट गारे की थापी है  मेड़ तो।
आसमान रोए  माता भी  भारती।
वारि  गंद  गंगा  झूठी  है  आरती।

नीर अश्रु भारी  देखें है नेत्र में।
सूख ताल नाले देखोगे क्षेत्र में।
मानवी  भुलावे माँगे है आपदा।
नीर दोह रोको माता हे शारदा।
.             -------+------
©~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:04 AM] Babulal Bohara Sharma: बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित छंद -

.              शु्क्ली छंद

विधान - १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
रगण  यगण मगण भगण
२१२  १२२  २२२  २११

.              _माता_

शारदा सुजानी माता है सुन्दर।
था बचा हमारा सोने जैसा घर।
आपका रहा मीरा जैसा ही मन।
भाव थे  तुम्हारे  आए है मोहन।

गेह को रखा था माता ने पावन।
नेह  बाँटती थी वर्षा  सी सावन।
रीति प्रीति से सारी साधी संतति।
नित्य भोज जीमा बैठे ही पंगति।

हो तुम्ही विधाता माता हो मंदिर।
भाग्य  सत्य सारे काया के अंदर।
'विज्ञ' है तुम्हारा  जाया बेटा यह।
दूध  को  लजाए  होगा  हेटा वह।
.             -------+------
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:04 AM] Babulal Bohara Sharma: बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित छंद -

.            रजनी छंद

विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण 
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
सगण मगण सगण भगण
११२  २२२  ११२  २११

.        _रजनी- भोर_

रजनी जाए भोर हुई सुंदर।
चहके पंछी नीड़ खिले हैं घर।
दमकेंगे आवास सभी के तन।
शिव भोले के शंख जगे मोहन।

रजनी के जाए वन हो पावन।
चढ़ते तापी सूर्य भले सावन।
जगते बूढ़े लोग जगे संतति।
सब ही खाए भोज्य लगे पंगति।

करने पूजा पाठ चले मंदिर।
बजते घंटी  शंख रहे अंदर।
रचते दोहा 'विज्ञ' हमेशा अब।
दिन में सोते 'विज्ञ' हमेशा कब।
.          -----+-----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:04 AM] Babulal Bohara Sharma: .            जनपद छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
तगण जगण नगण मगण
२२१  १२१  १११  २२२

.           _विराट_

था राज्य पुरातन नगरी जानो।
सम्मान रहा जनपद का मानो।
प्राचीन  धरोहर     पहचानेगा।
संयोग  मनोहर  जग  जानेगा।

आए  वनवास  समय में ऐसे।
वे पार्थ विराट विकल थे कैसे।
कृष्णा पचबंधु  सबल सारे थे।
थी  बात  पुरातन तप धारे थे।

था मौर्य युगीन  मगध से  जाना।
खोजा मठ बौद्ध  जगत ने माना।
गंगा  सम बाण  सरसती  आती।
सम्भ्रांत नदी  कल कल ये गाती।
. ‌‌            ------+-----
©~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:04 AM] Babulal Bohara Sharma: .            मायड़ छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
सगण नगण जगण यगण 
११२  १११  १२१  १२२

. ‌         _राजपुताना_

तपती  मरु धर वीर  प्रसूता।
धरतीहित मरते पूत अकूता।
पहले सब कहते राजपुताना।
मँगरी शिखर विशाल सुहाना।

हर धर्म  सुयश  आदर पाए।
जनतंत्र सफलता  गुण गाए।
मरु रेत चमकती श्रम सोना।
सुन वीर समर में तन खोना।

शुभ प्रीत सरलता  बन मीरा।
श्रम कार  दमकते भव  हीरा।
निज 'विज्ञ' भवन में रहता हूँ।
भव छन्द  सरस  मैं रचता हूँ।
.             ------+------
©~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:04 AM] Babulal Bohara Sharma: .          अविनाशी छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
नगण यगण रगण यगण
१११  १२२  २१२  १२२

 .          _द्वन्द पाला_

शिव अविनाशी छंद ज्ञान देना।
रघुपति  राजा  वर्ण ध्यान देना।
सरस लिखूँ साहित्य छंद वाला।
सुयश मिले सम्मान द्वन्द पाला।

सुन गिरधारी प्रीति भाव लाओ।
पन घट गोपी  ग्वाल संग गाओ।
नटवर  कान्हा  छन्द  नव्य देना।
नित सुधि मेरी कृष्ण आप लेना।

विमल कहानी 'विज्ञ' नित्य गावे।
सुजन  सनेही  सत्य कृष्ण पावे।
जब तक है आदित्य छंद भी हो।
सृजक रहे साहित्य 'विज्ञ' भी हो।
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©~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:05 AM] Babulal Bohara Sharma: .                 दादू छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ,द्वारा
अन्वेषित मापनी आधारित छंद -
विधान - १३ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
मगण सगण जगण मगण गुरु 
२२२  ११२  १२१  २२२   २

.           _श्री दादू जी_

दादू दीन दयाल 'विज्ञ' के दाता हैं।
काटे कष्ट सदैव  भक्त के त्राता है।
दाता सन्त  हुए नरायणा आए थे।
भक्तों में  रमते  सदेह  ही पाए थे।

माने वे हरि  एक राम ही होते हैं।
पाखंडी जन दुष्ट मद्य पी सोते हैं।
गावे सत्य कबीर सन्त दोहे सच्चे।
मानी भक्ति प्रचार रंग सारे कच्चे।

दादू शिष्य गरीबदास जी माने थे।
भक्तों के हित प्रेम संत वे जाने थे।
शर्मा 'विज्ञ' सदैव पूजता आया है।
छंदों का यह ज्ञान आपसे पाया है।
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©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:05 AM] Babulal Bohara Sharma: .               उपदेश छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १३ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
सगण जगण नगण रगण गुरु 
११२  १२१  १११  २१२  २

.             _हर मौज चंगा_

फिर जन्म दे यदि मुझको विधाता।
करना  मुझे  हरि  हर  झूठ  ज्ञाता।
हर द्वन्द मानस हर द्वेष वाला।
बनता यहाँ पर धनवान काला।

उपदेश पालक नित कष्ट भोगे।
कपटी  यहाँ  पर रहते  निरोगे।
उलटी  बहे  पग  पग देव गंगा।
सच हीन मानव हर मौज चंगा।

नित झूठ गाकर जन जीत जाते।
सच  डूबता  हरि हर  गीत  गाते।
इस 'विज्ञ' ने प्रति पल कष्ट पाया।
शुभ 'ग्रंथ' को रच भव छंद गाया।
.             -----+----
©~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:05 AM] Babulal Bohara Sharma: बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित -

.           मृदुल छंद

नवल जी सेठी द्वारा निर्मित छंद -
विधान - १३ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत 
रगण नगण सगण सगण गुरु
२१२  १११  ११२  ११२  २

.          _मन छलिया_

कृष्ण आप गिरिधर हे बनवारी।
पार्थ मीत  नटवर या गिरिधारी।
प्रीति में विरहिन रही बहु गोपी।
योग नीति सुन भँवरे पर कोपी।

दर्श दान विरहिन के हित देते।
हे सुदेव हरि जन की सुधि लेते।
कृष्ण सत्य मन छलिया लगते हो।
रीति प्रीति तन मन को छलते हो।

हे मुरारि हरि सुनो जन वाणी।
पीर रंज पथ भुगते नित प्राणी।
कष्ट काट जन मन के हितकारी।
'विज्ञ' छन्द नव  रचता भयहारी।
.         -----+----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:05 AM] Babulal Bohara Sharma: .              चाणक्य छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १३ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
रगण यगण सगण तगण गुरु 
२१२  १२२  ११२  २२१  २

.        _चन्द्र संग कौटिल्य_

चन्द्रगुप्त  चाणक्य पुरोधा  देश के।
हो  अखण्ड सम्मान सुहाने वेश के।
खंड खंड था देश चुभे चाणक्य को।
युद्ध ठानते राज्ञ सदा आधिक्य को।

नंद  गर्व  में  चूर  नही सम्मान था।
केश खोल सौगंध लिए संज्ञान था।
नंद वंश  का अंत  प्रतिज्ञा  पूर्ण हो।
ढूँढ  चंद्र  ले  संग  परीक्षा  तूर्ण हो।

शस्त्र  शास्त्र  के मंत्र बताए चंद को।
युद्ध ठान के जीत लिया था नंद को।
चंद्र संग कौटिल्य, यथा कोदण्ड था।
'विज्ञ' मानिए देश तभी अखण्ड था।
.             -----+----
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:05 AM] Babulal Bohara Sharma: बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित छंद -

.           निर्भय छंद

विधान - १३ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
मगण सगण यगण भगण गुरु 
२२२  ११२  १२२  २११   २

.            _निर्भय राम जी_

स्वामी निर्भय राम  बेड़ा पार करो।
दाता संत सुजान झोली रिक्त भरो।
भक्तों  के  प्रतिपाल  दादू राम कहे।
दादू पंथ  प्रमाण  स्वामी शिष्य रहे।

सच्ची  है  छतरी  भले माने थमते।
गंगा बाग  सुनाम  आए  थे  रमते।
पूरी मानस आस भक्तों की करिए।
पूजे  पैर  सदैव   माँगे  सो  भरिए।

माँगे काव्य सनेह तेरा 'विज्ञ' पचे।
चाहे छंद विधान की  विज्ञान रचे।
पूजे 'विज्ञ' तुम्हें सनेही दास सदा।
दादू राम  कहे  चले ये श्वाँस यदा।
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©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:05 AM] Babulal Bohara Sharma: .               कीका छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १३ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
मगण सगण मगण भगण गुरु 
२२२  ११२  २२२  २११   २

.          _मेवाड़ी मान रखे_

राणा चेतक दोनो  संगी युद्ध लड़े।
दोनों ही रण में हो  जंगी कूद पड़ै।
दोनों युद्ध सनेही साथी मान सखे।
ऐसे अश्व लगे जो  हाथी जान रखे।

भारी थे मुगलो से दो  ही वीर जने।
भागे  शत्रु  बचे  दोनो  ही धीर घने।
राणा रक्त  भला मेवाड़ी  मान रखे।
देता अश्व नहीं जो आड़ी तान सखे।

छाए थे रण हल्दी घाटी बीच लड़े।
थी चित्तौड़  सनेही माटी शत्रु अड़े।
गाए  'विज्ञ' नवाएँ  माथा  छंद रचे।
देखो  छन्द  सुनाएँ गाथा  द्वंद पचे।
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©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:05 AM] Babulal Bohara Sharma: .             डोवठा छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १३ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
८,१३ वें वर्ण पर यति अनिवार्य।
मगण भगण रग,ण यगण गुरु 
२२२  २११  २१,२  १२२  २

.          _सुंदर दास_

दौसा के सुन्दर दास, शिष्य  दादू के।
दादू के भक्त सुभास, आत्म साधू के।
माने  साहित्य प्रवीर, काव्य जो माने।
ज्ञानी आदित्य सुधीर, भाव को जाने।

दौसा के वैष्य कुलीन, जन्म ले आए।
दादू से  सुन्दर  दास,  नाम  जो पाए।
काशी में भी कर वास, ज्ञान जो लेते।
सीखे  साहित्य सुवास, दान जो  देते।

दादू  पंथी  जग मान, साधना तापी।
ज्ञानी थे भानु समान, संत थे  जापी।
देखे  लेखे मन भाव, पन्थ  ले  संगी।
दादू से  सत्य लगाव, काव्य के रंगी।
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©~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:05 AM] Babulal Bohara Sharma: बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित -

.               मीता छंद

मीता अग्रवाल द्वारा निर्मित छंद -
विधान - १३ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
मगण सगण तगण जगण गुरु 
२२२  ११२  २२१  १२१   २

.              _छन्द पुराने_

मीता हो सुपुनीता है शुभ कामना।
सीखे छंद विधानी  उत्तम साधना।
पाले प्रीत रुहानी मानस  छन्द हो।
गाए गीत सनेही जो  मन द्वन्द हो।

हिन्दी हिंद विरोधी हो उसको तजे।
राधा कृष्ण विदेही राम सिया भजे।
जीना  है  मरना है  देश  विशेष हो।
सीखे  छन्द पुराने जो अधिशेष हो।

भारी ग्रन्थ रचा है 'छन्द' विधान का।
सीखो छन्द सुहाना श्री भगवान का।
शर्मा  'विज्ञ' सिखाए छन्द लुभावना।
गाओ मीत सुजानों  है शुभ कामना।
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©~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:05 AM] Babulal Bohara Sharma: .             यसुमति छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १३ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
सगण तगण तगण तगण गुरु 
११२  २२१  २२१  २२१  २

.            _कृष्ण ही कृष्ण है_

जब से कान्हा गये  राधिका तृष्ण है।
मन में मीरा भजे  कृष्ण ही कृष्ण है।
कब से कान्हा तुम्हारी करूँ साधना।
अब तो आओ कन्हैया भरो भावना।

 हरि ने ऐसा किया वे गये छोड़ के।
मन  के  धागे  हमारे  गये  तोड़ के।
कब  वे आएँ कन्हाई उन्हें  जोड़लें।
मन की भूली  दिशाएँ वहीं  मोड़लें।

भटकी  राधा  विदेही  हुई प्रीति में।
वह तो  कोरी कहानी  रही रीति में।
हम यों  सोचे बना  के नये  छंद है।
प्रभुजी देना  समीक्षा कई  द्वन्द है।
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©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:06 AM] Babulal Bohara Sharma: .        माधव-माधुरी छन्द

संतोष कुमार माधव द्वारा निर्मित छंद-
विधान - १४ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
८, ६ वर्णों पर यति रहे।
रगण यगण गुरु लघु, सगण रगण
२१२  १२२  २    १,  ११२  २१२

.         _भावना सहेज मीत_

पीर है पहेली मीत, कब जानें इसे।
ले यही परीक्षा सत्य, पहचानें इसे।
मित्र या सनेही मर्त्य, सब हैं स्वार्थ के।
संग कौन भोगे कष्ट, कब हों सार्थ के।

जाति धर्म वाली बात, लड़ जाते यहाँ।
कौन साथ होगा पीर, पल जाए जहाँ।
भावना  सहेज  मीत, कर लो साधना।
देश शक्तिशाली भाव, मय हो प्रार्थना।

रीति प्रीति पालो नीति, हितकारी रहे।
सत्य  साथ  वाले  भाव, भयहारी रहे।
गीति काव्य गाए हिंद, स्वर हो वर्ण हो।
'विज्ञ' छन्द गाए सत्य, लय हो कर्ण हो।
    .                    ----+----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:06 AM] Babulal Bohara Sharma: .             माधव-कीर्ति छंद

संतोष कुमार माधव निर्मित छंद-
विधान - १४ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
६, ८ वर्णों पर यति रहे।
रगण यगण,सगण गुरु लघु रगण
२१२  १२२, ११२ २    १   २१२

.          _भाव भारती के_

वीर हों  हितैषी, रखवाले स्वदेश के।
शत्रु क्या करेंगे, अपने या विदेश के।
संग साथ होंवे, हम आवाज एक हो।
भाव भारती के, प्रति हो सर्व नेक हो।

मात से पिता से, रहिए शुभ्र भावना।
ईष्ट  देवता की, करना सत्य साधना।
गाँव गाँव होवे, सब  सम्पन्न लोग हो।
काम धाम सारे, श्रम विज्ञान योग हो।

मर्त्य जीवनी हो, सुविधा लोकतंत्र मेंं।
कर्म याचना का, दुविधा जन्य मंत्र में।
गीत संग गाओ, अपने राम श्याम के।
'विज्ञ' छन्द सारे, पढ़िए मित्र काम के।
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©~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:06 AM] Babulal Bohara Sharma: .                आहुति छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित छंद -
विधान - १४ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
रगण यगण नगण यगण लघु गुरु 
२१२  १२२  १११ १२२  १    २

.               _छन्द विज्ञान_

विज्ञ छन्द विज्ञान रचित है 'विज्ञ' की।
काव्य हेतु है  आहुति कर से यज्ञ की।
मान मीत विज्ञात  सुजन है काव्य में।
छंद साधना ध्यान विमल है भाव्य में।

छंद ग्रंथ हो सिद्ध  सुयश विज्ञात से।
नित्य प्रार्थना  देव  साँझ हो प्रात से।
छंद  छंद  से द्वंद विलग हो वर्ण भी।
गीत मीत संगीत सजग हो कर्ण भी।

जो  सनातनी  छन्द  रचित  हैं ज्ञान में।
सर्व मान्य सम्मान्य  फलित विज्ञान में।
नव्य खोज के छंद समझ के नीति को।
'विज्ञ' छन्द विज्ञान सृजन में प्रीति को।
.                 ------+----
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:06 AM] Babulal Bohara Sharma: बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित -

.               मानक छंद

माणक तुलसीराम गौड़ द्वारा निर्मित छंद -
 अन्वेषित मापनी आधारित छंद -
विधान - १४ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
भगण सगण भगण मगण लघु गुरु 
२११  ११२  २११  २२२   १    २

.            _सनेही राम के_
मानक तुलसीराम  सनेही विज्ञ के।
छंद सृजन से आहुति दाता यज्ञ के।
सागर करते  पार, सँगाती  राम के।
पाहन  तिरते सिंधु, सनेही नाम के।

 'विज्ञ' रचित विज्ञान विधानी छंद का।
काव्य  सरस  संगीत  रुहानी  द्वंद का।
सीख  सृजन के मूल्य रचे जो छंद भी।
मानस  सरसे  गीत  लिखे हैं  बन्द भी।

'विज्ञ' सरल साहित्य  सुहाना पंथ है।
छन्द सृजन साहित्य सिखाता ग्रंथ है।
भारत  अपना  देश  इसे  सम्मान  दें।
'विज्ञ'  सतत संदेश सभी को ज्ञान दे।
.               ------+----
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:06 AM] Babulal Bohara Sharma: .               मारू छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १४ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
७,१४ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
मगण सगण मगण तगण लघु गुरु 
२२२  ११२  २२२  २२१   १   २

.               _झूठे नाते_

माया जाल बनाए, झूठे नाते जग के।
मीरा श्याम सनेही, छोड़े प्यारे मग के।
सीता राम गये थे, संगी थे लक्ष्मन भी।
माया से हर ली तो, ढूँढे दोनो जन भी।

राधा कृष्ण सनेही, आभासी प्रीति पली।
गोपी-ग्वालिन पाले, माया ने प्रीत छली।
झूठी सत्य  कथाएँ, कैसी  कैसी चलती।
प्रेमी  भोग  सिखावें, सारी यादें  पलती।

आओ 'विज्ञ' सनेही, छंदो  से छंद रचें।
पाया जीवन  है  तो, गीतों  के द्वंद रचें।
होगा  'ग्रंथ' अनूठा, गाएगा पाठक भी।
छंदों की रचना भी, जानेगें गायक भी।
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©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:06 AM] Babulal Bohara Sharma: .              हूँकार छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १४ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
मगण तगण जगण नगण गुरु गुरु 
२२२  २२१  १२१   १११  २    २

.          _राणा की हूँकार_

राणा की हूँकार सुने अकबर काँपे।
सोते सोते स्वप्न दिखे उठकर भाँपे।
मानो काला सर्प उसे डस कर मानें।
सोचे ऐसे नित्य जगे यह जग जाने।

गीतों में भी चेतक की टप टप टापें।
सोते जागे शाह  सदा थर थर काँपें।
मेवाड़ी भाला दिखते दृग खुल जाते।
राणा की हूँकार सुने  नित जग राते।

मानो राणा के हाथ लगे गरदन नापे।
जागे भागे  शाह सुने  वह नित काँपे।
छंदों में  हूँकार  लिखा  यह पढ़ना है।
राणा का  सम्मान  हमें वह रखना है।
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©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:06 AM] Babulal Bohara Sharma: बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित -

.             परिहार छंद

राजेश कुमार परिहार निर्मित छंद -
विधान - १४ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
सगण भगण रगण नगण गुरु लघु
११२   २११  २१२  १११  २   १

.           _बोल जय हिन्द_
करता कर्म सदैव  सत्य प्रतिहार।
यह राजेश  कुमार  गोत्र पड़िहार।
सबसे पावन धर्म बोल जय हिन्द।
रचिए मानस मर्म तोल जय हिन्द।

अपना  भारत देश  सत्य वरदान।
मन में मंदिर  मान  राम भगवान।
पलते पावन  रीत  प्रीत भव गीत।
करते  याद  सदैव  कष्ट  पर मीत।

रचते 'विज्ञ' विधान नित्य नव छंद।
लिखते हैं कविमीत सत्य मन द्वंद।
सपना 'विज्ञ' विधान छंद हित ग्रंथ।
हरि  दातार  गणेश गम्य शुभ  पंथ।
.              ------+----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:06 AM] Babulal Bohara Sharma: .                संताप छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १४ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
७,१४ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
तगण मगण त,गण रगण लघु गुरु 
२२१  २२२  २,२१  २१२ १    २

.                _लीला- बिहारी_

कैसी रचाई  लीला, राम कष्ट पा  रहे।
सीता विदेही रानी, अश्रु चक्षु पा  बहे।
ऐसे विधाता जाने, कौन देव  स्वर्ग में।
कैसी  कहानी जोड़े, आसमान वर्ग में।

राधा सुदामा गोपी, कर्ण पार्थ कृष्ण हैं।
सारी कहानी देखो, सर्व लोक  तृष्ण है।
जन्मे मरा दे सारे, सृष्टि  दृष्टि लोक को।
ले कष्ट योगी राजा, संत मोह शोक को।

कैसे व्यवस्थाकारी, शंभु विष्णु संत भी।
भोगे  सभी  ने  ऐसे, कष्ट  पीर  पंत भी।
काटो बिहारी लीला, 'विज्ञ' कष्ट पा रहा।
बाँटो  अजाने  देवा, मन्त्र  आपका यहाँ।
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©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:06 AM] Babulal Bohara Sharma: .              विदुर छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १४ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
९, १४ वें वर्ण पर यति अनिवार्य
भगण सगण तगण, रगण गुरु गुरु 
२११  ११२  २२१,  २१२  २   २

.         _नीति काम क्या आई_

हे विदुर तुम्हारी नीति, काम क्या आई।
आप  सरिस  होते  युद्ध , ठान  ले भाई।
थे  सब  सुत  राजा  पूत, बाँट  देना था।
ले  विदुर तुम्ही  संज्ञान, डाँट  लेना  था।

शक्ति समझते कर्तव्य, व्यास के बेटे।
सम्भव  धृत  के सौ पुत्र, मानते  खेटे।
संग गुरु बड़े सम्भ्रांत, युद्ध क्यों होता।
नीति विदुर की संयोग, युद्ध में खोता।

हे विदुर तुम्हारी नीति, युद्ध को  देखे।
व्यास जनित के सौ पूत, माँगते लेखे।
युद्ध ठहरता  जो  राज्य, बाँटते  भाई।
हे विदुर हुआ संहार, काम  क्या आई।
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 ©~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:09 AM] Babulal Bohara Sharma: .             मनोविज्ञ छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित नव छन्द-
विधान - १५ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
नगण नगण मगण सगण मगण
१११  १११  २२२  ११२  २२२

.        _विज्ञ' बना क्यों द्वन्दी_

पग पग पर धोखा ही हमने  खाया है।
जगह जगह ऐसा  ही जग में पाया है।
कब सरल सनेही प्रीत निभे  मीरा सी।
तन मन सपने खोए रमती वे धीरा सी।

छल कपट  घनेरे  'विज्ञ'  सनेही  देते।
हम सरल  सयाने मीत  सदा ले  लेते।
बस सतत मिले आघात हमें तो संगी।
जब तब हम खोजे मीत मिले थे रंगी।

हरि  गिरिधर  तेरा साथ मिले हे दाता।
बस अब मन में ये आस बची हे त्राता।
रच रच  कर  मैं  छन्द  हुआ हूँ  छन्दी।
तन मन धन से  'विज्ञ'  बना क्यों द्वंदी।
.              ------+----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:09 AM] Babulal Bohara Sharma: .             विज्ञान छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित छंद -
विधान - १५ वर्ण प्रति चरण
चाल चरण, दो- दो समतुकांत हो।
यगण सगण तगण यगण रगण
१२२  ११२  २२१  १२२  २१२

.         _भारत में विज्ञान_

रहे भारत में  विज्ञान कहे माँ  भारती।
रमें मानस  में संगीत  करो तो आरती।
कला पाहन के निर्माण पुराने देख लो।
जड़े मूरत में  रत्नेश  शिवालै देख लो।

बनाए गढ़ दुर्गों के दर द्वारे स्वर्ण से।
रचे मानस  वेदी मंत्र सुनाऊँ वर्ण से।
रहा वेद  स्वदेशी  ज्ञान हमारे देश में।
महावीर  सनेही बुद्ध  सुहाने  वेश में।

सुनाते मुनि ज्ञानी संत रहा विज्ञान था।
रचे मानस सारे  ग्रंथ विधायी मान था।
यहाँ ज्योतिष में  नक्षत्र सितारे  चंद्र है।
यहाँ 'विज्ञ' रचे साहित्य सुहाने छन्द हैं।
.               ----+----
©~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:09 AM] Babulal Bohara Sharma: .             द्वंदी छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित छंद 
विधान - १५ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण दो- दो समतुकांत हो।
६, ९ वर्ण पर यति अनिवार्य।
मगण मगण, सगण भगण मगण 
२२२  २२२, ११२  २११  २२२

.            _मानस बेढंगी_

क्या पाए थे  खोए, हमने जीवन में सोचे।
कैसी कैसी पीड़ा, भुगती पंथ मिले लोचे।
कान्हा राधा- मीरा, सब ने ही भुगते लेखे।
अच्छे नामी योद्धा, जग के भी गिरते देखे।

आते हैं  वे जाते, जग से  सत्य यही बातें।
गर्मी सर्दी  वर्षा, ऋतु हो  सूर्य  सभी रातें।
जैसा बोए काटे, जन वे  प्रेम कभी धोखा।
राधा रानी मीरा, भजती कृष्ण वही चोखा।

नाते- रिश्तों  में भी, कितने शत्रु बने संगी।
भोगे  बीते   रीते, जग  के  मानस  बेढंगी।
आओ  मेरे कान्हा, मन में  'विज्ञ' रहे रीता।
मैं  हूँ  छन्दी द्वन्दी, प्रभु तू तान सुना गीता।
.                 -----+----
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:09 AM] Babulal Bohara Sharma: .                 श्रीराम छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित छंद -
विधान - १५ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
७, ८ वर्णों पर यति अनिवार्य है।
भगण मगण स,गण सगण मगण
२११  २२२  १,१२  ११२  २२२

.                  _श्रीराम_

मानस में श्री राम, लिखे तुलसी ने सच्चे।
गायन में  है  तान,  पढ़े जन ज्ञानी बच्चे।
मात पिता को मान, दिए वह वैसा पाता।
भारत में  श्री राम,  सदाशय  माने दाता।

राम  विदेही नाथ, सिया पति की दातारी।
'विज्ञ' सभी विज्ञात, सुने विधना भी हारी।
राम  दुलारा  वीर, सखा   बजरंगी  बाला।
भक्त पुकारे सत्य, तभी रिपु को धो डाला।

राम सनेही भक्त, सदा हरि को ही पूजे।
'विज्ञ' विधानी छंद, रचे कब सोचे दूजे।
हे तुलसी  के राम,  सदेह हमारे आओ।
'विज्ञ' रचे जो छंद, सुपावन सारे गाओ।
.             ------+-----
©~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:09 AM] Babulal Bohara Sharma: .                 देवी छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १५ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
भगण मगण सगण भगण तगण
२११  २२२  ११२  २११  २२१

.            _कुलदेवी सत्य_

माँ  जननी माता महतारी नर की  मात।
जन्म दिया है पालन की पावन सौगात।
पावन माँ  झूठे  जग वाले  बगुले मर्त्य।
एक तुम्ही तो  हो कुलदेवी यह है  सत्य।

नाम  तुम्हारा  वंश  तुम्हारे  सपने  संग।
देख लिया सारा जग काला चमके रंग।
संग  पिता माता वह खेती घर का काम।
खूब निभाती आप बिना ही तन विश्राम।

गंग  तुम्ही  माता  धरती सागर का मर्म।
माँ शुक ली ने साथ निभाए मन से धर्म।
आप  सपूती मात पिताजी मन के शुद्ध।
प्रीति निभाना 'विज्ञ' बनाना करना बुद्ध।
.              ------+----
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा
[12/26, 12:09 AM] Babulal Bohara Sharma: .                विमोह छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १५ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
८, १५ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
भगण मगण तग,ण यगण तगण
२११  २२२  २२,१   १२२  २२१

.         _अपनों के विश्वास_

ज्ञान बिके सस्ता देखो, महँगाई की मार।
सत्य ठगाता झूठों से, नित देखो बाजार।
मात पिता रिश्ते नाते, सब हो जाए मौन।
भाव बढ़े  संतानों के, फिर माने तो कौन।

सावन में सूखा चाहे,  सुखदाई  बैसाख।
पूत छबीली के पीछे,  कर दे  सारा राख।
मान नहीं दें औरों को, खुद चाहे सम्मान।
आग लगे सम्बंधो को, यह कैसा विज्ञान।

आदर वृद्धों के खोए, अपनों के  विश्वास।
फैशन के  हैं  दीवाने, घर में  छीली  घास।
'विज्ञ' सनेही  छंदों का, घर में भूँजी भांग।
ग्रंथ  लिखा  आभारी, कह लो  चाहे  रांग।
.               -----+----
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:09 AM] Babulal Bohara Sharma: .             भीष्म छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १५ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
भगण नगण नगण भगण तगण
२११  १११  १११  २११  २२१

.          _चुप क्यों रहते भीष्म_

चीर हरण  पर चुप क्यो  रहते भीष्म।
कौरव दलपति बन क्यो सहते ग्रीष्म।
ये अपयश तिय कहती सच तो बोल।
क्यूँ चुप नरपति अपना मुँह तो खोल।

पार्थ धनुष शर सहते कितना कष्ट।
कौरव दल दलपति नायक भी नष्ट।
आप सहित गुरुवर भी चुप थे धीर।
मौन  रह  घटित  सब देख रहे वीर।

पाप भुगत कर तब मृत्यु मिले कृष्ण।
जीवन घट भर तब आत्म नही तृष्ण।
मौत सबल कुल दल की दृग ये देख।
बन्द  सहज  द्वय दृग हों वर के लेख।
.               .-------+-----
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:09 AM] Babulal Bohara Sharma: .               संयोग छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १५ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
सगण जगण तगण जगण यगण
११२  १२१  २२१  १२१  १२२

.             _धृतराष्ट्र_

धृतराष्ट्र जन्म ले के धरती पर आया।
सुत मोह में  महाभारत ही  करवाया।
तुम वेद  व्यास के  औरस पुत्र हुए थे।
सुत मोह  में नही  वे हथियार लिये थे।

तुम मोह  पाल  बैठे  सुत  ही नृप होवे।
तुमने कभी  न माना अनुजातक खोवे।
वनवास  भोगते  वे  सुत  भी बलधारी।
भगवान कृष्ण साथी जिनके गिरिधारी।

समझा कभी न दुर्योधन वंश विरोधी।
भगवान सारथी थे  जिनके अवबोधी।
सुतमोह पालते वे  कुल ही मिट जाते।
धृतराष्ट्र जन्म के क्यों धरती पर आते।
.                 -----+-----
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:09 AM] Babulal Bohara Sharma: .                हितैषी छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १५ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
८, १५ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
तगण यगण रग,ण यगण सगण
२२१  १२२  २१,२ १२२  ११२

.              _छन्द से द्वन्द मिटे_

साहित्य हितैषी छंद, सीखिए 'विज्ञ' कहे।
जो  हिन्द सनेही  लोग, मानते  सत्य रहे।
संगीत रुहानी  प्रीति, कामना गायक की।
साहित्य रचे सामर्थ्य, साधना साधक की।

है 'विज्ञ' कहानी पीर, सत्य ही नित्य पचे।
उल्लेख  विधानी ग्रन्थ, छन्द विज्ञान रचे।
आदित्य बढ़ाए प्रीति, रीति  विद्वान वहाँ।
संतोष मिलेगा सीख, 'विज्ञ' से छंद यहाँ।

संताप मिटेगा  अज्ञ, छन्द से गीत बने।
विद्वान बने आराध्य, गीत से प्रीत ठने।
आवेग  भरेगी देह, छन्द से  द्वन्द मिटे।
संवेग बने  साहित्य, नेह  से  कष्ट कटे।
.               -------+-----
©~~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:09 AM] Babulal Bohara Sharma: .               पुण्य छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा, अन्वेषित छंद -
विधान - १५ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
७, १५ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
सगण जगण भ,गण सगण सगण
११२  १२१  २,११  ११२  ११२

.           _पाप पुण्य का फल_

किस पाप पुण्य का, फल यह जीवन है।
भगवान  बोलिए, यह  किसका  धन  है।
नर जन्म मर्त्य का, विधि वश  है जग में।
फिर  कर्म  साधना, कर  जग के  मग में।

मनमीत ढूँढते, मन मिल  प्रीत बढ़े।
भवगीत बाँचते, श्रमकर भाग्य गढ़े।
यह रीत पालना, कर  जग में रहना।
हर पाप  पुण्य में, नर बचना सहना।

कहते सुजान है, बस यह  जीवन है।
फिर देह दान है, यह हरि का धन है।
नव छन्द धारिए, क्रम बनते क्रम से।
इस छंद ग्रंथ में, पढ़ निकले भ्रम से।
.                  -------+------
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:09 AM] Babulal Bohara Sharma: .            हरिदासी छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १५ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
९, १५ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
मगण तगण यगण, सगण रगण
२२२  २२१  १२२, ११२  २१२

.        _मेवाड़ी मीरा हरिदासी_

मीराबाई छंद सिखाना, हमको आप से।
राधा रानी कृष्ण बचाए, जग में पाप से।
मेवाड़ी  मीरा हरि दासी, रचती छन्द भी।
भक्तों के श्री कृष्ण हमेशा, हरते द्वंद भी।

नाचे राधा कृष्ण सनेही, मठ के सामने।
हो मीरा के कंत  कन्हाई, बढ़ना थामने।
हे मीरा के श्याम सुहाने, मुरली संग ले।
आओ  मेरे गेह कभी तो, कर में रंग ले।

गाओ सारे छन्द लिखूँ मैं, कर ले लेखनी।
मीरा-कान्हा संग मुझे तो, सच में देखनी।
गाओ सारे पाठक संगी, रचना 'विज्ञ' की।
पाओ राधा  नेह सदा है, विनती अज्ञ की।
.               -----+-----
©~~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:09 AM] Babulal Bohara Sharma: .            प्रारब्धी छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १५ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
७,१५ वें वर्ण पर यति अनिवार्य।
मगण यगण स,गण तगण यगण
२१२  १२२  १,१२  २२१  १२२

.           _डसे प्रारब्ध उसे भी_

कर्म संग प्रारब्ध, बनाए रंक किसे भी।
वीर धीर  सम्राट, डसे  प्रारब्ध उसे भी।
शक्ति गर्व  में चूर, बने  शैतान  मरे  थे।
दीन  हीन  इंसान, सिरों पे ताज धरे थे।

चन्द्रगुप्त  चाणक्य पुरोधा  देश  सनेही।
हो  अखण्ड सम्मान सुहाने वेश विदेही।
खंड खंड था देश चुभे चाणक्य सुने तो।
युद्ध ठानते राज्ञ सदा आधिक्य  बने तो।

नंद  गर्व  में  चूर  नही सम्मान विधाने।
केश खोल सौगंध लिए संज्ञान सुजाने।
नंद वंश का अंत प्रतिज्ञा  पूर्ण निभाने।
ढूँढ  चंद्र  ले  संग  परीक्षा  तूर्ण कराने।

शस्त्र  शास्त्र के मंत्र  बताए चंद सिखावे।
युद्ध ठान  के जीत  लिया था नंद बिरावे।
चंद्र संग कौटिल्य, यथा कोदण्ड बुना था।
'विज्ञ' मानिए देश तभी नि:खण्ड बना था।
.                  -------+-----
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:09 AM] Babulal Bohara Sharma: .                वाल्मीकि छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १५ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
९, १५ वें वर्ण पर यति अनिवार्य
तगण रगण यगण, मगण सगण
२२१ २१२ १२२,  २२२ ११२

.             _कैसे राम मिले_

वाल्मीकि जी हमें बताओ, कैसे राम मिले।
हे भक्ति युक्तिवान  ज्ञानी, कैसे धाम मिले।
सौभाग्य भक्ति ज्ञान धारी, वे पारायण की।
थे भावि  जानते कहानी, जो रामायण की।

आवास आश्रयी सिया के, सारा ध्यान रखा।
सीता  सनेह   पुत्र  दोनो,  आशीर्वाद  चखा।
वाल्मीकि जी कहो हमें भी, सीता राम भजें।
संस्कार दो सिखा सुहाने,  थोथा  मान तजें।

आराधना हमें बताओ, भैया लक्ष्मण की।
सीता सदैव रही सुभागी, नारी रक्षण की।
वे सत्य साधना  सुनाओ, सीखे छन्द रचें।
सम्मान  मै  करुँ  तुम्हारा, देखें  द्वन्द पचे।
.                   -------+-----
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:09 AM] Babulal Bohara Sharma: .              व्यास छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १५ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत।
७, १५ वें वर्ण पर यति अनिवार्य।
रगण यगण स,गण मगण मगण
२१२  १२२ १,१२  २२२ २२२

.                 _अंश तुम्हारे_

वेद व्यास जी अंश, तुम्हारे  कैसे कैसे थे।
आप ज्ञान के सिन्धु, हुए  को  बेटे ऐसे थे।
सत्य साधु के पुत्र, तुम्ही से  जन्मे सारे ही।
काल चाल संयोग, कहें क्या तीनों हारे ही।

एक अंश जंमांध, विकारी बेटा आयामी।
एक दूसरा  पांडु, हुआ रोगी  गद्दी थामी।
नीति ज्ञान  संस्कार, लिए था तीजा बेटा।
वो सुयोध जो पौत्र, हुआ क्यों  कैसे ढेटा।

आप रोकते युद्ध, नही तो दोषी हो सारे।
हो कपूत जो पुत्र, तभी तो दादा भी हारे।
सत्य व्यास जी पाप, हुए भाई ही संहारे।
युद्ध  रोकते  आप, नही  वे जाते यूँ मारे।
.                 ------+-----
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:09 AM] Babulal Bohara Sharma: .                विज्ञगति छंद 

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १५ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत
८, १५ वें वर्ण पर यति अनिवार्य।
रगण यगण जग,ण यगण तगण 
२१२  १२२  १२,१  १२२  २२१

.          _और शेष है क्या बचा_

सूरदास  के कृष्ण  थे, तुलसी के  श्री राम।
संग कृष्ण के गोपियाँ, सिय दैवी निष्काम।
और शेष है क्या  बचा, हम सोचें आदित्य।
कौन देव या देवियाँ, लिखने क्या साहित्य।

सूरदास  जी ने  रचे, सब  कान्हा  के खेल।
'विज्ञ' झाँकता  ही रहे, लिखना छोड़ा ठेल।
बन्धु राम सीता  सभी, तुलसी के आराध्य।
'विज्ञ' कौन है आपके, रचने है क्या साध्य।

'विज्ञ' वंदना सूर की, तुलसी का आशीष।
शीश धारता है  तुम्हें, तुम ही  दे  दो सीष।
'विज्ञ' छन्द विज्ञान  में, भर ही  देना भाव।
पार  आप  ही  ईष्ट से, उतराओ  तो नाव।
.                   ------+----
©~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:12 AM] Babulal Bohara Sharma: .                पटल छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित छंद -
विधान - १६ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
१०, ६ वर्ण पर यति अनिवार्य है।
रगण रगण सगण जगण तगण गुरु 
२१२ २१२  ११२  १,२१ २२१   २

.              _छंदशाला_

छंद शाला  बने  सिरमौर, संग  विज्ञात  जी।
सीखते हैं सभी कवि छंद, मंच विख्यात जी।
वर्ण मात्रा गिने यति  'विज्ञ', नित्य ही छंद में।
सीखते  सीखते  कवि मित्र, वर्ण  के  द्वंद में।

मंच संचालिका 'सपना' व, अन्य संगी रहे।
कर्म धारे सुवासित सत्य, बात सच्ची कहे।
खोज लाते  नये गण  छंद, छंद के गीत वे।
कामना सत्य है  कवि संग, भाव संगीत वे।

संग विज्ञात है गुरु देव, 'विज्ञ' जानो सभी।
गीत में प्रीति में भगवान, मित्र मानो कभी।
'विज्ञ' को ज्ञान देकर मान, भी बढाते वही।
छन्द विज्ञान  ग्रन्थ विवेक, में  बिठाते वही।
.                  ------+-----
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:12 AM] Babulal Bohara Sharma: .              दुर्वासा छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १६ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
७, १६ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
रगण मगण त,गण भगण सगण गुरु 
२१२ २२२ २,२१ २११ ११२ २

.          _शारदा सुत कहलाऊँ_

वंश है  दुर्वासा  का, विप्र  ब्राह्मण  कुल मेरा।
मान का ही हूँ भूखा, भोग त्यागित कुल चेरा।
वेद  पाठी  हूँ  ज्ञानी, शारदा  सुत  कहलाऊँ।
भारती हिन्दी भाषी, हिन्द के नित गुण गाऊँ।

देव पूजे  हैं  सारे, संत  जीवन  ऋतुपायी।
लोक को देने वाला, विप्र ब्राह्मण वरदायी।
मान मे घाटा हो  तो, विष्णु के उर पगमारे।
शाप लक्ष्मी का झेलें, गर्व को हम कब हारे।

दान  लेते  भी  देते,  भूमि  है  परशु  हमारा।
शस्त्र शास्त्रो के ज्ञानी, युद्ध मे रिपु दल हारा।
क्रोध है दुर्वासा का, ज्ञान है ऋषि मुनि जैसा।
'विज्ञ' छंदों में  गाए, काव्य हो  मन हर वैसा।
.                  --------+-----
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:12 AM] Babulal Bohara Sharma: .                 सदा छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान,- १६ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत
७,१६ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
भगण मगण त,गण यगण जगण गुरु 
२११  २२२  २,२१  १२२  १२१  २

.          _वीर प्रसूता धरा रही_

भारत में वीरों ने, जन्म लिया है सदा सदा।
शत्रु  विदेशी  धावे, भी करते थे यदा कदा।
तक्षशिला के राजा, के  सपने तो छले गये।
पौरस  से  यूनानी, सैन्य  हरा  के चले गये।

मान बढ़ाते राजा, वीर  कथाए  कभी सुने।
था गजनी भी आया, लूट मचाई सभी सुने।
आकर गौरी ने भी, युद्ध किए थे गया कहीं।
राज्य  रहा  चौहानी, वीर  प्रसूता  धरा रही।

युद्ध सनेही राणा, ने  मुगलो को हरा दिया।
बाबर से आगे भी, तो बदला वे नया लिया।
चेतक- राणा कीका, शाह विरोधी रहे सदा।
'विज्ञ' रचे छंदों का, ग्रंथ विधानी  पढ़ें सदा।
.                     ------+-----
©~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:12 AM] Babulal Bohara Sharma: .                देही छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १६ वर्ण, प्रति चरण 
चार चरण, दो दो समतुकांत हो।
८, १६ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
मगण तगण जग,ण जगण यगण गुरु 
२२२ २२१ १२,१ १२१ १२२ २

.              _देह पहेली है_

क्या भूलें हैं याद करें, यह देह पहेली है।
देखें जाने जीवन में, नर रूह अकेली है।
नाती सम्बंधी ठगते, सब वित्त सनेही थे।
माता बापू स्वर्ग गये, भगवान विदेही थे।

संसारी संबंध निभे, सब स्वार्थ सने देखे।
नाते रिश्ते  दैव लिखे, सब ईश्वर के लेखे।
काया माया  प्रीत थके, नवगीत बुढ़ापे में।
लाचारी में अंग हुए, मिथ प्रीत न आपे में।

देही जाए प्राण तजे, सब झूठ भले रोते।
देखे जाने या समझे, खुश अंदर से होते।
छंदों से विज्ञान रचे, मन 'विज्ञ' बने छंदी।
झूठे नाते भूल रहा, मन भाव कथा द्वंदी।
.                   -------+-----
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:12 AM] Babulal Bohara Sharma: .                मधुकर छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १६ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो( वर्णिक दोहा)
९, १६ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
भगण सगण रगण, भगण मगण लघु
२११  ११२  २१२, २११  २२२   १

.             _मिथचारी मर्त्य_

श्वान शहद खाए नही, गर्दभ  मिश्री भोग।
देह तड़प हो  मृत्यु  या, व्यापित होंगे रोग।
मानुष तन ले  दुष्ट भी, पाप करे भर काम।
ईश भजन  या  वंदना, राम  नहीं  ले नाम।

दैनिक भरते दम्भ वे, नैतिकता को त्याग।
राम भजन होता नहीं, नित्य लगाते आग।
मानस अपराधी  बने, ये  मिथचारी  मर्त्य।
रैन दिवस हैं पाप में, क्या समझे साहित्य।

भारत अपना  देश है, धर्म धनी संस्कार।
मानव तन से कीजिए, दान दया व्यापार।
छन्द सृजन के कर्म से, ग्रन्थ रचे  विज्ञान।
आप सुजन हे साथियों, छंद रचें आसान।
.                     ------+-------
©~~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:12 AM] Babulal Bohara Sharma: .            अभिलाषी छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद 
विधान - १६ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
९, १६ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
तगण तगण नगण  मगण सगण गुरु 
२२१  २२१  १११, २२२  ११२   २

.            _सच्ची प्रीत पलेगी_

काश्मीर से केरल तक, हिन्दी हो जन भाषा।
हो देश विदेशों तक यह, ऐसी हो अभिलाषा।
बंगाल  से  सागर तक, हिन्दी  हिन्द सुनाओ।
साहित्य की  पावन लय, में ज्ञानी गुण गाओ।

माँ भारती  आकर  नव, छंदी  गीत  रचेगी।
है कामनाएँ  शुभ  शुभ, सच्ची प्रीत पलेगी।
आकाश से भूतल तक, हिन्दी ही जन बोले।
संस्कार से संस्कृति भव, सम्माने मुँह खोले।

संज्ञान ले  लेखक गण, सारे  पाठक संगी।
भाषा  रहेगी  समरस, होगी  संस्कृति रंगी।
हे 'विज्ञ' भौंरे मधुवत, हो हिंदी अभिलाषी।
यूरोप से  भारत तक, जाते  हिन्द सुभाषी।
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©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:12 AM] Babulal Bohara Sharma: .            अशोक छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १६ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
९, १६ वें वर्ण पर यति अनिवार्य।
तगण जगण जगण रगण भगण गुरु 
२२१  १२१  १२१, २१२  २११  २

.              _बुद्ध माना जिसने_

सम्राट  अशोक  महान, चक्रवर्ती  नृप  थे।
चाणक्य सनेह  सुयोग, साधना के तप थे।
साम्राज्य अखंड सदैव, मौर्य कालीन रहा।
था देश विदेश विशेष, चण्ड तल्लीन रहा।

सैल्यूकस से रण जीत, जीत लाए वधु भी।
दे  दात्र  दहेज विधान, छोड़ता आयुध भी।
संभ्रांत  कलिंग  सुराज, युद्ध  ठाना उसने।
विज्ञात  विशेष विनाश, बुद्ध माना जिसने।

हो युद्ध नही अब ठान, बौद्ध का धर्म लिया।
हो धर्म  विकास  प्रचार, पुत्र को  मर्म दिया।
थे  स्तंभ अशोक विशिष्ट, देश के आवृत में।
यूँ  धर्म  प्रबोध  अशोक, बुद्ध  माने  व्रत में।
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©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:12 AM] Babulal Bohara Sharma: .               देविका छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १६ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
सगण तगण तगण तगण तगण गुरु 
११२  २२१  २२१  २२१  २२१   २

.              _मन की वीणा_

जब से कान्हा गये  राधिका तृष्ण है  द्वन्द में।
मन की वीणा  कहे कृष्ण ही कृष्ण है छंद में।
कब से कान्हा तुम्हारी करूँ साधना नित्य ही।
अब तो आओ कन्हैया भरो भावना सत्य ही।

 हरि ने ऐसा किया वे गये छोड़ के प्रीति में।
मन  के  धागे  हमारे  गये  तोड़ के रीति में।
कब  वे आएँ कन्हाई उन्हें  जोड़ लें प्रेम हो।
मन की भूली  दिशाएँ वहीं  मोड़ लें क्षेम हो।

भटकी  राधा  विदेही  हुई प्रीति में  बावरी।
वह तो  कोरी कहानी  रही रीति में  बावरी।    
हम यों  सोचे  बना  के नये  छंद है मीत हैं।
प्रभु जी देना  समीक्षा  कई  द्वन्द है रीत है।
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©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:12 AM] Babulal Bohara Sharma: .             विष्णु छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १६ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
७, १६ वें वर्ण पर यति अनिवार्य।
रगण यगण स,गण भगण तगण गुरु 
२१२  १२२ १,१२  २११  २२१   २

.             _छन्द छन्द में देश_

विष्णु गुप्त कौटिल्य, सँभालो अपने देश को।
हो  अखण्ड  उद्घोष, पुराने  शुभदा  वेश को।
हे महामना चाणक्य, सुनाओ  पहला राग हो।
राष्ट्र प्रेम का ज्वार, बढ़ाता  खिलता फाग हो।

नन्द वन्श का नाश, करें यों फिर से धार लो।
ब्रह्म शक्ति उद्घोष, वही हो द्विज ये भार लो।
अर्थवान  हैं  राज्ञ, बुभुक्षित  प्रजा  देश  की।
लोक तंत्र  के  नाम, मिटाते  गैरिक  वेश की।

मानवीय जो द्वन्द, मिटाने मिथ आधिक्य हो।
आज आपकी माँग, बढ़ी है फिर चाणक्य हो।
'विज्ञ  छन्द  विज्ञान', रचे  हैं  कर  के साधना।
छन्द  छन्द  में  देश, पढ़ोगे  सच  हो कामना।
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©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:12 AM] Babulal Bohara Sharma: .             प्रतीक्षित छन्द

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १६ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
११, १६ वें वर्ण पर यति अनिवार्य
भगण भगण यगण यग,ण सगण गुरु 
२११  २११  १२२  १२,२  ११२   २

.          _बजा बाँसुरी छंद सुनाऊँ_

हे मन मोहन  बजा  बाँसुरी, छन्द सुनाऊँ।
छंद रचूँ हरि सुनो  तान भी, वर्ण गिनाऊँ।
प्रीत करूँ हरि सदा आपसे, सत्य मानिए।
आप डरो कब सगे बाप से, नित्य जानिए।

मोहन पावन  करूँ याचना, नृत्य दिखाओ।
शुद्ध विचारित भरे भावना, छन्द सिखाओ।
हे नट नागर  लिखूँ  छन्द भी, वर्ण सुझाना।
आप छले मन छले द्वन्द भी, झूल झुलाना।

'छंद' विधा रच रहे 'विज्ञ' हैं, ग्रन्थ बनादो।
लोग कहे यह  निरा अज्ञ है, वे समझादो।
हे   यदु नन्दन  चले  आइए, ठान  बहाने।
प्रीति भरे  पद सुना  गाइए, भाव रिंझाने।
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©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:13 AM] Babulal Bohara Sharma: .          निषादराज छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा अन्वेषित छंद--
विधान - १७ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
१२,१७ वर्ण पर यति अनिवार्य है।
भगण भगण रगण नगण, भगण गुरु गुरु 
२११  २११  २१२  १११,  २११  २   २

.             _हे दशमेश_

 हे हरि हे भगवान भाव रस, भी भर देना।
शारद दे मति  'विज्ञ' छंद नव, लाकर देना।
आकर देव  गणेश  आप कर, के रचना है।
पावन  भाव समेत  मिष्ठ लय, में रखना है।

माधव  कृष्ण  मुरारि रास तब, ही रचिएगा।
सादर  'विज्ञ' रचेत  छन्द पद, में  रखिएगा।
हे प्रभु शम्भु महेश आप घर, आकर  के ही।
वर्णिक शुद्धि करो तभी  सरस, ये बरसे ही।

हे गुरु  हे  दशमेश वीर रस, से भर देना।
भारत देश विकास तंत्र शुभ, ईश्वर देना।
मानस मान विशेष मंद मति, के हम तेरे।
शारद बुद्धि प्रदाय क्षीण कर, दो तम मेरे।
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©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:13 AM] Babulal Bohara Sharma: .                  बाला छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ, द्वारा
अन्वेषित छंद -
विधान - १७ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
११, १७ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
भगण तगण यगण मग,ण भगण गुरु लघु 
२११  २२१  १२२  २,२२  २११  २     १

.          _बालाजी_

और परीक्षा कितनी लोगे,
होता 'विज्ञ' हताश।
हे बजरंगी अँधियारो में,
लाओ सत्य प्रकाश।
जीवन बीता पर पाया क्या,
बोलो हे हनुमान।
आस तुम्हारी कब जानोगे,
हे मेरे भगवान।

राह अँधेरी कब बीतेगी,
है काया मन क्षीण।
पीर पहेली उलझी भारी,
सोचे 'विज्ञ' प्रवीण।
कष्ट हरो हे प्रिय बालाजी,
झीने जीवन प्राण।
कालजयी पुस्तक हो मेरी,
तो मानूँ भव त्राण।
.                 ---------+---------
©~ ~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:13 AM] Babulal Bohara Sharma: .               अवतार छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १७ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
११, १७ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
नगण जगण रगण मग,ण जगण गुरु गुरु 
१११  १२१  २१२  २२,२  १२१ २    २

.                  _धर्म हेतु_

जब जब हानि धर्म की होती, जन्म ईश धारे।
सुर  नर  हेतु  धर्म  रक्षा  को, दुष्ट  दैत्य  मारे।
नभ जल भूमि लोक संसारी, मर्त्य जीवधारी।
तरु गिरि श्रंग सिंधु पाताली, सृष्टि दृष्टि सारी।

सम रस राम  बन्धु राजा थे, भूमि भार हारी।
दसमुख-मेघनाथ को मारा, लंक सैन्य सारी।
गिरिधर कृष्ण कंस को मारे, कालिया संहारे।
खल शिशुपाल  कौरवी सेना, युद्ध ठान मारे।

जग जन हेतु शेष भू धारे, भूमि भार सारा।
जगहित मात शारदा मैया, ज्ञान मान धारा।
नित रचता सनेह छंदों में, 'विज्ञ'  ग्रंथ छंदी।
कवि जन हेतु साधना मेरी, भाव भृंग द्वंदी।
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©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:13 AM] Babulal Bohara Sharma: .              वारिद छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १७ वर्ण, प्रति चरण 
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
१२, १७ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है 
भगण भगण रगण यगण नगण लघु गुरु 
२११  २११  २१२  १२२  १११  १   २

.                 __पैर बैर धोते_

पावस  सावन बूँद  बूँद वर्षा, गति पति की।
सावन  प्रीतम मीत  याद हर्षे, पल रति की।
सुन्दर सुन्दर  पेड़  पौध भीगे,   जल  बरसे।
बोझिल बोझिल डाल पात झाँके, घट तरषे।

मोहन मोहक रंग  संग राधा, सखि सब ही।
आकर भावुक मीत प्रीत होते, मिल तब ही।
अद्भुत पावन  नद्य  तीर  होते,  हरि  पद से।
मोहन  माधव  पैर  बैर  धोते, बिन  मद  से।

अम्बर वारिद  गर्ज  के  डरावे, हरि  हँसते।
अंचल चंचल दामिनी झँकावे, नभ जलते।
आतप  सूरज तेज  वेग तापी, जग प्रभु हैं।
मानस भावन  छंद ग्रंथ लेखे, हरि विभु है।
.                     --------+-----
©~~~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:13 AM] Babulal Bohara Sharma: .              अयोध्या छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद--
विधान - १७ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
८, १७ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
भगण जगण रग,ण यगण नगण लघु गुरु 
२११  १२१  २१,२  १२२  १११  १    २

.                     _राम मंदिर_

मंदिर बना विशाल, राम का धाम अवध में।
मानुष हुए अपार, राम का काम अवध में।
भारत रहा विशेष, राम का देश सबल है।
राम रघुवीर नाम, पूजता विश्व सकल हैं।

मानस रचे  महान, दास  स्वामी  हरि तुलसी।
मानव पढ़े सदैव, आत्म आत्मा मय हुलसी।
राम भज सत्य मान, सत्य संसार सुयश है।
लक्ष्मण सिया समेत, बंधु सारे शुभयश है।

धाम  शुभ  मान 'विज्ञ', चार  बेटे दशरथ के।
है अवध सत्य तीर्थ, राम सच्चे नर पथ के।
दर्शन करो सदैव, 'विज्ञ' शर्मा सियवर है।
सादर रहे विदेह, मात सीता रघुवर हैं।
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©~~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:13 AM] Babulal Bohara Sharma: .               दैहिक छंद


बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १७ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
८,१७ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
मगण तगण जग,ण जगण यगण गुरु गुरु 
२२२  २२१  १२,१  १२१  १२२    २   २

.                _रूह अकेली रोती_

क्या छूटे क्या प्राप्त करे, नर देह पहेली जानो।
कैसे  झूठे सत्य मिले, बस  मौत सहेली मानो।
जन्मे तो  सारे खुश थे, पितु मात  सनेही भाई।
खेले  दौड़े  संग  रहे, मिल  संगति  रोटी  खाई।

धीरे धीरे वक्त नया, बदले  सब ही  सम्बन्धी।
रिश्ते भूले  स्वार्थ बढ़े, तब से नव भौंरे गन्धी।
झूठी होती प्रीति गई, फिर स्वार्थ सनेही भाई।
संगी  नाती  रूठ रहे, बहिने कहँ माँ की जाई।

सन्तानें भी  दूर हटे, धन माल  मिले तो बोले।
हिन्दी छन्दोंं में  रमते, तब 'विज्ञ' गँठाने खोले।
काया श्वाँसे  जीर्ण  हुए, हर वक्त  बुराई होती।
आत्मा देही छोड़ चले, सच रूह अकेली रोती।
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©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:13 AM] Babulal Bohara Sharma: .                 गांडीव छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १७ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
७, १६ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
भगण मगण स,गण सगण मगण गुरु लघु
२११  २२२  १,१२  ११२  २२२  २   १

.                 _लोहू के हैं तृष्ण_

पार्थ करे  संधान, सुने जब  पूरा  गीता ज्ञान।
युद्ध सनेही कृष्ण, दिये हरि  वीरों वाला मान।
पार्थ उठा  गांडीव, करे तब  सेना  से  संग्राम।
कृष्ण कन्हैया सार्थ, करे हरि सेना संगी काम।

युद्ध हुआ था  क्रुद्ध, मरे भट  सेनानी आकूत।
याद  रहे  वे  दृश्य, बने  हरि  आए थे  हो दूत।
राज नहीं तो गाँव, दिए कब माँगे थे श्रीकृष्ण।
शस्त्र उठाए  सैन्य, हुए अब लोहू के  हैं तृष्ण।

ऊष्ण हुआ गांडीव, करे गुरु सेना का संहार।
बन्धु बने है  शत्रु, कहे  सब काटो  वीरों मार।
'विज्ञ' रचाए छंद, कहे वह युद्धों का हो अंत।
सत्य रचे साहित्य, दिखे तब आशावादी पंत।
.                  ----------+-------
©~~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:13 AM] Babulal Bohara Sharma: .               नेहदान छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान -  १७ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
८, १७ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
रगण तगण मग,ण जगण तगण लघु गुरु 
२१२  २२१  २२,२  १२१  २२१  १     २

.           _शारदे आशीष दे तो_

शारदे का नेह हो तो, 'विज्ञ' छंद संधान ठने।
साधना हो छंद की तो, ग्रंथ छंद विज्ञान बने।
कृष्ण ने गीता सुनाई, पार्थ धार गांडीव खड़े।
छन्द वे कान्हा सुनाए, ज्ञानवान संस्कार बड़े।

शारदे माँ की कृपा से, कालिदास विद्वान हुए।
दस्यु से वाल्मीकि होते, धर्म ज्ञान के मान हुए।
गेह आत्माराम हुए थे, माँ रही अभागी हुलसी।
शारदे माँ  की दया थी, राम बोल गाए तुलसी।

कामनाएँ 'विज्ञ' की है, ग्रंथ छंद विज्ञान रचें।
शारदे आशीष दे तो, छन्द साधना मान पचें।
माँ गिरा आशीष देना, नेह दान दो ज्ञान बढ़े।
भावनाएँ भाव भीगी, छन्द ग्रन्थ विद्वान पढ़े।
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©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:13 AM] Babulal Bohara Sharma: .               संतोषी छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १७ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
१०, १७ वें वर्ण पर यति अनिवार्य।
भगण मगण भगण तगण यगण गुरु गुरु 
२११  २२२  २११  २,२१  १२२  २   २

.            _और भला क्या लेना_

जन्म दिया दाता ने मुझको, और भला क्या लेना।
मात पिता दोनों के  हम को, हैं ऋण भी  तो देना।
देव  धरा  माता  के  चरणों,  में   पलते  हैं   संगी।
कर्ज   उतारें   सोचा   करिए,  जीवन   देना  रंगी।

जन्म दिया संतानो सुन लो, ज्ञान  दिये हैं  सारे।
वृद्ध हुए  तो  कैसे  झगड़े, वे  लगते  क्या  भारे।
थे गुरु दाता भी ज्ञान दिया, शुल्क अभी है देना।
भान रहे  क्या देना  उनको, क्या उनसे  है लेना।

देश हमारा मानें अपना, सिद्ध  इसे भी  होना।
नीर हवा पौधे भोजन भी, है प्रभु में ही खोना।
'विज्ञ' सनेही साहित्य पढ़ो, छंद सुहाने पाओ।
मात पिता दाता के गुण ये, ग्रंथ पढ़ें तो गाओ।
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©~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:14 AM] Babulal Bohara Sharma: .                कामना छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १८ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
६, १८ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है 
भगण भगण, रगण यगण नगण नगण
२११  २११, २१२  १२२ १११  १११

.               _विज्ञ कामना_

हे  परमेश्वर,  विज्ञ  छन्द  विज्ञान  सुफल  कर।
माँ  शुभ शारद, ज्ञान  संग  साहित्य सुयश भर।
कथ्य कथानक, काव्य भावना वर्ण गणन यति।
भाव  सुवासित, गीत  वन्दना  छन्द सुगम गति।

हे  जगदीश्वर, राष्ट्र भावना  में जन  गण मन।
सैन्य प्रशिक्षित, शस्त्र संग सीमा पर भट जन।
वीर  कवायद, मान  देश का  है रख सिर पर।
'विज्ञ' कहे  हरि, संग सारथी  है प्रभु गिरिधर।

छंद रचे नव, विज्ञ' कामना है विजय सरल।
मात विशारद, ज्ञान याचना  है सुगम तरल।
श्रेष्ठ बने यह, विज्ञ छंद विज्ञान  विमल कर।
शीश नवाकर, 'विज्ञ' वन्दना है हरि गिरिधर।
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©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:14 AM] Babulal Bohara Sharma: .                   राधेय छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ, द्वारा
अन्वेषित छंद -
विधान: - १८ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
९, १८ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है
राधासुत छंद का दोगुना छंद है।
रगण भगण भगण, रगण भगण भगण 
२१२ २११ २११, २१२ २११ २११

.                  _कृष्ण - कर्ण_

कृष्ण का शापित जीवन, कर्ण जैसा उनका मन।
श्याम  मीरा  भजती मन, कर्ण जैसा वह जीवन।
कैद  में  जन्म  लिये वह, कर्ण कुन्ती उर  से तन।
देवकी  त्याग   दिये  वह, त्याग कुंती  करती मन।

गाय वे नित्य चरा कर, कर्ण  राधेय  अधीरथ।
दूध घी सत्व चुराकर, कर्ण  सीखे  पटवी रथ।
नाचते तक्र पिये नित, सीखता कर्ण दिवाकर।
भागते दोष छुपे हित, ज्ञान ले जाति छुपाकर।

प्रीति  राधा करती वह, कर्ण  राधा सुत है अब।
थी  रुहानी  पलती  वह, मीत  दुर्योधन  है तब।
भागते  युद्ध  तजे हरि, शाप  झेले गुरु का चुप।
जीवनी शापित श्रीहरि, कर्ण भी शापित है नृप।
.                       -------+-----
©~~~~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:14 AM] Babulal Bohara Sharma: .               परशुराम छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १८ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
१०,१८ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
नगण रगत भगण भ,गण सगण सगण
१११  २१२ २११ २,११  ११२  ११२

.                   _परशु_

परशुराम  का  वंश  रहे,  जब  तक  है  धरती।
सहसबाहु  के  छेद  सके, भुज  बल से जगती।
सरल आत्म सम्मान रखे, ऋषि जमदग्नि जिए।
परशुराम का  जन्म हुआ, कुल हित  यज्ञ किए।

तब हुआ सुहाना शिशु तो, प्रमुदित थे कुल में।
परशु  नाम  राखे  सब  ही, मृदु रहते  कुल के।
शिव भजे हमेशा साधक वे, शुभवर राम मिले।
परशुराम जी  भक्ति  करे, फल  वरदान  मिले।

खल क्षत्रिय मारे सब ही, सकल धरा पर से।
बहुत  बार  की  ये घटना, तब चमके फरसे।
सतत शम्भु के साधक हैं, अमर कहे उनको।
परशु छंद में 'विज्ञ' कहे, सरस लगे मन को।
.                  --------+------
©~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:14 AM] Babulal Bohara Sharma: .               जीवन छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा अन्वेषित छंद -
विधान - १८ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
९, १८ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
सगण जगण भगण, सगण सगण सगण
११२   १२१   २११, ११२  ११२  ११२

.           _निज कर्म भाग्य धारित_

हर पाप पुण्य का फल, यह मानव का तन है।
निज कर्म भाग्य धारित, यह मानस जीवन है।
कर- भोग्य नीति से विधि, रचते रहते नर को।
भगवान  भेजते  फिर, धरती  पर  ऊपर  को।

नर हो तिया भले वह, भगवान हिसाब रखे।
मृत प्राण  देह होकर, वह सत्य प्रसाद चखे।
मत पाप धारणा रख, हर कर्म  लिखा धरते।
कर पुण्य कामना सच, भगवान भला करते।

रच 'विज्ञ' छंद के गण, तब छंद रचा करिए।
गिन वर्ण भार वर्णिक, नव छंद बना रखिए।
हर बात  छन्द में कह, तब ग्रन्थ  बना करते।
फिर  मात  शारदे हित, चरणों  पर  हैं धरते।
.                        --------+-------
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:14 AM] Babulal Bohara Sharma: .              यथार्थी छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १८ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
९, १८ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
मगण मगण सगण, भगण भगण मगण 
२२२  २२२  ११२,  २११  २११  २२२

.                 _मृत्यु सहेली है_

जो पाए  वे खोए जग में, जीवन एक पहेली हैं।
झूठे नाते  रिश्ते  अपने, संगति  मृत्यु सहेली है।
जन्मे तू  तू मैं  मैं जपना, मानव मानस पाते ही।
तेरा मेरा  जाना सब ने, ज्ञान हुआ वय पाते ही।

क्या पाया है  कैसे किसने, चैन इसी पर खोया है।
क्या खोया है  कैसे हम ने, सोच यही  नर रोया है।
क्या है  तेरा मेरा  सब का, ये भगवान सभी के है।
योगी भोगी राजा जन हो, अंत समान सभी के है।

झूठे झाँसे  चोरी चुगली, लूट करे  नर ठाले ही।
ईमानी  धोखे से डरिए , नाग डसे  घर पाले ही।
मेरी बातें मानें मनुवा, प्रीति निभा हरि से प्यारे।
छंदों के शोधों में रमता, 'विज्ञ' रचे पद न्यौछारे।
.                     --------+-----
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:14 AM] Babulal Bohara Sharma: .                 विद्वत छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १८ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
१०, १८ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
भगण मगण भगण र,गण रगण रगण
२११  २२२  २११  २,१२  २१२  २१२

.              _ग्रंथ रचा छंदों का_

ज्ञान भरा छंदों का जिसमें, वही छंद विज्ञान है।
देश विदेशी बाते सब हो, तभी ग्रंथ का मान है।
भारत में छंदों की रचना, सदा कामना साधना।
हिंद सजे हिंदी में लिखिए, रहे शुद्धता भावना।

छंद रचें भावों से लिपटे, यथा प्रीत के गीत हों।
प्रीति सनेही के संगति भी, रखे रीत वे मीत हो।
वर्ण सहेजे ले सुन्दर से, गिने मात्रिका भार भी।
तान भरे ऐसे ही गण लो, बहे भाव की धार भी।

छंद सवैया दोहे कविता, भले माहिया छन्द हो।
मानस सी चौपाई रचिए, रचे सदा  नि: द्वंद हो।
'विज्ञ' रचे भावों की रचना, करे साधना  शारदे।
ग्रन्थ रचा छन्दों का भव से, गिरा शारदे तार दे।
.                     --------+------
©~~~~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:14 AM] Babulal Bohara Sharma: .                निवासी छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १८ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
९,१८ वें वर्ण पर यति अनिवार्य।
रगण तगण नगण जगण तगण यगण
२१२  २२१  १११  १२१ २२१  १२२

.                    _कुल मेला_

बाण गंगा  के तट पर, सिकन्दरा गाँव  हमारा।
भूमि खेती है समतल, सुवास मानो यह सारा।
धर्म मेरा हिन्दु  सुयश, निवास है उच्च बनाया।
वर्ग मेरा ब्राह्मण कुल, विशिष्ट विद्याधन पाया।

नौकरी है शिक्षक पद, वरिष्ठ हैं शिक्षक भाई।
कर्म है विद्यालय हित, विवेक में है कविताई।
छन्द शाला में पढ़ कर, सुयोग से छंद बनाए।
'विज्ञ'  है मेरा उप पद, विशुद्ध विज्ञान रचाए।

बन्धु हैं तीनों  अब तक, महेश है पुत्र अकेला।
पाँच हैं मेरी बहिन व, सुता अकेली कुलमेला।
गाँव में  ऊँचे तल पर, समीप  वासा  बजरंगी।
संगिनी  शांता  घर पर, सदैव  सम्मान प्रसंगी।
.                      -------+-----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:15 AM] Babulal Bohara Sharma: .                   भारत छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १९ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
५,१०,१९ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
रगण यग,ण जगण त,गण जगण यगण गुरु 
२१२  १२,२  १२१  २,२१  १२१  १२२   २

.                       _हिन्द देश है_

राम देश के, देश राम का, भारत  की  परिभाषा है।
देश प्रेम  में, प्रेम देश  में, मात्र  यही  अभिलाषा है।
हिन्द मानवी, हिन्द देश है, भारत में  बस हिन्दी हो।
मात शारदे, मात भारती, शक्ति बनी तिय बिन्दी हो।

जन्म भूमि है, कृष्ण वन्दना, हो  मथुरा  यह चाहेंगे।
ईश भक्ति  में, दैव शक्ति  है, भाव  भरे  पद गाएँगे।
विश्वनाथ के, धाम साधना, है करनी बस  काशी में।
घाट गंग के, स्नान नेह से, पूज्य शिवा अविनाशी में।

राम मूर्ति में, बंधु भाव हो, दर्शित धाम अयोध्या हो।
मात जानकी, शान देश की, मानस में नवआद्या हो।
कर्म  लक्षणा, धर्म  प्रेम  का, द्वेष  मिटे शुभता पाएँ।
छन्द ग्रन्थ में, 'विज्ञ' छन्द है, 'विज्ञ' कहे रचता गाए।
.                       -------+-----
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:15 AM] Babulal Bohara Sharma: .               उपालंभ छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १९ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
१०, १९ वें वर्ण पर यति अनिवार्य।
भगण मगण सगण भ,गण भगण सगण गुरु 
२११  २२२  ११२‌  २,११  २११  ११२   २

.                  _दें सीख सनेही_

जन्म दिया  संस्कार  सिखाते, तब मानव कहलाते।
जो बिगड़ी संतान पिता की, धिक जीवन भव पाते।
चोर  लुटेरे  दोष  भरे  जो, मति मन्द  कुटिल  होते।
मात पिता के  जन्म बिगाड़े, निज जीवन धन खोते।

संतति को दें  सीख सनेही, भरना शुभ मन में तो।
मान अपेक्षा मात पिता के, उस संतति सुत से तो।
पुत्र विवेकी  एक भले  हो, दस  से  बढ़ कर माने।
बारह  बच्चे  कौन जने  ये, तुम भी हम सब जाने।

मात सपूती बाप सपूता, तब हो जब सुत सच्चा।
दुष्ट  निकम्मे  पुत्र  बुरे सौ, उन से तरुवर अच्छा।
'विज्ञ' सनेही छंद सुने तो, समझें तब समझाओ।
ग्रन्थ रचा विज्ञान यथा है, रचना सब मिल गाओ।
.                           ---------+-------
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:15 AM] Babulal Bohara Sharma: .                   जटायू छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १९ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
१०, १९ वें वर्ण पर यति अनिवार्य।
जगण मगण सगण त,गण रगण भगण गुरु 
१२१  २२२  ११२  २,२१  २१२  २११   २

.                   _धन्य जटायू_

अरे जटायू भाग्य तुम्हारे, गोद राम के प्राण तजे।
किसे मिले संयोग जटायू,अंक ईश के त्राण सजे।
सिया चुराई  रावण भागे, आप रोकते  तायल थे।
लड़े किया  संघर्ष कटे थे, पंख आपके घायल थे।

गया सिया ले  रावण लंका, राम ढूँढते आप मिले।
कही कहानी रावण वाली, देह राम को देख खिले।
उठा लिए  ले गोद  सुलाए, राम आपके दर्शित थे।
अश्रु गिराते  थे द्वय भाई, प्राण  आपके हर्षित थे।

लगे गिराने  पुष्प  वहाँ  थे, देव  स्वर्ग  के देख रहे।
कहे सभी हो धन्य जटायू, भाग्य आपके लेख रहे।
नहीं कभी ऐसा हम देखे, आप राम की गोद सखे।
सुनी कथाएँ 'विज्ञ' लिखे हैं, छंद नव्य में मोद रखे।
.                       -------+------
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:15 AM] Babulal Bohara Sharma: .                   प्राकृतीश छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १९ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
१०,१९ वें वर्ण पर यति अनिवार्य 
रगण जगण यगण भ,गण मगण भगण गुरु 
२१२  १२१  १२२ २,११ २२२  २११   २

.                _पाँच तत्व निर्माण करें_

पाँच  तत्व  प्राकृत में  होते, मन चाहे  निर्माण करे।
आज आप में कल वे खोते, हर काया निर्वाण करे।
देह जीव की इनसे जानो, मिल पाँचों से  एक बने।
मूल तत्व  प्राकृत  में मानो, बस काया में  नेक बने।

भूमि  धारती  तन माटी  से, बनती हड्डी  चर्म सभी।
वायु श्वाँस में नित संगी है, चलती श्वाँसे थाम कभी।
रक्त  नीर  से  बन जाता है, बहता  देखें  सत्य यही।
प्राण अग्नि से यह आता है, सहते जाने नित्य वही।

देह जीव चेतनता  सारी, तन मे आती  सोच सुनो।
मर्त्य मान  अम्बर से धारी, मन में सारी  बात गुनो।
संग पंच का  तन हो पाता, बिन पाँचों के देह नहीं।
एक छूटता तन खो जाता, सब जाते हैं और कहीं।

मेल पाँच का  तन निर्माणे, हम भी  सोचे पाँच बचें।
भिन्न एक भी तन निर्वाणे, तब काया को कौन रचे।
"विज्ञ" मानते सब विज्ञानी, इन तत्वों का रक्षण हो।
मिथ्य  धारणा  नर नादानी, कब सोचेंगे तत्क्षण हो।
.                             -------+-----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:15 AM] Babulal Bohara Sharma: .                      आत्मद्वंद छन्द

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - १९ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
९,१९ वें वर्ण पर यति अनिवार्य 
रगण यगण मगण, रगण नगण भगण गुरु 
२१२  १२२  २२२, २१२ १११  २११   २

.                 _सृष्टि दृष्टि हित सेतु बना_

द्वन्द छन्द का पाला मैने, सृष्टि दृष्टि हित सेतु बना।
युद्ध  आत्म  से ठाना  मैंने, ईष्ट देव  जन हेतु घना।
वर्ण शुद्ध हो बाजे  ताली, भूल मान पथ मौन चले।
धार शब्द में गीता वाली, शब्द कथ्य मन ज्ञान पले।

गीत प्रीति का गाया मैने, देह मोह तज आत्म चुनी।
रीति  प्रेम  की  जोड़ी  मैने, तार तार प्रिय हेतु बुनी।
भाव आत्म में  होवें  सच्चा, प्रीत मीत  नवगीत रहे।
सत्य बन्ध‌ ये  होता  कच्चा, बाँध सत्य मनमीत रहे।

द्वन्द भक्ति का  ठाना  मैने, ईष्ट  देव  भगवान भजे।
ईष्ट आत्म  में जाना  मैने, शुद्ध बुद्ध अभियान सजे।
ज्ञान छन्द के सीखे  संगी, शब्द वर्ण यति भाव रखे।
'विज्ञ' जीवनी सातों रंगी, ईष्ट प्रीति श्रमसाध्य सखे।
.                         -----+----
©~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:16 AM] Babulal Bohara Sharma: .                   भव स्मृति छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा अन्वेषित नवीन छंद 
विधान -- २० वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो सम तुकांत
६,१३,२० वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
यगण रगण भगण नगण तगण तगण गुरु गुरु
१२२  २१२  २११ १११  २२१  २२१  २   २

.                   _भव स्मृति रहे_

सुनो हे शारदे, माँ शुभ यश रहे, हाथ  वीणा रहेगी।
रहेगी भारती, जो हँस मुख वही, ज्ञान धारा कहेगी।
विधानी ग्रन्थ में, हैं स्वर लय सधे, गीत होंवें सनेही।
तुम्हारी वन्दना, हो प्रमुदित करूँ, ग्रन्थ धारो सुदेही।

हमारे देश मे, माँ  जन मन कहे, हिन्द-हिन्दी सुहाए।
पढ़ेंगे  मानवी, जो यश  गुण गहें, ग्रन्थ मैया लुभाए।
रचाए 'विज्ञ' ने, तो रस तुम भरो, मात साधो सुधारो।
विराजो शारदे, माँ लय गण कहो , भाग्य मेरे सँवारो।

मिटाएँ दोष थे, वे गुरु जन सगे, दें समीक्षा सनेही।
हमेशा काव्य में, तो यह स्मृति रहे, छंद मेरे घने ही।
रमें थे छन्द में, ही समरस बहे, तान छेड़ी विकासी।
विचारे विज्ञ के, ये भव स्मृति रहे, ग्रंथ होवे प्रकासी।
.                            -----+-----
©~~~~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:16 AM] Babulal Bohara Sharma: .                   प्रणेता छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा अन्वेषित छंद -
विधान - २० वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
१०, २० वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
भगण तगण यगण त,गण रगण नगण लघु गुरु 
२११  २२१ १२२  २,२१  २१२  १११  १   २

.                  _ज्ञान प्रणेता_

आज नहीं तो कल हारेगा, झूठ सत्य से यह तय है।
सत्य  हमारा  मरता है  या, झूठ मानवी यह भय है।
देव धरा  के  हम हैं  वासी, कर्म धर्म से परिचित हैं।
भारत ही  ज्ञान प्रणेता था, पाप पुण्य में जनहित है।

रामसिया की धरती मेरी, कृष्ण राधिके घट घट में।
सागर तीरे  नदिया  तीरे, भक्त साधिका पनघट में।
माँ  धरती  पे  बहती  गंगा, नीर नर्मदा  सतत बहे।
पर्वत ऊँचा  हिम धारी है, देश हेतु  जो  सजग रहे।

सत्य रहेगा विजयी संगी, 'विज्ञ' कामना अविरल है।
झूठ मिटेगा  कल हारेगा, सत्य  साधना अविचल है।
छंद हमारे जिसने  गाए, 'विज्ञ' मानता  शुभ अपना।
ग्रंथ  बनेगा  पढ़ना  सारे, 'विज्ञ' देखता  यह सपना।
.                        --------+------
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:16 AM] Babulal Bohara Sharma: .                       गरुड़मति छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान -  २० वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
११,२० वें वर्ण पर यति अनिवार्य 
भगण मगण नगण जगण सगण नगण गुरु गुरु 
२११  २२२  १११  १२१  ११२  १११  २   २

.                   _भगत सिंह बन जाए_

देश हितैषी जीवन जिसका, भगत सिंह बन जाए।
है उपकारी  मानस  उसका, सबल  देश बन  गाए।
देश  हमारा  है यह  अपना, विमल  नीर सम  होवे।
मान  बढाना जागृत सपना, मिथक नींद सब खोवें। 

भारत माता की जय जय हो, विजय भारत हमारा।
सैनिक सेना की नित जय हो, प्रबल मानस सँवारा।
उच्च तिरंगा  हो  यह  अपना, अटल मान रखना है।
कर्म  प्रकाशे  हो  श्रम सपना, सतत  कर्म करना है।

वेद पढ़ें तो ज्ञान सँवरता, भरत तुल्य बन जाओ।
छन्द रचें तो वाच्य सुधरता, सरस राग रच गाओ।
'विज्ञ' सनेही छन्द रच रहा, सुजन सीख सकते हैं।
सत्य दृगों  में  नीर बह रहा, सजल  भाव बहते हैं।
.                            ------+----
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:16 AM] Babulal Bohara Sharma: .                   उमापति छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ, द्वारा
अन्वेषित छंद -
विधान - २० वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
१२,२० वें वर्ण पर यति अनिवार्य 
नगण यगण रगण यगण रगण भगण गुरु गुरु 
१११  १२२  २१२ १२२, २१२  २११   २   २

.                  _छंद विज्ञान सँवारो_

शिव अविनाशी छंद ज्ञान देना, हिंद हिंदी रखने हैं।
रघुपति राजा वर्ण ध्यान देना, भाव भाषा रखने हैं।
सरस रचें  साहित्य छंद वाला, देश का मान रखेंगे।
सुयश मिले सम्मान द्वन्द पाला, छन्द विज्ञान रचेंगे।

सुन गिरधारी  प्रीति भाव लावें, भारती मात हमारी।
पन घट गोपी ग्वाल संग गावें, प्रीत की रीत सँवारी।
नटवर कान्हा छंद नव्य देना, आपकी ही जय बोले।
नित सुध मेरी कृष्ण ईश लेना, देव दोनों  दृग खोलें।

विमल कहानी विज्ञ नित्य गावे, जानिए मानव ठाले।
सुजन सनेही सत्य कृष्ण पावे, विज्ञ के छन्द निराले।
जब तक है आदित्य छन्द होंगे, छन्द विज्ञान सँवारो।
सृजक रहे साहित्य 'विज्ञ' होंगे, नाव को पार उतारो।
.                    -----------+----------
©~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:17 AM] Babulal Bohara Sharma: .                   योग-क्षेम छद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान -  २१ वर्ण, प्रति चरण,
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
११,२१ वें वर्ण पर यति अनिवार्य 
भगण भगण भगण तग,ण तगण नगण यगण
२११  २११  २११  २२,१  २२१  १११  १२२

      .           _बजे मौत पर शहनाई_

हे  नटनागर  मौत  मिले  तो, बजे मौत पर  शहनाई।
हे रघुनंदन पुष्प खिले  तो, सजे  चौक मन सुखदाई।
सत्य सनेह तुम्हें रखना है, चले 'विज्ञ' जन गुण गाते।
प्रीति प्रतीति बना रहना है, भले मीत पथ तक आते।

हे मन मोहन प्रीति पुरानी, कहें प्रीति पथ चलना है।
नित्य प्रसंग दिनेश सुनावें, भले रीति यह छलना है।
मानव मानस भाव भरोसा, रहे भाव प्रतिपल सच्चे।
पावन  सावन  नीर परोसो, रहे दूर  मिथ मन  कच्चे।

छन्द रहे जनमानस स्रोता, रचें छन्द प्रतिदिन गाओ।
पीठ नहीं तब पाठक देते, सुनो मीत हर शुभ पाओ।
छन्द बना नव छन्द बनाना, कहे विज्ञ तुम हरषाओ।
'विज्ञ' कहे नवरीति चलाना, सुधा प्रेम रस बरसाओ।
.                         -------+--------
©~~~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:17 AM] Babulal Bohara Sharma: .                      सनेही छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित मापनी आधारित छंद -
विधान - २१ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
८, ६, ७ वर्णो पर यति अनिवार्य है।
आंतरिक समतुकांतता भी अपेक्षित है।
तगण यगण भग,ण भगण रग,ण जगण यगण
२२१  १२२ २१,१  २११  २१,२ १२१  १२२

.               _साहित्य सनेही यज्ञ_

विज्ञात सिखाते छंद,
मिटा मन द्वंद, सीखते कवि सारे।
संगीत सनेही प्रीति,
रचे नवगीत, मंच पालनहारे।
आसान रखे वे वर्ण,
सुजान सुवर्ण, गीत जो मन भाए।
साहित्य सनेही यज्ञ, 
समीक्षक विज्ञ, छंद में रस लाए।

हैं 'विज्ञ' सनेही मीत,
निभे कवि प्रीत, गीतिका रच रंगी।
सम्मान दिलाए सत्य,
सिखाकर नित्य, मंच से कवि संगी।
विज्ञान विधानी पंथ,
रचा शुभ ग्रंथ, सीखना कवि सारे।
है 'विज्ञ' तुम्हारे साथ,
नवाकर माथ, मीत हो तुम प्यारे।
.                ---------+-------
©~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 12:17 AM] Babulal Bohara Sharma: .              चतुर्भुज  छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -
विधान - २१ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
११, २१ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
भगण तगण यगण नग,ण जगण नगण मगण
२११  २२१  १२२  ११,१  १२१  १११  २२२

.      _नर गतियाँ हारी_     
 
भोर हुई है जग में लेकिन,
 मन से तिमिर मिटा है क्या।
नीड़ निहारे घर खाली पर,
तन से अलस हटा है क्या।
स्वप्न सुहाने लगते है प्रिय,
जग की गतिविधियाँ खारी।
सत्य जताते सब को सूरज,
फिर क्यों नर गतियाँ हारी।

झूठ हराए सच का मानस,
सच तो अब भय से काँपे।
सत्य निराशे नर झूठे जय,
धन धान्य मनुज का भाँपे।
फ़ूहड़ का आदर मंचों पर,
कविता गुमसुम गाती है।
'विज्ञ' तुम्हारे नव छंदों हित,
जनता मन बिलखाती है।
.                   ---------+------
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/26, 10:30 AM] Babulal Bohara Sharma: .          कल्पनेश छंद


बाबा श्री कल्पनेश जी द्वारा निर्मित छंद -
विधान -  ११ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
रगण यगण नगण लघु गुरु 
२१२  १२२  १११  १   २

.         _गुरुजन हो_

राम नाम  गाते नित रटते।
कल्पनेश बाबा हरि भजते।
सत्य  शारदे  के पद रचना।
कर्म भक्ति के गीत सुमिरना।

सत्य प्रीति है श्री रघुवर में।
है  सनेह  सच्चा हरि हर में।
पूज्य संत सच्चे कविजन हो।
'विज्ञ' मानता है गुरु जन हो।

सत्य कामना दर्शन भव में।
भोर समान पंछी कलरव में।
शिष्य मानिए आप हृदय से।
'विज्ञ' भावना मान सदय से।
.          -----+----
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ

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